Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 14
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-नवमाध्ययनम् (११) अन्भुट्ठियं रायरिसिं, पव्वज्जाठाणमुत्तमं । सक्को माहपरवेण, इमं वयणमब्बकी ॥ ६ ॥ किण्णु भो अन्न मिहिला, कोलाहलगसंकुला। सुन्वन्ति दारुणा सद्दा, पासाएमु गिहेसु य ॥७॥ एयमद्वं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ८॥ मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे। पत्तपुप्फफलोवेए, बहूणं बहुगुणे सया ॥१॥ वाएण हीरमाणम्मि, चेइयम्मि मणोरमे। दुहिया असरणा अत्ता, एए कन्दन्ति भो खगा ॥ १० ॥ एयमद्वं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ११ ॥ एस अग्गी य वाऊ य, एवं डज्झइ मन्दिरं। भयवं अन्तेउरं तेणं, कीस णं नावपेक्खह ।। १२ ॥ एयमद्वं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ १३ ॥ सुहं वसामो जीवामो, जेसि मोनत्थि किंचण । मिहिलाए डज्झइमाणीए, न मे डज्झइ किंचण ॥ १४ ॥ चत्तपुत्तकलत्तस्स, निव्वावारस्स भिक्खूणो। पियं न विजई किंचि, अप्पियं पि न विजई ॥ १५॥ बहुं खु मुणिणो भई, अणगारस्स भिक्खूणो । सव्वओ विप्पमुक्कस्स, एगन्तमणुपसओ ॥ १६ ॥ एयमहूँ निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्यवी ॥१७॥ पागारं कारइत्ताणं, गोपुरट्टालगाणि च । उस्सूलगसयग्घीओ, तओ गच्छसि खतिया ॥ १८॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ १९॥ सद्धं नगरं किच्चा, तवसंवरमग्गलं । खन्ति निउणपागारं, तीगुत्तं दुप्पधंसयं ॥ २० ॥ धणुं परक्कम किच्चा, जीवं च इरियं सया। घिई च केयणं किच्चा, सच्चेण पलिमन्थए ॥ २१ ॥ तवनारायजुत्तेण, मित्तूणं कम्मकंचुयं । मुणी विजयसंगामो, भावाओ परिमुच्चए ॥ २२ ॥ एयमढे निसामित्ता. हेऊकारणचोइओ। तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणभब्बवी ॥ २३ ॥ पासाए कारइत्ताणं, बद्धमाणगिहाणि य । बालग्गपोइयाओ य, तओ गच्छसि खत्तिया ॥ २४ ॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ २५ ॥ संसयं खलु सो कुणई, जो मग्गे कुणई घरं। जत्थेव गन्तुमिच्छेज्जा, तत्थ कुवेज सासयं ॥ २६॥ एयमहुँ निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बबी ॥ २७ ॥ आमोसे लोमहारे य, गंटिमेए य तकरे । नगरस्स खेमं काऊणं, तओ गच्छसि खत्तिया ॥ २८ ॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ २९॥ असई तु मणुस्सेहि, मिच्छा दंडो पजुञ्जई । अकारिणोऽत्थ वज्झन्ति, मुच्चई कारओ जणो ॥ ३०॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नर्मि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ३१ ॥ जे केइ पत्थिवा तुझं, नानमन्ति नराहिवा। वसे ते ठावइत्तागं, तओ गच्छसि खत्तिया ॥ ३२ ॥ एयमद्वं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी, देविंदो इणमब्बवी ॥ ३३ ॥ जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुजए जिणे । एगं जिणेज अप्पाणं, एस से परमो जओ ॥ ३४ ॥ अप्पणामेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ। अप्पणामेवमप्पाणं, जइत्ता सुहमेहए ॥ ३५ ॥ पंचिन्दियाणि कोहं, माणं मायं तहेव लोहं च। दुजयं चेव अप्पाणं,सव्वं अप्पे जिए जिय ॥ ३६ ॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ३७॥ जइत्ता विउले जन्ने,भोइत्ता समणमाहणे। दत्ता भोचाय जिट्ठा य, तओ गच्छसि खत्तिया ।। ३८ ॥

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