________________ (66) वैद्यवल्लभ / अब्धेःशोषंचवंगंमृतकनककणाहंसपाकाहिफेनम् // कंकोलंरुद्रपत्रोषणकनकमथोब्रह्मदर्भाजमोदामूशल्या कन्दचूर्णबलगरलवरीमस्तकीकाङ्गडीभिः३० सक्षौद्रेणावलेहोहरतिचगुदजान्सन्निपातान्समग्रान् कासश्वासानिमान्मृतमदनमथोवीर्यवृद्धिप्रकुयात् // कामिन्याःकामदपविजयति च सदाकुक्षिरोगानिहन्यात् स्वेदंगात्रेषुशीतहरति च धनुमारुतंदन्तरोगान् // 31 // भाषाटीकाहरड सोंठ लोग जसदकी भस्म वज इलायची वेजपाव नागकेशर जायफल समुद्रशोष वंगेश्वर मृगांक अर्थात सोमेकी भस्म पीपल हिंगुलू अफीम कंकोल बडके कोमल पत्ता मिर्च धतूरेके बीज और ब्रह्मदर्भा अर्थात् अजवायन अजमोद भूशलीके कन्दको चूर्ण गंधक वेलीया . मीठौ सतावर रूमी मस्वंगी कांगडी // 30 // इन सबको समान भागलै चूर्ण कर सहवमें मिलाय खायतौ गुदाके रोग सबरे सन्निपातनको हरे कास श्वास अमिकी मन्दता नंपुसकपनको हरे और वीर्यको बढावे स्त्रीनके कामके मदकों हरे सदा और कुक्षिकमरके रोगनको हरै तथा शरीरमें पसीनेके आयवको हरे और शीतांगको हरे धनुर्वात वा दांतके रोगनको दूरकरै // 31 // अथ हिकारोगे उपचारः // विश्वागुडेन दातव्या सितयासह मागधी //