Book Title: Vairagya Shatak
Author(s): Purvacharya Maharshi, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 23
________________ २२ वैराग्यशतक प्रकार बीते हुए रात-दिन वापस नहीं लौटते हैं, उसी प्रकार यह जीवन पुनः सुलभ नहीं है ॥७३॥ डहरा वुड्ढा य पासह, गब्भत्था वि चयंति माणवा । सेणे जह वट्टयं हरे, एवं आउखयंमि तुट्टइ ॥७४॥ I अर्थ : देखो ! बाल, वृद्ध और गर्भ में रहे मनुष्य भी मृत्यु पा जाते हैं । जिस प्रकार बाज पक्षी तीतर पक्षी का हरण कर लेता है, उसी प्रकार आयुष्य का क्षय होने पर यमदेव जीव को उठा ले जाता है ||७४ || तिहुयण जणं मतं, दट्टण नयंति जे न अप्पाणं । विरमंति न पावाओ, धिद्धि धिट्ठत्तणं ताणं ॥ ७५ ॥ अर्थ : तीनों भुवन में जीवों को मरते हुए देखकर भी जो व्यक्ति अपनी आत्मा को धर्ममार्ग में जोड़ता नहीं है और पाप से रुकता नहीं है, वास्तव में उसकी धृष्टता को धिक्कार है ! ॥७५॥ मा मा जंपह बहुअं, जे बद्धा चिक्कणेहिं कम्मेहिं । सव्वेसिं तेसिं जायइ, हियोवएसो महादोसो ॥७६॥ अर्थ : गाढ़ कर्मों से जो बंधे हुए हैं, उन्हें ज्यादा उपदेश न दें, क्योंकि उनको दिया गया हितोपदेश महाद्वेष में ही परिणत होता है ॥७६॥ कुसि ममत्तं धण सयण - विहव पमुहेसुऽणंत दुक्खेसु । सिढिलेसि आयरं पुण, अणंत सुक्खंमि मुक्खमि ॥७७॥

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