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________________ (68) वेद्यवल्लभ। वादी ताको नाशकरे अवश्य // 36 // अथवा अक्षिके बराबर पथ्य युक्त खाय दोऊवेर इति // इति श्रीवैद्यवल्लभे श्रीमधुपुरीस्थदक्षगोत्रोद्भवचातुर्वेदिराधाचन्द्रशर्मरुवव्रजभाषाटीकायांशिरःकर्णाक्षि भ्रममूछासन्धिवातग्रन्थिवावरक्तपित्तस्नायुकादिप्रभृतिप्रतीकारो नाम सप्तमो विलासः // 7 // अथ भूतप्रेतादिदोषजिदंजनम् // लशुनं मरिचं सर्पकंचुकीभस्म कट्पलम् // हिंग्वारिष्टवचाशियुरिङ्गुयाः फलमजकम् // 1 // निम्बस्यफलमज्जानि चूर्णच खरमूत्रयुकू / नेत्राअनकृतंसर्वभूतप्रेतादिदोषजित् // 2 // भाषाटीका // लस्सन मिर्च सर्पको कांचलीकी भस्म कायफल हांग रीठा वच सहेजनों हींगौटाके फलकी मीगी // 1 // नीमकी निवौरीनकी मीगी इन सबको समान भाग ले चूर्ण कर गधाके मूतमें घिस आंजे वो भूत प्रेत आदिककै दोषको मिटै // 2 // ___ अथ सर्वदोषजित्प्रयोगः॥ कणासैन्धवतुत्थंच मरिचं निम्बबीजकैः॥ 1 अक्षिमान पथ्ययुक्तं द्विवेलं दापयेत् गुटी। इति पाठान्तराणि //
SR No.004276
Book TitleVaidyavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastikruchi Kavi
PublisherHastikruchi Kavi
Publication Year1843
Total Pages78
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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