Book Title: Vairagyarati
Author(s): Ramnikvijay Gani
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti
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________________ 194 महोपाध्यायश्रीयशोविजयगणिविरचिता [ अष्टमः सर्गः बृहद्वेलां विलसितमपराह्नोऽथ वर्त्तते / मयोक्तं तव यच्चित्ते रोचते तद् विधीयताम् // 25 // आवां ततो गतौ गेहे कृतं कार्य दिनोचितम् / उपस्थिताऽथ मदनज्वरवेलेव शर्वरी // 26 // तस्यां विविक्तशय्यायां तिष्ठतो मम सा प्रिया / सिंहमध्या फणिस्फारवेणीदण्डा गता हृदि // 27 // सा शल्यं मनसः शोच्यामकरिष्यद् दशां मम / नाभविष्यत् सुहृत्पुण्योदयो यदि समीपगः // 28 // विलगन्त्यपि सा चित्ते तेनाऽभून्नातिबाधिका / स हि सांसारिकार्थेषु मनोबाधानिरासकृत् // 29 // स्मृत्वा तथापि तां काममाहात्म्येन ममाजनि / कस्येयं कीदृशी वेति मनाक् चिन्तातुरं मनः // 30 // इति ध्यात्वा गतो निद्रां न्यवर्तत विभावरी / समायातः समीपं मे प्रभाते च कुलन्धरः // 31 // मनाक् तद्दर्शनाकाङ्क्षावशात् सोऽभिहितो मया / पुनर्वयस्य ! गच्छावः किं तत्राऽऽह्लादमन्दिरे // 32 // ततः कुलन्धरः प्राह गिरा स्मृतपवित्रया / किं तत्र गम्यते ? किं ते निधानं तत्र विस्मृतम् ? // 33 // भावज्ञोऽयमिति ज्ञात्वा मयोक्तं मित्र ! मुच्यताम् / हासो गत्वा वने कस्य सा कीढग वेति वीक्ष्यताम् // 34 // भवित्री परभार्या चेत तदा ग्राह्या न जातु मे / कन्यका चेन्न मुञ्चामि धावतस्तां हरेरपि // 35 // कुलन्धरस्ततः प्राह मा वयस्य ! त्वरां गमः / रोचते यद् वयस्याय गच्छावस्तद् विधीयते // 36 // ततो गतौ तत्र वने स्थानं तत् सुनिरीक्षितम् / अदृष्ट्वा तत्र तां बालामुद्विग्नोऽहं मनाग हृदि // 37 // वने पर्यट्य चूतं तं प्रेक्षमाणः पुनः पुनः / यावत् तत्र निषण्णोऽहं कुलन्धरसमन्वितः / / 38 // नार्येका मध्यमावस्था तावदृष्ट्वा सुविग्रहा / ततोऽभ्युत्थितमावाभ्यामुत्तमाङ्गं च नामितम् // 39 // प्रौढनार्या तया दृष्टः सविशेषमहं तथा / प्रोक्तं वत्स ! चिरं जीव त्वं ममापि प्रियायुषा // 40 // उक्तः कुलन्धरोऽप्युच्चैदीर्घायुभवताद् भवान् / भवतोर्वाच्यमस्तीति नृपपुत्रं निवेशय // 41 // , प्रपन्नं तद्वचस्तेन निविष्टं निखिलैस्ततः / मामुद्दिश्याऽऽह सा वत्स ! शृणु चित्ते समाहितः // 42 // अस्ति विद्याधरस्थानं वैताढ्याख्यो महागिरिः / तत्र गन्धसमृद्धाख्यं पुरं सर्वसमृद्धिमत् // 43 // शास्ति विद्याभृतां चक्री तद् भूपः कनकोदरः / अहं तस्य महादेवी वर्ते कामलताभिधा // 44 // निरपत्यतया भूयान् विषादोऽभवदावयोः / ग्रहशान्यादिविहितमुपचारशतं ततः // 45 // मम प्रादुरमूद् गर्भस्ततो वयसि मध्यमे / प्रसूताऽहं सुतां देहातियोतितदिङ्मुखाम् // 46 // जातो राज्ञो महान् तोषः कारितश्चोत्सवो महान् / कृतं तन्नाम मदनमञ्जरीति शुभे दिने // 47 // . वर्द्धिता सा सुखभरैर्जाता चित्तप्रमोदकृत् / कलौघं ग्राहिता साई सख्या लवलिकाख्यया // 48 // उद्यौवना कलारूपातिशयैर्न ममोचितः / पुरुषोऽस्तीति बुद्धयाऽभूत् पुरुषद्वेषिणी ततः // 49 // ज्ञात्वा पुत्र्याः स्वरूपं तद् विषण्णाऽहं भृशं हृदि / मया निवेदितं राज्ञे सोऽपि खेदमुपागतः // 50 // सोऽकारयत् समुत्पन्नधीः स्वयंवरमण्डपम् / सर्वे तेन समाहूता विद्याधरनरेश्वराः // 51 // सर्वोपागताः सर्वे ते स्वयंवरमण्डपे / यथास्थानं स्थिताः प्राप्तो राजाऽपिसपरिच्छदः // 52 // प्रविष्टाऽहं गृहीत्वा तां वत्सां मदनमञ्जरीम् / तत्र प्रदर्शितास्तस्या रूपतो गुणतश्च ते // 53 // 1. ततः कुलन्धरेणोक्तमधैर्य मित्र! मा कृथाः // 2. आगत्य सर्वे सर्वर्या // एते उमे अपि पाठान्तरे मन्थकृतेवोल्लिखिते //
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