Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 24
________________ करोतु मयि वानर: VI. 22.42b ,, सह सीनया II. 5.0d करोत्याचे कर्म महान्महाबल: V. 47.26b करोत्यसंज्ञानसंग्रामे VI. 85.18c करो वहात्मनः शुद्धिम् VII. 95.4c करोमि किम हर्षितः I. 18.52d ,. तरसा समग VI. 102.57d तव गोपते VII. 16.23d ., वानरयुद्ध VI.95.I0c कर मीति तमेवाहम् VII. 17.15c करोग्यवानरां भूमिम् VI. 8.1C करोम्यश्रुपमार्जनम् VI. 63.37d VI. 95.18d करोषि हदि विवम् II. 44.25d करौ पल्लव कोमलौ VII. 26.19b ,, विच्छेद पात्रिभिः I. 26.17d कर्कश निरनुक्रोशम् III. 32.21a कर्णग्राहवती शुभाम् II. 52.6) कर्णधार समाहिता II. 52.81b कर्णनासस्तनं तस्याः III. 69.17c कर्णनासापहारेण III. 36.13a कर्णनासाविनाशनात् VI. 67.148d कर्णनासाविहीनस्तु VI. 67.8ga कर्णनासे निकृते तु III. 69.Ira , महाबलः III. 18.21d ,, ,, VI. I26.21b कर्ण प्रावरणा तथा V. I7.5b V. 22.33b कर्ण पावरणाश्चैव IV. 40.26a कर्णमूले सकुण्डले VI. 98.16d कर्ण वन्ति हि भूतानि II. 44.15a कर्णानन्ये दशन्ति च VI. 60.5Id कर्णाभ्यां चब वानराः VI. 67.35d ऋविसका ग्रथितान्त्रमाल: VI. 67.99b कर्णिकारप्रियां साध्वीम् III. 60.20c कर्णिकारवनं भद्र III. 62.5a कर्णिकार वनैदीप्तः VII. 26.4a कर्णिकारस्य शाखेव II. 92.23c कर्णिकारान शोकांश्च III. 42.3IC कार्णकारानितस्ततः III. 42.23b कर्णिकारान्समन्ततः IV. 1.21b कर्णिकारांश्च पुष्पितान् III. 49.30b , IV. 50.26b कर्णिकारैः कुसुमितै: V. 15.8c कार्णकारेश्च पुष्पितः IV. 40.56b ,, , VI. 22.53b कर्णि शल्यविपाठेश्च VI. 76.6c कर्ण कर्णे प्रकथिता: VI. 46.4Ic कर्तव्यः कृतमिच्छता IV. 34.I4d ,, शास्त्रदृष्टो हि II. 56.23c , श्रूयतां च मे VII. 27.14d कर्तव्यं कर्म यच्छुभम् II. I09.28b ,, च पितुर्वचः II, III.26b ,, ते मदन्तरे VI. 34.6d ,, देवमाह्निकम् I. 23.2d ,, धर्मचारिण IV. 52.24d कर्तव्यमनुकम्पया VII 36.54b कर्तव्यमविशङ्कया I. 26.2b , IV. 22.15b कर्तव्यमिति शत्रुभिः VI. II.I8d कर्तव्य मिह तिष्टन्त्या III. 45.9a ,, सांप्रतम् V. 54.2b कर्तव्यं प्रथमं मया IV. 58.14b , यद्वयस्येन IV.7.17a. युद्धमिच्छताम् VI. 30.18d रक्षता सदा I 25.18d राजसूनुना I. 25.17d वचनं पिनु: II. 24.16b वास्तुशमनम् II. 56.22c ,, विधिपूर्वकम् II. 28.14b Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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