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________________ (24) वैद्यवल्लभ / .. पुनः॥ पुनर्नवामृताशंठीदारुपथ्यासमांशकैः // चूर्णमुष्णाम्बुनापीतंशोफंहन्तिसवेगतः // 18 // भाषाटीका // साँठीकी जड, गिलोय,सोंठ,देवदारु, हरड ये समान भागलै वाको चूर्ण कर गरम जलसों पीवे वो सूजनको जल्दी सों दूर करै // 18 // सरामठसकूष्मांडंसचूर्णटंकणान्वितम् // - गुडयुक्तंसदापीतंसद्यःशोफोदरंहरेत् // 19 // भाषाटीका // हींग पेठेको रस सुहागौं ये समान भाग छै इनके चूर्णमें गुड मिलाय सदा पीवेसों जल्दी पेटकी सूजनको दूर करै // 19 // पुनर्नवाभयादारुवातशत्रुसमांशकैः // गोमूत्रेणकृतःकाथःशोफजिद्धस्तिनामतः॥२०॥ भाषाटीका // साँठीकी जड, हरड, देवदारु, अंडकी जड, ये समान भाग ले गायके मूत्रमें काढौकर पीवै वो सूजन दूर होइ यो हस्तिकविको मतेहै // 20 // पुनः॥ सैन्धवाज्याभयादानाद्गोमूत्रेणच पिप्पली // दुग्धेन महिषीमूत्रं त्रिभिः शोफोदरं हरेत् // 21 // भाषाटीका // सैंधानोन, घी, हरड देवेसों और गोमूत्रमें पीपल देवेसों और द्ध गायके भेंसको मूत ये तीनों देवेसों पेटकी सूजनको दूरकरें // 21 //
SR No.004276
Book TitleVaidyavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastikruchi Kavi
PublisherHastikruchi Kavi
Publication Year1843
Total Pages78
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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