Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीजेनसिद्धान्त - खाध्यायमाला
१२६ ॥ १२७ ॥
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एएसं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्वसो ।। उराला तसा जे उ, चउहा ते पकिश्चिया । बेइन्दिय - तेइन्दिय - चउरो पंचिन्दिया चैव ॥ बेइन्दिया उ जे जीवा, दुविडा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं मेए सुणेह मे ॥ किमिणो सोमंगला चेव, अलसा माइवाहया । वासीमुहा य सिप्पिया, संख संखणगा तहा घल्लोयाणुल्लया चैव तहेव य वराडगा । जलुगा जालगा चेत्र, चन्दणा य तहेव य ॥ st बेइन्दिया resuगहा एयमायओ । लोगेगदेसे ते सबे, न सवत्थ वियाहिया ।। संत पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिहं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ।। वासाई वारसा चेव, उक्कोसेण वियाहिया । बेइन्दिय आउठिई अन्तोमुहुत्तं जहन्निया संखिज्जकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियकायठिई, तं कायं तु अम्रुचओ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियजीवाणं, अन्तरं च वियाहियं ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो तेइन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जता, तेसिं भेए सुह मे ॥ कुन्थुपिवीलिउडूंसा, उक्कलेद्देहिया तहा । तणहारकट्ठहारा य, मालुरा पत्तहारगा ।। कप्पासट्ठिम्मि जायन्ति, दुगा तडसमिंजगा । सदावरी य गुम्भी य, बोधवा इन्दगाइया ।। इन्दोमायाहा एवमायओ । लोगेगदेसे ते सबे, न सवत्थ वियाहिया ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियाविय । ठिडं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ एगूणपण्णहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया । तेइन्दियआउठिई, अन्तोमुहुत्त जहनिया संखिज्जकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियकायटिई, तं कार्यं तु अम्रुचओ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियजीवाणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ सिं वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्सजो चउरिन्दियाउ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तम पज्जत्ता, तेसिं भेए सुह मे ॥ अधिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा । भमरे कीडपयंगे य, टिंकुणे कंकणे तहा ॥ कुक्कुडे भिंडी य, नन्दावत्ते य विच्छुए । टोले भिंगारी य, वियडी अच्छिवेयए ॥ अच्छिले माहए अच्छरोडए, विचित्ते चित्तपत्तए । उहिंजलिया जलकारी य, नीया तन्तवयाइया ||
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इय चउरिन्दिया, एएऽणेगहा एवमायओ । लोगेगदे से ते सधे, न सवत्थ वियाहिया ।। संत पप्पणाईया, अपज्जवसिया विय। ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया विय ।। छच्चेव मासाऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउरिन्दिदय आउठिई, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया संखिज्जकालमुकोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियकायठिई, तं कार्यं तु अचओ अणन्तकालमुक्कोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियजीवाणं, अन्तरं च वियाहियं ॥ सिं वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो पंचिन्दियाउ जे जीवा, चउबिहा ते वियाहिया । नेरइयतिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया ।। नेरइया सत्तविहा, पुढवीसु सतसू भवे । रयणाभसकराभा, वालुयामा य आहिया ।।
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