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________________ वैद्यवल्लभ / कोटकी पीडा कीडानकै दर्दको सदा दूरकरै नपुंसकरनेकों दूरकर कामकी रुचिको बढावे और वीर्यको बढावे ये सुन्दर वगेश्वर रसहै विशेषकरके // 36 // अथ सन्धिवाते गुटिका॥ गोदुग्धेन गुटी कार्या बोलहिंगुलगुग्गुलैः / / .. हरेदातव्यथांसा सन्धिवातं च दुस्सहम् // 37 // भाषाटीका // बोल हिंगुल गुग्गुल ये समान भाग ले गौके दूधर्मं घोट गोलीकर खाय वो वातव्यथा सबरी दुस्तर सन्धिवातको हरे // 37 // __अथ ज्वरातिसारे गुटिका॥ करवीरं सुवर्णच बृहतीकुसुमानिच // हंसपाकबला श्रेष्ठा नागकर्पूरकेशरैः // 38 // लवंगाकल्लकं चैवाहिफेनोषणमस्तकी // जातीफलं जातिपत्री सर्वतुल्यानि मर्दयेत् // 39 // क्षौद्रेण वा पत्ररसेन कार्या ज्वरातिसारामयनाशिनीगुटी // रूपाग्निबुद्धिबलवीर्यवर्दिनी मुरादिसाहेन विनिर्मिता स्वयम् // 40 // इति श्रीवैद्यवल्लभे हस्तिरुचिकविविरचिते सन्निपातहिकाजानुकम्पादिप्रभृतिप्रतीकारो नामाष्टमो विलासः॥८॥
SR No.004276
Book TitleVaidyavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastikruchi Kavi
PublisherHastikruchi Kavi
Publication Year1843
Total Pages78
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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