Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 67
________________ - श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला नीयावती अचवले, अमाई अकुऊहले । विणीयविणए दन्ते, जोगवं उवहाणवं ॥ २७॥ पियधम्मे दढधम्मेऽवजभीरू हिएसए। एयजोगसमाउत्तो, तेउलेसं तु परिणमे ॥ २८ ॥ पयणुकोहमाणे य, मायालोमे य पयणुए। पसन्तचित्ते दन्तप्पा, जोगवं उवहाणवं ॥२९॥ तहा पयणुवाई य, उवसन्ते जिइन्दिए । एयजोगसमाउत्तो, पम्हलेसं तु परिणमे ॥ ३० ॥ अट्ठरुद्दाणि वजित्ता, धम्मसुक्काणि झायए। पसन्तचित्ते दन्तप्पा, समिए गुत्ते य गुत्तिसु ॥ ३१ ॥ सरागे वीयरागे वा, उवसन्ते जिइन्दिए। एयजोगसमाउत्तो, सुक्कलेसं तु परिणमे ॥ ३२ ॥ असंखिजाणोसप्पिणीण, उस्सप्पिणीण जे समया। संखाईया लोगा, लेसाण हवन्ति ठाणाई ॥ ३३ ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसा सागरा मुहुत्तहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायचा किण्हलेसाए ॥ ३४ ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना,दस उदही पलियमसंखभागब्भहिया। उक्कोसा होइ ठिई,नायव्वा नीललेसाए ॥ ३५ ॥ महत्तद्धं तु जहन्ना,तिण्णुदही पलियमसंखभागमभहिया।उक्कोसा होइ ठिई,नायचा काउलेसाए॥३६॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना,दोण्णुदही पलियमसंखभागमभहिया।उक्कोसा होइ ठिई,नायवा तेउलेसाए ॥ ३७॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस होन्ति य सागरा मुहुत्तहिय । उक्कोसा होइ ठिई, नायबा पम्हलेसाए ॥ ३८॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायवा सुक्कलेसाए ॥ ३९ ॥ एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई वणिया होइ। चउसु वि गईसु एत्तो, लेसाण ठिई तु वोच्छामि ॥ ४० ॥ दस वाससहस्साई, काऊए ठिई जहन्निया होइ। तिण्णुदही पलिओवम, असंखभागंच उक्कोसा ॥ ४१ ॥ तिण्णुदही पलिओवमसंखभागोजहन्नेण नीलठिई।दस उदही पलिओवमअसंखभागंच उक्कोसा ॥ ४२ ॥ दसउदही पलिओवमअसंखभगं जहन्निया होइ । तेत्तीससागराइं उक्कोसा, होइ किण्हाए लेसए ॥ ४३ ॥ एसा नेरइयाणं, लेसाण ठिई उ वण्णिा होइ । तेण परं वोच्छामि, तिरियमणुस्साण देवाणं ॥ ४४ ॥ अन्तोमुहुत्तमद्धं, लेलाण जहिं जहिं जाउ । तिरियाण नराणं वा, वजित्ता केवलं लेसं ॥ ४५ ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना उक्कोसा होइ पुत्वकोडीओ । नवहि वरिसेहि ऊणा, नायवा कसुलेसाए ॥ ४६ ॥ एसा तिरियनराणं, लेसाण ठिई उ वण्णिया होइ। तेण परं वोच्छामि, लेसाण ठिईउ देवाणं । ४७ ॥ दस वाससहस्सई, किण्हाए ठिई जहनिया होइ। पलियमसंखिज्ज इमो, उक्कोसो होइ किण्हाए ॥४८॥ जा किण्हाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जहन्नेणं नीलाए, पलियमसंखं च उक्कोसो ।। ४९ ॥ जा नीसाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिया । जहन्नेणं काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा ॥ ५० ॥ तेण परं वोच्छामि, तेउलेसा जहा सुरगाणं । भवणवइवाणमन्तरजोइसवेमाणियाणं च ॥ ५१ ॥ पलिओवमं जहन्न, उक्कोसा सागरा उ दुनंहिआ । पलियमसंखेजेणं, होइ भागेण तेऊए ॥ ५२ ॥ दस वाससहस्साई, तेऊए ठिई जहनिया होइ । दुन्नुदही पलिओवमअसंखभागं च उक्कोसा ॥५३॥ जा तेऊण ठिई खलु, उक्कोसा सा समयमन्महिया। जहन्नेणं पम्हाए, दस उ मुहुचाहियाइ उकोसा ॥ ५४॥

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