________________ भाषाटीकासमेत। (67) मधुकं मधुना देयं त्रिभिर्हिकांविनाशयेत् // 32 // भाषाटीका // सोंठ के संग गुड देनों तथा मिश्रीके संग पीपल देनी जेठीमधु महतके संगदेवे वौ ये तीनों हिचकी को नाशकरै // 32 // अथ वैगेश्वरः वातपित्तादिदोषे // रसराजयुतं नागं संशोध्यं शुभमौषधैः // चक्रांकायारसेनैव यामतुर्याग्निदानतः // 33 // तदोषधसमाजातिपत्रीपिप्पलिकेशरैः॥ आकल्लकं देवपुष्पं सर्वं संचूर्ण्य मेलयेत् // 34 // सक्षौद्रेणावलेहोथ पत्रेण परिभक्षयेत् // वातपित्तोद्भवांपीडां प्रणश्यति च सेवनात् // 35 // मन्दाग्निमोहनयनातिहरं नराणाम् / कुष्ठव्यथां कृमिरुजं च सदा निहन्यात् // संनष्टकामरुचिकृद्विदधाति वीर्यम् / वंगेश्वरोहि सुरसेषु विशेष एव // 36 // भाषाटीका // पारौ वथा सीसौ शुद्धकरके गधईके रसमें एक पहर तुर्यामि देय // 33 // वाके बराबर जावित्री पीपल केशर अकलकला लोग इन सबनको चूर्णकर घरदै // 34 // सहतमें मिलाय अवलेह कर ताको पत्तापै धर खानी तौ वादी गर्मीसो भई पीडाको नाशकरै खायवेसों // // 35 // अमिकी मन्दवा मूर्छा नेत्ररोग मनुष्य के हरें