Book Title: Vaidyavallabh
Author(s): Hastikruchi Kavi
Publisher: Hastikruchi Kavi
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // श्री: // वैद्यवल्लभः। कविवरहस्तिरुचिकविविरचितः। मथुरानिवासिपण्डितराधाचन्द्रशर्म विरचितया व्रजभाषाटीकया विभूषितः / सोऽयम् श्रीकृष्णदासात्मज-क्षेमराजेन मुंबय्यां स्वकीये"श्रीवेङ्कटेश्वर"मुद्रणालये मुद्रयित्वा प्रकाशिवः। संवत् 1978, शकान्दाः 1846. MAN भस्थ प्रन्थस्य सर्वेऽधिकारा यन्त्राधिकारिणा स्वायत्तीकला / Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // श्रीः // अथ 'द्यवल्लभविषयानुक्रमणिकाप्रारम्भः // : ar arrr 0 विषय. पृष्ठांक. | विषय. पृष्ठाक. 1 प्रथमो विलासः / / 2 द्वितीयो विलासः / गलाचरणम | युवतिरोगाधिकार गर्भधारणववैद्यकृत्यम् प्रयोगः तिज्वरे काथः गर्भवृद्धिप्रयोगः पित्तम्बरे करायः | योनिसंकोचप्रयोगः कफज्वरे कषायः स्त्रीध तुरोगे 'बलाज्वरे काथः गर्भपातप्रयोगः वातपित्तज्वरे काथः | वातप्रदरोपायः कफापत्तज्वरे कषायः लोमपातप्रयोगः शीतज्वरे कषायः नष्टपुष्पागमननयोगः चातुर्थिकज्वरे नस्यम् यीनश फराग लेपः देवदोषज्वरे लेपः सूति कारोगे क्वाथः एकान्तरज्वरावलेहः प्रदररोगे सन्निपातज्वरे कषायः तृतीयज्वरोपायः / 3 तृतीयो विलासः / कासश्वासक्वाथ: कासश्वासे गुटिका अतीसारज्वरे क्वाथ: कफश्वासे गुटिका सर्वज्वरे अंजनम् कासश्वासे चूर्णम् सर्वज्दर लेपः कासश्वासे क्वाथः सर्ववर गुटिका कासश्वासे गुटिका सर्व-वर चूर्णम् कासश्वासावलेहः सर्वज्वरे क्वाथः शोफरोगे लेपः ज्वरारिरसः , 8 विस्फोटकरोगे कषायः 0 - 3ur wr ur ur 1 1 15 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्टांक. वैद्यबल्लभकी अनुकमाणका / विषय. * पृष्ठांक. | विषय. विस्फोटकरोगे चूर्णम् ... 25 6 षष्ठो विलासः। विस्फोटकव्रणरोगे लेपः ... 25 वनभेदारसः विस्फोटकरोगे गुटी ... 26 सर्वकुष्ठारिरसः पामारांगे लेपः .., 26 इच्छाभेदीरसः रक्तपित्तगंगे उपचारः ... 26 कुष्ठरोगे लेपः 4 चतुर्यो विलासः / विषभक्षणे उपचारः बलवीर्यवर्द्धनो मोदकः ... वमनाशुपचारः प्रमेहरोगे उपचारः . ... अहिफेनविष उपचारः सकलप्रमेहरोगे उपचारः ... वृश्चिकावषे उपचारः हीनकन्दर्पवृद्धिपयोगः ... 31 रक्तिकाविष उपचारः मूत्ररोगे उपचारः - ... 31 लवणभास्करचूर्णम् . अश्मरीरोगे उपचारः मन्दाग्निहा गुटिका लिङ्गलेपः ३२/पांडुकामलारोगे कषायः .... कामश्वरगुटिका 33 कामलाजर्णिज्वरे क्वाथः ... मूत्रविकारे उपचारः ... 34 कामलारोगे उपचारः ... अथेन्द्रियोत्पन्नरोगे उपचारः... 34 कामलारोगऽवलेहः .... नागभस्मविधिः ... 34 पांडुजीणकामलारागे उपचारः 5 पंचमो विलासः। उदररोगे चूर्णम् ... गुदरोगप्रतीकारः व्यत ... 35/ 7 सप्तमो विलासः / अथातीसारे गुटिका 36 शूठीपाकः अतीसारे चूर्णम् 36 मस्तकविकारे लेपः अथार्शरोगे उपचारः 37 पुनः लेपननस्यप्रयोगः अथार्शादिलेपः 37 अर्धशीर्षगेगे नत्यम् अथाशदिगुटिका ___ .... 38 मस्तकरोगे लेपः / भल्लातकविकारे लेपः मालनीदरोगे नस्यम् कृमिरोगोपचारः सशसमसको टिका भगंदरवाते लेपः - 39 नत्ररोगे असा अथैरंडपाकः / ... 39 सर्वनेत्ररोगे लेप स्रोतद्धिरोगे ले पासवनेत्ररोगे गुाठका Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैद्यवल्लभकी अनुक्रमणिका / विषय पृष्ठांक. | विषय, पृष्ठांक. पुनरंजनम् ... ... 52 मदनवृद्धिपाकः कर्णरोगे तैलम् ... 52 लस्सनपाक: नासूररोये उपचारः 53 अपस्माररोगे नस्यम् मुखपिडिकालेपः अपस्माररोगे गुटिका मुखशोषे लेपः 53 अपस्माररोगे नस्यम् मुखशोपे गुटिका 54 विधिरशूलरोगे उपचारः दन्तरोमे मंजनर 55 वीर्यस्रावरोगे उपचारः . . स्नायुगो लेपन्दि ५४/पादवणरोगे लेपः ... श्वानविष उपचारः 55 वायुरांगे गुटिका ... रक्तपित्ते उपचारः 56 जानुकम्पादिरोगे लेपः / मागापाकः ... 56 सन्निपातादिरोगेऽवलेहः सन्धिग्रन्थिवाते गुटिका ... 57 हिकारोगे उपचारः 8 अष्टमो विलासः। वगेश्वरो वातपित्तादिदोषे .. भूतप्रेतादिदोषजिदंजनम् ... 58 सन्धिवाते गुटिका सर्वदोषजित्प्रयोगः पशवरातिसारे गुटिका ... सर्पविषे उपचारः 9 नवमो विलासः। सोमलविषे उपचारः ... 55 बहन्मालतीवसन्तः / नागफेनविरे उपचारः 59 सूतिकाविनोदी रसः भत्तूरविषे उपचारः ... 60 सूतिकारोगे कषायः पारदविषे उपचारः भारः ... 60 शोथर गेलेपः। हरतालविषे उपचारः ... इति वैपवल्लभविषश्वशुरगृह तरुणी तिष्ठति वत्रप्रयोगः६० यानुक्रमणिका प्रमेहादिरोरोड़प नारः ... 61 ... समान। - पुस्तक मिलनेका ठिकाना खेमराज श्रीकृष्णदास, "श्रीकटेश्वर" छापाखाना-बम्बई. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीः। अथ वैद्यवल्लभः। भाषाटीकासमेतः। सरस्वतीं हृदि ध्यात्वा नत्वा श्रीगुरुपत्कजम् // सहस्तिरुचिना वैद्यवल्लभोयं विधीयते // 3 // वैद्यवल्लभग्रन्थस्य राधाचन्द्रेण कल्पिवा / ब्रजभाषाचाप्यटीका खेमराजस्य प्रार्थनात् // भाषाटीका // सरस्वतीको हृदयमें धारण कर श्रीगुरुके चरणकमलको नमस्कार कर हस्तिरुचि कवि वैद्यवल्लभ नामके ग्रंथको कहैहै // 1 // पूर्व वैद्यवरो बुद्धया विधाय रोगनिर्णयम् // पश्चात्साध्यगदं मत्वा ततो भैषज्यमारभेत् // 2 // भाषाटीका // पहले वैद्य अपनी श्रेष्ठ बुद्धिसों शास्त्रके अनसार रोगके अभिप्रायको समझ देहके रोगको निश्चय करें वापीछे रोगी साध्य होइतौ औषध देनी और असाध्य हो। लौ चिकित्सा न करनी // 2 // यतः सकलरोगेषु प्रायशो बलवाज्वरः॥ / तस्मात्तद्रोगनाशार्थ प्रोच्यते हितमौषधम् // 3 // भाषाटीका // सबरे रोगनमें बहुत भांति करके ज्वर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2) वैद्यवल्लभ। बळधानहै वासों वा रोगके चूर करनेके कारण अति कारक औषध कहों हो // 3 // पूर्व ज्वरे सदा कुर्याद्रेचनं रोगशान्तये // पश्चाल्लंघनभैषज्यं कुर्वाणो जायते सुखी // 4 // भाषाटीका // पहलेही ज्वरमें दस्तावरविधि कर चाहिये पीछे लंपन मोषध करै वासों रोगी सुखी होइहै।।४ अथ वातज्वरे काथः॥ अमृता नागरं मुस्ता निशा धान्यं समानकैः // वातज्वरे प्रदातव्यः कृष्णायुक्तः कषायकः // 5 / भाषाटीका // गिलोय, सोठ, नागरमोथा, हरदी, ध. नियां ये सब बराबर ले काढाकर पीपलके चूर्ण के संग देवे तो वदोके ज्वरको शान्ति करे हे // 5 // अथ पित्तज्वरे कषायः // द्राक्षा चारग्वधो मुस्ता रेणुपथ्याजलैः समम् // काथो मधुयुतो हन्ति ध्रुवं पित्तज्वरं महत् // 6 // भाषाटीका // मुनक्का दाख, अमलतासका गुदा,नागरमोथा, रेणुका, कोई पाकी प्रतिनिधिमें पित्तपापो गेरे हैं, हरड,नेत्रवाको ये सब बराबर के वाको भौटायकर सहवर्ष संग पीने सो महसित ज्वर निश्चय नाश होई // 6 // अथ कफज्वरे कषायः // पासामंपिकतिक्तांभोधरन्वकधान्यकैः // Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (3) विश्वौषधान्वितः क्वाथः कफज्वरविनाशकृत्॥७॥ भाषाटीका // अडूभा, पीपलामूल, कुटकी, नागरमोथा, धमासो, धनियां ये सब बराबर ले काथकर सोंठके चर्णके संग पीवे सो कफज्वरको नाश होई // 7 // अथ वेलाज्वरे काथः॥ मुस्तामृतानागरधन्वधात्रीक्षुद्रायुगारिष्टजभंगराजैः / / समानभागैर्मधुनासमेतो वेलाज्वरं हन्ति कृतः कषायः८ भाषाटीका॥ नागरमोथा, गिलोय, सोंठ, धमासा, आंवला, कटेहरी, दोऊ नीमकी छाल, भांगरा ये बराबर भाग ले काथकर सहतकै संग पीवे सो वेलावर दूर होई // 8 // अथ वातपित्तज्वरे वाथः॥ मुस्तानागरभूनिंबरेणुच्छिन्नोद्भवैःसमः // काथोयंपंचभद्राख्योवातपित्तज्वरापहः // 9 // भाषाटीका // नागरमोथा साठे चिरायता रेणुका,याकी एवज पित्तपाड़ा लेनो, गिलोय ये बराबर भाग पंचभवनामको काथ,कर पीवे सो वातपित्त ज्यरको दूर करै // 9 // अथ कफपित्तज्वरे कषायः॥ धान्यकसलिलंमुस्तानिशापथ्याद्विजीरकौ // कफपित्तज्वरेकाथः प्रोक्तोयंकविहस्तिना॥१०॥ भाषाटीका॥ धनियां नेत्रवाला नागरमोथा हरदी हरट दोनों जीरा इनको बराबर भाग ले काढाकर पीने सों Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (4) वयवल्लभ। कफपित्तज्वरको दूर करै। ये प्रमाण ग्रंथकार हस्तिकविन्ने कहाहै // 10 // अथ शीतज्वरे कषायः॥ शकाहामृतद्रुघ्नवृषनिर्गुण्डिकैःसमम् // भंगराजौषधीक्वाथोहन्ति शीतज्वरं ध्रुवम् // 11 // भाषाटीका // इंद्रजौ गिलोय परमारके बीज अडूसा निर्गुण्डी भांगरा सोंठ इनको बराबर भागलै क्वाथकर पीवे सो शीतज्वर निश्चय दूर होई // 11 // अथ चातुर्थिकज्वरे नस्यम् // जीर्णनसर्पिषायुक्तरामठस्यच नस्यकम् // दुग्धेनत्रिफलापानावश्येच्चाथिकज्वरः॥ 12 // भाषाटीका // पुराने घीमें हींग डाल नस्य लेवे सो तथा दूधके संग त्रिफला पीवेसो चातुर्थिकज्वर नाश होई // 12 // __अथ देवदोषज्वरे लेपः // सपानिम्बपत्राणि हिंगु सर्पस्य कंचुकी // गुग्गुलेनकृतोलेपोदेवदोषज्वरापहः॥१३॥ भाषाटीका // सरसों नीमके पत्ते हींग सांपकी काचली और गूगल ये बराबर भागले शरीरपे लेप करै वो देवदोषज्वर दूर होई // 13 // अथ एकान्तरज्वरावलेहः॥ रसं धत्तूरपत्रस्य पलार्ध दधिना सह // 4 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (5) पात्वामधुयुतं हन्ति महदेकान्तरज्वरम् // 14 // भाषाटीका // धतूरेके पत्तोंका रस पलार्ध और दही मिलाय खाय अथवा सहतके संग खाय तो बलवान् एकान्तर वर मिटै // 14 // अथ सन्निपातज्वरे कषायः॥ भूनिम्बनिम्बामृतदारुपथ्या कृष्णा निशा युग्मफलत्रयंच ॥वातारमूलं त्रिकटुप्रियंगू रास्नार्क मूलं क्रिमिशत्रुतिक्तः / / 15 // एतेषां विहितं काथं दशमूलयुतं पिबेत् / / मरुतपित्तकफोद्भता सन्निपातरुज हरत् // 16 // भाषाटीका // चिरायता नीमकी छाल गिलोय देवदारु हरड पीपल हरदी दोऊ त्रिफला अंडकी जड सोंठ मिर्च पीपल कांगुनी रास्ना आककी जड वायविडंग कुटकी॥१५॥ याके संग दशमूल ले काथकर पीवे सो वात पित्त और कफसो भये सन्निपातको हरै // 16 // अथ तृतीयज्वरोपायः // ..रखौशतावरीमूलं कन्यासूत्रेण वेष्टितम् // स्थितं करे च कंठेतु तृतीयज्वरनाशकृत् // 17 // भाषाटीका // रविवारको शतावरकी जड कन्याके हाथसो कते सूवसों लपेट कंठमें का हाथमें बाँधे वो तृतीराज्वर नाश होई // 17 // | 1 यहां पलार्ध नहीं लेनो. २यह और देशकी होतीहै. . Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) वैद्यवल्लभ / अथ कासश्वासकाथः॥ कृष्णामृतानागरदारसिंहीभांर्गीधनाग्रंथिकपुष्कराद्वैः॥ सश्वासकासेन युते ज्वरेपि कृतः कषायः पवनापहारी // 18 // भाषाटीका // पीपल गिलोय सोंठ देवदारु कटेरी भारंगी धनियां पीपलामूल पोहकरमूल ये सब बराबर भागले काढाकर पावे सो श्वाप्तकासज्वरसहिव वादीको दूर करै 18 // अथ अतीसारज्वरे // विश्वास रसोपेता धातकी श्रीसमानकैः॥ चूर्ण शीतोदके पानादतीसारज्वरं हरेत् // 19 // भाषाटीका // सोंठ राह और धाईके फूल ये बराबर ले ठंडे पानीके संग फाकवे सो अतीसारज्वर दूर होई // 19 // अथ सर्वज्वरे अंजनम् // हिंगुनिम्बस्य बीजंतु कृष्णसर्पस्य कंचुकी // संघृष्टं खरमूत्रेण चाअनं सर्वतापजित् // 20 // भाषाटीका // हींग नीमकी मींगीकी मांगी कारे सर्पकी काचुली इनको गधाके मूत्रमें घिस नेत्रमें अंजनकरे सो सबतरहके ज्वर दूर होई // 20 // सर्वज्वरे लेपः // किरात लवणं शुंठी कुष्ठचंदनवालकैः॥ वस्त्रण गालितो लेपः सर्वज्वरविनाशकृत् // 21 // Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (7) भाषाटीका॥ चिरायवौ सैंधानोन सोंठ कूट चंदन लालनेत्रवाला ये बराबर भाग लै घोंट कपगमें छान लेप करने खों सब भांतिके ज्वरनको नाश होई // 21 // ___ अथ सर्वज्वरे गटिका // टंकणं मरिचं क्रष्णासपाकविषं समम // आदोदकेन दातव्या गुटी सर्वज्वरापहा // 22 // भाषाटीका।सुहागो, मिरच, पीपल, हिंगुलू वेलिया मीठो शुद्ध इनको बराबर भाग ले वाको मदरखके रसमें गोली बांध देवे सो सब बरहको ज्वर मिटै // 21 // अथ सर्वज्वरे चूर्णम् // दीप्याभयारामठवह्निविश्वाः क्षारद्वयं जीरकयुग्मकृष्णा / / / फलत्रयं संचलसैंधवं च कृतंहि चूर्ण ज्वरनाशकारि // 23 // भाषाटीका // अजवाइन, हरड, हींग, चित्रक, सोंठ, दोनों खार, जीरे दोऊ, पीपल, हरड, बहेडा, आंवला,कारा नोन, सैंधानोन, ये सब बरावर भाग ले ताको चूर्णकर फाँकवे सो सब भाँविके ज्वर नाश होई // 23 // अथ सर्वज्वर क्वाथः॥ छिनोद्भवानागरनिम्बवासातिक्ताभयापुष्कर गधन्वैः॥ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8) वैद्यवल्लभ / कृतः कषायो मधुना विमिश्रः . सर्वज्वरं शान्तिमयं नयेच्च // 24 // भाषाटीका॥ गिलोय, सोंठ, नीमकी छाल, अडूसो, कुटकी, हरड, पोहकरमूल, भांगरा, धमासा, ये सब बराबर भाग ले क्वाथकर सहवके संग पोवे सो सब वरहके ज्वर दूर होय // 24 // अथ ज्वरारिरसः॥ गंधकं स्वर्णबीजानि तालनागरसोषणैः // मनःशिलाच कारेलीरसेन गुटिका कृता // 25 // शृंगवेररसेनैका दत्ता सर्वज्वरापहा // आध्मानंस्यति मंदाग्निकफव्याधिविनाशिनी 26 इति श्रीवैद्यवल्लभेहस्तिरुचिकविरचिते सर्वज्वरप्रतीकार निरूपणो नाम प्रथमो विलासः // 1 // भाषाटीका // गंधक, धतूरेके बीज, हरताल, वेलिया, मीठी, पारौ, मिर्च, स्याह, मनशील, ये सब बराबर भाग ले एकत्रकर करेलाके रसमें गोली बांधे // 25 // ये गोली एक अदरखके रससा देनी वो सब ज्वरनको दूर कर और अफारा अति मंदामि कफकी बीमारीनको नाश करै // 26 // इतिश्रीवैद्यवल्लभे मथुरास्थदक्षगोत्रोद्भवचातुर्वेदिशर्मा राधाचंद्रकतव्रजभाषाटीकायां सर्वज्वरप्रवीकारनिरू पणो नाम प्रथमो विलासः // 1 // Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत / (9) अथ युवतीरोगाधिकारः // गर्भधारणप्रयोगः // सगर्भामहिषीदुग्धमजामूत्रेण या पिबेत् // सानारीलभतेगर्भमेतद्धस्तिकवेर्मतम् // 1 // भाषाटीका॥ ग्याभन सको दूध बकरीके मूत्र के संगपीवे सो स्त्रीके गर्भ रहै ये प्रमाण हस्विकविके मतका है // 1 // पुनः॥ ऋतौरुद्रजटांनीत्वागोघृतेन च या पिबेत् // सानारीलभतेगर्भमेतद्धस्तिकवेर्मतम् // 2 // भाषाटीका // रजस्वलाई लुगाई बड़की जटा लाय गऊके घृतमें पीवे सोनारीके गर्भरहै नईस्त्री जवानके संभोगसों ये प्रमाण हस्विकविके मतको है // 2 // पुनः॥ नागकेशरसंयुक्तंजीरकंगोघृतेनच // त्रिदिनंयापिबेत्रारी सगर्भा भामिनी भवेत् // 3 // भाषाटीका // नागकेशर और जीरों ये गायके धीमें तीनदिन पीवे लुगाई वौ गर्भ रहजाय // 3 // पुनः॥ / समूलपत्रसाक्षीरविवारेसमुद्धरेत् // एकवर्णगवांक्षीरैःकन्याहस्तेनमर्दयेत् // 4 // - ऋतुकालेपिवेद्वन्ध्यापलार्धदिनसप्तकम् // 1 नवतारुण्यसंगमेइतिपाठान्तरम् // Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैधवल्लभ / श्रीरशाल्योदनं पीत्वा मिष्टाहार प्रदापयेत्॥२॥ उद्वेगभयशोकार्तिदिवानिमादि वर्जयेत् // न कर्म क्रियते किञ्चिदानासि शीततापयोः // 6 // एवं सप्तदिन कुर्याद्वंध्या भवति गर्भिणी // भावारीका // दीववार के दिन जड पत्ता समेत, साक्षि याको ब्रज भाषामें सितार कहे हैं ताको उखाद एक रंगकी गायके इधर्म कन्याके हाथमो विसवाय ॥४॥ता से एक आध पल बांड लुगाई सात दिन छीमने में पीने साप इध पायक बादल सांठी और सब मीठी चीज खानी // 5 // और उद्वेग चिन्ता भय दिनमें सौनों वगैरे मने है और सरदः गर्मी प न सहनी // 6 // ऐसे सात दिन करवे सो वाइ लगाई गार्भणी होई // चक्रांकां वारिणा पीत्वा सगा भामिनीभवेत् // 7 // भाषाटीका // कईको पानीके संग पोवे सो नारी गर्भवती होय // 7 // पुनः॥ पार्थपिप्पल बीजस्य चूणखंडधृतेनच // या पिबतुकालषु सानारी लभते सुतम् // 8 // भापाटीका // पारस पीपलके पीजनको चूर्ण बारह और घौके संग याका पीये छीमने भये तो बा लुगाईको बेटा होय // 8 // Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (11) अर्थ गर्भवृद्धिप्रयोगः॥ धातकीपुष्पनीरं तु प्रदेयं सितयासह // दिनत्रयमतोनार्याः पतद्गर्भश्च तिष्ठति // 9 // भाषाटीका // धायके फूल और मिश्री ठंडे जलसों वीन दिन लुगाई पीवै वो पडता गर्भ ठेर जाय // 9 // पुनः॥ तिलाश्च शर्करा पद्मकंदं च मधुनान्वितम् // सदास्य भक्षणानार्याः पतगर्भश्च तिष्ठति // 10 // भाषाटीका // विल मिश्री कमलकंद ये सहतमें मिलाय सदा याको खाय तौ वासों गिरवा गर्भ ठेरे // 10 // पुनः॥ वरी विश्वाश्वगंधा च मधुकं गराट् समैः॥ अजादुग्धेन पानाच्च नार्या गर्भस्य वृद्धिकृत् // 11 // भाषाटीका // शतावर सोंठ असगंध जेठीमधु भाँगरौ ये समान भागलै बकरीके दूधसों पीवे तो लुगाईको गर्भ बढ़ // 11 // .. . पुनः // . शीतोदकेन देयानि जाशूसकुसुमानिच // तस्माद्भवति नारीणां गर्भवृद्धिः सुनिश्चिता // 12 // / भाषाटीका // जाशुकीके फूल ठंडे जलके संग देय वो सो लुगाइके गर्भकी वृद्धि निश्चय होई // 12 // Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (12) वैद्यवल्लभ। अथ योनिसंकोचप्रयोगः // कटुतुंबीसुपत्राणि लोध्रयुक्तानि-मर्दयेत् // . धारयेद्गुटिकां तस्माद्योनिसंकीर्णताभवेत् // 13 // भाषाटीका // कईई तूंबीके पत्ता और लोध ये मिलायके पीस गोलीकर योनिमें धरे दौ. ताकी योनि सुकडजाय // 13 // पुनः॥ त्रिफला विजया लोध्रः सदुग्धा दाडिमत्त्वचा // समांशैश्चूर्ण येत्सर्वं तारीरसभावितम् // 14 // पश्चात्तस्य गुटीं कृत्वा नक्तं वा धारयेद्भगे // तस्माद्भवति संकीर्ण सुंदा स्मरमन्दिरम्॥ 15 // भाषाटीका // हरड बहेडे आँवरे भाग लोध दूधी अनारकी छाल ये बरावर भागले अरणीके रसमें घोटे // 14 // पीछे गोली बांध रातको भगमें धरे तो ता लुगाईकी योनि सुकडजाय // 15 // अथ स्त्रीधातुरोगे // धात्री धन्वकनीरं तु शर्कराजीरकेनच / / भामिनी गर्भवीर्यस्य बंधं सृजतिसत्वरम् // 16 // भाषाटीका // आवरे धमासौ नेत्रवालौ मिश्री और __ जीरौ ये समान भागलै ताकौ चूर्णकर फाकवसों स्त्री जल्दी वीर्यको छोडे // 16 // Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (13) पुनः॥ मधुकैलाबीजं पथ्याकाथोगोक्षुरकैः समम् // प्रतिवाससितादानात्सुन्दा धातुरोगजित् // 17 // भाषाटीका // जेठीमधु इलायचीके बीज हरड गोखरू पटवास ये बराबर भाग लै वाथकर मिश्री गेरके पीवेसों स्त्रीको धातुरोग मिटै // 17 // __गर्भपातप्रयोगः // . विश्वौषधात्पंचमुणं रसोनकमुत्काल्य नारी विदिनप्रपाययेत् // गर्भस्यपातःप्रभवेत्सुखेन योगोयमाद्यःकविहस्तिनामतः॥ 18 // भाषाटीका // सोंठ वासो पाचगुणी रसोनक इनको उबाल स्त्री तीन दिन पीये तो वाको गर्भ गिरपड़े आनंद होइ ये योग आदि कविहस्विको मतहै // 18 // पुनः॥ पिप्पलीपिप्पलीमूलंक्षुद्रा निर्गुण्डिकासमैः॥ गवाक्षीसंयुत क्वाथोनार्यागर्भस्यनाशकृत् // 19 // भाषाटीका // पीपल पीपलामूल कटेरी निर्गुण्डी और फरफेदूके संग इनको बराबर भाग लै काथकर पीवेसों स्त्रीके गर्भको नाश होई अर्थात् गिर पडे // 19 // पुनः॥ गुंजाचूर्णसमादायजलेनपलमानतः // 1 लस्सनको रसोन कहेहैं / Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (11) वैद्यल्लभ। त्रिदिनंक्रियतेनार्यागर्भपातोभवेद्धवम् // 20 // भाषाटीका // रतीको चूर्णलेकर एक पल जलके संग तीन दिन करे वो नारीको गर्भ अवश्य गिरपडे // 20 // पुनः॥ अतसीतैलमुत्काल्यगुडयुक्तंप्रदापयेत् // गर्भपातोहिनारीणांसद्योभवतिनिश्चितम् // 21 // भाषाटीका॥ अलसीको तेल गरमकर गुड मिलायके देय तौ गर्भ गिर पडे स्त्रीको जल्दी अवश्य // 21 // पुनः॥ गुग्गुलंपलमानतु तैलेनोकाल्ययापिबेत् // सानारी निजगर्भस्य सुखेन पतनं चरेत् // 22 // भाषाटीका // गूगल एकपलमान अलसीके तैलमें गरमकर याकों पीवे सो नारी अपने गर्भको सुखसो गरे // 22 // पुनः॥ गवाक्षीमूलमादाय धारयेत्स्मरमन्दिरे // भ्रूणपातो भवेत्स्त्रीणां योगोयं कविहस्तिना // 23 // भाषाटीका // फरफंदूकी जड लायके योनिमें धरै तौ गर्भ गिरे लुगाईको ये योग हस्तिकविको है // 23 // पुनः // शिवाफलस्य बीजं तु पलमात्रं दिनत्रयम् // सितया समदानाच्च स्त्रीणां पुष्पं च गच्छति // 2 // Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (15) भाषाटीका // हरडकी मीगी एक पल मान तीन दिन मिश्रीके संग बराबर देतौ स्त्री रजस्वला नहीं होई // 24 // पुनः॥ दुग्धामूलमजादुग्धं कामिन्यादिवसत्रयम् // कारितं कविना सम्यक्स्त्रीणां पुष्पं निवर्तते॥२५॥ भाषाटीका // दूधीकी जड बकरीयाको दूध लुगाई वीन दिन पीवो कर वो कविकहै हैं कि स्त्री रजस्वला नहीं होई // 25 // पुनः॥ पुण्यार्केस्वर्णमूलं तु गृहीत्वा कटिबंधनम् // कदानोत्पद्यते गर्भो रंडावेश्यादियोषिताम् // 26 // भाषाटीका / पुष्यार्क योगपर धतूरेकी जड लेकर कमरमें वाँधेतौ कभू गर्भ नहीं रहै राँड रंडी वगैरे लुगाईन।२६। रक्षां पलाशबीजस्य पीत्वा शीतेन वारिणा // नभ्रूणं लभते नारी श्रीहस्तिकविना मतः॥ 27 // भाषाटीका // पलाशके वीजकी राख शीतल पानीसों पीपे वो गर्भ नहीं रहे लुगाईके श्रीहस्विकविको मत है 27 // पुनः॥ उत्काल्या बदरीलाक्षां तेलेन सह या पिबेत् // द्विकर्षमात्रा सा नारी न गर्भ लभते पुनः॥२८॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (16) वैद्यवल्लभ। भाषाटीका // बेर और लाखको तेलमें उबाल याको पीवे दो वर्ष मात्र वो वौ नारी फिर गर्भ नहीं धारण करै // 28 // पुनः॥ रामठेन युतं तैलं या पिबेदिनपंचकम् // हस्तिना कथितंतस्मात्कदागर्भो न जायते॥२९॥ भाषाटीका // हिंगके संग वेलको पीवे पाँच दिन तो हस्तिकवि कहे हैं कि वाके कभी गर्भ होय नहीं // 29 // पुनः॥ गुडतैलेन संयुक्तं चूर्ण चित्रकसंभवम् // त्रिदिन कार्यते नार्या पुनर्गों न जायते // 30 // भाषाटीका // गुड तेल यामें चित्रकको चूर्ण मिलाय वीन दिन याको खायो करेवो स्त्रीकें फिर गर्भ नहीं रहे॥३०॥ पुनः॥ कारेलीरसपानाच्च माषाजीर्णगुडेनच // शुष्कजाशूसपुष्पाणि त्रिभिर्गों न जायते॥३॥ भाषाटीका // करेलाके रसको पीवे अथवा उर्द पुरानो गुड खाय अथवा सूखे जाशुकीके फूल इन तीन योगनसों गर्भ रहे नहीं // 31 // अथ वातप्रदरोपायः॥ कलिंगोऽतिविषाव्योष बित्वं मुस्ता च धातुकी // चूर्णमेषांकृतं नार्या रक्तस्राव हरे ध्रुवम् // 32 // Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत / (17) भाषाटीका // इंद्रजौ, अतीस, सोंठ, मिर्च, पीपल, बेल, नागरमोथा और धायके फूल, इनको चूर्णकर स्त्री खाय वो रक्तस्रावको निश्चय दूर करै // 32 // पुनः॥ जलेनकेतकीमूलं संघृष्य सितया सह // कारितं कविना नार्या रक्तस्रावं निवर्तते // 33 // भाषाटीका // केवकीकी जड पानीके संग घिस मिश्री मिलाय पीवे सों स्त्रीकी योनिझू लोहू गिरतौरहै // 33 // अथ लोमपातप्रयोगः // केशानुत्पाट्य पूर्वहि जुहीदुग्धं प्रलेपयेत् // कविना कथितं सम्यक् योनिलोमविशान्तये३४॥ भाषाटीका // बालनको उखाड पहले वा ऊपर थूहरनो दूधलेपकर देय योनि पर तौ कवि कहैहैं कि, स्त्रीके बाल नहीं आवें // 34 // पुनः॥ सुधाकुक्कुटविष्ठाच शृंखला कनकं रसम् // अश्वमूत्रेण संलेपो लोमनाशस्तदाभवेत्।। 35 // भाषाटीका // चूनो कलीको मुरगाकी बीठ संखला धतुरेको रस और घोडाको मूत्र लेप करै वो वासों बालनको नाश होई // 35 // नष्टपुष्पआगमनप्रयोगः॥..... हिंगुसौवर्चलं व्योष भाी चूर्ण समानकैः // Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैद्यवल्लभ / उष्णनीरेण नारीणां नष्टपुष्पं लभेत्पुनः // 36 // -- भाषाटीका // हींग कारौनोन सोंठ मिर्च पीपल भारंगी ये समान भाग लेकर चूर्ण कर गरमजलसों फाँकवसों स्त्री रजस्वला होनो बंदगयो भयो फिर आवे // 36 // अथ योनिशोफरोगे लेपः॥ - शुठीपुनर्नवामूल संघृष्टं छागसर्पिषा // .. लेपतो नरसंगोत्थं योगशोफ हरेध्रुवम् // 37 // भाषाटीका // सोंठ सांठकी जडको बकरी के धीमें घिस लेप करवेसों स्त्रीको योनिपर पुरुषके संगसों मई सूजनको हरैहै // 37 // ___ अथ सूतिकारोगे काथः // तिक्तदारुवचाशिरत्रिकटूरविमूलकैः // दशमूलयुतः काथः सूतिकासर्वरोगजित् // 38 // भाषाटीका // कुटकी देवदारु वच सहजनों सोंठ मिर्च पीपल आककी जड ताके संग दशमूल याको काढौ कर पीवेसों सूतिकाके सर्व रोग मिटें // 38 // अथ प्रदररोगे // सिता सरसोपेता त्रिफला नीरपानतः॥ उष्णवातंच प्रदरं स्त्रीणां पित्तरुजं हरेत् // 39 // इति श्रीवैद्यवल्लभे हस्तिरुचिकविविरचिते स्त्रीरोगप्रतीकारो नाम द्वितीयो विलासः॥२॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (19) भाषाटीका // मिश्री राल, त्रिफला ये बराबर लै पानीमें पीने सो गरम वात प्रदर स्त्रीको पित्तको पीडा मिटै३९ . दति श्रीवैद्यवल्लभे मथुरास्थदक्षगोत्रोद्भवचातुर्वेदि राबाचंद्रशर्मकतब्रजभाषाटीकायां स्त्रीरोगप्रतीकारो नाम द्वितीयो विलासः // 2 // अथ कासश्वासे गुटिका // पारदं गंधकं नागं सव्योषैः सानलैः समम् // शिगुरसेन संचूर्ण प्रदेयाभावना दश // 1 // नागपत्ररसेनैव चाकस्य रसेनच // बेलप्रमाणा कफजित्कार्या सा गुटिकोत्तमा॥२॥ मंदाग्निकफरोगेषु कासश्वासे विशेषतः // आध्मानपवनातौंच प्रदेया सुखकारिणी // 3 // भापाटीका // पारौ,शुद्धगंधक,शुद्धतेलीया, मीठो शुद्ध और सोंठ मिर्च पीपल चित्रक ये बराबर ले सहजनेके रस की दश पुट दैनी // 1 // तापीछे नागरपानके रसमें वथा अदरखके रसमें घोट मिर्च के बराबर गोली बनानी ये गोली उत्तम कफको जीते // 2 // और मंदामि कफके रोग कास श्वासको विशेष कर और अफरा वादीवारेको देवे सो सुखी होइ / / 3 // __ कफश्वासे गुटिका // लवंगमरिचैस्तुल्यैत्रिफलासारतः समैः / Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (20) वैद्यवल्लभ। बबूलस्य त्वचा कार्या गुटी श्वासकफापहा // 4 // भाषाटीका॥ लोग, मिरच, हरड, बहेडे, आवरे और सार ये सब बराबर भाग ले बंबूलकी छालके रसमें तथा काढेमें गोली करनी ये गोली श्वास कफको दूर करे // 4 // पुनः॥ लवंगत्रिकटुनागशृगीक्षुद्राविभीतकैः॥ कन्यारसेन गुटिका कासश्वासनिवारिणी // 5 // भाषाटीका // लोंग, सोंठ, मिरच, पीपल, तेलिया मीठो, काकडासिंगी, कटेरी और बहेडे इनको बराबर भाग ले ग्वारपाठेके रसमें गोली बांधे ये गोली श्वास कफको दूर करे है / / 5 // त्रिकटु टंकणं नागं पत्रेण क्रियते गुटी॥ वेल्लप्रमाणा कफजिन्नाम्ना त्रिपुरभैरवी॥६॥ भाषाटीका // सोंठ, मिर्च, पीपल, सुहागो, तेलिया मीठो ये बराबर भाग ले नागरपानके रसमें गोली करनी मिर्चके बराबर तो कफको जीवे याको नाम त्रिपुरभैरवी गुटिका है // 6 // अथ कासश्वासे चूर्णम् // त्रिकटु त्रिफला वेल्लरास्नादारुबलान्वितैः // सक्षौद्रेण कृतं चूर्ण कासश्वासकफापहम्॥ 7 // भाषाटीका। सोंठ, मिर्च, पीपल, हरड, बहेडे, आवरे Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (21) वायविडंग,रास्ना,देवदारु और खिरटी ये बराबर भाग ले वाको चूर्णकर सहतके संग खायवेसों कास श्वास कफ इनको दूर करे // 7 // अथ कासश्वासे काथः॥ वासानागरमुस्तानि भार्ग भूनिम्बनिम्बजैः। मधुनासहितः काथः श्वसनं कसनं हरेत् // 8 // भाषाटीका // अडूसो, सोंठ, नागरमोथा, भारंगी, चिरायतौ, नीमकी छाल ये सब बराबर भाग ले काढाकर सहतके संग पीवेसो कास श्वासको दूर करे // 8 // __ अथ कासश्वासे गुटी॥ फलत्रयं नागरदारु कृष्णा विषाभयावेलसुवर्णबीजैः। दिनत्रयं भंगरसैविमर्थ कार्यागुटी श्वासकफापहारी // भाषाटीका // हरड़, बहेडे, आवरे, सोंठ, देवदारु, पीपल, वेलिया मीठो, शुद्धतेनो, हरड, मिर्च धतूरेके बीज ये सब समानभाग ले तीनदिन भांगरेके रसमें घोट गोली करनी ये गोली श्वास कफको दूर करे है // 9 // अथ कासश्वासावलेहः // सगुडः कटुतैलेनावलेहः श्वासकासजित् // यथाक्षौद्रान्वितं व्योषचूर्ण श्वासकफापहम् // 10 // भाषाटीका // गुड कडुएतेलमें औंटाय चाटवे सों Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (22) वैद्यवल्लभ। श्वास कास मिटै ऐसेही महतमें सोंठ मिरच पीपलको चूर्ण गेर चाटवेसो श्वास कफ दूर होय // 10 // पुनः॥ वल्लयुग्मं स्नुहीदुग्धं गुडयुक्तेन सेवनात् // कासश्वासं क्षयीरोग हृद्रोगंच प्रणाशयेत् // 11 // भाषाटीका॥ मिरच दोनों थूहरनको दूध गुडके संग सेवन करवेसों कास श्वाप्त क्षयी रोग हृदयरोगको नाशकरे११॥ पुनः॥ वासारसयुतं क्षौद्र यो भजेदिनसप्तकम् // तस्य धातुक्षयं श्वासकासरोगं विनश्यति // 12 // भाषाटीका // अडूसेके रसमें सहत गेर सातदिन खायवेसों धातुक्षय श्वास कासरोगको नाशकरै // 12 // पुनः॥ वचाश्वगंधापामार्गतुलसीसर्षपैः समम् // चूर्ण क्षयविनाशाय कारित कविना नृणाम् // 13 // भाषाटीका // वच, असगंध, औंगा, तुलसी, सरसों ये बराबर ले चूर्णकर खाय तौ खईको नाश होइ ऐसे हस्तिकवि कहै है // 13 // पुनः॥ अश्वगंधामृताभीरुदशमूलबलावृषा // पुष्करातिविषाक्काथःक्षयकासविनाशकृत् // 14 // Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (23) भाषाटीका // असगंध, गिलोय, शतावर, दशमूल, खिरेटी, अडूसो, पौकरमूल, अतीस ये सब बराबर भागले काढौकर पीयेसों कासक्षयको नाश करै // 14 // पुनः // पलैकं लवणं नीत्वा सूर्यक्षीरेण मर्दयेत् // खादयेत्तेन चूर्णेन क्षयरोग सदा हरेत् // 15 // भाषाटीका // एक पल सैंधौनोन लेनो आकके दूधर्मे मर्दनकर या चूर्णकौं खावै तौ क्षयरोगको दूर करै // 15 // सत्त्वगुडूच्याहृतशुल्बबिल्वैश्चूर्णहिवासास्वरसेनदत्तम् // सद्धस्तिनावैक्षयरोगकासश्वासोपशान्तिस्त्रिदिनंस्फुटंस्यात् // 16 // __ भाषाटीका // गिलोयको सत्व मान्यो तांबो बेल ये समान भाग ले चूर्ण कर अडूसेके रसमें वीन दिन घोट देवेसों क्षयरोग और कास श्वासको शान्ति करे ये हस्विक कवि कहेहैं // 16 // ___ अथ शोफरोगे लेपः // पुनर्नवानिम्बविश्वासपटोलजलेनच // संघृष्यक्रियतेलेपःसद्यःशोफविनाशकृत् // 17 // भाषाटीका // साँठीकी जड, नीमकी छाल, सोंठ और पटोलपत्र जलमें घिस लेप करवेसों जल्दी सूजनको नाश करै // 17 // Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (24) वैद्यवल्लभ / .. पुनः॥ पुनर्नवामृताशंठीदारुपथ्यासमांशकैः // चूर्णमुष्णाम्बुनापीतंशोफंहन्तिसवेगतः // 18 // भाषाटीका // साँठीकी जड, गिलोय,सोंठ,देवदारु, हरड ये समान भागलै वाको चूर्ण कर गरम जलसों पीवे वो सूजनको जल्दी सों दूर करै // 18 // सरामठसकूष्मांडंसचूर्णटंकणान्वितम् // - गुडयुक्तंसदापीतंसद्यःशोफोदरंहरेत् // 19 // भाषाटीका // हींग पेठेको रस सुहागौं ये समान भाग छै इनके चूर्णमें गुड मिलाय सदा पीवेसों जल्दी पेटकी सूजनको दूर करै // 19 // पुनर्नवाभयादारुवातशत्रुसमांशकैः // गोमूत्रेणकृतःकाथःशोफजिद्धस्तिनामतः॥२०॥ भाषाटीका // साँठीकी जड, हरड, देवदारु, अंडकी जड, ये समान भाग ले गायके मूत्रमें काढौकर पीवै वो सूजन दूर होइ यो हस्तिकविको मतेहै // 20 // पुनः॥ सैन्धवाज्याभयादानाद्गोमूत्रेणच पिप्पली // दुग्धेन महिषीमूत्रं त्रिभिः शोफोदरं हरेत् // 21 // भाषाटीका // सैंधानोन, घी, हरड देवेसों और गोमूत्रमें पीपल देवेसों और द्ध गायके भेंसको मूत ये तीनों देवेसों पेटकी सूजनको दूरकरें // 21 // Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (25) अथ विस्फोटकरोगे कषायः // बासामृतारेणुकमुस्तधान्यपटोलशुठीत्रिफ-॥ लातथैव // भूनिम्बनिम्बैः क्वथितःकषायो विस्फोटकान हन्त्यचिरेणरोगान् // 22 // भाषाटीका // अनौ गिलोय रेणुका याकी प्रतिनिधि पित्तपापडौ डारेहै, नागरमोथा धनीया पटोल सोंठ हरड बहेडे आंबरे और चिरायतो नीमकी छाल इनको बराघर भाग ले काढौ कर पीवेसो बहुत दिनका विस्फोटक रोग मिटै // 22 // अथ विस्फोटकरोगे चूर्णम् // दग्ध्वा मार्तडमूलानि तच्चूर्ण पलमानतः।। मृततालपुटीयुक्तं दीयते दिनसप्तकम् // 23 // तत्पथ्ये चणका योज्या दुग्धोदनयुतेन वा // विस्फोटवान् प्रकुर्वाणः सशीघ्रजायते सुखी॥२४॥ भाषाटीका / / आककी जडकी राख ताको चूर्ण एक ल हस्तालकी भस्म पुटयुक्त सातदिन देवे / / 23 / / खाप पश्य चना तथा दूध भावके संग देवे वो विस्फोटक रोगवारौ ऐसे करै तो बहुत जल्दी सुखी होई // 24 // अथ विस्फोटकत्रणरोगे लेपः // एला जाती फल तुत्थं गोघृतेन च मर्दयेत् / / हस्तिना कथितं हन्ति लेपाद्विस्फोटकत्रणम्॥२५॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (26) वैद्यवल्लभ / भषाटीका // इलायची जायफल नीलाथोथौ ये बराबर भागलै गायके घीमें मिलाय लेप करसों हस्तिकवि कहैहैं कि विस्फोटकवण दूर होई // 25 // अथ विस्फोटकरोगे गुटी / / गुटी स्नुह्याश्च दुग्धेन पिष्ट्वा जीरकतन्दुलान् // -पथ्यायुक्तेन पानाच्च विस्फोटकरुज हरेत् // 26 // ___ भाषाटीका / थूहरके दूधके संग जीरौ चावल पीस वामें हरड मिलाय गोली खाय तो विस्फोटकको दर्द दूर होई / / 26 // अथ पामारोगे लेपः // सिन्दूरं गंधकं तुत्थं सूतं धात्री विमर्दयेत् // गोघृतेनकृताल्लेपात्पामागच्छति सत्वरम् // 27 // भाषाटीका सिन्दूर गंधक नीलाथोथौ पारौ आवरे इनको गौके घीमें मर्दनकर लेप करवेसों पामा जल्दी जाय२७।। पुनः॥ दद्रुघ्नं तंदुलालाक्षा गोतकेणच मर्दयेत् // पश्चादालेपतो हन्ति पामादद्रुवणव्यथाम् // 28 // भाषाटीका // पवारके बीज, चावल, लाख, इनको गौकी छाछमें मर्दन करे पीछे लेप करे तो पामा दाद फोडा की पीडा मिटै॥ 28 // अथ रक्तपित्तरोगे उपचारः॥ मृततालं शुभं नीत्वा शिरसमन्वितम् // Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (27) पथ्यायुक्तेन दातव्यं रक्तपित्तविनाशकृत् // 29 // भाषाटीका / / मरीभई हरताल, अच्छी लेनी सहेजनेकी पुट दे हरडके संग देवे सो रक्तपित्तको नाश करै // 29 // पुनः॥ शर्कराछागदुग्धच कारितं दिवसान दश // रक्तपित्तविनाशाय सद्धस्तिकविनामतः // 30 // इति श्रीवैद्यवल्लभे हस्तिरुचिकविविरचिते क्षयशोथसमीरविस्फोटकपामाददूरक्तपित्तप्रभृतिप्रतीकारो नाम तृतीयो विलासः॥३॥ भाषाटीका // मिश्री बकरीको दूध मिलाय करके दश दिन पीवे तो रक्तपित्तको विनाश होई ये हस्विकविको मत है / / 30 // इति श्रीवैद्यवल्लभे श्रीमधुपुरीस्थदक्षगोत्रोद्भव राधाचंद्रशर्मकतव्रजभाषाटीकायां क्षयशोथसमीरविस्फोटकपामादवरक्तपित्तप्रभृतिप्रतीकारोनाम तृतीयो विलासः // 3 // अथ बलवीर्यवर्द्धनो मोदकः॥ अश्वगंधातिलामाषागुडसापमहौषधैः / / मोदको भक्षितः प्रातर्बलवीर्यस्य वृद्रिकृत् / / 1 / / भाषाटीका। असगंध तिल उरद गुड घी सोंठ ये बराबर Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (28) वैद्यवल्लभ / भागले मोदककर प्रातसमें खायवसो बल और वीर्यको बढावे // 1 // पुनः॥ मर्कटीगोक्षुराभ्यां च शाल्मलीशर्करामलैः // आलोड्य मधुदुग्धाभ्यां भक्षणाद्वीर्यवृद्धिकृत् // 2 // भाषाटीका // कोंचके बीज गोखरू सेमरको मूसरा मिश्री आवरे इनको सहत और दूध मिलाय खायवेसों वीर्यकी वृद्धिकरे // 2 // पुनः॥ सदुग्धमुच्चटामूलं यो भजेदिनसप्तकम् // सपुमाञ्छतनारीणां भोग सृजति सत्वरम् // 3 // भषाटीका // दूधके संग उटंगनकी जड़ याकी प्रविनिधिमें गुआकी जड लेनी, सावदिन. खायवेसों पुरुष सौ स्त्रीनको भोगकर सके जल्दीसों // 3 // पुनः॥ गुञ्जागोक्षुरकैश्चूर्ण मर्कटीबीजशर्करा // दुग्धेन मिश्रितं कृत्वा सद्धस्तिकविना मतः॥४॥ तदौषधं पलार्धतु यः पुमानिशि भक्षयेत् // तस्य वीर्यस्य वृद्धिः स्याद्रलंरूपं विशेषतः // 5 // भाषाटीका // रत्ती शुद्ध गोखरु कोंचके बीज मिश्री इनको चूर्ण दूधमें मिलायके हस्विकविको मतहै // 4 // Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (29) कि ता औषधमें सो आधपल रात्रिको पुरुष खाय तौ ताके वीर्य बढे बलरूप विशेष करके बढे // 5 // पुनः॥ तिलगोक्षुरयोश्चूर्णमजादुग्धेन पाचितम् / / शीतलं मधुसंयुक्तं बलवीर्यस्य वृद्धिकृत् // 6 // भाषाटीका / तिल गोखरूको चूर्ण बकरीके दूध औटाय शीवलकर सहतके संग पीसों बलवीर्यकी वृद्धिकरे / / गोघृतशीतलंगारिसुभोज्यं च नवाङ्गना।। दुग्धपानंमदास्तानंपडेतेगात्रपुष्टिदाः // 7 // भापाटीका / / गायको घी, ठंडा पानी, मीठे भोजन, बाला स्त्री नई दुधको पीवो निरन्तर न्हायवौ / येछैहू शरीरको पुष्टाई देवेवारीहैं // 7 // कृष्णमुशलीकंदस्यचूर्णतुगोघृतेनच // नरोनित्यंप्रकुर्वाणोगतकामलभेत्पुनः // 8 // भापाटीका ।कारी मुशलीको कन्द चूर्ण कर गौके धीम खायो नित्यकरे पुरुष तौगयोभयो काम फिरमिलै॥ 8 // मुशलीकंदचूर्णतु पलार्द्धमुच्चटातथा॥ दुग्धेनसहपातव्यं गतधातुप्रमेहजित् // 9 // भाषाटीका // मूशलीके कंदको चूर्ण आधपल उटंगन आध पल दूध गरे पीवेसों गईभई धातुको बढावे और प्रमेहको जीवे // 9 // Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (30) वैद्यवल्लभ / .. पञ्चाङ्गगोक्षुरंचूर्णशर्करादुग्धमिश्रितम् // कारितहस्तिकविनागतधातुप्रशान्तये // 10 // भाषाटीका // गोखरूको पञ्चाङ्ग लै चूर्ण कर दूध मिश्रीमें मिलाय पीयो करे तो हस्तिकवि कहै कि गई धातुको शान्ति करै / / 10 अथ प्रमेहरोगे उपचारः // ससितामर्कटीदुग्धावरी विश्वासमानकैः // भक्षणात्रिदिनहन्तिसयोमेहंसुदुस्तरम् // 11 // भाषाटीका // मिश्री कौंचके बीज दूधी शतावर सौंठ ये बराबर भागले खाय तीन दिन तौ दुस्तर प्रमेहको झट दूर करै // 11 // पलाशवृक्षपुष्पाणिसितयावंगसंयुतम् // कारितहस्तिकविनापित्तमेहप्रशान्तये // 12 // भाषाटीका // पलाशकी फूल मिश्री वंगेश्वर मिलायके खायो करै तौ हस्तिरुचिकवि कहै कि पित्तप्रमेहको शान्ति करै // 12 // अथ सकलप्रमेहरोगे उपचारः॥ हेमबीजविषवंगपारदं हंसपाकबलिनासमन्वितम् // नागवल्लिदलसंयुतं रसं कामदं सकलमेहनाशनम् // 13 // भाषाटीका // धतूरेके बीज तेलियामीठो शुद्ध वगेश्वर Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (31) पारौ शुद्धहींगुलू गन्धक इनके संग नागरपानके रसमें ये रस सवरे प्रमेहनको नाश करै / / 13 // वल्लपोडशगुन्द्रंच सितादुग्धेन मिश्रितम् // सर्वप्रमेहे वैद्यन धातुदोषोपशान्तये // 14 // भाषाटीका / सोलह रती गौंद लैकें मिश्री और दूध के संग पीवेसों भतुदोष तथा प्रमेहको नाश होई / / 14 // अथ हीनकन्दर्पवृद्धिप्रयोगः // हंसपाकपलार्धच वृन्ताकेनच पाचयेत् // वल्लमानप्रदानेन हीनकन्दर्पवृद्धिकृत् // 19 // भाषाटीका // हागुल आधपल ताको बैंगनमें घर पकामनों तापीछं एक रत्तीदेवेसों हीनकाम अर्थात् नपुंसक पनो दूर करै // 15 // सूर्यक्षारं पलाधंच सितया सह भक्षयेत् // उष्णवातं पितरोग मूत्रकृच्छं प्रणाशयेत् // 16 // भाषाटीका // आकको खार तथा याकी ऐवज सोरा खार लेनो आध पल लैकर मिश्रीके संग पीवेसों उष्ण वात पित्तरोग मूत्रकृच्छ्र इन ये सबनकौं नाश करै // 16 // अथ मूत्ररोधे उपचारः॥ त्रिफला कर्कटीबीजं सैन्धवं समभागकैः॥ चूर्णमुष्णाम्बुनापीतं मूत्ररोधं निवारयेत् // 17 // भाषाटीका // हरड बहेडे आवरे काकडीके बीज सै Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (32) वैद्यवल्लभ। न्धो नौन ये बराबर भाग लै वाको चूर्ण कर गरम जलके संग फाँकवेसों मूत्ररोधको निवारण करै // 17 // अथाश्मरीरोगे उपचारः॥ शर्करांच यवक्षारं गवां तक्रेण यः पिबेत् // उष्णवातस्तथाश्मयाः पीडागच्छति सत्वरम् 18 // भाषाटीका // मिश्री यवक्षार गायके मठासों याको पीवे वो गरम वाय तथा पथरीके दर्दको जल्दी दूरकरै // 18 // अथ लिङ्गलेपः॥ नागफेनो विषं स्वर्णबीज जातीफलं समम् // गोघृतेनच समर्थ लिङ्गलेपो विधीयते // 19 // तस्माद्भवति मानां मृतकन्दर्पवृद्धिकृत् // प्रयोगो हस्तिना सघश्चमत्कारकरः परम्॥ 20 // भाषाटीका // अफीम, वत्सनाभ, धतूरके बीज,जायफल, इनको समान भाग ले चूर्णकर गायके धीमें याको मर्दनकर लिङ्गपर लेप करनों // 19 // वा मनुष्यको मन्यो भी काम बढे करे ये योग इस्तिकविको जल्दी चमत्कार करे बहुत / / 20 // वचाश्वगन्धागजपिप्पलीनां चूर्ण महिष्या नवनीतमेभिः // विलेपितंसत्पुरुषस्यलिंगं लंबं भवेद्धस्तिमतं च सम्यक् // 21 // Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (33) भाषाटोका // बच,असगंध,गजपीपल,ये समान भाग ले चूर्ण भैसके माखनमें मिलाय लिंगपे लेपकरे तो पुरुषको लिंग लम्बो होई ये हस्विकविको मत है // 21 // वचाकुष्ठाश्वगन्धाच गजकृष्णासमानकैः // नवनीतयतो लेपो नरलिंगस्य वृद्धिकृद // 22 // भाषाटीका॥ बच, कूठ, असगंध, गजपीपल ये समान भाग ले चूर्णकर गऊके माखनमें लेप करवे सो मनुष्यके लिंगकी वृद्धिकरे // 22 // पुनः॥ सश्वेतरक्तकरवीरजटो गृहीत्वा दारूनिशागजकणानवसागरेण // आकल्लकार्कसहित हि जलेन पिष्टवा संलेपितं प्रकुरुते खलु लिंगवृद्धिम् // 23 // भाषाटीका // सुपेद तथा लाल कनेरकी जड लेनीऔर देवदारु हरदी गजपीपल नौसादर अकलकर आककी जड जलके संग पीस याको लेप करे तो आनन्द सो लिंगकी वृद्धि होई / / 23 // अथ कामेश्वरगुटिका // नागफेनफलाजातीपत्रीनागलतारसैः // मर्दयद्यामयुग्मं तु कारयेद्गुटिकोत्तमा // 24 // सुगन्धैमिश्रितादेया दुग्धपानं तदोपरि // सुरते दशनारीणां मानमुच्छेदयेद् ध्रुवम् // 25 / / Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (34) वैद्यवल्लम / भाषाटीका // भीम जायफल जावित्री इनको समान भागलै नागरपानके रसमें मर्दन करे दोपहर ताकी गुटिका उत्तम करनी // 24 // सुगन्ध मिश्रित करनी इलायची वजके संग देनी तापें दूध प्यानौ दो अच्छीतरें रविमें दशस्त्रीनके मानको निश्चय मारे // 25 // अथ मूत्रविकारे उपचारः // भंगराजं विलाः कृष्णाः प्रतिवासजलेनच / / दिनानि सप्त कुर्वाणो न मूत्रं पतते बहु // 26 // भाषाटीका // भांगरो काले तिल पटवास इनको समान भाग ले पानी के संग घोट सातदिन पीयो करवेसों बारबार मूत्रको आयवो बन्दहोई // 26 // अथेन्द्रियोत्पन्नरोगे उपचारः॥ ससितंमृतनागन्तु योभजे दिनसप्तकम् // तस्य सर्वेन्द्रियोत्पन्न रोगजालं ध्रुवं हरेत् // 27 // भाषाटीका // मिश्रीके संग नागेश्वर याकों खाय सात दिन ताकी सर्वलिंगकी रोगजालको निश्चै हरे // 27 // अथ नागभस्मविधिः॥ पूर्व संशोध्यनागन्तु सूर्यमूलेन मर्दयेत् // यामत्रिके भवेद्भस्म सितयासही दापयेत् // 28 // नागं मृतं हरति पित्तसमीरणार्ति शुक्रस्यदोषशमनं गतकामवृद्धिम् // दाहप्रलापशमनं रुचि- : Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत / (35) कृद्विशेषात् शीर्षव्यथां हरति नेत्ररुजनराणाम्२९॥ इतिश्रीवैद्यवल्लभेहस्तिरुचिकविविरचितेपुरुषार्थगतकामगतधातुप्रमेहमूत्रकृच्छ्राश्मरीलिंगदिबहुमूत्रप्रतीकारोनाम चतुर्थो विलासः॥४॥ भापाटीका // पहलें सीसेको शोधकर खीपराम चढाय तीव्रभग्निदे आककी जडसों मर्दन करतोजाय तो चीन पहरमें भस्म होइ यार्को मिश्रीके संग देनी // 28 // नागेश्वर मारयोभयो पित्त वातविकार हरे वीर्यदोषको शमन करै गयेभये कामको बढावे और दाहालापको शमन कर विशेषकर रुचिकों करै शिररोगनको हरै मनुष्य के नेत्रके दर्दको हरै // 29 // इतिश्रीवैद्यवल्लभेमधुपुरीस्थदक्षगोत्रोद्भवचातुर्वेदिराधा चन्द्रर्मिकतव्रजभाषाटीकायांपुरुषार्थगवकामगवधातुप्रमेहमूत्रकृच्छ्राश्मरीलिंगवृद्धिबहुमूत्र : प्रतीकारोनामचतुर्थी विलासः // 4 // .. अथ गुदरोगप्रतीकारःप्रोच्यते // आम्रास्थिविश्वागोशृंगीकुटजाम्ररसेनतु / / मर्दथेत्रिदिनं सम्यक सितया सह यो भजेत्॥३॥ तस्यपित्तोद्भवां हन्ति अहणीं दुःखकारिणीम् / / ज्वरातिसारंतीवं च रक्तस्राव रुजहरेत् // 2 // भाषाटीका / केरीके भीतरकी गुठली सोंठ अवीस कुडेकी छाल ये समान भाग लै आनके रसमें वा आमके Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (36) वैद्यवल्लभ। . पत्ताके रसमें तीनदिन मर्दन कर ताकौं मिश्रीके संग खाय // 1 // तौ पिचसो भई संग्रहणी दुःखक देवेवारीको हरे और ज्वर अतीसार वीवरक्तके गिरवेको दर्दको दूरकरे॥२ अथ अतीसारेगुटिका॥ मरिचंखपरंनागफेनतन्दुलकैर्जलैः // मर्यतंदुलतोयेनगुटीसर्वातिसारजित // 3 // भाषाटीका // कालीमिर्च खपरिया शुद्धअफीम इनको समान भागलै सांठीचागल के धोइबे के पानीसों घोट गोलीकर चावलके धोवनसो देनी वौ सवरी भांतिके दस्तके विकार को मेंटै // 3 // पुनः॥ जीरकविजयाबिल्वनागफेनसमांशकः // दधिनीरेणसाकार्यागुटीसर्वातिसारजित् // 4 // भाषाटीका // जीरौ भांग वेलगिरी अफीम ये समान भागले दही के जलसे गोली कर देवे सों सवरे दस्वविकार को दूर करै॥ 4 // अथ अतीसारें चूर्णम् // कपित्थवटेशृंगंचशूठीजीरकशर्करा // समभागैःकृतंचूर्णमतीसारहरंपरम् // 5 // भाषाटीका ॥केत बडके कोमलपत्ता सोठ जीरौ मिश्री ये समान भाग लै चूर्ण कर देय वौ महातिसारको हरे।।५॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत / (37) अथार्शरोगे उपचारः॥ भल्लातकंतुप्रस्थाद्धजलप्रस्थद्वयेनच / / प्रस्थद्वयं तुगोदुग्धंपाचयेदहिनाततः॥६॥ प्रस्थाईगोघृतंभुक्त्वाप्रस्थमानातुशर्करा // तदोषधंपलाईन्तुचाशोहन्तिचभक्षणात् // 7 // भाषाटीका॥ मिलाये सेर 1 पानी सेर 4 गायको दूधसेर 4 ये सब एकत्र कर अधिसो वाकों पकानों // 6 // वा पीछे गौको घी सेरभर तथा सेरभर मिश्री गेरकर मिलानी मिले पीछे वामें ते आध पल खाय वौ बवासीरकों दूर करै // 7 // ___ अथार्शारिलेपः // देवालीफलबीजानिगोमूत्रेणचमर्दयेत् // वारत्रयंकृताल्लेपादर्शः पततिमूलतः॥ 8 // __ भाषाटीका ॥देवेदालीके बीजकी मीगी याकों गोमूत्रमें मर्दन कर तीन दफे लेप करवेसों बवासीरको जडसों दूर करै // 8 // पुनः॥ यथा सेहुण्डदुग्धस्य लेपो दर्शःसदाहरेत् // शकबीजवटक्षीरभक्षणं गुदजार्शनुत् // 9 // भाषाटीका // ऐसे थूहरके दूधको लेप करवसों सदा बवासीरको हरे तैसेंही इन्द्रजौ वडको दूध याकौ खायवेखों गुदाके मस्सेनको दूर करै // 9 // Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (38) वैद्यवल्लभ / अथार्शारिगुटिका // गुग्गुलं लशुनं निम्बबीजरामठनागरैः॥ गुटी शीतोदकेनोक्ताहर्शः पतति मूलतः॥ 10 // भाषाटीका // भेसा गूगल लसन नीमकी निबौरी हींग सोंठ ये समान भागले जलसो गोलीकर ठंडे जल सो देनी तो बवासीरकों जडसो दूर करै // 10 // ___ अथ भल्लातकविकारे लेपः॥ दारुसर्षपमुस्ताभिनवनीतेन लेपनात् / / भल्लातकविकारोऽयं सद्योगच्छति निश्चितम् // 11 // भाषाटीका // देवदारु सरसों और नागरमोथा ये समान भाग के माखनमें मिलाय लेपकरवेसो मिलाके विकारको निश्चय जल्दी दूर होई // 11 // पुनः॥ नवनीतं तिलादुग्धं पुनः खंडघृते तथा॥ एतद्वयं प्रलेपेन हन्ति भल्लातकव्यथाम् // 12 // भाषाटीका // माखन और तिल दूध और मिश्री वथा घी मिश्री ये दोनों लेप करवेसों भिलावेकी व्यथाको दूर करै // 12 // पुनः॥ 'सितानिम्बूरसः पानादात्रीपत्ररसस्तथा // शरीरे मर्दनादन्ति भल्लातकमहव्यथाम् // 13 // Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत / (39) भाषाटीका // मिश्री और निम्यूको रस पीवे तथा आमरेके पत्ते के रसको शरीरपे भीडे तो भिलावेकी महा व्याधिको दूर करै // 13 // ___ अथ कृमिरोगोपचारः // महानिम्बस्य पत्राणां रसो हि पलमानतः // पानात्कृमिभवं दोषं सद्यो हन्तिच निश्चितम्॥१४॥ भाषाटीका॥महानीमके पत्तोंका रस एक पलभर लेकर पीवे सो कमिकीडोंसे भये दोषको निश्चय जल्दी दूर करै 14 // अथ भगंदरवाते लेपः॥ चूर्णं जम्ब्वाम्रपत्राणां खररक्तेन भावयेत् // तल्लेपे विहिते याति भगन्दरमरुद्व्यथा // 19 // भाषाटीका / जामुन आम इनके पत्तानके चूर्णको गधाके लोहूकी भावना दे वाको लेप करे वो यासो भगन्दर वावव्याधिको हरै // 15 // _अथैरंडपाकः॥ प्रस्थप्रमाणानिलशबीजं ... सदुग्धप्रस्थाष्टकमत्रपक्त्वा // .. .. . प्रस्थैकखण्डेन पलानि पंच घृतहि योज्यं तदनु प्रकल्कः // 16 // हरिद्रामृतशुल्बंच मरिचं त्रिफलाभया // वंशलोचनवंगंच चातुर्जातमृताभ्रकैः // 17 // Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (40) वैद्यवल्लभ / लवंगाकल्लकं कृष्णा दारु भीरु पुनर्नवा // शतपुष्पा वृद्धदारु पुष्करं विजयौषधैः // 18 // अश्वगंधा समानेन सर्व संचूर्ण्य मेलयेत् // यो भजेत् पलमानेन हन्ति तस्य मरुद्व्यथाम् 19 // नलवृद्धि स्रोतोवृद्धि गुल्मोदरगुदव्यथाम् // अर्शश्च कृमिजाः सर्वरोगानश्यंति निश्चितम् 20 // भाषाटीका // अंडके बीज शेर 2 लेकर वाके छीलका दूर कर ताके मीगी लेनी वाको दूध सेर सोलहमें गेर पकानी पीछे वामें घी आधशेर गेर खोहा करनो वा पोछे तामें मिश्री सेर 2 गेरनी // 16 // ताके कल्कमें और हरदी गिलोय वामेश्वर काली मिर्च हरड बहेडे आवरे वसलोचन वंगेश्वर दालचीनी बडी इलायची वेजपाव नागकेशर मन्योभयो भोडल // 17 // लोग अकलकरा पीपल दारुहरदी सांठीको जड सौंफ विधायरी पौकरमूल भांग सोंठ // 18 // असंगध ये समान भागलै ताको चूर्णकर उपर कहेभये अवलेहमें गेरनी वामेते एक पलभर ले प्राव समे खायवेसों वाकी वादीकी व्यथाकों हरे // 19 // वथा नलवृद्धि स्रोतवृद्धि पेटको गोला गुदाको रोग बवासीर सबरे कमिरोगनको निश्च नाशकरे // 20 // अथ स्रोतवृद्धिरोगे लेपः॥ सैन्धवं जीरकं युग्मं रामठंद्विगुणं जलम् / / तेलेनोत्काल्य तल्लेपात्स्रोतवृद्धि हरेढुवम् // 21 // Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (41) भाषाटीका // सँधोनोन दोनों जीरे हींग इनसो दूनी जल और तेलमें गेर औटाय वाको लेप करे तो स्रोतवृद्धि निश्चै दूर होई // 21 // पुनः उपचारः // तिक्तादुग्धेन दातव्यं सजलेन पुनर्नवा // इति श्रीवैद्यवल्लभे हस्तिरुचिकविविरचिते अतीसारस्रोतवृद्धिमरुदादिसर्वरोगप्रतीकारो नाम पंचमो विलासः // 5 // भाषाटीका // कुटकी दूधके संग देनी तथा सांठी जल सो फांके वौ स्रोतवृद्धि मिटै // इति श्रीवैद्यवल्लभे मधुपुरीस्थदक्षगोत्रोद्भवचातुर्वेदि- . राधाचन्द्रशर्मकतव्रजभाषाटीकायामवीसारस्रोः . तवृद्धिमरुदादिसर्वरोगप्रवीकारो नाम पंचमो विलासः // 5 // अथ कुक्षिरोगे उपचारः // तत्र वज्रभेदीरसः / / चित्रकं त्रिवृता दन्ती त्रिफला च कटुवयम् // तुल्यांशैश्शूर्णयेत्सूक्ष्म द्विगुणं च सुहीपयः॥१॥ पक्कं मंदाग्निना सम्यक् पंचगुंजा विरेचकृत् // देयः सर्वोदरातों च वज्रभेदी ह्ययं रसः॥२॥ भाषाटीका // चित्रक निसौव दन्ती हरड बहेड़े आ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (42) वैद्यवल्लभ। .. दले सोंठ मिर्च पीपल ये सर्व समान भाग लै महीन चूर्गकर वासों दूनो थूहरको दूध मिलाय // 1 // मन्दअग्निसो पकायके पांच रत्ती दे तो दस्त कर और सबेरे उदररोगनको दूर करें ये वजभेदी रस है // 2 // अथ सर्वकुष्टारिरसः // जैपालबीजचूर्णं तु स्नुहीक्षीरं घृतं समम् // मंदाग्निना पचेत पिण्ड पंचगुंजाविरेचकृत् // 3 // सर्वकुष्ठारिर्विख्यातो देयमुष्णजलेन च // गुल्मज्वरविनाशार्थ सद्धस्तिकविना मतम् // 4 // भाषाटीका // शुद्ध जमालगोटाको चूर्ण थूहरको दूध गौको घी इनको समान भाग लै मन्दअनिसों पकावे याके गोलाको वापीछे तामेते पांचरत्ती देवो दस्त होय॥३॥ ये सर्व कुष्ठारि रस विख्यातहैं याको गरम जलसों दे वो सबरे कोढनको वथा गोला ज्वरको नाश होइ ये सद्योग हस्तिकविके मतकोहै // 4 // अथ इच्छाभेदीरसः // पारदं गन्धकं व्योषं निशा पथ्या तुटंकणम् // तत्समंजयपालंच तत्समेन गुडेनच // 6 // शीवोदकेन दातव्यश्चतूरक्तिप्रमाणकः // विरेची ज्वरहन्ताच गुल्मशोफोदरापहः // 6 // मन्दानिशूलदोषेषु कफरोगे विशेषतः // प्रोक्तोऽसौ हस्तिकविना इच्छाभेदीयं रसः॥७॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (43) भाषाटीका // पारो शुद्ध गन्धक सोंठ मिर्च पीपल हरदी हरड़ सुहागो ये समान भाग लै वाकी बराबर जमाल गोटा और सबकी बराबर गुड़ ले मिलाय // 5 // ठंडे जल सों चार रत्ती देवे सों दस्व होई ज्वर गोला सूजन पेटकी इनको दूर करे / / 6 / / मन्दाग्नि दर्दके दोषको विशेषकर कफके रोगको दूर करे ये हस्विकविको कह्यो इच्छाभेदी रसहै // 7 // . अथ कुष्टरोगे लेपः॥ गुंजाभल्लातकं नागो निम्बस्य फलमजकैः॥ तक्रेण विहितो लेपः कुष्टाष्टादशनाशकृत् // 8 // भाषाटीका // रत्ती मिलाये तेलिया मीठो नीमकी निबोरीकी मींगी इनको समान भाग ले छाछमें पीस लेप करें वो अठारे प्रकारके कोढनको नाश करे है // 8 // अथ विषभक्षणे उपचारः // लवणं भानुदुग्धेन सकृद्भावितकर्षकम् // गव्येन पयसा पीतं वमिद्विषनाशनम् // 9 // . भाषाटीका // एक कर्ष संधीनीन आकके दूध भावना देकर गौके दूधसों पीवे वो उल्टी करे वासों विषनाश होई // 9 // अथ वमनायुपचारः॥ तुम्बीबीजमजाक्षीरैर्वह्निना च प्रपाचयेत् // Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (44) वैद्यवल्लभ। वमनं श्लोपदग्रंथिकुष्ठगुल्मोदरं हरेत्।। 10 / / भाषाटीका // कडुईतूंबीके बीज बकरीको दूध इनकों अग्निसों पकायके दे वो उल्टी श्लीपद गांठ कोढ गोला पेटके रोगोंको हरे // 10 // .. अथ अहिफेनविष उपचारः // साक्षीमूलतोयेन घृतेन विश्वभृङ्गराः // वचारामठतऋण नागफेनविषं हरेत् // 11 // भाषाटीका // सितारकी जढ जलसों पीवे तथा घी सोंठ भांगरो वथा वच हींग मठाके संग पीवे सो अफीमके विषको हरे // 11 // __अथ वृश्चिकविष उपचारः॥ कोंटिकार्कयोश्चूर्ण नागफेनं सनागरम् // सूर्यदुग्धेन गुटिका वृश्चिकादिविष हरेत् // 12 // भाषाटीका // ककोडा आक अफीम सोंठ इनको समान भाग ले आकके दूध में गोली कर देवसो वथा लेप सों बीछूको विष मिटै // 12 // अथ रक्तिकाविष उपचारः // क्षारद्वयसमायुक्तंचूर्णसौवर्चलोद्भवम् // सजलेनकृतंहतिवरवल्लभवारुजम् // 13 // भाषाटीका // जौखार सज्जीखार कारौ नॉन इनकी समान भाग ले चूर्ण कर जलसहित करदेवेसों महारत्तीको भये दर्दको हरे // 13 // Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (45) गुडेनटंकणक्षारसेव्यमानहिसत्वरम् // गुल्मोदरमहन्थिसबोहरतिदुस्तरम् // 14 // भाषाटीका // गुडके संग सुहागौ और जवाखार कौ सेवन करै जल्दीसो वो पेट को गोला वा बडी जंगी गांठ को जल्दीसो असाध्यकोभी हरे // 14 // अथ लवणभास्करचूर्णम् // त्रिकटुपिप्पलीमूलमेलालवणपंचकम् // नागकेसरसंयुक्तंखैरसारंतथैवच // 15 // चित्राजाजीयुतंचूर्णसमारसेनच // निम्बूरसेनतद्भाव्यवातहद्वह्निदीपनम् // 16 // भाषाटीका // सौंठ मिर्च पीपल पीपलामूल इलायची पांचों नॉन नागकेशर वाके संग खैरसार // 15 // चित्रक जोरैके युत चूर्ण कर अदरखके रसमें मर्दन कर फिर नीबूके रसको वाको भावना देकर खाय तौ वादीको दूर करे अनिको बढावे और दीपन है // 16 // अथ मन्दाग्निहा गुटिका // हिंगुलंटंकणनागमरिचमृतरूप्यकम् // पत्रतोयेनचूर्णस्यमुद्गमानमितागुटी // 17 // . कासश्वासेकफेशीतेशीताङ्गज्वरशान्तये // मंदाग्निगुल्मवातेवाप्रशस्तागुटिकोत्तमा // 18 // भाषाटीका // हींग सुहागौ तेलीया मीठौ मिर्च रूप Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. (46) वैद्यवल्लभ / रस ये समान भागले ताकौ चूर्णकर पानके रसमें घोट मूंगके बराबर गोलीकर // 17 // देवे तौ कास श्वास कफ शीत शीवाङ्ग ज्वर इनको शान्तकरे और मंदाग्नि गोला वादी यगरको ये उत्तम गोली है // 18 // __अथ पांडुकामलारोगे कषायः // ... वासाकिरातकं मुस्तात्रिफलामृतनिम्बजैः / / क्याथो मधुयुतो हन्तिपांडुरोगं च कामलाम्॥१९॥ भाषाटीका॥ अडूसौ चिरायती नागरमोथा हरड बहेडे आंवरे गिलोय नीमकी छाल ये समान भाग ले क्वाथ कर सहत मिलाय पीवे तो पीलियारोग वा कामलाको हते // 19 // अथ कामलाजीर्णज्वरे काथः // तिक्ता किरातकं धान्य त्रिफला नागरैः समम् // क्वाथःक्षौद्रयुतो हन्ति जीर्णज्वरं च कामलाम् 20 // भाषाटीका / / कुटकी चिरायवौ धनीया हरड बहेडे आंवले सोंठ इनको समान भागलै क्वाथकर सहत मिलाय पीवेसों जीर्णज्वर कामलाको हवै // 20 // अथ कामलारोगे उपचारः // खरविड्दधिना साई सम्यक् समर्थ पाययेत् // महत्पित्तोद्भवं रोगं कामलां च प्रणाशयेत्॥२१॥ भाषाटीका // गधाके लेंडा दहीमें आधे मिलाय याको मर्दनकर देवे वो महापित्तसो भये कामलारोगको नाशकरै२१॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (47) - अथ कामलारोगेऽवलेहः // . हरिद्रा त्रिफला दूर्वा मृतलोहं कटुत्रयम् // समधुघृतयुक्तेनावलेहः कामलां हरेत् // 22 // भाषाटीका // हरदी हरड बहेडे आवले दूब लोहसार सोंठ मिर्च पीपल इनको समान भाग ले चूर्णकर सहत और बीमें मिलाय अवलेह खायवेसों कामलाको हरे // 22 // अथ पांडुजीर्णकामलारोगे उपचारः // पिष्टवा वेणीतरोर्मूलं समधु तन्दुलोदकैः // पानात्पांडुरुजं जीर्णा कामलां च प्रणाशयेत्॥२३॥ भाषाटीका // वेणी वृक्षकी जड पीस सहत और चावल के जलसों पीने तो पीलीयाको दर्द जीर्ण कामलाको / नाश करै // 23 // अथ उदररोगे चूर्णम् // भारद्वयं मरिचरामठनागराद्वैदेहि पंचलवणेविहितं च चूर्णम् // निम्बूरसेन दिनविंशतिसंविमर्थ दत्तंसुहस्तिकविनोदररोगशान्त्यै // 24 // इति श्रीवैद्यवल्लभे हस्तिरुचिकविविरचिते विरेची कुष्ठविषगुल्ममन्दाग्निपांडुकामलोदररोगप्रभृतिप्रतीकारो नाम षष्ठो विलासः // 6 // भाषाटीका / जौखार सज्जीखार मिरच हींग साठे Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (18) वैद्यवल्लभ / पीपल पांचौ नोन इनको समभागलै चूर्णकर नींबूके रसमें वीसदिन घोटकर दे तो हस्तिकवि कहै कि उदररोग शान्ति होइ // 24 // इति श्रीवैद्यवल्लभे मधुपुरीस्थदक्षगोत्रोद्भवचातुर्वेदिराधाचन्द्रशर्मकतव्रजभाषाटीकायांविरेचीकुष्ठविषगुल्ममन्दानिपांडुकामलोदररोगप्रभृतिप्रवीकारो नाम षष्ठो विलासः // 6 // अथ शुंठीपाकः॥ प्रस्थाविश्वाष्टगुणंच दुग्धं प्रस्थप्रमाणाज्यगुडंचतद्वत् // विपाचयेत्तन्मृदुवह्निनासमं पश्चात्तदन्तः कल्कोहि युज्यते // 1 // चातुर्जात जातिपत्री वासा वह्निफलत्रयम् // देवपुष्पं गजकर्णा भाङ्गीशंठी कटुवयम् // 2 // आकल्लकलोहचूर्ण वंशलोचनकट्फलम् // मृतशुल्बाश्वगन्धाच चूर्णमेषां कृतं समैः // 3 // पश्चाद्विपलमानन्तु यो भजेदिनसप्तकम् // तस्यस्वमौलिकर्णाक्षिरोगजालश्चनाशयेत् // 4 // सर्ववाताञ्जयेत्पीडां कफपित्तोद्भवामपि // हस्तिना कथितः सम्यग्विश्वापाकेति नामतः॥६॥ भाषाटीका // सोंठ पीसी शेर 1 दूध सेर आठ 2 शेर Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (19) घी दो शेर गुड गेर एकत्र मन्दाग्नि सो पकावे पीछे वाके कल्कको ले पीछे // 1 // दालचिनी, बडी इलायची, वेजपात, नागकेशर, जावित्री, अडूसौ, चित्रक, हरड, बहेडे, आवले, लोंग, गजपीपल, भारंगी,काकडासांगी, सोंठ, मिर्च, पीपल // 2 // अकलकला,लोहभार, वंशलोचन, कायफल, वामेश्वर, असमंध इन सबको चूर्णकरे समान भाग ले // 3 // पीछे इनको मिलावे उपरकहे अवलेहमें वामेवे दोपल सात दिन खाय तो मस्वकरोग नेत्ररोगके जालनको नाश करे // 4 // सर्व प्रकारको वातव्याधिको दूर करे कफकी पीडा पित्तसो भये रोगको नाशकरै ये हस्तिकवि कहे हैं कि विश्वपाक याको नाम है // 5 // अथ मस्तकविकारे लेपः॥ चन्दनं लवणं झूठी पिष्वा नीरेण लेपयेत् / / मत्यमौलिसमुत्पन्ना पीडा गच्छति सत्वरम्॥ 6 // भाषाटीका // चंदन सँधोनोन, सोंठ ये समान भाग ले पानीसो पीस लेप करे तो मनुष्यके सिरमें भई पीडाको जल्दी दूर करै // 6 // पुनः लेपननस्यप्रयोगः॥ चूतकाष्ठकृताल्लेपान्महच्छीर्षव्यथाहरेत् // यथाशीतोदकेऽरिष्टं पिष्ट्वा नस्यप्रदानतः॥ 7 // भाषाटीका॥ आमकी छाल जलमें पीस लेप करे वो Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (50) वैद्यवल्लभ। महा शिरकी व्याधिको हरै // ऐसेही नीमकी छाल तथा रीठाशीवल जलमें पीस नस्य दे तो महा शिरके रोग को दूर करे // 7 // पुनः॥ भुंगराजरसं कुष्ठं नवनीतेन पाचयेत् // पश्चात्तल्लेपतः सद्योमहच्छीर्षव्यथाहरेत् // 8 // भाषाटीका // भांगरेको रस कूठ माखनमें मिलाय मन्द अग्निसो पचायके पीछे ताको लेप करवेसो जल्दी शिरकी व्यथाको हरै // 8 // अथ अर्धशीर्षरोगे नस्यम् // मागधीमरिच तुल्यौ लोभ्रेण सह मर्दयेत् // त्रिदिन दीयते नस्य सूर्यावर्त विनाशयेत् // 9 // भाषाटीका // पीपल मिर्च और लोध इनको समान भागलै पीसकर वीनदिन नस्य देवे तो सूर्यावर्तनाम शिररोगको नाशकरै // 9 // पुनमस्तकरोगे लेपः॥ आम्रास्थिधात्रीलेपोऽथकणोषणसिताजलैः / / रसोनकार्कपत्रस्य नस्यो मस्करोगनुत् // 10 // भाषाटीका // आमकी गुठली आंवले इनको लेप वथा पीपल मिर्च मिश्री जलसों तथा लस्सन आकके पत्ता इनकी नस्य लेवेसों मस्तकरोग मिटै // 10 // Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (51) * अथ कपालकीटरोगे नस्यम् // तिक्तककोंटिपत्रस्यरसैनस्यं प्रदापयेत् // वारत्रयं कृतोहन्ति कपालकीटकव्यथाम् // 11 // भाषाटीका // कडूवे ककोडाके पत्तानको रस लै नस्य तीनबार देवे ते कपालके कीडाकी व्यथाको हरै // 11 // . अथ सर्वमस्तकरोगे गुटिका // निगुंडिकालवणनागरदारुकृष्णापामार्गसर्षपदिवाकरवृक्षबीजैः॥शीतोदकेनमुटिकाविहितानुपानात्प्रोक्तासुहस्तिकविनाशिरसोर्तिहन्त्री 12 // भाषाटीका // निर्गुडीके बीज सैंधौनोन सोंठ देवदारु पीपल औंगा सरसों आकके बीज इनको समान भागलै ठंडे जलसों गोलीकरे तथा ठंडे जलसों देनी तौ हस्तिकवि कहैहै कि माथेके रोगनकों दूरकरै // 12 // अथ नेत्ररोगे अञ्जनम् // शंखचूर्ण गोदुग्धेन तदर्धं च मनःशिला,॥ छागीदुग्धेन सहित सैन्धवं च जलेनच // 13 // सुन्दरीस्तनदुग्धेनमरिचमर्यकारयेत् // * शीतोदकेनगुटिकाचाननादविरोगजित् // 14 // भाषाटीका // शंखको चूर्ण मायको दूध वासों आधौ पेनशिल ताको बकरी के दूधके संग और सँधौनोन पानीमें // 13 // स्त्रीके दूध मिर्च इन सबको अलग 2 पीस ठंडे जलसों गोली आंजे वौ नेत्ररोग मिटै // 14 // Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (52) वैद्यवल्लभ / __ अथःसर्वनेत्ररोगे लेपः // शिवामज्जाशिवाचूर्णनिशालवणलोधकैः॥ शिवापत्ररसेकायोलेपःसर्वाक्षिरोगजित् // 19 // भाषाटीका // हरडकी मीगी हरडको चूर्ण हरदी सँधोनोन लोध इनकों समान भागलै हरडके पत्ताके रसमें घोट लेपकरवेसों सवरे नेत्ररोगनकों जीवे // 15 // सर्वनेत्ररोगे गुटिका // चकाङ्कारजनीयुग्मंकृष्णाकुष्ठसमांशकैः // कन्यारसेनगुटिकाछायासर्वाक्षिरोगजित् // 16 // भाषाटीका // खिरेटी हरदी दारुहरदी पीपल कूठ ये सब समान भागलै चूर्ण कर ग्वारपाठे के रसमें गोली छायामें सुखाय पानीमें घिस मांजवे वे छाया वा छोव वा सर्व नेत्ररोगनको जीते // 16 // ___ अथ पुनरंजनम् // नागफेनरसोधात्रीतुत्थंखपरमञ्जनम्॥ गुटीनिम्बुरसेनोक्ताहस्तिना नेत्ररोगजित् // 17 // भाषाटीका // अफीम पारौ आवले लीलाथोथो खपरीया इनको समान भागलै नींबूके रसमें गोली करे हस्तिकविकी कहै माफिक आंजे तौ नेत्ररोगनको दूर करै // 17 // अथ कर्णरोगे तैलम् // रसेनचार्कपत्राणांशिग्रस्वर्णरसेनच / Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (53) तिलतैलंसमुत्काल्यकर्णेक्षिप्तेरुजहरेत् // 18 // भाषाटीका // आकके पत्तानको रस सहेजनको रस धतूरेको रस इनकों विलके तेलमें औटाय कानमें गेरे तौ कानको दर्द दूर करै // 18 // अथ नासूररोगे उपचारः // / घृष्टं जलेन कम्पिल्लं तल्लेपाचहरेध्रुवम् // नासहियथा कृष्णातिलपिण्डनिबन्धानत // 19 // भाषाटीका // कबीलैकू जलमें पीस वाको लेप करवेसे निश्चै नासूरको दूर करै ऐसेही काले तिल पीस ताकी पिंडी बांधवेसों दूर होई नासूर // 19 // - 'अथ मुखपिडिकालेपः॥ घृष्टमाजूफलं व्रीहिवारिणा कृतलेपनात् // नृणां तारुण्यजांहति पिडिकां वदनोद्भवाम् 20 // भाषाटीका // माजूफल बीही चावलके पानीमें पीस लेप करे तो जवानीसो भयी फुन्सी मुखकी वा शरीरकी दूर होई // 20 // अथ मुखशोषे लेपः॥ सैन्धवं मरिचं क्षौद्रं मातुलुंगरसस्तथा // तालुस्थाने कृताल्लेपान्मुखशोषविनाशकृत् // 21 // भाषाटीका // सैंधौनोन मिर्च सहत बिजौरे को रस ये Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (54) वैद्यवल्लभ। समान भागलै वालुवेपें लेप करवे। मुख सूख्यो भयो अच्छो होई // 21 // पुनर्मुखशोषे गुटिका // एलाधात्रीरसश्चैवगुटी कृत्वा मुखेस्थिता॥ प्रदत्ता हस्तिनासद्यो मुखशोषप्रशान्तये // 22 // भाषाटीका // इलायचीकी आवलेके रसमें गोलीकर मुखमें धरदेवेसो हस्विकवि कहै है कि जल्दी मुखशोष को नाश करै // 22 // अथ दन्तरोगे मंजनम् // दाडिमत्वम्भवं चूर्ण वर्षयेदरुणोदये // तस्माद्वजसमादन्ता भवन्ति चपला अपि // 23 / / भाषाटीका // अनारकी छाल के चूर्ण सो अरुणोदय अर्थात् प्रावसमें दाँतनको रगडे तौ वाके हलवे दाँत वजके समान होई // 23 // अथ स्नायुरोगे लेपादि // गुन्दीमूलन्तुसंघृष्य नरमूत्रेण लेपयेत्॥ स्नायुकोहि यथायाति निशालवणबन्धनात् 24 // भाषाटीका // गोंदीकी जडकों आदमीके मूत्रमें घिस लेप करवे सो नहरुवाको दूर करे ऐसेही रावकों सैंधौनोन बांधवेवे वालों दूर होई // 24 // पुनः॥ मधूकसारपत्राणि बध्यन्ते स्नायुकोपरि // Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (55) तस्मात्स्नायुकजापीडा नृणां नश्यति तत्क्षणात् 25 // __भाषाटीका // मधूकसारके पत्ता नहरुआये बांधे वाकी चाले सो भई पीडाको तत्क्षण नाश करे // 25 // पुनः॥ यथार्कक्षीरलेपेन हरेत्स्नायुकजांव्यथाम् // तथा स्नुहीक्षीरलेपारेद्रुमहब्यथाम् // 26 // भाषाटीका // जैसे आकको दूध लेप करवे सो नहरुआकी व्याधिको हरे है तैसेही थूहरको दूध लेप करवे सो दादको महाव्याधीको हरै // 26 // पुनः॥ सगुडानकपोतस्य कुक्कुटस्य विटं तथा // सप्ताहं सेवयेत्पुंसां स्नायुको नश्यति ध्रुवम् // 27 // भाषाटीका // गुडमें कपोतकी विष्ठा मुरगाकी वीठ इनको समान भाग ले सात दिन सेवन करवेसों मनुष्यके नहरुआको निश्चै नाश करै // 27 // . अथ श्वानविषे उपचारः॥ - मुण्डीपञ्चांगचूर्ण तु गोमूत्रेण समंपिबेत् // तस्माच्छानविषं याति यथा पापं प्रभुःस्मृतः२८॥ भाषाटीका // गोरखमुंडीको पञ्चांग लै चूर्ण कर याके समान गोमूत्र ले पौवे ताकी श्वान विषकी व्याधि दूर होई जैसे श्रीजीके भजनों पाप मिटै // 28 // Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (56) वैद्यवल्लभ / अथ रक्तपित्ते उपचारः॥ आम्रास्थिकूष्माण्डरसेन नस्यः पुनर्नवादुग्धसितान्वितेन // दूारसःस्त्रीपयसाचतद्वत् योगत्रयं रक्तपित्तं निहन्ति // 29 // भाषाटीका // आमकी गुठली पेठेको रस याकी नस्य वथा साँठकी जड गौकी घी मिश्रीके संग दुबको रस स्त्रीके दूधसो वाकी वरे ये तीनों योग रक्तपित्तको दूर करै॥ 29 // अथ मागधीपाकः॥ मेथीपलचतुष्कंचकणाद्विपलमानतः // - दुग्धेन मिश्रितं कृत्वा पाचयेद्वह्निना ततः॥३०॥ प्रस्थैकखण्डं तन्मध्ये शिवाकल्कमपिक्षिपेत् // लवंगत्रिकटुश्चैव लोहभस्म च साधकम् // 33 // शुल्वं जातीफलं जातीपत्रीविषकुठेरकैः // एतेषां पलमानेन भागान्कृत्वा पृथक् पृथक् // 32 // प्रभाते पलमानेन यो भुक्ते च नरःसदा // तस्य सर्वे शिरोरोगाः प्रणश्यन्ति न संशयः॥३३॥ सर्ववातसमूह:च भ्रमच्छकिफव्यथाम् // मागधीपाकनामायं सद्धस्तिकविना मतः॥३४॥ भाषाटीका // मेथी चार पल दोपल पीपल ये दोनोंनको दूध में मिलाय करके वाकों अमिसों पकावे // 30 // सेर Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (57) 2 खांड ताके बीच मिलाय ताके कल्ककों लेकर पीछे लोग सोंठ मिर्च पीपल लोहभस्म अनक // 31 // तामेश्वर जायफल जावित्री तेलिया मीठौ शुद्ध कुठेर इन सबको एक एक पल मान भागले चूर्ण न्यारयौ न्यारयौ करै // 32 // सबेरेके समय एकपल याको मनुष्य सदा खाय वाकै सबरे मस्वकरोगनको नाश करै यामें संशय नहीं // 33 // और सबरे वावसमूहनकों और भौंर उल्टी कफकी व्यथाकों ये हस्विकविके मतको मागधीनामको पाक दर करै // 34 // अथ संधिग्रंथिवाते गुटिका // ग्रंथिकाकल्लकं मुस्ता चाश्वगंधा कणोषणः // तदौषधसमाविश्वा तत्समेन गुडेन च // 35 // यो भक्षयेत् पथ्ययुक्तो द्विवेलं मात्रयागुटी // संधिवातो ग्रंथियातस्तस्य नश्यति निश्चितम्॥३६॥ इति श्रीवैद्यवल्लभे हस्तिरुचिकविविरचिते शिरःकर्णाक्षिभ्रममूसिंधिवातग्रंथिवात रक्तपित्तस्नायुकादिप्रभृतिप्रतीकारो ...नाम सप्तमो विलासः // 7 // भाषाटीका // पीपलामूल अकलकला नागरमोथा असगंध पीपल मिर्च इन औषधनकी बराबर सोंठ इन सबनकी बराबर गुड लैकर मिलाय // 35 // याकों पथ्यसों खाय दोरत्तीके बराबर गोली वो जोडनकी वादी गाठनकी Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (68) वेद्यवल्लभ। वादी ताको नाशकरे अवश्य // 36 // अथवा अक्षिके बराबर पथ्य युक्त खाय दोऊवेर इति // इति श्रीवैद्यवल्लभे श्रीमधुपुरीस्थदक्षगोत्रोद्भवचातुर्वेदिराधाचन्द्रशर्मरुवव्रजभाषाटीकायांशिरःकर्णाक्षि भ्रममूछासन्धिवातग्रन्थिवावरक्तपित्तस्नायुकादिप्रभृतिप्रतीकारो नाम सप्तमो विलासः // 7 // अथ भूतप्रेतादिदोषजिदंजनम् // लशुनं मरिचं सर्पकंचुकीभस्म कट्पलम् // हिंग्वारिष्टवचाशियुरिङ्गुयाः फलमजकम् // 1 // निम्बस्यफलमज्जानि चूर्णच खरमूत्रयुकू / नेत्राअनकृतंसर्वभूतप्रेतादिदोषजित् // 2 // भाषाटीका // लस्सन मिर्च सर्पको कांचलीकी भस्म कायफल हांग रीठा वच सहेजनों हींगौटाके फलकी मीगी // 1 // नीमकी निवौरीनकी मीगी इन सबको समान भाग ले चूर्ण कर गधाके मूतमें घिस आंजे वो भूत प्रेत आदिककै दोषको मिटै // 2 // ___ अथ सर्वदोषजित्प्रयोगः॥ कणासैन्धवतुत्थंच मरिचं निम्बबीजकैः॥ 1 अक्षिमान पथ्ययुक्तं द्विवेलं दापयेत् गुटी। इति पाठान्तराणि // Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत / (59) गुटीनिम्बूरसेनोक्ता चाचनं सर्वदोषजित् // 3 // भाषाटीका // पीपल सैंधौनोन लीलाथोथौ मिर्च नीमकी निवौरी इन सबको समान भागले नींबूके रसमें गोली कर आंजे तो सबरे दोषनको जीते // 3 // अथ सर्पविषे उपचारः॥ तुत्थं वचाकट्फलंच गोदुग्धेन प्रपाचयेत् // तस्मात्सर्पविषयाति तथोषणघृतेन // 4 // भाषाटीका // लीलाथोथौ वच कायफल इनको समान भागले चूर्ण कर गोके दूधमें पकाय पीवे तौ सर्पको विष दूर होई तथा पीपल धीमें देवे तौ सर्पविष दूर होई // 4 // ___ अथ सोमलविष उपचारः॥ सितयासह पानाच्च तंदुलीयरसस्यच // तस्मान्मल्लविषयाति निम्बूरसप्रसेवनात् // 5 // भाषाटीका // मिश्रीके संग चौलाईको रस पीवे सो सोमलको विष दूर होई तथा निम्बूके रस पीतें // 5 // ___ अथ नागफेनविषे उपचारः॥ बृहत्क्षुद्रारसं दुग्धं पलमानं निषेवणात् // नागफनविषं हन्ति यथा लवणभक्षणात् // 6 // भाषाटीका // दोनों कटेरीनको रस वामें दूध आधर पल ले पीवे तो अफीमको विष दूर होई ऐसेही सैंधोनीन खायवसो // 6 // Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (60) वैद्यवल्लभ। अथ धत्तूरविषे उपचारः॥ लोणीवृक्षस्य पुष्पाणि जलेनोत्काल्य पानतः // धत्तुरस्य विषं हन्ति यथालवणपानतः // 7 // भाषाटीका // नोनियाके फूल जलमें उबालके पीवे तो धतूरेको विष दूर होई ऐसेहि नोन खायवे सों धतूरेको विष दूर होई // 7 // पुनः॥ वृन्ताकफलबीजस्य रसोहि पलमानतः // भक्षणाद्भुक्तधत्तूरविषं नश्यति निश्चितम् // 8 // भाषाटीका // बेंगनके बीजनको रस एक पलभर पीवे वो धतुरो जाने खायो होई वाको विषको निश्चै नाश करै८।। अथ पारदविष उपचारः // यथारसविष हन्यानोदुग्धेनच गन्धकम् // भाषाटीका // जैसे पारेके विषको गौके दूधके संग गंधक दूर करे है // ___अथ हरतालविषे उपचारः // , तथाससितासाक्षीरसस्तालविषहरेत् // 9 // भाषाटीका // वैसेही साक्षी सिवारवी जडको रस मिश्री मिलाय पीवेवें हरवालकों विष दूर होई // 9 // अथ खशुरगृहे तरुणी तिष्ठति तत्र प्रयोगः॥ श्वानविद् कृष्णमार्जारविष्टा लोम खरस्य च // , Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (61) गुग्गुलु सर्पपासर्पकंचुकीराजिकासमम् // 10 // कंटका निम्बवृक्षस्य चाष्टाधिकशतं शुभम् // श्रीफलस्य च तुल्यं च द्विपघोटकयोरजः // 11 // एतेषां युवतीयोनौ धूपो देयो दिनान्दश // श्वशुरस्य कुलेतस्मात्तरुणी तिष्ठति ध्रुवम् // 12 // इनको अर्थ सुगमहै वासोनहीं प्रकाशित कीयो 10 / 11 / 12 अथ प्रमेहादिरोगे उपचारः // गन्धकं पलमानन्तु गोदुग्धेन विशोध्य च // शर्करासंयुतं कार्य मरुत्पित्तकफातिनुत् // 13 // तुष्टिपुष्टिकरो नित्यं रुचिकृन्नेत्ररोगजित् // वीर्यक्षयं प्रमेहं च कुष्ठपित्तरुजं हरेत् // 14 // भाषाटीका // एकपल गंधककों शोधकर मिश्रीमें मिलाय खाय तौ वादी पित्त कफरोगनकों दूर करे // 13 // तृप्तिकरे नित्य रुचिकरे नेत्ररोग जीवे वीर्यक्षय प्रमेह कोढ पित्त रुजाको हरे // 14 // अथ मदनवृद्धिपाकः // मर्कटी मुशली चाश्वगंधा गोक्षुरकै समम् // पलपंचमिताकृष्णा द्रोणदुग्धेन पाचयेत् // 15 // चातुर्जातं तथा लोहं बालावै वंशलोचनम् // चंदनं केशरं व्योषं साधं शुल्ब फलत्रिकैः // 16 // प्रस्थैकखण्डेन युतोहि भुक्तः Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (62) वैद्यवल्लभ / प्रातः सदा पिबति योनुपयोथ रात्रौ // दप विमर्दयति नैकविलासिनीनां सर्वांगरोगहरणेषु विशेष एषः // 17 // भाषाटीका // कोंचके बीज मूशली असगंध गोखरू इनको समान भागलै और पांच पल पीपलको 32 सेर दूधर्म पचावे // 15 // दालचीनी बडी इलायची वेजपाव नागकेशर तथा लोहभस्म नेत्रवालौ वंशलोचन चंदन केशर सोंठ,मिर्च पीपल अधिक वामेश्वर हरड़ बहेडे आवरे // 16 // ये सब समान भागलै सेर खांड गेर कल्क को फिसाको प्रातसमें खाय सदा दूध सो तथा रावमें दौ स्त्रीनके मदको हरे सबरे रोग मिटै विशेष करके // 17 // अथ लस्सनपाकः॥ रसोनकं प्रस्थमितं विमर्च दुग्धे घटेनापि विपाच्य वह्नौ। शुल्बाभ्रकं लोहरसंलवंगं कर्पूरमाकल्लकमश्वगन्धा // 18 // द्विनिशा नागरं नागकेशरं त्रिफलासमैः॥ जातिपत्री फलं जाती मागधी मरिचं तथा // 19 // प्रस्थैकखण्डसहितेनहरेत्समीरं गुल्मव्यथां विषमसर्वसमीरणार्तिम् // मन्दानिशुलकफरोगविनाशकारी पाकः स्मृतः सुकविना हि रसोनकाख्यः॥२०॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (63) भाषाटीका // सन शेर 2 ले ताके छीलका उतारके कली पीस दूध 20 सेरको बासनमें गेर अमिपे पचानों वा पीछे वामेश्वर अन्नक लोहसार चन्द्रोदय लोंग कपूर अकलकला असगंध // 18 // दोऊ हरदी सोंठ नागेश्वर केशर हरड बहेडे आंवले ये समान भागलेनी जावित्री जायफल पीपल काली मिर्च // 19 // वामें खांड सेर 2 मिलायके खाय वौ बादी गोलाकी व्यथा हरे विषम सबरे वादीके रोग मन्दामि दर्द कफके रोग इनको नाश करै हस्तिकविको कह्यो भयो रसोनकाख्य नामको पाक है // 20 // अथ अपस्माररोगे नस्यम् // वानरस्य कपोतस्य विष्ठा तित्तिरकस्य च // नासिकायां कृतं नस्यमपस्मारं विनाशयेत् // 21 // भाषाटीका // वानरको वीठ कपोतकी वीठ तीवरकी वीठ इनको समान भागले महीन चूर्ण कर छान नाकमें सुंघावे तो मृगीको नाश होई // 21 // __ अथ अपस्माररोगे गुटिका // कृष्णा मरिचनागस्य चूर्णं चाईकसंयुतम् // गुटिकारविपुष्पैश्च मृगी हंतिच भक्षणात् // 22 // भाषाटीका // पीपल, कालीमिर्च, शुद्धवत्सनाभ इनको चूर्णकर अदरखके रसमें मिलाय गोली आकके फूलके संग खाय वो मृगी दूर होई // 22 // Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (64) वैद्यवल्लभ / अथ अपस्माररोगे नस्यम् // अरिष्टं नरमूत्रेण हयमूत्रेण टंकणम् // गजमूत्रेणकृतं नस्यं त्रिभियोगैमगी हरेत् // 23 // भाषाटीका // रीठा मनुष्यके मूतमें घिस नस्य दे तथा घोड़ाके मूतमें सुहागा विस नस्य दे तथा हाथीके मूतको सुंघावे तो ये वीन योग मृगीको हरे // 23 // अथ बधिरशूलरोगे उपचारः॥ कारेलीरससंयुक्त सैंधवं टंकणं क्षिपेत् // तस्मात्कर्णव्यथां हंति बधिरशूलदोषजाम् // 24 // भाषाटीका ॥करेलाके रसके संग संधौनोन सुहागो गेरनो वाकी कानकी व्यथा व बहरापन व दर्दके दोषको दूर करै२४ अथ वीर्यस्त्रावरोगे उपचारः॥ गुन्दीवृक्षस्य पत्राणि पक्वानि सितया सह // नृणां संसेव्यमानेन वीर्यस्त्राव सदा हरेत् // 25 // भाषाटीका // गोंदी वृक्षके पके पत्ते मिश्रीके संग मनुष्य सेवन करे तो वीर्यस्रावको सदा हरण करे // 25 // ____ अथ पादत्रणरोगे लेपः॥ मेणसर्जरसोसाबुन्नवनीतेन लेपनात् // तिलेन वटदुग्धेन हंति पावणानिच // 26 // भाषाटीका // मोम राल साबुन इनको समान भाग ले माखनमें मिलाय लेप करे तथा विल वडके दूधको पीस लेख करे वो पायके फोडानको दूर करे // 26 // Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (65) अथ वातरोगे गुटिका // गोरोचनं जीरकनागकेशरं तथाहिफेनं खदिरस्यसारः // हिमाभयातितकखपरं तथा मरीचकृष्णानिलनाशिनी गुटी // 27 // भाषाटीका // गोरोचन जीरो नागकेशर और अफीम खैरमार चन्दन हरड कुटकी खपरिया और मिर्च पीपल इनकी गोली वादीको नाश करें // 27 // अथ जानकम्पादिरोगे लेपः॥ तिलतलंसमुत्काल्य नागकुष्टकणोषणैः // तच्चूर्णमदयेत्पश्चाच्चूणचहस्तिनामतम् // 28 // तल्लेपाचमरुद्रोगजानुकम्परुजहरेत् // सन्धिवातंकर्णरोगंचान्यवातविनाशनम् // 29 // भाषाटीका // तिलके तेलमें उबालनो तेलिया मीठौ कूठ पीपल मिर्च इनको समान भागलै चूर्ण करवा तेलमें गेर सिद्ध करे चूर्ण हस्तिकविके मकौ // 28 // पीछे वाको लेपकरे वादीके रोग ये जानुकम्पकी शूलमें लगावे तो हरे और सन्धिवाव वा कानको दर्द तथा और वादीनको नाश करे // 29 // अथ सन्निपातादिरोगेऽवलेहः॥ पथ्याविश्वालवंगंमृतजसदचतुर्जातजातीफलंच Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (66) वैद्यवल्लभ / अब्धेःशोषंचवंगंमृतकनककणाहंसपाकाहिफेनम् // कंकोलंरुद्रपत्रोषणकनकमथोब्रह्मदर्भाजमोदामूशल्या कन्दचूर्णबलगरलवरीमस्तकीकाङ्गडीभिः३० सक्षौद्रेणावलेहोहरतिचगुदजान्सन्निपातान्समग्रान् कासश्वासानिमान्मृतमदनमथोवीर्यवृद्धिप्रकुयात् // कामिन्याःकामदपविजयति च सदाकुक्षिरोगानिहन्यात् स्वेदंगात्रेषुशीतहरति च धनुमारुतंदन्तरोगान् // 31 // भाषाटीकाहरड सोंठ लोग जसदकी भस्म वज इलायची वेजपाव नागकेशर जायफल समुद्रशोष वंगेश्वर मृगांक अर्थात सोमेकी भस्म पीपल हिंगुलू अफीम कंकोल बडके कोमल पत्ता मिर्च धतूरेके बीज और ब्रह्मदर्भा अर्थात् अजवायन अजमोद भूशलीके कन्दको चूर्ण गंधक वेलीया . मीठौ सतावर रूमी मस्वंगी कांगडी // 30 // इन सबको समान भागलै चूर्ण कर सहवमें मिलाय खायतौ गुदाके रोग सबरे सन्निपातनको हरे कास श्वास अमिकी मन्दता नंपुसकपनको हरे और वीर्यको बढावे स्त्रीनके कामके मदकों हरे सदा और कुक्षिकमरके रोगनको हरै तथा शरीरमें पसीनेके आयवको हरे और शीतांगको हरे धनुर्वात वा दांतके रोगनको दूरकरै // 31 // अथ हिकारोगे उपचारः // विश्वागुडेन दातव्या सितयासह मागधी // Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (67) मधुकं मधुना देयं त्रिभिर्हिकांविनाशयेत् // 32 // भाषाटीका // सोंठ के संग गुड देनों तथा मिश्रीके संग पीपल देनी जेठीमधु महतके संगदेवे वौ ये तीनों हिचकी को नाशकरै // 32 // अथ वैगेश्वरः वातपित्तादिदोषे // रसराजयुतं नागं संशोध्यं शुभमौषधैः // चक्रांकायारसेनैव यामतुर्याग्निदानतः // 33 // तदोषधसमाजातिपत्रीपिप्पलिकेशरैः॥ आकल्लकं देवपुष्पं सर्वं संचूर्ण्य मेलयेत् // 34 // सक्षौद्रेणावलेहोथ पत्रेण परिभक्षयेत् // वातपित्तोद्भवांपीडां प्रणश्यति च सेवनात् // 35 // मन्दाग्निमोहनयनातिहरं नराणाम् / कुष्ठव्यथां कृमिरुजं च सदा निहन्यात् // संनष्टकामरुचिकृद्विदधाति वीर्यम् / वंगेश्वरोहि सुरसेषु विशेष एव // 36 // भाषाटीका // पारौ वथा सीसौ शुद्धकरके गधईके रसमें एक पहर तुर्यामि देय // 33 // वाके बराबर जावित्री पीपल केशर अकलकला लोग इन सबनको चूर्णकर घरदै // 34 // सहतमें मिलाय अवलेह कर ताको पत्तापै धर खानी तौ वादी गर्मीसो भई पीडाको नाशकरै खायवेसों // // 35 // अमिकी मन्दवा मूर्छा नेत्ररोग मनुष्य के हरें Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैद्यवल्लभ / कोटकी पीडा कीडानकै दर्दको सदा दूरकरै नपुंसकरनेकों दूरकर कामकी रुचिको बढावे और वीर्यको बढावे ये सुन्दर वगेश्वर रसहै विशेषकरके // 36 // अथ सन्धिवाते गुटिका॥ गोदुग्धेन गुटी कार्या बोलहिंगुलगुग्गुलैः / / .. हरेदातव्यथांसा सन्धिवातं च दुस्सहम् // 37 // भाषाटीका // बोल हिंगुल गुग्गुल ये समान भाग ले गौके दूधर्मं घोट गोलीकर खाय वो वातव्यथा सबरी दुस्तर सन्धिवातको हरे // 37 // __अथ ज्वरातिसारे गुटिका॥ करवीरं सुवर्णच बृहतीकुसुमानिच // हंसपाकबला श्रेष्ठा नागकर्पूरकेशरैः // 38 // लवंगाकल्लकं चैवाहिफेनोषणमस्तकी // जातीफलं जातिपत्री सर्वतुल्यानि मर्दयेत् // 39 // क्षौद्रेण वा पत्ररसेन कार्या ज्वरातिसारामयनाशिनीगुटी // रूपाग्निबुद्धिबलवीर्यवर्दिनी मुरादिसाहेन विनिर्मिता स्वयम् // 40 // इति श्रीवैद्यवल्लभे हस्तिरुचिकविविरचिते सन्निपातहिकाजानुकम्पादिप्रभृतिप्रतीकारो नामाष्टमो विलासः॥८॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (69) भाषाटीका // कनेरकी जड धतूरेके बीज कटेरीके फूल, हींगुलू, खिरटी, हरड, बहेडे, आवले, वेलिया मीठो, कपूर केशर // 38 // लोग, अकलकला, अफीम, पीपल, रूमीमस्तंगी, गोंद, जायफल जावित्री इन सबको समान भाग ले पीसे // 39 // सहवमें वा पानके रसमें गोलीकर देवे। ज्वर दस्त आम वगैरे के दोषकों ये गोली नाश करै और रूप अग्नि बल वीर्य इनको बढावे ये स्वयम् मुरादीसाहने कही है // 40 // इति श्रीवैद्यवल्लभे श्रीमधुपुरीस्थदक्षगोत्रोद्भवचतुर्वेदिराधाचन्द्रशर्मकतव्रजभाषाटीकायां सन्निपावहिक्काजानुकम्पादिप्रभृतिप्रवी. कारो नामाष्टमो विलासः // 8 // अथ बृहन्मालतीवसन्तः // दरंदं कृष्णमरिचं भस्म मुक्ताप्रवालयोः॥ निम्बूरसैर्गुटी कार्या बृहद्वासंतमालती // 1 // वैद्यानामुपकारार्थ राधाचन्द्रेण भाषिता॥ सर्वरोगानिहन्त्याशु विशेषाद्विषमज्वरम् // 2 // अथ सूतिकाविनोदीरसः // रसंगन्धकतुत्थंच तानं नागेश्वरःसमम् // 1 हिंगूलू 2 कालीमिर्च 3 मोतीकी भस्म 4 मूंगाकी भस्म 5 पारौ 6 गन्धक 7 लीलाथोथी 8 तामेश्वर 9 नागेश्वर Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (70) वैद्यवल्लभ / अश्वगन्धाकाकांची तथा नील पुनर्नवा // 3 // नाडिका भृङ्गराजश्वरसेनैषां विमर्दयेत् // गुञ्जाप्रमाणगुटिका विनोदः सूतिकाह्वयः // 4 // सूतिकारोगहा सत्यं वमिशोथज्वरादिकम् // हन्तिशूलांगमर्दच राधाचन्द्रेण भाषितः // 5 // अथ सूतिकारोगे कषायः॥ सनाडिकायाः सपुनर्नवायाः सनामिकाया हुयेगन्धिकायाः॥ साम्बष्ठकीशिग्रुपराजितायाः कृतः कषायः पुनरेव पीतः // 6 // शूलज्वरारोचकशोथरोगान् सर्वामयांश्चापि हि सूतिकायाः॥ निहन्ति शीघ्रपरिभाषितोय. चन्द्रेण राधापदपूर्वकेन // 7 // अथ शोथरोगे लेपः॥ हरिद्राचार्कपुष्पाणि काकमाची पुनर्नवा // सौभाञ्जनं तथास्फोता हयगन्धाच भृङ्गरौंः॥ 8 // 1 असंगध 1 मकोय 3 लीले फूलकी सांठी / नाडी 5 माँगरौ 6 नाडीको शाक 7 सांठी की जड़ 8 ब्राह्मी 9 अस. गंध 10 प्रोइआ 11 सहजनो 12 कोयल 13 हरदी 14 आकके फूल 15 मकोय 16 सांठी 17 सहजने 18 को. यल 19 असंगध 20 भाँगरौ // Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेत। (71) बोलीकरीरनांडीच राधाचन्द्रेणभाषितः॥ जलपृष्टःकृतोलेपोमहाशोथविनाशनः // 9 // इतिश्रीवैद्यवल्लभे श्रीमधुपुरीस्थदक्षगोत्रोद्भवचातुर्वेदिराधाचन्द्रशर्मकतपरिशिष्टनाम नवमो विलासः // 9 // 1 ब्राह्मी, 2 करीरके फूल वा पत्ता, 3 नाडीको शाक / समाप्तोऽयं ग्रन्थः // .. DOM माथुरऔषधालय बडेचौबे राधाचन्द्र श्रीमथुराजी // यहाँपर गरीबोंकी धर्मार्थचिकित्सा होतीहै विशेषकरके जिन रोगनकी औषध कोई नहीं करसक्ते उनकोभी श्रीयमुनाजीकी कपावे यहां आनेपर हम अच्छे करते हैं // यह पुस्तक खेमराज श्रीकृष्णदासने बम्बई खेतवाडी 7 वी गली खम्नाटा लैन,निज"श्रीवेंकटेश्वर"स्टीम् प्रेसमें अपने लिये मुद्रितकर यहीं प्रकाशित किया. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Byi जाहिरात। वैद्यकग्रंथाः। wao हरीवसंहिता भाषाटीकासहित अष्टांगहृदय ( वाग्भट्ट) भाषाटीका अत्युत्तम __वैद्यकग्रंथ भिषग्वरोके देखनेयोग्य बृहन्निघटटुरत्नाकर प्रथमभाग ... 4-8 बृहन्निघटुरत्नाकर द्वितीयभाग बृहनिघंटुरत्नाकर तृवीयभाग बृहन्निघंटुरत्नाकर चतुर्थभाग बृहन्निघण्टुरत्नाकर पंचम भाग बृहनिघण्टुरत्नाकर षष्ठभाग बृहन्निघटुरत्नाकर सप्तम अष्टम भाग लाला शालग्राम संकलित अर्थात् "शालग्राम निघण्टु भूषण" अनेक देशदेशान्तरीय संस्कृत, हिन्दी आदि 13 भाषाओंमें सर्व औषधों के नाम और गुणोंका वर्णन औषधियों के चित्रों समेत वर्णित है ... ... 10-0 w पुस्तक मिलनेका ठिकाना खेमराज श्रीकृष्णदास, "श्रीवेङ्कटेश्वर" छापाखाना-मुंबई. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ P "श्रीवेंकटेश्वर" छापाखानेकी परभोपयोगी, स्वछ, शुद्ध और सस्ती पुस्तकें / यह विषय आज 35 / 40 वर्षसे अधिक हुआ भारतवर्ष में प्रसिद्ध है कि, इस छापाखानाकी छपी हुई पुस्तकें सर्वोत्तम और सुन्दरप्रतीत तथा प्रमाणित हुँईहै / इस यन्त्रालयमें प्रत्येक विषय को पुस्तकें जैसे-वैदिक, वेदान्त, पुराण, धर्मशास्त्र, न्याय, मीमांसा, छन्द, ज्योतिष, साम्प्रदायिक, काव्य, अलंकार, चम्पू, नाटक, कोष, बैद्यक, तथा स्तोत्रादि संस्कृत और हिन्दीभाषाके प्रत्येक अवसरपर बिक्री के अर्थ तैयार रहतेहैं / शुद्धता, स्वच्छता तथा कागजकी उत्तमता और जिल्द की बधाई देशभर में विख्यात है। इसनी उत्तमता होनेपर भी दाम बहुत ही सस्ते रक्खे गये और कमिशन भी प्रथक काट दिया जाता है।। ऐसी सरलता पाटकों को मिलना असंभव / संस्कृत सथा हिन्दीके रसिकोको अवश्य अपनी 2 आवश्यकतानुसार पुस्तकोंके गाने में मुटि न करनाचाहिये. ऐसा उत्तम, सस्ता और शुद्ध पाल दूसरी जगह मिलना असम्भव है)। भेजकर 'चीपत्र' मंगा देखो // . स्तक मिलनेका ठिकाना खेमराज श्रीकृष्णदास. "श्रीबेटेश्वर" छापाखाना खेतवाडी-मुम्बई.