Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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(६८)
श्रीजैनसिद्धान्त- - खाध्यायमाला
संखंककुंद संकासा, पण्डुरा निम्मला सुहा । सीयाणे जोयणे तत्तो, लोयन्तो उ वियाहिओ ।। ६२॥ जणस्स उ जो तत्थ, कोसो उवरिमो भवे । तस्स कोसस्स सम्भाए, सिद्धाणोगाहणा भवे ।। ६३ ।। तत्थ सिद्धा महाभागा, लोगगम्मि पइडिया । भवपपंचओ मुक्का, सिद्धिं वरगड़ गया ॥ ६४ ॥ उस्सेहो जेसिं जो होइ, भवम्मि चरिमम्मि उ । तिभागहीणो तत्तो य, सिद्धाणोगा हणा भवे ।। ६५ ।। एगत्तेण साईया, अपज्जवसियावय । पुहत्तेण अणाइया, अपज्जसियावि य ।। ६६ ।। अविणो जीवघणा, नाणदंसणसन्निया । अउलं सुहं संपन्ना, उत्रमा जस्स नत्थि उ ॥ ६७ ॥ लोगेगदेसे ते सर्व्व, नाणदंसणसन्निया । संसारपारनित्थिण्णा, सिद्धिं वरगई गया || ६८ ॥ संसारत्था उ जे जीवा, दुविहा ते वियाहिया । तसा य थावरा चैव, थावरा तिविहा तहिं ।। ६९ ।। पुढवी आउजीवा य, तहेव य वणस्सई । इच्चेए थावरा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ ७० ॥ दुविह पुढवीजीवा य, सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥ ७१ ॥ बायरा जे उपन्नता, दुविहा ते वियाहिया । सण्हा खरा य बोधवा, सण्हा सत्तविहा तहिं ॥ ७२ ॥ कहा नीला य रुहिरा य, हलिद्दा सुकिला तहा । पण्णुपणगमट्टिया, खरा छत्तीसईविहा ॥ ७३ ॥ पुढवीय सक्करा बालुया य, उबले सिला य लोणूसे । अय-तम्ब तउय - सीसग - रुप्प - सुवण्णे य वइरे य ॥ हरियाले हिंगुलुए, मणोसिला सासगंजण - पवाले । अब्भपडलब्भवालुय, बायरकाए मणिविहाले ||
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गोमेज यरुयगे, अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय-मसारगल्ले, भुयमोयग-इन्दनीले य चन्दण- गेरुय हंसगब्भे, पुलए सोगन्धिए य बोधवे । चन्दप्पहवेरुलिए, जलकन्ते सूरकन्ते य एए खरपुढवीए, भेया छत्तीसमाहीया । एग विहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया ॥ सुमा सबलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउन्विहं ॥ संतई पष्णाईया, अपज्जवसियावि य। ठि पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य बावीससहस्साई, वासाणुकोसिया भवे । आउठिई पुढवीणं, अन्तोमुहुतं जहन्नयं ॥ असंखकालेमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पुढवीणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ अणन्तकालमुकोर्स, अन्तोमृहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए. पुढविजीवाण अन्तरं ॥ एसिं वण्णओ चैव गन्धओ रसफसओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ दुविहा आऊजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो बायरा जे उपज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदय य उस्से, हरतणू महिया हिमे एमविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सबलोगम्मि, लोगदे से य बायरा सन्तई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि। ठिडं पडुच्च साईया, सपञ्जवसियावि य सत्तेव सहस्साईं, वासाणुकोसिया भवे । आइठिई आऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई आऊणं तं कार्यं तु अचओ ॥ ९० ॥ 'अणन्तकालमुक्कोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, आऊजीवाण णन्तरं ।। ९१ ॥ एएसिं वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्सो ॥ ९२ ॥
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