Book Title: Vairagyarati
Author(s): Ramnikvijay Gani
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

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Page 268
________________ // अष्टमः सर्गः॥ अथाऽस्ति सप्रमोदाख्यं पुरं कैलाससन्निभम् / यत् सर्वमङ्गलोल्लासिमहेश्वरविराजितम् // 1 // निरीक्ष्यादृष्टपूर्वान् यल्ललनालोकविभ्रमान् / जाताः किं विस्मयादेव निर्निमेषाः सुराङ्गनाः ? // 2 // तत्रोन्मूलितशत्रुत्रीपत्रवल्लिविराजते / राजा राजन्यगन्धेभसन्निभो मधुवारणः // 3 // योगीवाभूत् परपुरप्रवेशैककुतूहली / यत्खगस्तद्यशःक्षीरपानमात्रधृतवतः // 4 // क्षुब्धोऽब्धिर्यन्महादानजलसात्कारवाञ्छया / पितुर्दुःखादतो दग्धा कुक्षिर्लक्ष्ममिषाद् विधोः // 5 // तस्य चास्ति महादेवी लावण्यगुणशालिनी / कृतरम्भामनःस्तम्भा धाम्ना नाम्ना सुमालिनी // 6 // निवेशितोऽहं तत्कुक्षौ पुण्योदययुतस्तया / निष्क्रान्तः कालपर्यायात् सह पुण्योदयेन च // 7 // सञ्जातं मयि जाते च सोल्लासं नृपमन्दिरम् / उद्गते महसां पत्यावम्भोरुहवनं यथा // 8 // कृतं पित्रोचिते काले नाम मे गुणधारणः / सम्प्राप्तो लालितो वृद्धिं धात्रीभिः पञ्चभिस्ततः // 9 // इतश्चास्ति सगोत्रो मत्पितुर्मित्रं नरेश्वरः / यथार्थनामा तनयस्तस्य चास्ति कुलन्धरः // 10 // वर्धमानो दृढस्नेहः सह तेन सुमेधसा / जातोऽहमर्पितस्वीयमनःसद्भावगोचरः // 11 // कृतक्रीडौ समं साई कलाभ्यासपरायणौ / स्मरद्विपमदावस्थामावां तरुणतां गतौ // 12 // इतथास्ति पुरादूरे स्वशोभाजितनन्दनम् / आह्लादमन्दिरं नाम वनं द्रुमलताधनम् // 13 // तच्च सेवितमावाभ्यां नेत्रानन्दि दिने दिने / दूरे योषिवयं दृष्टं गताभ्यां तत्र चान्यदा // 14 // उहिरन्तीव लावण्यमङ्गैः शृङ्गाररङ्गिभिः / तत्रैकाऽस्थात् स्मितास्येव द्वितीयाऽपि च तादृशी // 15 // अथ सा कुटिलैस्तीक्ष्णैराकर्णान्तावलम्बितैः / नामितभूलतामुक्तैर्दग्बाणैर्मामताडयत् // 16 // उल्लासितस्तनी चूतशाखामालम्ब्य सा स्थिता / घटना वा मनोम्भोधिं गाहितुं मे प्रचक्रमे // 17 // सम्भ्रान्तं विस्मितं स्निग्धं साकूतं लजितं तथा / तस्याश्चित्तं मयाऽलक्षि लक्षणैः स्नेहनिर्भरम् // 18 // स्वान्ते प्रविश्य सा रक्ता मम स्वान्तमरञ्जयत् / अभेदरञ्जनविधिः स्मरस्यायमलौकिकः // 19 // ततो मया हृदि ध्यातं किं रम्भेयं ? रतिः किमु ? / किन्नरी वा गुणदरी किं वा श्रीमूर्तिशालिनी ? // 20 // इति ध्यायन्नहं चित्ते जातः स्मरविकारभाक् / साकूतं सुहृदा दृष्टस्तेन विज्ञातचेतसा / / 21 / / आकारगोपनं कृत्वा मयेत्थं चिन्तितं तदा / सकामदृष्टया नो युक्तं परस्त्रीदर्शनं सताम् // 22 // तदस्माद् मद्विलसितात् किमनेन विचिन्तितम् / इति हीणो मुखं तस्य परीक्षार्थ न्यभालयम् // 23 // ततो. ज्ञाताशयः कृत्वा निगूढां काकली जगौ / कुलन्धरो मामधुना कुमारौकसि गम्यताम् // 24 // 1. नामितभ्रूधनुर्मु० // 2. मनो बिभेद (नुनोद) मे कामकन्दुकोत्क्षेपलीलया / इति द्वे अपि पाठान्तरे प्रन्थकारेणवोल्लिखिते // वै-२५

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