Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 60
________________ श्री उत्तराध्ययन सूत्र - बतीस माध्ययनम् ३८ ॥ तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निवत्तई जस्स करण दुक्खं ॥ ३२ ॥ एमेव रूम्म गओ ओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पट्ठचित्तो यचिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ३३ ॥ रूवे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमज्झे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ३४ ॥ सोयस स हणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु | तं दोसउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ३५ ॥ सदस्स सोयं गहणं वयन्ति, सोयस्स सदं गहणं वयन्ति । रागस्स हे समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु || ३६ || सद्देसु जो गेहिमुवे तिबं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे हरिणमिगे व मुद्धे सद्दे अतित्ते समुवे मच्चुं ॥ ३७ ॥ जे यावि दोसं समुइ तिबं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किञ्चि सद्दं अवरुज्झई से ॥ एगन्तर रुइरंसि सदे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स सम्पीलमुवे बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ३९ ॥ सद्दाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चितेहि ते परतावे बाले, पीलेइ अतट्ठगुरू किलिट्ठे ॥ ४० ॥ सद्दाणुवारण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खगसन्निओगे । ar विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतितला ॥ ४१ ॥ स अतित् य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवैइ तुट्ठि । अतुट्ठदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ४२ ॥ तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य । माया वह लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुम्बई से ॥ ४३ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, सदे अतितो दुहिओ अणिस्सो ॥ ४४ ॥ सद्दारत्तस्स रस्स एवं, कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थभोगे वि किलेस दुक्खं, निवत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ४५ ॥ एमेव सहम्मि गओ पओसं, उवेह दुक्खोहपरंपराओ । पट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ४६ ॥ स विरतो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्प भवमज्झे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ४७ ॥ घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति, तं राअहेउं तु मणुन्नमाहु | दोस अमनमाडु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ४८ ॥ (५७)

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