Book Title: Vaidyavallabh
Author(s): Hastikruchi Kavi
Publisher: Hastikruchi Kavi

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Page 65
________________ भाषाटीकासमेत। (61) गुग्गुलु सर्पपासर्पकंचुकीराजिकासमम् // 10 // कंटका निम्बवृक्षस्य चाष्टाधिकशतं शुभम् // श्रीफलस्य च तुल्यं च द्विपघोटकयोरजः // 11 // एतेषां युवतीयोनौ धूपो देयो दिनान्दश // श्वशुरस्य कुलेतस्मात्तरुणी तिष्ठति ध्रुवम् // 12 // इनको अर्थ सुगमहै वासोनहीं प्रकाशित कीयो 10 / 11 / 12 अथ प्रमेहादिरोगे उपचारः // गन्धकं पलमानन्तु गोदुग्धेन विशोध्य च // शर्करासंयुतं कार्य मरुत्पित्तकफातिनुत् // 13 // तुष्टिपुष्टिकरो नित्यं रुचिकृन्नेत्ररोगजित् // वीर्यक्षयं प्रमेहं च कुष्ठपित्तरुजं हरेत् // 14 // भाषाटीका // एकपल गंधककों शोधकर मिश्रीमें मिलाय खाय तौ वादी पित्त कफरोगनकों दूर करे // 13 // तृप्तिकरे नित्य रुचिकरे नेत्ररोग जीवे वीर्यक्षय प्रमेह कोढ पित्त रुजाको हरे // 14 // अथ मदनवृद्धिपाकः // मर्कटी मुशली चाश्वगंधा गोक्षुरकै समम् // पलपंचमिताकृष्णा द्रोणदुग्धेन पाचयेत् // 15 // चातुर्जातं तथा लोहं बालावै वंशलोचनम् // चंदनं केशरं व्योषं साधं शुल्ब फलत्रिकैः // 16 // प्रस्थैकखण्डेन युतोहि भुक्तः

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