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________________ भाषाटीकासमेत। (27) पथ्यायुक्तेन दातव्यं रक्तपित्तविनाशकृत् // 29 // भाषाटीका / / मरीभई हरताल, अच्छी लेनी सहेजनेकी पुट दे हरडके संग देवे सो रक्तपित्तको नाश करै // 29 // पुनः॥ शर्कराछागदुग्धच कारितं दिवसान दश // रक्तपित्तविनाशाय सद्धस्तिकविनामतः // 30 // इति श्रीवैद्यवल्लभे हस्तिरुचिकविविरचिते क्षयशोथसमीरविस्फोटकपामाददूरक्तपित्तप्रभृतिप्रतीकारो नाम तृतीयो विलासः॥३॥ भाषाटीका // मिश्री बकरीको दूध मिलाय करके दश दिन पीवे तो रक्तपित्तको विनाश होई ये हस्विकविको मत है / / 30 // इति श्रीवैद्यवल्लभे श्रीमधुपुरीस्थदक्षगोत्रोद्भव राधाचंद्रशर्मकतव्रजभाषाटीकायां क्षयशोथसमीरविस्फोटकपामादवरक्तपित्तप्रभृतिप्रतीकारोनाम तृतीयो विलासः // 3 // अथ बलवीर्यवर्द्धनो मोदकः॥ अश्वगंधातिलामाषागुडसापमहौषधैः / / मोदको भक्षितः प्रातर्बलवीर्यस्य वृद्रिकृत् / / 1 / / भाषाटीका। असगंध तिल उरद गुड घी सोंठ ये बराबर
SR No.004276
Book TitleVaidyavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastikruchi Kavi
PublisherHastikruchi Kavi
Publication Year1843
Total Pages78
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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