Book Title: Vairagya Shatak
Author(s): Purvacharya Maharshi, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 20
________________ वैराग्यशतक किया है ॥६२॥ तिरियगइं अणुपत्तो, भीममहावेयणा अणेगविहा । जम्मण मरणऽरहट्टे, अनंतखुत्तो परिब्भमिओ ॥६३॥ अर्थ : अनेक प्रकार की महाभयङ्कर वेदना से युक्त तिर्यंचगति को प्राप्तकर इस जीव ने जन्म-मरण रूप अरहट्ट में अनन्तबार परिभ्रमण किया है ||६३ || जावंति के वि दुक्खा, सारीरा माणसा व संसारे । पत्तो अनंतखुत्तो, जीवो संसारकंतारे ॥६४॥ १९ अर्थ : इस संसार में जितने भी शारीरिक और मानसिक दुःख हैं वे सब दुःख इस संसार में इस जीव ने अनंती बार प्राप्त किए हैं ॥६४॥ तण्हा अनंतखुत्तो संसारे तारिसी तुमं आसी । जं पसमेउं सव्वो- दहीणमुदयं न तीरिज्जा ॥ ६५ ॥ अर्थ : संसार में अनन्त बार तुझे ऐसी तृषा लगी, जिसे शान्त करने के लिए सभी समुद्रों का पानी भी समर्थ नहीं था ॥ ६५ ॥ आसी अनंतखुत्तो, संसारे ते छुहा वि तारिसिया । जं पसमेउं सव्वो, पुग्गलकाओ वि न तरिज्जा ॥ ६६ ॥ अर्थ : इस संसार में तुझे अनंत बार ऐसी भी भूख लगी है, जिसे शांत करने के लिए सभी पुद्गल भी समर्थ नहीं थे । काऊणमणेगाई जम्मणमरणपरियट्टणसयाइं । दुक्खेण माणुसत्तं, जइ लहइ जहिच्छियं जीवो ॥६७॥

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