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________________ वैधवल्लभ / श्रीरशाल्योदनं पीत्वा मिष्टाहार प्रदापयेत्॥२॥ उद्वेगभयशोकार्तिदिवानिमादि वर्जयेत् // न कर्म क्रियते किञ्चिदानासि शीततापयोः // 6 // एवं सप्तदिन कुर्याद्वंध्या भवति गर्भिणी // भावारीका // दीववार के दिन जड पत्ता समेत, साक्षि याको ब्रज भाषामें सितार कहे हैं ताको उखाद एक रंगकी गायके इधर्म कन्याके हाथमो विसवाय ॥४॥ता से एक आध पल बांड लुगाई सात दिन छीमने में पीने साप इध पायक बादल सांठी और सब मीठी चीज खानी // 5 // और उद्वेग चिन्ता भय दिनमें सौनों वगैरे मने है और सरदः गर्मी प न सहनी // 6 // ऐसे सात दिन करवे सो वाइ लगाई गार्भणी होई // चक्रांकां वारिणा पीत्वा सगा भामिनीभवेत् // 7 // भाषाटीका // कईको पानीके संग पोवे सो नारी गर्भवती होय // 7 // पुनः॥ पार्थपिप्पल बीजस्य चूणखंडधृतेनच // या पिबतुकालषु सानारी लभते सुतम् // 8 // भापाटीका // पारस पीपलके पीजनको चूर्ण बारह और घौके संग याका पीये छीमने भये तो बा लुगाईको बेटा होय // 8 //
SR No.004276
Book TitleVaidyavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastikruchi Kavi
PublisherHastikruchi Kavi
Publication Year1843
Total Pages78
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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