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कर्तुं रणगतेन हि VII. 22.47b ,, वै वरुणालये VI. 22.40b ,, व्यवसितः पिता VII. 4.I9d ,, व्यवसितोऽस्म्यहम् I. 52.21d ,, सर्वात्मना प्रियम् IV. 29.25d ,, स्नेहेन बन्धुना VI. 63.33b कर्तृणां ते निवारणे II. 23.39d कदंगः प्रथमस्तेपाम् III. I.4.7a कर्दमस्तु महातेजाः VII. 90.8c कर्दमरत्वनवीाक्यम् VII. 90.IHa कर्दमस्य इल: मुत: VII. 90.7b
,, प्रजापतेः VII. 87.3b कर्दमेनैवमुक्तास्तु VII. 90.13c कर्पूर दलशीतला: IV. 28.8b कर्म कर्तुं चिकीपसि II. 35.13d कर्मकालो मुनिश्रेष्ठ I. 65.36c कर्म किंचित्समारभेत IV. 50.23b ,, कुर्वन्ति दुष्करम् VI. 65.4d ,, ,, विधिवत् I. 14.3a ,, कृत्वा जगुप्सितम् IV. 17.35d
, चर्द्विजर्षभाः I. I.1.2b ,, चापि समाधेयम् V. 46.5c ,, चासत्कृतं प्रभो VII. 48.7b ,, चासुकर कृतम् VI. GI.8b ,, चैव हि सर्वेषाम् VI. 64.7a कर्मणः को नु तत्पुमान् III. 51.32b ,, प्राप्नुहीदानीम् VI. I03.16c ,, फलमश्नुताम् II. 78.IId , फलमागतम् VII. 25.21d ,, सुकृतस्य च VI]. 74.30b कर्मणा च विगर्हितः IV. 18.12b ,, तस्य शङ्किताः ]V. 57.1d ,, तेन महता I. I.83c , तेन हर्पितः IV. 12.7b ,, ,, हर्षिता: VI. 46.25d
कर्मणाऽनेन केनासि III. 31.45a
,, रावण III. 53.3b कर्मणानेन सुव्रत VII. 3.14b कर्मणा पालयिष्यामि II. 105.39c
, प्रतितर्कयन् V.46.6b ,, सूचयात्मानम् VI. 71.59a. कर्मणा व्यपनेष्यामि VI. 83.42c कर्मणामविचक्षणाः III. 51.26b कर्मणां फलभागिन: II. 109.28d कर्मणां यः प्रपद्यते VI. 63.7b
,, यः फलोदय: VI. II4.2b कर्मणोऽन्यन्न दृश्यते II. 22.21d कर्मणोऽस्माद्विगर्हितम् V. 22.13d कर्मणोऽस्य हनूमत: V. 63.50b कर्मण्यप्रतिसंहृते II. 22. Iob कर्मण्यस्मिन्यशोहरे VII. 50.8b कर्म ते साध्वनुष्ठितम् I. 18.47b ,, त्वेवानुधावति II. 63.9b , दुष्करकर्मणा VI. I.I3b ,, दौरात्म्यकं कृत्वा VII. I8.II
, पुंभिनिषेव्यते VI. 64.9b कर्मभि: कैः समन्विता I. 36.4b
,, ख्यातिमागता II. II7. I6b कर्मभिर्दुष्कुतैः त्वकैः VII. 21.21d
, बहुरूपैश्च VII. 79.13a ,, लोककुत्सितः V. 49.19b कर्मभिस्तस्य भीमैश्च IV. II.80c कर्मभूमिमिमां प्राप्य II. I09.28a. कर्म यच्च करोति सः V. 12. IIC ,, लोकविरुद्धं तु III. 29.4a ., वातात्मजस्य च VI. 124.12d कर्मशालामुपागमत् VII. 94.30d कर्मसिद्धिभिरुन्नता: V. 61.5d | कर्मस्वप्रतिमाः सर्वे IV. 53.11a कर्म ह्यनेन कर्तव्यम् III. 5.23c
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