Book Title: Vairagya Shatak
Author(s): Purvacharya Maharshi, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 25
________________ २४ वैराग्यशतक अर्थ : इस आत्मा ने तिर्यंच के भव में भयङ्कर जङ्गल में ग्रीष्म ऋतु के ताप से अत्यन्त ही संतप्त होकर अनेक बार भूख और प्यास की वेदना से दुःखी होकर मरण के दुःख को प्राप्त किया है ॥८१॥ वासासु रणमझे, गिरिनिज्झरणोदगेहि वुझंतो। सीआनिलडज्झविओ, मओसि तिरियत्तणे बहुसो ॥८२॥ अर्थ : तिर्यंच के भव में जङ्गल में वर्षा ऋतु में झरने के जल के प्रवाह में बहते हुए तथा ठण्डे पवन से संतप्त होकर अनेक बार बेमौत मरा है ॥८२॥ एवं तिरियभवेसु, कीसंतो दुक्खसयसहस्सेहिं । वसिओ अणंतखुत्तो, जीवो भीसणभवारणे ॥८३॥ ___ अर्थ : इस प्रकार इस संसार रूपी जङ्गल में हजारों लाखों प्रकार के दुःखों से पीड़ित होकर तिर्यंच के भव में अनन्त बार रहा है ॥८३॥ दुटुटुकम्मपलया-निलपेरिउ भीसणंमि भवरणे। हिंडंतो नरएसु वि, अणंतसो जीव ! पत्तोसि ॥८४॥ अर्थ : हे जीव ! दुष्ट ऐसे आठ कर्मरूपी प्रलय के पवन से प्रेरित होकर इस भयङ्कर जङ्गल में भटकता हुआ तू अनन्त बार नरकगति में भी गया है ॥८४॥ सत्तसु नरयमहीसु वज्जानलदाह सीअविअणासु । वसिओ अणंतखुत्तो विलवंतो करुणसद्देहिं ॥८५॥

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