Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 74
________________ श्री उत्तराध्ययन सूत्र- छत्तीसमाध्ययनम् (७१) १५९ ।। १६० ॥ १६१ ॥ पंकाभा धूमाभा, तमा तमतमा तहा । इइ नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया ।। १५८ ।। लोमस्स एगदेसम्मि, ते सच्चे उ वियाहिया । एतो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउविहं ।। संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियाविय । ठिहं पडुच्च साइया, सपज्जवसियावि य ॥ सागरोवममेगं तु, उक्कोसेण वियाहिया । पढमाए जहनेणं, दसवाससहस्सिया || तिण्णेव सागरा ऊ, उकोसेण वियाहिया । दोच्चाणं जहनेणं, एगं तु सागरोवमं ॥ सत्तेव सागरा ऊ, उक्कोसेण विगाहिया । चउत्थीए जहन्त्रेण, तिष्णेव सागरोवमा ।। दस सागरोवमा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउत्थीए जहन्नेणं, सत्तेव सागरोवमा सत्तरस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउत्थीए जहन्नेणं, सत्तेव नागरोवमा बावीस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । छट्टीए जहनेणं, सत्तरस सागरोवमा तेत्तीस सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया । सत्तमाए जहन्नेणं, बावीसं सागरोवमा ॥ जा चैव य आयठिई, नेरइयाणं वियाहिया । सा तेसिं कायठिई, जहन्नुकोसिया भवे अणन्तकालमुकोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, नेरइयाणं अन्तरं एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ पंचिन्दियतिरिक्खाओ, दुविधा ते वियाहिया | समुच्छिम तिरिक्खाओ, गन्भवक्कन्तिया तहा ॥ ॥ ।। ॥ १७१ ॥ ।। ॥ ॥ ।। १७८ ॥ १७९ ।। दुविहा ते भवेतिविहा, जलयरा थलयरा तहा। नहयरा य बोधव्वा, तेसिं भेए सुह मे मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा । सुंसुमाराय बोधवा, पंचहा जलहराहिया ।। लोएगदेसे ते सच्चे, नसवण्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउन्विहं संत पष्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ।। एगा य पुइकोडी, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई जलयराणं, अन्तोमुहुतं जहनिया पुवकोडिपुहत्तं तु, उक्कोसेण वियाहिया । कार्यट्टिई जलयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, जसयराणं अन्तरं चउप्पया य परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे । चउप्पया चउविहा, ते मे कियनओ सुण ।। एगखुरा दुखुरा चेव, गण्डीपयसणहप्पया । हयमाइगोणमाइगयमाइसीहमाइणो ॥ ओरगपरिसप्पा य, परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई गहिमाई य, एकेकाणेगहा भवे ।। लोएगदेसे ते सब्वे, न सवत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु, वोम्छं तेसिं चव्विहं संत पप्पणाईया, अपज्जवसियाविय । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसियाविय ॥ पलिओ माई तिष्णि उ, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई थलयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया पुको डिपुहत्तेणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया । कायठिई थलयराणं, अन्तरं तेसिमं भवे ॥ १८५ ॥ कालमणन्तमुकोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, थलयराणं तु अन्तरं ।। १८६ ।। चम्मे उ लोमपक्खी य, तइया समुग्गपक्खिया । विययपक्खी य बोधव्वा, पक्खिणो य चउव्विहा || ॥ १८७ ॥ लोगेगदेसे ते सर्व्व, न सवत्थ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउन्विहं ॥ १८८ ॥ १८० ॥ १८१ ।। ॥ १८२ ॥ १८३ ॥ ॥ १८४ ॥ ॥ ॥ ॥ || १६२ ॥ १६३ ।। १६४ ॥ १६५ ॥ १६६ ॥ १६७ ॥ १६८ ॥ १६९ ।। १७० ॥ १७२ ।। १७३ ।। १७४ ॥ १७५ ।। १७६ ॥ १७७ ॥

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