Book Title: Vaidyavallabh Author(s): Hastikruchi Kavi Publisher: Hastikruchi Kavi View full book textPage 9
________________ भाषाटीकासमेत। (5) पात्वामधुयुतं हन्ति महदेकान्तरज्वरम् // 14 // भाषाटीका // धतूरेके पत्तोंका रस पलार्ध और दही मिलाय खाय अथवा सहतके संग खाय तो बलवान् एकान्तर वर मिटै // 14 // अथ सन्निपातज्वरे कषायः॥ भूनिम्बनिम्बामृतदारुपथ्या कृष्णा निशा युग्मफलत्रयंच ॥वातारमूलं त्रिकटुप्रियंगू रास्नार्क मूलं क्रिमिशत्रुतिक्तः / / 15 // एतेषां विहितं काथं दशमूलयुतं पिबेत् / / मरुतपित्तकफोद्भता सन्निपातरुज हरत् // 16 // भाषाटीका // चिरायता नीमकी छाल गिलोय देवदारु हरड पीपल हरदी दोऊ त्रिफला अंडकी जड सोंठ मिर्च पीपल कांगुनी रास्ना आककी जड वायविडंग कुटकी॥१५॥ याके संग दशमूल ले काथकर पीवे सो वात पित्त और कफसो भये सन्निपातको हरै // 16 // अथ तृतीयज्वरोपायः // ..रखौशतावरीमूलं कन्यासूत्रेण वेष्टितम् // स्थितं करे च कंठेतु तृतीयज्वरनाशकृत् // 17 // भाषाटीका // रविवारको शतावरकी जड कन्याके हाथसो कते सूवसों लपेट कंठमें का हाथमें बाँधे वो तृतीराज्वर नाश होई // 17 // | 1 यहां पलार्ध नहीं लेनो. २यह और देशकी होतीहै. .Page Navigation
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