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णमो समणस्स भगवओ महावीरस्स
॥ भगवत् सुधर्मस्वामी प्रणीतम् ॥ ॥ सिरि-उत्तरज्झयण-सुत्तं ॥
(श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् ).
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-: प्रकाशक:
॥ जामनगर वास्तव्य पंडित हीरालाल हंसराजेन स्वकीय श्रीजैनभास्करोदय मुद्रणालये मुद्रितम् ॥
मूल्य १-४-.
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संवत् १९९४
सने १९३८
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।। णमोऽत्थु णं तस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स ॥
श्री जैन ॥ सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला ॥
॥ सिरि-उत्तरज्झयण-सुत्तं ॥ विणयसुयं पढमं अज्झयणं
संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणो। विणयं पाउकरिस्सामि, आणुपुचि सुणेह मे ॥१॥ आणानिद्देसकरे, गुरूणमुववायकारए। इंगियागारसंपन्ने, से विणीए ति वुच्चई ॥ २ ॥ आणाऽनिद्देसकरे, गुरूणमणुववायकारए । पडिणीए असंबुद्धे, अविणीए त्ति बुच्चई ॥ ३ ॥ जहा सुणी पूइकण्णी, निक्कसिजई सव्यसो । एवं दुरस्सीलपडिणीए, मुहरी निक्कसिन्जई ॥ ४ ॥ कणकुण्डगं चइत्ताणं, विट्ठ भुंजइ सूयरे । एवं सीलं चइत्ताणं, दुस्सीले रमई मिए ॥ ५ ॥ सुणिया भावं साणस्स, सूयरस्स नरस्स य । विणए ठवेज अप्पाणमिच्छन्तो हियमप्पणो ॥ ६॥ तम्हा विणयमेसिज्जा, सीलं पडिलभेजए। बुद्धपुत्तं नियागट्ठी, न निक्कसिन्जइ कण्हुई ॥ ७ ॥ निसन्ते सियाऽमुहरी, बुद्धाणं अन्तिए सया। अट्ठजुत्ताणि सिक्खिजा, निरट्ठाणि उ वजए ॥ ८ ॥ अणुसासिओ न कुप्पिज्जा, खंति सेविज पण्डिए। खुड्डेहिं सह संसग्गि, हासं कीडं च वजए ॥९॥ मा य चण्डालियं कासी, बहुयं मा य आलवे । कालेण य अहिन्जित्ता, तओ झाइज एगगो ॥१०॥ आहच्च चण्डालियं कट्ठ, न निण्ह विज कयाइ वि। कडं कडे त्ति भासेन्जा, अकडं नो कडे त्ति य ॥११॥ मा गलियस्सेव कसं, वयणमिच्छे पुणो पुणो । कसं व दट्ठमाइण्णे, पावगं परिवजए ॥१२॥
अणासवा थूलवया कुसीला, मिउंपि चण्डं पकरिन्ति सीसा । चित्ताणुया लहु दक्खोववेया, पसायए ते हु दुरासयपि ॥
॥ १३॥ नापुट्ठो वागरे किंचि, पुट्ठो वा नालियं वए । कोहं असचं कुवेज्जा, धारेजा पियमप्पियं ॥ १४ ॥ अप्पा चेव दमेययो, अप्पा हु खलु दुद्दमो। अप्पा दन्तो सुही होइ, अस्सि लोए परत्थ य ॥ १५ ॥ वरं मे अप्पा दन्तो, संजमेण तवेण य । माहं परेहि दम्मंतो, बंधणेहिं वहेहि य ॥ १६ ॥ पडिणीयं च बुद्धाणं, वाया अदुव कम्मुणा । आवी वा जइ वा रहस्से, नेव कुजा कयाइ वि ॥ १७ ॥ न पक्खओ न पुरओ, नेव किच्चाण पिट्ठओ। न जुंजे अरुणा ऊरु, सयणे नो पडिस्सुणे ॥ १८ ॥ नेव पल्हत्थियं कुजा, पक्खपिण्डं च संजए । पाए पसारिए वावि, न चिढं गुरुणन्तिए ॥ १९ ॥ आयरिएहिं वाहित्तो, तुसिणीओ न कयाइवि । पसायपेही नियागट्ठी, उवचिट्टे गुरुं सया ॥ २० ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला आलवन्ते लवन्ते वा, न निसीएन कयाइ वि । चइऊणमासणं धीरो, जओ जत्वं पडिस्सुणे ॥ २१ ॥ आसणगओन पुच्छेज्जा,नेव सेज्जागओकया।आगम्मुक्कुडुओ सन्तो, पुच्छिज्जा पंजलीउडो॥ २२ ॥ एवं विणयजुत्तस्स, सुत्तं अत्थं च तदुभयं । पुच्छमाणस्स सीसस्स, वागरिज जहासुयं ॥ २३ ॥ मुसं परिहरे भिक्खू, न य ओहारिणिं वए । भासादोसं परिहरे, मायं च वजए सया ॥ २४ ॥ न लवेज पुट्ठो सावजं, न निरटुं न मम्मयं । अप्पणट्ठा परट्ठा वा, उभयस्सन्तरेण वा ॥ २५॥ समरेसु अगारेसु, सन्धीसु य महापहे । एगो एगत्थिए सद्धिं, नेव चिट्टे न संलवे ॥ २६ ॥ जं मे बुद्धाऽणुसासन्ति, सीएण फरुसेण वा । मम लाहो त्ति पेहाए, पयओ तं पडिस्सुणे ॥ २७ ॥ अणुसासणमोवायं, दुक्कडस्स य चोयणं । हियं तं मण्णई पण्णो, वेसं होइ असाहुणो॥ २८ ॥ हियं विगयभया बुद्धा, फरुसंपि अणुसासणं । वेसं तं होइ मूढाणं, खन्तिसोहिकरं पयं ॥ २९॥ आसणे उवचिद्वेज्जा, अणुच्चे अकुए थिरे । अप्पुट्ठाई निरुट्ठाई, निसीएज्जप्पकुक्कुए ॥ ३०॥ कालेण निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे। अकालं च विवजित्ता, काले कालं समायरे ॥ ३१ ॥ परिवाडीए न चिडेजा, भिक्खू दत्तेसणं चरे । पडिरूवेण एसित्ता, मियं कालेण भक्खए ॥ ३२ ॥ नाइदूरमणासन्ने, नाऽन्नेसिं चक्खुफासओ । एगो चिटेज भत्तट्ठा, लंधित्ता तं नाऽइक्कमे ॥ ३३ ॥ नाइउच्चे न नीए वा, नासन्ने नाइदूरओ। फासुयं परकडं पिण्डं, पडिगाहेज संजए ॥ ३४ ॥ अप्पपाणेऽप्पबीयम्मि, पडिछन्नम्मि संवुडे । समयं संजए भुंजे, जयं अपरिसाडियं ॥ ३५ ॥ सुकडित्ति सुपक्कित्ति, सुच्छिन्न सुहडे मडे । सुणिहिए सुलद्धित्ति, सावजं वजए मुणी ॥ ३६ ॥ रमए पण्डिए सासं, हयं भदं व वाहए । बालं सम्मइ सासंतो, गलियस्सं व वाहए ॥ ३७ ॥ खड्डया मे चवेडा मे, अक्कोसा य वहा य मे । कल्लाणमणुसासन्तो, पावदिट्ठित्ति मन्नई ॥ ३८ ॥ पुत्तो मे भाय नाइ त्ति, साहू कल्लाण मन्नई। पावदिट्टि उ अप्पाणं, सासं दासु त्ति मन्नई ॥ ३९ ॥ न कोवए आयरियं, अप्पाणंपि न कोवए । बुद्धोवघाई न सिया, न सिया तोत्तगवेसए ॥ ४० ॥ आयरियं कुवियं नच्चा, पत्तिएण पसायए । विज्झवेज पंजलीउडो, वएज न पुणोत्ति य ॥४१॥ धम्मज्जियं च ववहारं, बुद्धेहायरियं सया। तमायरन्तो ववहारं, गरहं नाभिगच्छई ॥ ४२ ॥ मणोगयं वक्तगयं, जाणित्तायरियस्स उ। तं परिगिज्झ वायाए, कम्मुणा उववायए ॥ ४३ ॥ वित्ते अचोइए निचं, खिप्पं हवइ सुचोइए। जहोवइ8 सुकयं, किच्चाई कुव्वई सया ॥ ४४ ॥ नच्चा नमइ मेहावी, लोए कित्ती से जायए। हवई किच्चाणं सरणं, भूयाणं जगई जहा ॥ ४५ ॥ पुज्जा जस्स पसीयन्ति, संबुद्धा पुव्वसंधुया । पसन्ना लाभइस्संति, विउलं अट्ठियं सुयं ॥ ४६॥
स पुजसत्थे सुविणीयसंसए, मणोरुई चिट्टइ कम्मसंपया । तवोसमायारिसमाहिसंवुडे, महज्जुई पंच वयाइं पालिया ॥ ॥४७॥ स देवगंधव्यमणुस्सपूइए, चइत्तु देहं मलपंकपुव्वयं । सिद्धे वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महिड्ढीए ॥
॥४८॥ त्ति बेमि || इअ विणयसुयं नाम पढमं अज्झयणं समत्तं ॥
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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र - प्रथमाध्ययनम्
॥ अह दुइअं परिसहज्झयणं ॥
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सुयं मे आउ-ते भगवया एवमक्खायं । इह खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महाचीरेणं कासवेणं पवेइया । जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयन्तो ghat निहवेज्ज || कमरे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेण कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयं तो पुट्ठो नो निण्हवेज्जा ? | इमे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नचा fter अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो निण्हवेज्जा; तंजहा - दिगिंछापरीस १ पिवा - सापरीस २ सीयपरीसहे ३ उसिणपरीस हे ४ समसयपरीस हे ५ अचेलपरीस हे ६ अरइपरीस हे ७ इत्थीपरीस हे ८ चरियापरीस हे ९ निसीहियापरीस हे १० सेज्जापरीस हे ११ अकोसपरीस हे १२ वह - परीस १३ जायणापरीस हे १४ अलाभपरीस हे १५ रोगपरीस हे १६ तणफासपरीस हे १७ जल्लपret १८ सकारपुरकारपरीस हे १९ पन्नापरीस २० अन्नाणपरीसहे २१ दंसणपरीस २२ ॥ परीसहाणं पविभत्ती, कासवेणं पवेइया । तं भे उदाहरिस्सामि, आणुपुवि सुणेह मे ॥ दिगिंछापरिगए देहे, तवस्सी भिक्खू थामवं । न छिंदे न छिंदावए, न पए न पयावए ॥ कालीपoraकासे, किसे धमणिसंतए । मायने असणपाणस्स, अदीणमणसो चरे ॥ ओ पुट्ठो पिवासाए, दोगुच्छी लज्जसंजए। सीओदगं न सेविज्जा, वियडस्सेसणं चरे ॥ छिन्नावासु पंथेसु, आउरे सुपिवासिए । परिसुक्खमुहादीणे, तं तितिक्खे परीसहं ॥ चरंतं विरयं लूहं, सीयं फुसइ एगया । नाइवेलं मुणी गच्छे, सोच्चाणं जिणसासणं ॥ न मे निवारणं अस्थि, छवित्ताणं न विज्जई । अहं तु अग्गिं सेवामि, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ उसिणं परियावेणं, परिदाहेण तज्जिए । घिसु वा परियावेणं, सायं नो परिदेव ॥ ८ ॥ उहाहित ते महावी, सिणाणं नो वि पत्थए । गायं नो परिसिंचेज्जा, न वीएज्जा य अप्पयं ॥ ९ ॥ पुट्ठो य दंसमस एहिं समरे व महामुणी । नागो संगामसीसे वा, सूरो अभिहणे परं ॥ १० ॥ न संतसे न वारेज्जा, मणं पि न पओसए । उवेहे न हणे पाणे, भुंजते मंससोणियं ॥ परिजुण्णेहि वत्थेहिं, होक्खामि त्ति अचेलए। अदुवा सचेले होक्खामि, इइ भिक्खू न चिंतए गयाsचेलए होइ, सचेले आवि एगया । एयं धम्मं हियं नच्चा, नाणी नो परिदेव ॥ मामाणुगामं रीयंतं, अणगारं अकिंचणं । अरई अणुप्पवेसेज्जा, तं तितिक्खे परीसहं अरई पिट्ठओ किच्चा, विरए आयरक्खिए । धम्मारामे निरारम्भे, उवसन्ते मुणी चरे समणूस, जाओ लोगम्मि इत्थिओ । जस्स एया परिभाया, सुकडं तस्स सामण्णं ॥ यमादाय मेहावी, पङ्कभूया उ इत्थिओ । नो ताहिं विणिहम्मेजा, चरेज्जत्तगवेस ॥ १७ ॥ एग एव चरे लाढे, अभिभूय परीसहे । गामे वा नगरे वावि, निगमे वा रायहाणि ॥ १८ ॥ असमाणे चरें भिक्खू, नेव कुज्जा परिग्गहं । असंसते गिहत्थेहिं, अणिएओ परिव्व ॥ १९ ॥ सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व एगओ । अक्कुक्कुओ निसीएज्जा, न य वित्तासए परं ॥ २० ॥
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• श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
तत्थ से चिट्ठमाणस्स, उवसग्गाभिधारए । संकाभीओ न गच्छेजा, उहित्ता अन्नमासणं ॥ २१ ॥ उच्चावयाहिं सेनाहिं, तवस्सी भिक्खू थामवं । नाइवेलं विहम्मेजा, पावदिट्ठी विहम्मई ॥ २२ ॥ पइरिक्कुवस्सयं लधुं, कल्लाणमदुवा पावयं । किमेगराइं करिस्सइ, एवं तत्थडहियासए ।। २३ ॥ अक्कोसेजा परे भिक्खुं, न तेसि पडिसंजले । सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २४ ॥ सोचाणं फरुसा भासा, दारुणा गामकण्टगा । तुसिणीओ उवेहेज्जा, न ताओ मणसीकरे ॥ २५ ॥ हओ न संजले भिक्खू, मणंपि न पओसए। तितिक्खं परमं नच्चा, भिक्खू धम्मं समायरे ॥ २६ ॥ समणं संजयं दंतं, हणिज्जा कोइ कत्थई । नत्थि जीवस्स नासुत्ति, एवं पेहेज संजए ॥ २७ ॥ दुक्करं खलु भो निचं, अणगारस्स भिक्खुणो। सव्वं से जाइयं होइ, नत्थि किंचि अजाइयं ॥ २८ ॥ गोयरग्गपविट्ठस्स, पाणी नो सुप्पसारए । सुओ अगारवासुत्ति, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ २९ ॥ परेसु घासमेसेंजा, भोयणे परिणिट्टिए। लद्धे पिण्डे अलद्धे वा, नाणुतप्पेज पंडिए ॥ ३० ॥ अजेवाहं न लब्भामि, अवि लाभो सुए सिया। जो एवं पडिसंचिक्खे, अलाभो न तज्जए ॥ ३१ ॥ नच्चा उप्पइयं दुक्खं, वेयणाए दुहट्ठिए। अदीणो थावए पन्नं, पुट्ठो तत्थ हियासए ॥ ३२ ॥ तेइच्छं नाभिनंदेजा संचिक्खत्तगवेसए । एवं खु तस्स सामण्णं, जं न कुज्जा न कारवे ॥ ३३॥ अचेलगस्स लूहस्स, संजयस्स तवस्सिणो। तणेसु सयमाणस्स, हुजा गायविराहणा ॥ ३४ ॥ आयवस्स निवाएण, अउला हवइ वेयणा । एवं नच्चा न सेवंति, तंतुजं तणतजिया ॥ ३५ ॥ किलिन्नगाए मेहावी, पंकेण व रएण वा । प्रिंसु वा परियावेण, सायं नो परिदेवए ॥ ३६ ॥ वेएज निजरापेही, आरियं धम्मणुत्तरं । जाव सरीरभेउत्ति, जल्लं कारण धारए ॥ ३७ ॥ अभिवायणमब्भुट्ठाणं, सामी कुज्जा निमंतणं । जे ताइं पडिसेवन्ति, न तेसिं पीहए मुणी ॥ ३८ ॥ अणुक्कसाई अप्पिच्छे, अनाएसी अलोलुए । रसेसु नाणुगिज्झेजा, नाणुतप्पेज्ज पन्नवं ॥ ३९ ॥ से नूणं मए पुव्वं, कम्माऽणाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि, पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ ४० ॥ अह पच्छा उइजन्ति, कम्माऽणाणफला कडा । एवमस्सासि अप्पाणं, नच्चा कम्मविवागयं ॥४१॥ निरट्ठगम्मि विरओ, मेहुणाओ सुसंवुडो। जो सक्खं नाभिजाणामि, धम्मं कल्लाणपावगं ॥ ४२ ॥ तवोवहाणमादाय, पडिमं पडिवजओ। एवं पि विहरओ मे, छउमं न नियट्टई ॥ ४३ ॥ : नत्थि नूणं परे लोए, इड्ढी वावि तवस्सिणो। अदुवा वंचिओमित्ति, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ ४४ ॥ अभू जिणा अस्थि जिणा, अदुवावि भविस्सई । मुसं ते एवमाहंसु, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ ४५ ॥ एए परीसहा सव्वे, कासवेण निवेइया । जे भिक्खू न विहम्मेज्जा, पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ ४६ ॥
त्ति बेमि॥ इअ दुइ परिसहज्झयणं समत्तं ॥२॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र - तृतीयाध्ययनम् ॥ अह तइअं चाउरंगिज्जं अज्झयणं ॥
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चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जन्तुणो । माणुसतं मुई सड़ा, संजमम्मि य वीरियं ॥ समावन्ना ण संसारे, नाणागोत्तासु जाइसु । कम्मा नाणाविहा कहु, पुढो विस्संभिया पया ॥ एगया देवलोसु, नरएस वि एगया । एगया आसुरं कार्य, अहाकम्मेहिं गच्छई ॥ एगया खत्तिओ होइ, तओ चण्डालवोकसो । तओकीडपयगो य, तओ कुन्थुपिवालिया ॥ एवमावट्टजोणीसु, पाणिणो कम्मकिव्विसा । न निविज्जन्ति संसारे, सब्बट्ठेसु व खत्तिया ॥ कम्मसंगेहिं सम्मूढा, दुक्खिया बहुवेयणा । अमाणुसासु जोणीसु, विणिहम्मन्ति पाणिणो ॥ कम्माणं तु पहाणाए, आणुपुव्वी कयाइ उ । जीवा सोहिमणुष्पत्ता, आययंति मणुस्सर्यं ॥ माणुस्सं विग्गहं लधुं, सुई धम्मस्स दुल्लहा । जं सोच्चा पडिवज्जन्ति, तवं खंतिमहिंसयं ॥ आहच्च सवणं लधुं, सद्धा परमदुल्लहा । सोच्चा नेआउयं मग्गं, बहवे परिभई ॥ सुइं च लधुं सद्धं च, वीरियं पुण दुल्लहं । बहवे रोयमाणावि, नो य णं पडिवज्जए || माणुसत्तंमि आयाओ, जो धम्मं सुच्च सद्दहे । तवस्सी वीरियं लध्धुं संबुडे निध्धुणे रयं ॥ सोही उज्जूय भूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिहई । निव्वाणं परमं जाइ, घयसित्तिव्व पाव विगिंच कम्मुणो हेउं, जसं संचिणु खंतिए । सरीरं पाठवं हिच्चा, उट्टं पक्कमए दिसं विसालसेहिं सीलेहिं, जक्खा उत्तरउत्तरा । महामुक्का व दिप्पंता, मन्नंता अपुणचयं अप्पिया देवकामार्ण, कामरूव विउन्त्रिणो । उर्दू कप्पेसु चिट्ठति, पुव्वावाससया बहु तत्थ ठिच्चा जहाठाणं, जक्खा आउक्खये चुया । उवेंति माणुस जोणिं, से दसंगेभिजायए ॥ खित्त्तं वत्युं हिरण्णं च, पसवो दासपोरुसं । चत्तारि कामखंधाणि । तत्थ से उववज्जइ मित्तवं नाइवं होइ, उच्चागोए य वण्णवं । अप्पायंके महापन्ने, अभिजाए जसो बले भुच्चा माणुस भोए, अप्पडिरूवे अहाउयं । पुव्वं विसुद्ध सद्धम्मे, केवलं बोहिबुझिया ॥ चउरंगं दुल्लहं नच्चा, संजमं पडिवज्जिया । तवसा धुयकम्मं से, सिद्धे हवइ सासए ॥ २० ॥ त्ति बेमि || इअ तृतीयं परिज्झयणं समत्तं ॥
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॥ अह चतुर्थं असंखयं अज्झणं ॥
असंखयं जीविय मा पमायए, जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । एवं वियाणाहि जणे पत्ते कन्नु विहिंसा अजिया गिहिंति ।। १ ।। जे पावकम्मेहिं धणं मणूसा, समाययंती अमई गहाय । पहाय ते पासपयट्ठिए नरे, वेराणुबद्धा नरयं उविंति ॥ २ ॥ तेणे जहा संधिमुहे गहीए, सकम्मुणा किचइ पावकारी | एवं पया पेच्च इहं च लोए, कडाण कम्माण न मुक्खु अस्थि ॥ ३ ॥
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श्रीजैन सिद्धान्त -
- स्वाध्यायमाला
संसारमावन परस्स अट्ठा, साहारणं जं च करेइ कम्मं । कम्मस्स ते तस्स उवेयकाले, न बंधवा बंधवयं उर्विति ॥ ४ ॥ वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते, इमंमि लोए अदुवा परत्थ । दीपव अणतमोहे, नेयाउयं दमदमेव ॥ ५ ॥ सुसुआवी पडिबुद्धजीवी, न वीसंसे पंडिय आसुपण्णे । घोरा महुत्ता अबलं सरीरं, भारंडपक्खीव चरsप्पमत्तो ॥ ६ ॥ चरे पयाइ परिसंकमाणो, जं किंचि पासं इह मनमाणो । लाभंतरे जीवियवूहइत्ता, पच्छा परिन्नाय मलावधंसी ॥ ७ ॥ छंदनिरोहेण उवेइ मोक्खं, आसे जहा सिक्खियवम्मधारी । पुव्वाई वासाइं चरप्पमत्तो, तम्हा मुणी खिष्पमुवेइ मुक्खं ॥ ८ ॥ सव्वमेवं न लभेज्ज पच्छा, एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीदई सिटिले आउयम्मि, कालोवणीए सरीरस्स भेए ॥ ९ ॥ खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउं, तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे । समिच्च लोयं समया महेसी, आयाणुरक्खी चरमप्पमत्ते ॥ १० ॥ मुहुं मुहुं मोहगुणे जयन्तं, अणेगरूवा समणं चरन्तं । फासा फुसन्ती असमंजसं च न तेसि भिक्खू मणसा उस्से ॥ ११ ॥ मन्दा य फासाबहुलोह णिज्जा, तहप्पगारेसु मणं न कुज्जा । रक्खज्ज कोहं विणएज्ज माणं, मायं न सेवेज पयहेज्ज लोहं ॥ १२ ॥ जेऽसंख्या तुच्छपरप्पवाई, ते पिज्जदोसाणुगया परभा । एए अहम्मेति दुर्गुछमाणो, कंखे गुणे जाव सरीरभेउ ॥ १३ ॥ त्ति बेमि ॥ इअ असंखयं चउत्थं अज्झयणं समत्तं ॥
॥ अह अकाममरणिज्जं पञ्चम अज्झयण |
१ ॥
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॥
अण्णवंसि महोहंसि, एगे तिण्णे दुरुत्तरं । तत्थ एगे महापने, इमं पण्हमुदाहरे ॥ सन्तिमे य दुवे ठाणा, अक्खाया मरणन्तिया । अकाममरणं चेव, सकाममरणं तहा बालाणं तु अकामं तु मरणं असई भवे । पण्डियाणं सकामं तु, उक्कोसेण सई भवे तत्थिमं पढमं ठाणं, महावीरण देखियं । कामगिद्धे जहा बाले, जे गिद्धे कामभोगेसु, एगे कूडाय गच्छई । न मे दिट्ठे परे लोए, चक्खुदिट्ठा इमा रई हत्थाया इमे कामा, कालिया जे अणागया । को जाणइ परे लोए, अस्थि वा नत्थि वा पुणो ।। ६ ।। जणेण सद्धिं होक्खामि इइ वाले पगब्भई । कामभोगाणुराएणं, केसं संपडिवज्जई ॥ ७ ॥ तओ से दण्डं समारभई, तसेसु थावरेसु य । अट्ठाए य अणट्टाए, भूयगामं विहिंसई ॥ ८ ॥ हिंसे वाले मुसावाई, माइल्ले पिसुणे सढे । भुंजमाणे सुरं मंसं, सेयमेयं ति मन्नई ॥ ९ ॥
॥
५ ॥
भिसं कूराइं कुव्वई ॥
२ ॥
३ ॥
४ ॥
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श्री उत्तराध्ययन सूत्र - पंचमाध्ययनम्
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१८ ॥
१९ ॥
कायसा वयसा मत्ते, वित्ते गिद्धे य इत्थिसु । दुइओ मलं संचिणइ, सिंमुणागु व्व मट्टियं तओ पुट्ठो आयंकेणं, गिलाणो परितप्यई । पमीओ परलोगस्स, कम्माणुप्पेहि अप्पणो सुया में नरए ठाणा, असीलाणं च जा गई । बालाणं कुरकम्माणं, पगाढा जत्थ वेयणा तत्थोवाइयं ठाणं, जहा मेयमणुस्सुयं । आहाकम्मेहिं गछन्तो, सो पच्छा परितप्पई जहा सागडिओ जाणं, समं हिच्चा महापहं । विसमं मग्गं ओइण्णो. अक्खे भग्गमि सोयई ॥ एवं धम्मं विउक्कम्मं, अहम्मं पडिवज्जिया । बाले मच्चुमुहं पत्ते, अक्खे भग्गे व सोयई तओ स मरणन्तम्मि, बाले संतसई भया । अकाममरणं मरई, धुत्ते व कलिणा जिए एयं अकाममरणं, बालाणं तु पवेइयं । एतो सकाममरणं, पण्डियाणं सुणेह मे मरणं पिसपुण्णाणं, जहा मेयमणुस्सुयं । विप्पसण्णमणाघायं, संजयाण वसीमओ ॥ इमं सव्वेसु भिक्खूसु, न इमं सव्वेसु गाविसु । नाणासीला अगारत्था, विसमसीला य भिक्खूणो ॥ सन्ति एहिं भिक्खूहिं, गारत्था संजमुत्तरा । गारत्थे हि य सव्वेहिं, साहवो संजमुत्तरा ॥ चीराजिणं नगिणिणं, जडी संघाडिमुण्डिणं । एयाणि वि न तायन्ति, दुस्सीलं परियागयं पिंडोल एव्ब दुस्सीले, नरगाओ न मुच्चई । भिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुव्वए कम्मई दिवं अगारसामाइयंगाणि, सड्डी काएण फासए । पोसहं दुहओ पक्खं, एगरायं न हावए एवं सिक्खासमावन्ने, गिहिवासे वि सुब्वए । मुच्चई छविपव्वाओ, गच्छे जक्खसलोगयं ॥ अह जे संबुडें भिक्खू, दोहं अन्नयरे सिया । सव्व दुक्खपहीणे वा, देवे वावि महिढी ॥ उत्तराई विमोहाई, जुईमन्ताणुपुव्वसो । समाइण्णाई जक्खेहिं, आवासाई असंसिणो ॥ दीहा इड्ढीमन्ता, समिद्धा कामरूविणो । अहुणोववन्नसंकासा, भुज्जो अचिमलिप्पभा ।। २७ ।। ताणि ठाणाणि गच्छन्ति, सिक्खित्ता संजमं तवं । भिक्खागे वा गिहित्थे वा, जे सन्ति पडिनिव्वुडा ||
२० ॥
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२३ ।।
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॥ २८ ॥
२९ ॥
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३० ॥
तेसिं सोचा सपुज्जाणं, संजयाण वुसीमओ । न संतसंति मरणंते, सीलवन्ता बहुस्सुया ॥ तुलिया विसेसमादाय, दयाधम्मस्स खन्तिए । विप्पसीएज्ज मेहावी, तहाभूएण अप्पणा तओ का अभिप्पे, सड्ढी तालिसमन्तिए । विणएज्ज लोमहरिसं, भेयं देहस्स कंखए ॥ अह कालम्मि संपत्ते, आघायाय समुस्सयं । सकाममरणं मरई, तिण्हमन्नयरं मुणी ॥ त्ति बेमि || इअ अकाममरणिजं पंचमं अज्झयणं समत्तं ॥ ५ ॥
३१ ॥
३२ ॥
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(७)
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२२ ॥
॥ अह खुड्डागनियंडिजं छहं अज्झयणं ॥
जावन्तविज्जापुरिसा, सच्वे ते दुक्खसंभवा । लुप्पन्ति बहुसो मूढा, संसारम्मि अणन्त ॥ १ ॥ समिक्ख पण्डए तम्हा, पासजाई पहे बहू । अप्पणा सच्चमेसेज्जा, मेत्तिं भूएमु कप्पए ॥ २ ॥ माया पियान्डुसा भाया, भज्जा पुत्ता य ओरसा । नालं ते मम ताणाए, लुप्पंतस्स सकम्मुणा || ३ || एयमङ्कं सपेहाए, पासे समियदंसणे । छिन्द गेद्धिं सिणेहं च न कंखे पुव्वसंधुयं ॥ ४ ॥ गवासं मणिकुण्डलं, पसवो दासपोरुसं सव्वमेयं चइत्ताणं कामख्वी भविस्ससि ॥ ५॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला अज्झत्थं सबओ सव्वं, दिस्स पाणे पियायए। न हणे पाणिणो पाणे, भयवेराओ उवरए ॥ ६ ॥ आदाणं नरयं दिस्स, नायएज्ज तणामवि । दोगुञ्छी अप्पणो पाए, दिन्नं भुंजेज भोयणं ॥७॥ इहमेगे उ मन्नन्ति, अपच्चक्खाय पावगं । आयरियं विदित्ताणं, सव्वदुक्खाण मुच्चए ॥८॥ भणंता अकरेन्ता य, बन्धमोक्खपइण्णिणो। वायाविरियमेत्तेण, समासासेन्ति अप्पयं ॥ ९ ॥ न चित्तातायए भासा, कुओ विजाणुसासणं । विसन्ना पावकम्मेहि, बाला पंडियमाणिणो ॥ १० ॥ जे केइ सरीरे सत्ता, वण्णे रुवे य सव्वसो। मणसा कायवक्केणं, सव्वे ते दुक्खसम्भवा ॥ ११ ॥ आवन्ना दीहमद्धाणं, संसारम्मि अणन्तए । तम्हा सव्वदिसं पस्सं, अप्पमत्तो परिव्वए ॥ १२ ॥ बहिया उड्ढमादाय, नावकंखे कयाइ वि। पुव्वकम्मक्खयट्ठाए, इमं देहं समुद्धरे ॥ १३ ॥ विविच्च मम्मुणो हेउं, कालकंखी परिव्वए। मायं पिंडस्स पाणस्स, कडं लभ्रूण भक्खए ॥ १४ ॥ सन्निहिं च न कुव्वेजा, लेवमायए संजए । पक्खीपत्तं समादाय, निखक्खो परिव्वए ॥ १५॥ एसणासमिओ लज्जू, गामे अणियओ चरे । अप्पमत्तो पमत्तेहिं, पिण्डवायं गवेसए ॥ १६ ॥ एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदंसणधरे अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियालिए
इअ खुड्डागनियंठिजं छर्ट अज्झयणं समत्तं ॥ ६ ॥
॥ अह एलयं सत्तमं अज्झयणं ॥ जहाएसं समुद्दिस्स, कोइ पोसेज एलयं । ओयणं जवसं देजा, पोसेज्जावि सयङ्गणे ॥ १ ॥ सओ से पुढे परिवूढे, जायमेए महोदरे । पीणिए विउले देहे, आएसं परिक्खए ॥ २ ॥ जाव. न एइ आएसे, ताव जीवइ सो दुही । अह पतम्मि आएसे, सीसं छेत्तूण भुजई ॥ ३ ॥ जहा से खलु उरम्भे, आएसाए समीहिए। एवं बाले अहम्मिटे, ईहई नरयाउयं ॥ ४ ॥ हिंसे बाले मुसावाई, अद्धाणसि विलोकए । अन्नदत्तहरे तेणे, माई कं नु हरे सढे ॥५॥ :: इत्थीविसयगिद्धे य, महारंभपरिग्गहे । भुंजमाणे सुरं मंसं, परिवूढे परंदमे ॥६॥ . अयकक्करभोई य, तुंडिल्ले चियलोहिए। आउयं नरए कंखे, जहाए व एलए ॥ ७ ॥
आसणं सयणं जाणं, वित्तं कामे य भुजिया। दुस्साहडं धणं हिच्चा, बहं संचिणिया रयं ॥८॥ तओ कम्मगुरू जंतू, पच्चुप्पन्नपरायणे । अए व्य आगयाएसे, मरणंतम्मि सोयई ।। ९ ।। तओ आउपरिक्खीणे, चुया देहा विहिंसगा। आसुरीयं दिसं बाला, गच्छन्ति अवसा तमं ॥ १० ॥ जहा कागिणिए हेउं, सहस्सं हारए नरो । अपच्छं अम्बगं भोच्चा, राया रज्जं तु हारए ॥ ११ ॥ एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण अन्तिए । सहस्सगुणिया भुज्जो, आउं कामा य दिब्विया ॥ १२ ॥ अणेगवासानउया, जा सा पन्नवओ ठिई । जाणि जीयन्ति दुम्मेहा, ऊणवाससयाउए ॥ १३ ॥ जहा य तिन्निवाणिया, मूलं घेत्तूण निग्गया। एगोऽत्थ लहई लाभं एगो मूलेण आगओ ॥ १४ ॥ एगो मूलं पि हारित्ता, आगओ तत्थ वाणिओ। ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मे वियाणह ॥ १५ ॥ माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं नरगतिरिक्खत्तणं धुवं ॥ १६॥ दुहओ गई बालस्स, आवई वहमूलिया । देवत्तं माणुसत्तं च, जं जिए लोलयासढे ॥ १७ ॥
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ध्ययनसूत्र-सप्तमाध्ययनम्
तओ जिए सई होइ, दुविहं दोग्गइं गए। दुल्लहा तस्स उम्मग्गा, अदाए मुइरादवि ॥ १८॥ एवं जियं सपेहाए, तुल्लिया बालं च पण्डियं । मूलियं ते पवेसन्ति, माणुसिं जोणिमेन्ति जे ॥१९॥ वेमायाहिं सिक्खाहिं, जे नरा गिहिसुव्वया। उवेन्ति माणुसं जोणिं, कम्मसच्चा हु पाणिणो ॥२०॥ जेसिं तु विउला सिक्खा, मूलियं ते अइच्छिया। सीलवन्ता सवीसेसा, अदीणा जन्ति देवयं ॥ २१ ॥ एवमद्दीण भिक्खु, आगारिं च वियाणिया। कहण्णु जिच्चमेलिक्खं, जिच्चमाणे न संविदे ॥ २२॥ जहा कुसग्गे उदगं, समुद्देण समं मिणे । एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण अंतिए ॥ २३ ॥ कुसग्गमेत्ता इमे कामा, सन्निरुद्धम्मि आउए। कस्स हेउं पुराकाउं, जोगक्खेमं न संविदे ॥ २४ ॥ इह कामाणियहस्स, अत्तद्वै अवरज्झई । सोचा नेयाउयं मग्गं, जं भुज्जो परिभस्सई ॥ २५ ॥ इह कामणियहस्स, अत्तढे नावरज्झई । पूइदेहनिरोहेणं, भवे देवि त्ति मे सुयं ॥ २६ ॥ इड्ढी जुई जस्सो वण्णो, आउं सुहमणुत्तरं । भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु, तत्थ से उववजई ॥ २७ ॥ बालस्स पस्स बालत्तं, अहम्मं पडिवजिया। चिच्चा धम्मं अहम्मिटे, नरए उववबई ॥ २८॥ धीरस्स पस्स धीरत्तं सच्चधमाणुवत्तिणो । चिच्चा अधम्मं धम्मिटे, देवेसु उववजई ॥ २९ ॥ तुलियाण बालभावं, अबालं चेव पंडिए । चइऊण बालभावं, अबालं सेवई मुणि ॥ ३०॥
त्ति बेमि ॥ इअ एलय-ज्झयणं समत्तं ॥ ७॥
॥ अह काविलियं अहमं अज्झयणं ॥ अधुवे असासयम्मि, संसारम्मि दुक्खपउराए । किं नाम होज्जतं कम्मयं, जेणाहं दोग्गइं न गच्छेना ॥१॥ विजहित्तु पुव्वसंजोयं, न सिणेहं कहिंचि कुव्वेजा। असिणेहसिणेहकरेहिं, दोसपओसेहि मुच्चए भिक्खू ॥ २॥ तो नाणदंसणसमग्गो, हियनिस्सेसाय सव्वजीवाणं ।। तेसिं विमोक्खणटाए, भासई मुणिवरो विगयमोहो ॥ ३ ॥ सव्वं गंथं कलहं च, विप्पजहे तहाविहं भिक्खू । सव्वेसु कामजाएसु, पासमाणो न लिप्पई ताई ॥४॥ भोगामिसदोसविसन्ने, हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थे । बाले य मन्दिए मूढे, बज्झई मच्छिया व खेलम्मि ॥५॥ दुप्परिचया इमे कामा, नो सुजहा अधीरपुरीसेहिं । अह सन्ति सुव्वया साहू, जे तरन्ति अतरं वणिया वा ॥ ६ ॥ समणामु एगे वयमाणा, पाणवहं मिया अयाणन्ता ।। मन्दा निरयं गच्छन्ति, बाला पावियाहिं दिट्ठीहिं ॥७॥ न हु पाणवहं अणुजाणे, मुच्चेज कयाइ सव्वदुक्खाणं । एवारिएहिं अक्खायं, जेहिं इमो साधुधम्मो पन्नत्तो ॥ ८॥
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(१०)
श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला
१० ॥
पाणे य नाइवाज्जा, से समीइ ति बुचई ताई । तओ से पावयं कम्मं, निज्वाइ उदगं व थलाओ ॥ ९ ॥ जमनिस्सिएहिं भूएहिं, तसनामेहिं थावरेहिं च । नो सिमार मे दंडं, मणसा वायसा कायसा चैव ॥ सुद्धेसणाओ नच्चाणं, तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं । जाया घासमेसेज्जा, रसगिद्धे न सिया भिक्खा ॥ ११ ॥ पन्ताणि चेव सेवेज्जा, सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु वकसं पुलागं वा, जवणट्ठाए निवेस घुं ॥ १२ ॥ जे लक्खणं च सुविणं, अङ्गविज्जं च जे पउज्जन्ति । न हु ते समणा वृच्चन्ति एवं आयरिएहिं अक्खायं || १३ || जीवियं अणियमेत्ता, पभट्ठा समाहिजोएहिं ।
निट्ठियं ॥ १७ ॥
ते कामभोगरसगिद्धा, उववज्जन्ति आसुरे का ॥ १४ ॥ तत्तो वि य उच्चट्टित्ता, संसारं बहु अणुपरियडन्ति । बहुकम्मले वलित्ताणं, बोही होइ सुदुल्लाहा तेसिं ॥। १५ ।। कसिपि जो इमं लोयं, पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से, इइ दुप्पूरए इमे आया ॥ १६ ॥ जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढई । दोमासकयं कज, कोडीए वि न नो रक्खसीसु गिज्झेज्जा, गंडवच्छासु ऽणेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता, खेल्लन्ति जहा व दासेहिं ।। १९ ।। नारीसु नोवगिज्झेज्जा, इत्थी विप्पजहे अणागारे | धम्मं च पेसलं नच्चा, तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं ।। १९ ॥ इअ एस धम्मे अक्खाए. कविलेणं च विसुद्ध नेणं । तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति, तेहिं आराहिया दुवे लोग ॥ २० ॥ तिमि ॥ इअ काविलीयं अट्ठमं अज्झयणं समत्तं ॥ ८ ॥
THORS
॥ अह न
नमपव्वज्जा अज्झयणं ॥
॥
॥
चइऊण देवलोगाओ, ववन्नो माणुसम्मि लोगम्मि । उवसन्तमोहणिज्जो, सरई पोराणियं जाई जाईं सरित्तु भयवं, सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं वेत्तु रज्जे, अभिणिक्खमई नमी राया से देवलोगसरिसे, अन्तेउरवरगओ वरे भोए । भुंजित्त नमी राया, बुद्धो भोगे परिच्चयई ॥ मिहिलं सपुरजणत्रयं, बलमारोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिखन्तो, एगन्तमहिड़ीओ भयवं ॥ ४ ॥ कोलाहलग सभूयं, आसी मिहिलाए पव्वयन्तम्मि। तया रावरिसिम्मि, नमिम्मि अमिणिक्खमंतम्मि | ५ |
३ ॥
१ ॥
२ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-नवमाध्ययनम्
(११) अन्भुट्ठियं रायरिसिं, पव्वज्जाठाणमुत्तमं । सक्को माहपरवेण, इमं वयणमब्बकी ॥ ६ ॥ किण्णु भो अन्न मिहिला, कोलाहलगसंकुला। सुन्वन्ति दारुणा सद्दा, पासाएमु गिहेसु य ॥७॥ एयमद्वं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ८॥ मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे। पत्तपुप्फफलोवेए, बहूणं बहुगुणे सया ॥१॥ वाएण हीरमाणम्मि, चेइयम्मि मणोरमे। दुहिया असरणा अत्ता, एए कन्दन्ति भो खगा ॥ १० ॥ एयमद्वं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ११ ॥ एस अग्गी य वाऊ य, एवं डज्झइ मन्दिरं। भयवं अन्तेउरं तेणं, कीस णं नावपेक्खह ।। १२ ॥ एयमद्वं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ १३ ॥ सुहं वसामो जीवामो, जेसि मोनत्थि किंचण । मिहिलाए डज्झइमाणीए, न मे डज्झइ किंचण ॥ १४ ॥ चत्तपुत्तकलत्तस्स, निव्वावारस्स भिक्खूणो। पियं न विजई किंचि, अप्पियं पि न विजई ॥ १५॥ बहुं खु मुणिणो भई, अणगारस्स भिक्खूणो । सव्वओ विप्पमुक्कस्स, एगन्तमणुपसओ ॥ १६ ॥ एयमहूँ निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्यवी ॥१७॥ पागारं कारइत्ताणं, गोपुरट्टालगाणि च । उस्सूलगसयग्घीओ, तओ गच्छसि खतिया ॥ १८॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ १९॥ सद्धं नगरं किच्चा, तवसंवरमग्गलं । खन्ति निउणपागारं, तीगुत्तं दुप्पधंसयं ॥ २० ॥ धणुं परक्कम किच्चा, जीवं च इरियं सया। घिई च केयणं किच्चा, सच्चेण पलिमन्थए ॥ २१ ॥ तवनारायजुत्तेण, मित्तूणं कम्मकंचुयं । मुणी विजयसंगामो, भावाओ परिमुच्चए ॥ २२ ॥ एयमढे निसामित्ता. हेऊकारणचोइओ। तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणभब्बवी ॥ २३ ॥ पासाए कारइत्ताणं, बद्धमाणगिहाणि य । बालग्गपोइयाओ य, तओ गच्छसि खत्तिया ॥ २४ ॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ २५ ॥ संसयं खलु सो कुणई, जो मग्गे कुणई घरं। जत्थेव गन्तुमिच्छेज्जा, तत्थ कुवेज सासयं ॥ २६॥ एयमहुँ निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बबी ॥ २७ ॥ आमोसे लोमहारे य, गंटिमेए य तकरे । नगरस्स खेमं काऊणं, तओ गच्छसि खत्तिया ॥ २८ ॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ २९॥ असई तु मणुस्सेहि, मिच्छा दंडो पजुञ्जई । अकारिणोऽत्थ वज्झन्ति, मुच्चई कारओ जणो ॥ ३०॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नर्मि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ३१ ॥ जे केइ पत्थिवा तुझं, नानमन्ति नराहिवा। वसे ते ठावइत्तागं, तओ गच्छसि खत्तिया ॥ ३२ ॥ एयमद्वं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी, देविंदो इणमब्बवी ॥ ३३ ॥ जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुजए जिणे । एगं जिणेज अप्पाणं, एस से परमो जओ ॥ ३४ ॥ अप्पणामेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ। अप्पणामेवमप्पाणं, जइत्ता सुहमेहए ॥ ३५ ॥ पंचिन्दियाणि कोहं, माणं मायं तहेव लोहं च। दुजयं चेव अप्पाणं,सव्वं अप्पे जिए जिय ॥ ३६ ॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ३७॥ जइत्ता विउले जन्ने,भोइत्ता समणमाहणे। दत्ता भोचाय जिट्ठा य, तओ गच्छसि खत्तिया ।। ३८ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
एयमद्वं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ३९ ॥ जो सहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवं दए । तस्स वि संजमो सेओ, अदिन्तस्स वि किंचण ॥ ४० ॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥४१॥ घोरासमं चइत्ताणं, अन्नं पत्थेसि आसमं । इहेव पोसहरओ, भवाहिवा मणुयाहिवा ॥ ४२ ।। एयमद्वं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ४३ ॥ मासे मासे तु जो बालो, कुसग्गेण तु भुंजए।न सो सक्खायधम्मस्त, कलं अग्घइ सोलसिं ॥ ४४ ॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ, तओ नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ४५ ॥ हिरणं सुवणं मणिमुत्तं, कंसं दूसं च वाहणं। कोसं वड्डावइत्ताणं, तओ गच्छसि खत्तिया ॥ ४६ ॥ एयमदं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी ॥ ४७ ॥
सुवण्णरुपस्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया।
नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि, इच्छा उ आगाससमा अणन्तिया ॥ ॥४८॥ पुढवी साली जवा चेव, हिरणं पसुभिस्सह । पडिपुण्णं नालमेगस्स, इइ विज्जा तवं चरे ।। ४९॥ एयमदं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ५० ॥ अच्छेरयमन्भुए, भोए चयसि पत्थिवा । असन्ते कामे पत्थेसि, सकप्पेण विहम्मसि ॥५१॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ५२ ।। सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसोविसोवमा । कामे पत्थेमाणा, अकामा जन्ति दोग्गइं ॥ ५३ ॥ अहे वयन्ति कोहेणं, माणेणं अहमा गई । माया गई पडिग्घाओ, लोभाओ दुहओ भयं ॥ ५४॥ अवज्झिऊण माहणरूवं, विउव्विऊण इन्दत्तं। बन्दइ अभित्थुणन्तो, इमाहि महुराहिं वग्गूहि ॥ ५५॥ अहो ते निजिओकोहो, अहो माणो पराजिओ। अहो निरकिया माया, अहो लोभो वसीकओ॥५६॥ अहो ते अन्जवं साहु, अहो ते साहु मद्दवं । अहो ते उत्तमा खन्ती, अहो ते मुत्ति उत्तमा ॥ ५७ ॥ इहं सि उत्तमो भन्ते, पच्छा होहिसि उत्तमो । लोगुत्तमुत्तमं ठाणं, सिद्धिं गच्छसि नीरओ ॥ ५८ ॥ एवं अभित्थुणन्तो, रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए। पयाहिणं करेन्तो, पुणो पुणो बन्दई सक्को ॥५९ ॥ तो वन्दिऊण पाए, चकंकुसलक्खणे मुणिवरस्स। आगासेणुप्पइओ, ललियचलकुंडलतिरीडी ॥ ६ ॥ नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं च वेदेही, सामण्णे पज्जुवडिओ ॥ ६१ ॥ एवं करेन्ति संबुद्धा, पंडिया पवियक्खणा । विणियट्टन्ति भोगेसु, जहा से नमी रायरिसि ॥ २॥
त्ति बेमि ॥ इअ नमिपव्वजा ममत्ता ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-दसमाध्ययनम्
॥ अह दुमपत्तयं दसमं अज्झयणं॥
दुमपत्तए पंडुयए जहा, निवडइ राइगणाण अच्चए । एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम मा पमायए ॥१॥ कुसग्गे जह ओसविन्दुए, थोवं चिट्ठइ लम्बमाणए । एवं मणुयाण जीवियं, समय गोयम मा पमायए ॥२॥ इइ इत्तरियम्मि आउए, जीवियए बहुपञ्चवायए । विहुणाहि रयं पुरे कडं, समयं गोयम मा पमायए ॥ ३॥ दुल्लहे खलु माणुसे भवे, चिरकाले वि सव्वपाणिणं । गाढा य विवाग कम्मुणो, समयं गोयम मा पमायए ॥ ४॥ पुढविकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं, समयं गोयम मा पमायए ॥ ५ ॥ आउक्काय मइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं, समयं गोयम मा पमायए ।। ६ । तेउकायमइगओ, उक्कोसं जीवो य संवसे । कालं संखाईयं समय गोयम मा पमायए ।। ७ ।। वाउक्काइयमइगओ, उक्कोसं जीवो य संवसे । कालं संखाईयं, समयं गोयम मा पमायए ॥ ८ ॥ वणस्सइकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालमणन्तदुरन्तयं समयं गोयम मा पमायए ॥९॥ बेइन्दियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं. संखिज्जसन्नियं, समयं गोयम मा पमायए ॥ १०॥ तेइन्दिकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसंनियं, समयं गोयम मा पमायए ॥ ११ ॥ चउरिन्दियकायमइगओ, उक्कोस जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसन्नियं, समयं गोयम मा पमायए ॥ १२ ॥ पंचिन्दियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । सत्तट्ठभवगहणे, समयं गोयम मा पमायए ॥ १३ ॥ देवे नेरइए यमइगओ. उक्कोसं जीवो उ संवसे । इकेकभवगहणे. समयं गोयम मा पमायए ।॥ १४ ॥ एवं भवसंसारे, संसरइ सुहासुहेहि कम्मेहिं । जीवो पमायबहुलो, समयं गोयम मा पमायए ॥ १५॥
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(१४)
श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला लद्धृण वि माणुसत्तणं, आरिअत्तं पुणरावि दुल्लहं । विगलिन्दियया हु दीसई, समयं गोयम मा पमायए ॥ १६ ॥ लघृण वि आयरित्तणं, अहीणपंचेन्दियया हु दुल्लहा । विगलिन्दियया हु दीसई, समयं गोयम मा एमायए ॥ १७ ॥ अहीणपंचेन्दियत्तं पि से लहे, उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा । कुतित्थिनिवेसए जणे, समयं गोयम मा पमायए ॥ १८ ॥ लघृण वि उत्तमं सुई, सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा । मिच्छत्तनिवेसए जणे, समयं गोयम मा पमायए ॥ १९ ॥ धम्मं पि हु सद्दहन्तया, दुल्लहया काएण फासया । इह कामगुणेहि मुच्छिया, समयं गोयम मा पमायए ॥ २० ॥ परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से सोयबले य हायई, समयं गोयम मा पमायए ॥ २१॥ परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से चक्खुबले य हायई, समयं गोयम मा पमायए ॥ २२ ॥ परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से घाणवले य हायई, समयं गोयम मा पमायए ॥ २३ ॥ परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से जिन्भबले य हायई, समयं गोयम मा पमायए ॥ २४ ॥ परिजूरह ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से फासबले य हायई, समयं गोयम मा पमायए ॥ २५ ॥ परिजूग्इ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से सव्वबले य हायई, समयं गोयम मा पमायए ॥ २६ ॥ अरई गण्डं विसूइया. आयंका विविहा फुसन्ति ते । विहडइ विद्धंसइ ते सरीरयं, समयं गोयम मा पमायए ॥ २७ ॥ वोच्छिन्द सिणेहमप्पणो, कुमुयं सारइयं व पाणियं । से सव्वसिणेहवजिए, समयं गोयम मा पमायए ॥ २८ ॥ चिच्चाण धणं च भारियं, पव्वइओ हि सि अणगारियं । मा वन्तं पुणो वि आइए, समयं गोयम मा पमायए ॥ २९ ॥ अवउज्झिय मित्तबन्धवं, विउलं चेव धणोहसंचयं । मा तं विउयं गवेसए, समयं गोयम मा पमायए ॥ ३० ॥ न हु जिणे अज दिस्सई, बहुमए दिस्सइ मग्गदेसिए । संपइ नेयाउए पहे, समयं गोयम मा पमायए ॥३१॥ अवसोहिय कण्टगा पहं, ओइण्णो सि पहं महालयं ।
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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र - दस माध्ययनम्
गच्छसि मग्गं विसोहिया, समयं गोयम मा पमायए ।। ३२ ।। अबले जह भारवाहए, मा मग्गे विसमे वगाहिया । पच्छा पच्छाणुतावए, समयं गोयम मा पमायए ॥ ३३ ॥ तिणो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ । अभितर पारं गमित्तए, समयं गोयम मा पमायए ॥ ३४ ॥ अकलेवरसेणिं उस्सिया, सिद्धिं गोयम लोयं गच्छसि ।
खेमं च सिवं अणुत्तरं, समयं गोयम मा पमायए ।। ३५ ।। बुद्धे परिनिबुडें चरे, गामगए नगरे व संजए । सन्तीमग्गं च वूहए, समयं गोयम मा पमाय || ३६ || बुद्धस्स निसम्म भासियं, सुकहिय मट्टपओवसोहियं । रागं दोसं च छिन्दिया, सिद्धिगई गए गोयमे ॥ ३७ ॥ त्ति बेमि || इअ दुमपत्तयं समत्तं ॥ १० ॥
(१५)
॥ अह बहुस्सुयपुज्जं एगारसं अज्झयणं ॥
१ ॥
संजोगा विष्पमुक्कस्म, अणगारस्स भिक्खुणो । आयारं पाउकरिस्सामि, आणुपुव्विं सुणेह मे ॥ जे यावि होइ निविज्जे, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे अभिक्खणं उल्लयई, अविणीए अबहुस्सु ॥ २ ॥ अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भई । थम्भा कोहा पमाएणं, रोगेणालस्सरण य ॥ ३ ॥ अह अट्ठहिं ठाणेहिं, सिक्खासीलि त्ति वुच्चई | अहस्सिरे सया दन्ते, न य मम्ममुदाहरे ॥ ४ ॥ नासीले न विसीले. न सिया अइलोलुए । अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीलि ति बुच्चई ॥ ५ ॥ अह चोइसहि ठाणेहिं, वट्टमाणे उ संजए । अविणीए वुच्चई सो उ, निव्वाणं च न गच्छइ ॥ ६ ॥ अभिक्खणं कोही हवड़, पबन्धं च पकुब्बई । मेचिज्जमाणो वमइ, सुयं लद्धूणमज्जई ॥ ७ ॥ अवि पावपरिक्खेवी, अवि मिनेसु कुप्पई । सुप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे भासः पावयं ॥ ८ ॥ पइण्णवाई दुहिले, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे । असंविभागी अवियत्ते, अविणीए त्ति वुच्चई ॥ ९ ॥ अह पन्नरसहिं ठाणेहिं, सुविणीए त्ति वुच्चई । नीयावत्ती अचवले, अमाई अकुले ॥ १० अप्पं च अहिक्खिवई, पबन्धं च न कुब्बई । मेत्तिज्जमाणो भयई, सुयं लधुं न मज्जई ॥ नय पावपरिक्खेवी, न य मित्तसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भाई कलहडमरबज्जिए बुद्धे अभिजाइए । हिरिमं पडिसंलीणे, सुविणीए त्ति वुच्चई वसे गुरुकुले निश्च्चं, जोगवं उवहाणवं । पियंकरे पियंवाई, से सिक्खं लधुमरिहई ॥ जहा संखम्मि पयं, निहियं दुहओ वि विरायइ । एवं बहुस्सुए भिक्खू, धम्मो कित्ती तहा सुयं ॥ १५ ॥ जहा से कम्बोयाणं, आइण्णे कन्थए सिया । आसे जवेण' पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए || १६ || जहा इण्णसमारूढे, सूरे दृढपरकमे । उभओ नन्दिघोसेणं, एवं हवइ बहुस्सु ॥ १७ ॥ जहा करेणुपरिकिण्णे, कुंजरे सहिहायणे । बलवन्ते अप्पडिहए, एवं हवइ १८ ॥
११ ॥
॥
१२ ॥
॥
१३ ॥
१४ ॥
बहुस्सु ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला. जहा से क्खिसिंगे, जायखन्धे विरायई । वसई जूहाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १९ ॥ जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए । सीहे. मियाण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २० ॥ जहा से वासुदेवे, संखचक्कगयाधरे । अप्पडिहयबले जोहे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २१ ॥ जहा से चाउरन्ते, चक्कवट्टीमहिड्डिए । चोद्दसरयणाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ।। २२ ॥ जहा से सहारसक्खे, वजपाणी पुरन्दरे । सके देवाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २३ ॥ जहा से तिमिरविद्धंसे, उचिट्ठन्ते दिवायरे । जलन्त इव तेएण, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २४ ॥ जहा से उडुवई चन्दे, नक्वत्तपरिवारिए । पडिपुण्णे पुण्णमासीए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २५ ॥ जहा से समाइयाणं, कोट्ठागारे सुरक्खिए । नाणाधनपडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २६ ॥ जहा सा दुमाण पवरा, जम्बू नाम सुदंसणा । अणाढियस्स देवस्स, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २७ ॥ जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा । सीया नीलवन्तपवहा, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २८ ॥ जहा से नगाण पवरे, सुमहं मन्दरे गिरी । नाणोसहिपज लिए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २९ ॥ जहा से सयंभुरमणे, उदही अक्खओदए । नाणारयणपडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ ३० ॥
समुद्दगम्भीरसमा दुरासया, अचकिया केणइ दुप्पहंसया । मुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो, खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया
॥३१॥ तम्हा सुयमहिडिजा, उत्तमट्ठगवेसए। जेणप्पाणं परं चेव, सिद्धिं संपाउणेज्जासि ॥ ३२ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ बहुस्सुयपुजं समत्तं ॥ ११ ॥
॥ अह हरिएसिज्जं बारहं अज्झयणं ॥ सोवागकुलसंभूओ, गुणुत्तरधरो मुणी, हरिएसबलो नाम, आसि भिक्खू जिइन्दिओ ॥ १ ॥ इरिएसणभासाए, उच्चारसमिईसु य । जओ आयाणनिक्खेवे, संजओ मुसमाहिओ ॥ २ ॥ मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइन्दिओ । भिक्खट्ठा बम्भइ जम्मि, जन्नवाडे उवढिओ ॥ ३ ॥ तं पासिऊणं एजन्तं. तवेण परिसोसियं । पन्तोवहिउवगरणं, उवहसन्ति अणारिया ॥ ४ ॥ जाईमयपडिथद्धा, हिंसगा अजिइन्दिया । अबम्भचारिणो बाला, इमं वयणमब्बवी ॥ ५ ॥
कयरे आगछइ दित्तरूवे, काले विगराले फोकनासे ।
ओमचेलए पंसुपिसायभूए. संकरदूसं परिवरिय कण्ठे ॥ ६॥ को रे तुम इय अदंसणिजे, काए व आसाइहमागओसि । ओमचेलया पंसुपिसायभूया, गच्छक्खलाहि किमिहिं ठिओ सि ॥ ७॥ जक्खेतहिं तिन्दुयरुक्खचासी, अणुकम्पओ तस्स महामुणिस्स । पच्छायइत्ता नियगं सरीरं, इमाई वयणाइमुदाहरित्था ॥ ८ ॥ समणो अहं संजओ, बम्भयारी, विरओ धणपयणपरिग्गहाओ। परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले, अन्नस्स अट्ठा इहमागओमि ॥ ९॥ वियरिनइ खजइ भुजई, अन्नं पभूयं भवयाणमेयं ।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र - द्वादशमाध्ययनम्
. जाणेह मे जायणजीविणु नि, सेसावसेसं लभऊ एवस्सी ॥ १० ॥ उक्खड भोयण माहणाणं, अत्तट्ठियं सिद्धमिहेगपक्खं । नऊ वयं एरिसमन्नपाणं, दाहामु तुज्झ किमिहं ठिओ सि ॥ ११ ॥ थले वीयाइ ववन्ति कासगा, तदेव निन्ने सु य आससाए । एयाए सद्धाए दलाह मज्झं, आराहए पुण्णमिणं खु खित्तं ।। १२ ।।
णि अहं वियाणि लोए, जहिं पकिण्णा विरुद्दन्ति पुण्णा । जे माहणा जाइ विज्जोववेया, ताई तु खेत्ताइ सुपेसलाई ॥ १३ ॥ कोहो य माणो य वहोय जेसिं, मोसं अदत्तं च परिग्गहं च । . ते माहणा जाइविज्जा बिहूणा, ताई तु खेताड़ सुपावयाई ॥ १४ ॥ तुमेत्थ भो मारधरा गिराणं, अटुं न जाणेह अहिज्ज वेए । Farari मुणिणो चरन्ति, साइं तु खेत्ताइ सुपेसलाई ॥ १५ ॥ अझायाणं पडिकूलमासी, पभाससे किं तु सगासि अम्हं । अवि एवं विणस्स अन्नपाणं, न य णं दाहामु तुमं नियण्ठा ॥ १६ ॥ समिईहि मज्झ, सुसमाहियस्स, गुत्तीहि गुत्तम्स जिइन्दियस्स । ज मे न दाहित्थ अस णिज्जं, किमज्ज जन्नाण लहित्थ लाहं ॥ १७ ॥ के एत्थ खत्ता उवजोइया वा, अज्झावया वां सह खण्डिएहिं । एयं दण्डेण फलपण हन्ता, कण्ठम्मि घेत्तूण खलेज्ज जो गं ॥ १८ ॥ अज्झायाणं वयणं सुणेत्ता, उद्धाइया तत्थ बहूकुमारा । दण्डेहि वित्नेहि कसेहि चेत्र, समागया तं इसि तालयन्ति ।। १९ ।। रनो तहिं कोसलियम्स धूया, भद्द त्ति नामेण अणिन्दियंगी । तं पासिया संजय हम्ममाणं, कुद्धे कुमारे परिनिव्वे ॥ २० ॥ देवाभिओगेण निओइएणं, दिन्ना मु रन्ना मणसा न भाया । नरिन्ददेविन्दभिवन्दिएणं, जेणम्हि वंता इसिणा स एसो ॥ २१ ॥
सो सो उम्मतवो महप्पा, जितिन्दिओ संजओ बम्भयारी । जो मे तथा नेच्छ दिज्जमाणिं, पिउणा सर्य कोस लिएण रन्ना ॥ २२ ॥ महाजसो एम महाणुभागो, घोरव्वओ घोरपर. मो य । मा एयं ही लेह अहील णिज्जं, मा सच्चे तेएण भे निद्दहेज्जा ॥ २३ ॥ एयाई तीसे वयणाइ सोच्चा, पत्तीइ भद्दाइ सुहासियाई । इसिस वेयावडिया, जक्खा कुमारे विणिवारयन्ति ॥ २४ ॥ ते घोररूवा ठिय अन्तलिक्खेऽसुरा तर्हि तं जण तालयन्ति । ते भिन्नदेहे रुहिरं वमन्ते, पासितु भद्दा इणमाहु भुज्जो ॥ २५ ॥ गिरिं नहिं खणह, अयं मन्तेहिं खायह । जायतेय पाएहि हणह,
जे भिक्खु अवमन्नह ॥ २६ ॥
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.श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
आसीविसो उग्गतवो महेसी, घोरव्वओ परक्कमो य । अगणिं व पक्खन्द पयंगसेणा, जे भिक्खुयं भत्तकाले वदेह ॥ २७ ॥ सीसेण एवं सरणं उवेह, समागया सव्वजणेण तुम्भे । जइ इच्छह जीवियं वाधणं वा, लोगपि एसो कुविओ डहेजा ॥ २८ ॥ अवहेडिय पिडिस उत्तमंगे, पसारिया बाहु अकमचेटे। निज्झेरियच्छे रुहिरं वमन्ते, उद्धंमुहे निग्गयजीहनेत्ते ॥ २९ ॥ ते पासियाखण्डियकट्ठभूए, विमणो विसण्णो अह माहणो सो । इसिं पसाएइ सभारियाओ, हीलं च निन्दं च खमाह भन्ते ।। ३०॥ बालेहि मूढेहि अयाणएहिं, जं हीलिया तस्स खमाह भन्ते । महप्पसाया इसिणो हवन्ति, न हु मुणी कोवपरा हवन्ति ॥ ३१ ॥ पुचि चइण्हि च अणागयं च, मणप्पदोसोन मे अत्थि कोइ । जक्खा हु वेयावडियं करेन्ति, तम्हा हु एए निहया कुमारा ॥ ३२ ॥ अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा, तुब्भंन वि कुप्पह भूइपन्ना। तुभं तु पाए सरणं उवेमो, समागया सव्वजणेण अम्हे ॥ ३३ ॥ अच्चेमु ते महाभाग, न ते किंचि न अच्चिमो। भुंजाहि सालिमं कूर, नाणावंजणसंजुयं ॥ ३४ ॥ इमं च मे अत्थि पभूयमन्नं, तं भुंजसू अम्ह अणुग्गहट्ठा। बाढं ति पडिच्छइ भत्तपाणं, मासस्स ऊ पारणए महप्पा ॥ ३५ ॥ तहियं गन्धोदयपुप्फवासं, दिव्या तर्हि वसुहारा य वुट्ठा । पहयाओ दुन्दुहीओ सुरेंहिं, आगासे जहो दाणं च घुटुं ॥ ३६ ।। सक्ख खु दीसइ तवोविसेसो. न दीसई जाइविसेस कोई । सोवागपुत्तं, हरिएससाहु, जस्सेरिसा इड्डि महाणुभागा ॥ ३७॥ किं माहणा जोइसमारभन्ता, उदएण सोहिं बहिया विमग्गह । जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं. न तं सुइट्टे कुसला वयन्ति ॥ ३८॥ कुसं च जूवं तणकट्ठमींग, सायं च पायं उदगं फुसन्ता। पाणाइ भूयाइ विहेडयन्ता, भुजो वि मन्दा पगरेह पावं ॥ ३९ ॥ कहं च रे भिक्खु वयं जयामो, पावाइ कम्माइ पुणोल्लयामो। अक्खाहि णे संजय जक्खपूड़या, कहं सुजहँ कुसला वयन्ति ॥ ४० ॥ छज्जीवकाए असमारभन्ता, मोसं अदत्तं च असेवमाणा । परिग्गरं इथिओ माणमायं, एयं परिन्नाय चरन्ति दन्ता ॥ ४१ ॥ सुसंवुडा पंचहिं संवरहि, इह जीवियं अणवकंखमाणा । वोसट्ठकाइ सुइचत्तदेहा, महाजयं जयइ जन्न सिटुं ॥ ४२ ॥ के ते जोई के व ते जोइठाणे, का ते सुया किं व ते कारिसंगं ।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-द्वादशमाध्ययनम्
एहा य ते कयरा सन्ति भिक्खू, कयरेण होमेण हुणासि जोइं ।। ४३॥ तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंग। कम्मेहा संजमजोगसन्ती, होमं हुणामि इसिणं पसत्थं ॥ ४४ ॥ के ते हरए के य ते सन्तितित्थे, कहिं सिणाओ व रयं जहासि। . आइक्ख णे संजय जक्खपूइया, इच्छामो नाउं भवओ सगासे ॥ ४५ ॥ धम्मे हरए बम्मे सन्तितित्थे, अणाविले अत्तपसनलेसे। जहिं सिणाओ विमलो विसुद्धो, मुसीइभूओ पजहामि दोसं ॥ ४६ ॥ एयं सिणाणं कुसलेहि दिवं, महासिणाणं इसिणं पसत्थं । जहि सिणाया विमला विसुद्धा, महारिसी उत्तमं ठाणं पत्त ॥ ४७ ।।
त्ति बेमि ॥ इअ हरिएसिज्जं समत्तं ॥ १२ ॥
॥ अह चित्तसम्भूइज तेरहमं अज्झयणं ॥ बाईपराजइओखलु, कासि नियाणं तु हत्थिणपुरम्मि। चुलणीए बम्भदत्तो, उववन्नो पउग्गुमाओ ॥१॥ कम्पिल्ले सम्भूओ, चित्तोपुण जाओ पुरमतालम्मि। सेटिकुलम्मि विसाले, धम्म सोऊण पव्वइओ॥२॥ कम्पिल्लम्मि य नय रे, समागया दो वि चित्तसम्भूया। सुहदुक्खफलविवागं,कहेन्ति ते एकमेकस्स ॥३॥ चक्कवट्टी महिडढीओ, बम्भदत्तो महायसो। भायरं बहुमाणेणं, इमं वयणमबब्बी ॥४॥ आसीम भायरो दोवि, अन्नमन्नवसाणुगा। अन्नमन्नमणूरत्ता, अन्नमन्नहिएसिणो ॥ ५ ॥ दासा दसण्णे आसीमु, मिया कालिंजरे नगे। हंसा मयंगतीरे, सोवागा कासिभूमिए ॥ ६ ॥ देवा य देवलोगम्मि, आसि अम्हे महिड्ढीया। इमा नो छट्ठिया जाई, अन्नमन्त्रेण जा विणा ॥ ७॥ कम्मा नियाणपयडा, तुमे राय विचिन्तिया । तेसिं फलविवागेण, विप्पओगमुवागया ॥ ८ ॥ सच्चसोयप्पंगडा, कम्मा मए पुरा कंडा। ते अज परिभुंजामो, किं तु चित्तेवि से तहा ॥९॥
सव्वं मुचिण्णं सफलं नराणं, कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि । अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहिं, आया ममं पुण्णफलोववेए ॥१०॥ जाणाहि संभूय महाणुभागं, महिड्ढीयं पुण्णफलोववेयं । चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं, इड्ढी जुई तस्स वियप्भूया ॥ ११ ॥ महत्थरूवा वयणप्पभूया, गाहाणुगीया नरसंघमज्झे । जं भिक्खुणो सीलगुणोववेया, इहं जयन्ते सुमणो मि जाओ ॥ १२ ॥ उच्चोयए महु कक्के य बम्मे, पवेइंया आवसहा य रम्मा । इमं गिहं चित्त धणभूयं, पंसाहि पंचालगुणोववेयं ॥ १३ ॥ नद्देहि गीएहि य वाइएहिं, नारीजणाहिं परियारयन्तो । भुंजाहि भोगाइ इमाइ भिक्खू, मम रोयई पध्वज हु दुख ॥ १४ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला.
तं पुन्चनेहेण फयाणुरागं, नराहिवं कामगुणेसु गिद्धं । धम्मस्सिओ तस्स हियाणुपेही, चित्तो इम वयणमुदाहरित्था ॥ १५॥ सव्वं बिलवियं गीयं, सव्वं नटुं विडम्बियं । सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा ॥ १६ ॥ बालाभिरामेमु दुहावहेसु, न तं सुहं कामगुणेसु रायं । विरत्तकामाण तवोहणाणं, जं मिक्खुणे सीलगुणे रयाणं ॥ १७ ॥ नरिंद जाई अहमा नराणं, सोयागजाई दुहओ गयाणं । जहिं वयं सव्यजणस्स, वेस्सा, वसी य सोवागनिवेसणेसु ॥ १८ ॥ तीसे य जाईइ उ पावियाए, वुच्छानु सोवागनिवेसणेसु । सव्वस्प लोगस्स दुगंछणिज्जा, इहं तु कम्माइ पुरे कडाइं ॥ १९ ॥ सो दाणि सिं राय महाणुभागो, महिड्ढी पुण्णफलोववेओ। चइत्तु भोगाइ असासयाई, आदाणहेउं अभिणिक्खमाहि ॥ २० ॥ इह जीविए राय असासयम्मि, धणियं तु पुण्णाइ अकुबमाणो । से सोयई मच्चुमुहोवणीए, धम्म अंकाऊण परंसि लोए ॥ २१ ॥ जह सीहो व मियं गहाय, मच्चू नरं नेइ हु अन्तकाले । न तस्स माया व पियाव भाया, कालम्मि तम्मंसहरा भवन्ति ।। २२ ॥ न तस्स दुक्खं विभयन्ति, नाइओ, न मित्तवग्गा न सुयान बंधवा । एक्को सयं पच्चणुहोइ दुक्खं, कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ॥ २३ ॥ चेचा दुपयं च चप्पयं च, खेत्तं गिहं धणधनं च सव्वं । सकम्मबीओ अवसो पयाइ, परं भवं सुंदर पावगं वा ॥ २४ ॥ तं एक तुच्छसरीरगं से, चिईगयं दहिय उ पावगेणं । मज्जा य पुत्तावि य नायओ य, दायरमन्नं अणुसंकमन्ति ॥ २५॥ उवणिजई जीवियमप्पमायं. वणं जरा हरइ नरस्स राय । पंचालराया वयणं सुणाहि, मा कासि कम्माइ महालयाई ॥ २६ ॥ अहं पि जाणामि जहेह साहू, जं मे तुमं साहमि वक्कमेयं । भोगा इमे संगकरा हवन्ति, जे दुजया अन्जो अम्हारिसेंहिं ॥ २७ ॥ हत्थिणपुरम्मि चित्ता, दट्टणं नरवई ‘महिड्ढीयं । कामभोगेसु गिद्धेणं, नियाणमसुहं कडं ॥ २८ ॥ तस्ल मे अपडिकन्तस्स, इमं एयारिसं फल । जाणमाणो वि जं धम्म, कामभोगेसु मुच्छिओ ॥ २९ ॥ नागो जहा पंकजलावसन्नो, दटु थलं नाभिसमेइ तीरं । एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, न भिक्खुणो मग्गमणुचयामो ॥ ३० ॥ अचेइ कालो तरन्ति राइओ, न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा ।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-त्रिंदशमध्ययनम् उविच्च भोगापुरिसं चयन्ति, दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ॥ ३१ ॥ जइ तं सि भोगे चइउं असत्तो, अञ्जाइ कमाइ करेहि रायं । . धम्मे ठिओ सवपयाणुकम्पी, तो होहिसि देवो इओ विउबी ॥ ३२ ॥ न तुज्झ भोगे चइऊण बुद्धी, गिद्धो सि आरम्भपरिग्गहेसु । मोहं कओ एत्तिउ विप्पलावु, गच्छामि रायं आनन्तिओसि ॥ ३३ ॥ पंचालराया वि य बम्भदृत्तो, साहुस्स तस्स वयणं अफाउं। अणुत्तरे भुंजिय कामभोमे, अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ॥३४॥ चित्तो वि कामेहि विरत्तकामो, अदग्गचारित्ततवो महेसी । अणुत्तरं संजमं पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गओ ॥ ३५ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ चित्तसम्भूइज्जं समत्तं ॥
॥ अह उसुयारिजं चोदहमं अज्झयणं ॥ देवा भवित्ताण पुरे भवम्मी, केई चुया एगविमाणवासी । पुरे पुराणे उसुयारनामे, खाए समिद्धे सुरलोगरम्मे ॥ १॥ सकम्मसेसेण पुराकएणं, कुलेसुदग्गेसु य ते पसूया। निविण्णसंसारभया जहाय, जिणिंदमग्गं सरणं पवना ॥२॥ पुमत्तमागम्म कुमार दो वी, पुरोहिओ तस्स जसा य पत्ती । विसालकित्ती य तहोसुयारो, रायत्थ देवी कमलावई य ॥३॥ जाईजरामच्चुभयाभिभूया, वहिविहाराभिनिविट्ठचित्ता । संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा, दतॄण ते कामगुणे विरत्ता ॥ ४ ॥ पियपुत्तगा दोन्नि वि माहणस्स, सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स । सरितु पोराणिय तत्थ जाई, तहा भुचिणं तवसंजमं च ॥५॥ ते कामभोगेसु असजमाणा, आणुस्सएमुंजे यावि दिव्वा । मोक्खामिकंखी अभिजायसड्ढा, तायं उवागम्म इमं उदाहु ॥ ६॥ असासयं दह्र इमं विहारं, बहुअन्तरायं न य हीयमाउं । तम्हा गिहिसि नरई लहामो, आमन्तयामो चरिस्सामु मोणं ॥७॥ अह तायगो तत्थ मुणीण तेसिं, तवस्स वाघायकरं वयासी । इमं वयं वेयविओ वयन्ति, जहा न होई असुयाण लोगो ॥ ८॥ अहिज्ज वेए परिविस्स विप्पे, पुत्ते परिदुप्प गिहंसि जाया। भोचाण भोए सह इत्थियाहिं, आरण्णगा होह मुणो पसत्था ॥९॥ सोयरिंगणा आयगुणिन्धणेणं, मोहाणिला पन्जलणाहिएणं ।। संतत्तभावं परितप्पमाणं, लालप्पमाणं बहुहा बहुं च ॥ १० ॥
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(२२)
श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला
१२ ॥
पुरोहियं तं कम सोऽणुणिन्तं निमंतयन्तं च सुए धणेणं । जहक्कमं कामगुणेहि चैत्र, कुमारगा ते पसंमिक्ख वकं ॥ ११ ॥ या अहीया न भवन्ति ताणं, भुत्ता दिया निन्ति तमं तमेणं । जाया य पुत्तान हवन्ति ताणं, को णाम ते अणुमनेज्ज एयं ॥ खणमेत्तसोक्खा बहुकाल दुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा | संसारमोक्खस्स विपक्खभ्रूया, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा || १३ || परिव्वयन्ते अणियत्तकामे, अहो य राओ परितप्यमाणे । अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे, पप्पोति मच्चुं पुरिसे जरं च ॥ १४ ॥ इमं च मे अस्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच्च इमं अकिचं । तं एवमेयं लालप्यमाणं, हरा हरंति त्ति कहं पमाए ॥ १५ ॥ धणं पभूयं सह इत्थियाहिं, सयणा तहा कायगुणा पगामा । तवं कए तप्प जस्स लोगो, तं सव साहीणमिमेव तुब्भं || १६ | धणेण किं धम्मधुराहिगारे, सयणेण वा कामगुणेहि चेत्र । समणा भविस्सा गुणोहधारी, कहिंविहारा अभिगम्म भिक्खं ।। १७ ।। जहा य अग्गी अरणी असन्तो, खीरे घयं तेल्लमहा तिलेसु । एमेव ताया सरीरंसि सत्ता, संमुच्छइ नासह नाव चिट्ठे ।। १८ ।। नो इन्दियग्गेज्झतमुत्तभावा, अमुत्तभावा वि य होइ निचो । अज्झत्थदेउं निययस्स बन्धो, संसारहेउं च वयन्ति बन्धं ॥ १९ ॥ जहा वयं धम्मं अजाणमाणा, पावं पुरा कम्ममकासि मोहा । ओलभमाणा परिरक्खयन्ता, तं नेव भुज्जो वि समायरामो || २० || अन्भाहयम्मि लोगम्मि, सव्वओ अमोहाहिं पडन्तीहिं, गिहंसि न केण अग्भाहओ लोगो, केण का वा अमोहा वृत्ता, जाया मच्चुणाsभाहओ लोगो, जराए अमोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय जा जा वच्चइ रयणी, न अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जा जा वच्चइ रयणी, न धम्मं च कुणमाणस्स, संफला एगओ संवसार्ण, दुओ सम्मत्त संजया ।
परिवारिए ।
रहूं लभे ।। २१ ॥ परिवारिओ ।
वा चिन्तावरो हुमे ॥ २२ ॥ परिवारिओ । विजाणह ॥ २३ ॥ सा पडिनियत्तई । जन्ति राइओ ॥ २४ ॥ सा पडिनियत्तई । जन्ति राइओ ।। २५ ।।
पच्छा जाया गमिस्सामो, जस्सत्थि मच्चुणा सक्खं,
भिक्खमाणा कुले कुले ।। २६ ।। जस्त चत्थि पलायणं ।
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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र - चोद माध्ययनम्
णो जाणे न मरिस्पामि, सो हु कंखे सुए सिया ॥। २७ ॥ अजे धम्मं पडिवज्जयामो, जहिं पवना न पुणन्भवामो । arrai नेव य अस्थि किंची, सद्धाखमं णे विणइत्तु रागं ॥ २८ ॥ पहीणपुत्तस्स हुनत्थि वासो, वासिट्ठि भिक्खा यरियाइ कालो । साहाहि रुक्खो लहई समाहिं, छिन्नाहि साहाहि तमेव ठां ॥ २९ ॥ पंखा विहूणो व्व जव पक्खी, भिचबिहूणो व्व रणे नरिन्दो | विबनसारो वणिओ व्व पोए, पहीणपुत्तो मि तहीं अपि ॥ ३० ॥ सुसंमिया कामगुणे इमे ते, संपिण्डिया अग्गरसप्पभूया 1 भुंजाता कामगुणे पगामं, पच्छा गमिस्सामु पहाणमग्गं ॥ ३१ ॥ रसा भइ जहाणे वओ. न जीविट्ठा पजहामि भोए । लाभं अलाभं च सुहं च दुक्खं, संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ॥ ३२ ॥ माहू तुमं सौयरियाग सम्भरे, जुणो व हंसो पडिसोत्तगामी ।
(२३)
हि भोगाइ म समाणं, दुक्खं खु भिक्खायरियाविहारो ॥ ३३ ॥ जहा य भोई तणुयं भुयंगो, निम्मोयणि हिच्च पलेइ मुत्तो । एमे जाया पइन्ति भोए, ते हं कहं नाणुगमिस्समेको ॥ ३४ ॥ छिन्दित्तु जालं अबलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाय । धोरेयसीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्खाचरियं चरन्ति ॥ ३५ ॥ नदेव कुंचा सयइकमन्ता, तयाणि जालाणि दलित हंसा । पन्ति पुत्ताय पई य मज्झं, ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्का ॥ ३६ ॥ पुरोहियं तं समुयं सदारं, सोच्चाऽभिनिक्खम्म पहाय भोए । कुडुम्बसारं विउलुत्तमं च, रायं, अभिक्खं समुदाय देवी || ३७ ॥ वन्तासी पुरिसो रायं, न सो होइ पर्ससिओ । माण परिचत्तं, धणं आदाउमिच्छसि ॥ ३८ ॥ सव्वं जगं जइ तुहं, सव्वं वावि धणं भवे । सव्वं पि ते अपज्जतं, नेव ताणाय तं तव ॥ ३९ ॥ मरिहिसि रायं जया तया वा, मणोरमे कामगुणे विहाय । एको हु धम्मो नरदेव ताणं, न विज्जई अन्नमिदेह किंचि ॥ ४० ॥ नाहं रमे पक्खिणि पंजरे वा, संताणछिन्ना चरिस्सामि मोणं । अकिंचना उज्जुकडा निरामिता, परिग्गहारम्भनियनदोसा ॥ ४१ ॥ दवग्गिणा जहा रणे, डज्झमाणेसु जन्तुसु । अन्ने सत्ता पमोयन्ति, रागद्दोसवसं गया || ४२ ॥ एवमेव वयं मूढा, कामभोगेसु मुच्छिया । उज्झमाणं न बुज्झामो, रागद्दोसग्गिणा जगं भोगे भोच्चा वमिता य, लहुभूयविहारिणो । आमोयमाणा गच्छन्ति, दिया कामकमा इव इमे यबद्धा फन्दन्ति मम हत्थज्ज मागया । वयं च सत्ता कामेसु, भविस्सामो जहा इमे
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४३
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४४ ॥
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४५ ॥
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(२४)
श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला.
४६ ॥
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४७ ॥
सामिसं कुललं दिस्स, बज्झमाणं निरामिसं । आमिसं सव्वमुज्झित्ता, विहरिस्सामि निरामिसा ॥ गिद्धोवमा उ नचाणं, कामे संसारवडणे । उरगो सुवण्णपासे व्व, संक्रमाणो तनुं चरे नागो व्व बन्धणं छित्ता, अप्पणो वसहिं वए । एयं पच्छं महारायं, उस्सुयारि त्ति मे सुयं ॥ ४८ ॥ चइत्ता विउलं रज्जं, कामभोगे य दुच्चए । निव्विसय निरामिसा, निन्नेहा निष्परिग्गहा ।। ४९ ।। धम्मं धम्मं वियाणित्ता, चेच्चा कामगुणे वरे । तवं पगिज्झहक्खायं, घोरं घोरपरक्कमा ।। ५० ।। एवं ते कमसो बुद्धा, सव्वे धम्मपरायणा । जम्ममच्चुभउव्विग्गा, दुक्खस्सन्तगवेसिणो ॥ ५१ ॥ सासणे विगयमोहाणं, पुवि भावणभाविया । अचिरेणेव कालेण, दुक्खस्सन्तमुवागया ॥ ५२ ॥ राया सह देवीए माहणो य पुरोहिओ । माहणी दारगा चैव सव्वे ते परिनिव्वुड ॥ ५३ ॥ त्ति बेमि ॥ इअ उयारिजं समत्तं ॥ १४ ॥
॥ अह सभिक्खू पंचदहं अज्झयणं ॥
मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्मं, सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने । संथवं अहिज्ज अकामकामे, अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू ॥ १ ॥ ओवरयं चरेज्ज लाढे, विरए वेयवियायरक्खिए ।
अभिभूय सव्वसी जे, कम्हिचि न मुच्छिए स भिक्खू ॥ २ ॥ अकोसवहं वित्तु धीरे, मुणी चरे लाढे निच्चमायभुते । अग्गमणे असंपट्ठेि, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ३ ॥ पन्तं सयगासणं भइत्ता, सीउन्हं विविहं च दंसमसगं । अवगमणे असंपहिट्टे, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ४ ॥ नो समिच्छई न पूयं, नो वि य वन्दणगं कुओ पसंसं । से संजए सुबए तवस्सी, सहिए आयगवेसए स भिक्खू ॥ ५ ॥ जेण पुण जहाइ जीवियं, मोहं वा कसिणं नियच्छई । नरनारिं पजहे सया तवस्सी, न य को ऊहलं उवेइ स भिक्खू ॥ ६ ॥ छिन्नं सरं भोमन्त लिक्खं, सुमिणं लक्खणदण्डवत्थुविज्जं । अंगवियारं सरस्स विजयं, जे विजाहिं न जीवइ स भिक्खू ॥ ७ ॥ मन्तं मूलं विविहं वेज्जचिन्तं वमणविरेयणधूमणेत्तसिणाणं । आउरे सरणं तिगिच्छियं च तं परिन्नाय परिवए स भिक्खू ॥ ८ ॥ खत्तियगणउग्गरायपुत्ता, माहणभोइय विविहा य सिप्पिणो । नो तेसिं वयइ सिलोगपूयं तं परित्राय परिव्वए स भिक्खू ॥ ९ ॥ गिहिणो जे पवइएण दिट्ठा, अप्पवइएण व संधुया हविजा । सिं इयलोइयफलट्ठा, जो संथवं न करेइ स भिक्खू ॥ सयणासणपाणभोयणं, विविहं खाइमसाइमं परेसिं ।
१० ॥
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(२५)
श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-पचदशमध्ययनम् अदए पडिसेहिए नियण्ठे, जे तत्थ न पउस्सई स भिक्खू ॥ ११ ॥ जं किंचि आहारपाणजायं, विविहं खाइमसाइमं परेसिं लध्धुं । जो तं तिविहेण नाणुकम्पे, मणवयकायसुसंवुडे स मिक्खु ॥ १२॥ आयामगं चेव जवोदणं च, सीयं सोवीरजवोदगं च । न हीलए पिण्डं नीरसंतु, पन्तकुलाई परिव्वए स भिक्खू ॥ १३ ॥ सद्दा विविहा भवन्ति लोए, दिवा माणुस्सगा तिरिच्छा । भीमा भयमेरवा उराला, सोचा न विहिजई स भिक्खू ॥ १४ ॥ वादं विविहं समिञ्च लोए, सहिए खेयाणुखए य कोवियप्पा । पन्ने अभिभूय सबदंसी, उवसन्ते अविहेडिए स भिक्खू ॥ १५ ॥ अविसप्पजीवी अगिहे अमित्ते, जिइन्दिए सबओ विप्पमुके। अणुकसाई लहुअप्पभक्खी, चेचा गिहं एगचरे स भिक्खू ॥ १६ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ सभिक्खुयं समत्तं ॥ १५ ॥
॥ अह बम्भचेरसमाहिठाणाणाम सोलसमं अज्झयणं ॥ सुयं मे आउसं-तेणं भगवया एवमक्खायं । इह खलु थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा' पबत्ता, जे भिक्खू सोचा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुनबम्भवारी सया अप्पमत्ते विहरेजा । कयरे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नचा, जे भिक्खू सोचा निसम्म संजमबहूले समाहिबहूले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेजा ॥ इमे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भचेरठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोचा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्तं गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेजा तंजहा विविचाई सयणासणाई सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे । नो इत्थीपसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवा से निग्गन्थे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थिपसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीलकालियं वा रोगायकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज । तम्हा नो इत्थिपसुपण्डगसंसत्ताइ सयणा पणाइं सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे ॥ १॥नो इत्थिणं कहं कहित्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स कम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लमेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा नो इत्थीणं कहं कहेजा ॥२॥ नो इत्थीणं सद्धिं सन्निसेजागए बिहरित्ता हवह से निग्गन्थे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेन्जागयस्सा बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा उम्मायं वा पाउणिजा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला -
नो निग्गंथे इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेन्जागए विहरेज्जा ॥ ३ ॥ नो इत्थीणं इन्दियाई मणोहराई मणोरमाई आलोइत्ता निज्झाइत्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं इन्दियाई मणोहराई मणोरमाई आलोएमाणस्स निज्झायमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेजा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे इत्थीणं इन्दियाइं मणोहराई मणोरमाइं आलोएन्ज निज्झाएजा ॥ ४ ॥ नो इत्थीण कुडुन्तरंसि वा दूसन्तरंसि वा भित्तन्तरंसि वा कूइयसदं वा रुझ्यसई वा गीयसई वा हसियसदं वा थणियसदं वा कन्दियसई वा विलवियसई वा सुणेत्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं कुडुन्तरंसि व दूसन्तरंसि वा भित्तन्तरंसि या कूड़यसदं वा रुइयसदं वा गीयसदं वा हसियसई वा थणियस वा कन्दिय सदं वा विलवियसई वा सुणेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेजा केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे इत्थीणं कुडुन्तरंसि वा दूसन्तरंसि वा भित्तन्तरंसि वा कूइयसदं वा रुइयसदं वा गीयसदं वा हसियसदं वा थणियसई वा कन्दियसदं वा विलवियसदं वा सुलेमाणे विहरेज्जा ॥५॥ नो निग्गन्थे पुश्वरयं पुत्वकीलियं अणुसरित्ता हवइ से निग्गन्थे तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु पुत्वरयं पुवकीलियं अणुसरमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा. दीड कालियं वा रोगायंक हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेजा । तम्हा खलु नो निग्गण्थे पुत्वरयं पुवकीलियं अणुसरेज्जा ॥ ६॥ नो पणीयं आहारं आहरित्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गन्थम्स खलु पणीयं आहारं आहारेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे पणीयं आहारं आहारेजा ।। ७ ।। नो अइमायाए पाणभोयणं आहारेत्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु अइमायाए पाणभोयणं आहारेमाणस्स बम्भयारिम्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिज्जा, भेदं वा ल भेजा, उम्मायं वा पाउणिजा, दीलकालियं वा रोगायंकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेजा। तम्हा खलु नो निग्गन्थे अइमायाए पाणभोयणं आहारेज्जा ।। ८ ।। नो विभूसाणुवादी हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे आयरियाह । विभूसावत्तिए विभूसियसरीरे इत्थिजणस्स अभिलसणिज्जे हवइ तओ णं इत्थिजणेणं अभिलसिज्जमाणस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिज्जा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालिय वा रोगायक हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेजा। तम्हो खलु नो निग्गन्थे विभूसाणुवादी हविजा ॥६॥ नो सद्दरूवरसगन्धफासाणुवादी हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निगन्थस्स खलु सदरूवगन्धफासाणुवादिस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा, उम्माय वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेजा, केव
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श्री उत्तराध्ययन सूत्र - सोलमाध्ययनम्
(२७)
लिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खउ नो सद्दरूवर सगन्धकासाणुवादी भवेज्जा से निग्गन्थे । दस बम्भरसमाहिठाणे हवइ ।। १० । भवन्ति इत्थ सिलोगा जहा -
४ ॥
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जं विवित्तमणाइणं, रहियं इत्थि जणेण य बम्भचेरस रक्खट्ठा, आलयं तु निवेस ॥ १ ॥ मणपल्हायजणणी, कामरागविवढणी । बम्भचेररओ भिक्खू, श्रीकहं तु विवज्जए || २ || समं च संथवं थीहिं, संकहं च अभिक्खणं । बम्भचेररओ भिक्खू, निच्चसो परिवज्जए ॥ ३ ॥ अंगपच्चंगसंठाणं, चारुल्लवियपेहियं । बम्भचेररओ थीणं, चक्खुगिज्झं विवज्जए ॥ कूड़यं रुइयं गीयं, हसियं थाणियकन्दियं । बम्भचेररओ थीणं, सोयगेज्झं विवज्जए ॥ हा कि रई दप्पं, सहसावित्तासियाणि य । बम्भचेररओ थीणं, नाणुचिन्ते कयाइ वि ॥ षणीयं भत्तपाणं तु, खिष्पं मयविवडणं । बम्भचेररओ भिक्खू, निच्चसो परिवज्जए ॥ ७ ॥ धम्मलद्धं मियं काले, जत्तत्थं पणिहाणवं । नाइमत्तं तु भुंजेजा, बम्भचेररओ सया ॥ ८ ॥ विभूसं परिवज्जेज्जा, सरीरपरिमण्डणं । बम्भचेररओ भिक्खु, सिंगारत्थं न धार ॥ ९ ॥ सद्दे रूवे य गन्धे य, रसे फासे तहेवय । पंचविहे कामगुणे, निच्चसो परिवज ॥ आओ थीजणाणो, थीकहा य मणोरमा । संथवो चेव नारीणं, तासिं इन्दियदरिणं कइयं रुइयं गीयं, हासभुत्तासियाणि य । पणीयं भत्तपाणं च अइमायं पाणभोयणं गत्तभूसणमिट्टं च, कामभोगा य दुज्जया । नरस्सत्तगवेसिस्स, बिसं तालउड जहा दुज्जए कामभोगे य, निच्चसो परिवज्जए । संकाथाणाणि सव्वाणि, वज्जेज्जा पणिहाणवं ॥ धम्मारामरते चरे भिक्खू, धिइमं धम्मसारही । धभ्मारामरते दन्ते, बम्मचेरसमाहिए || देवदानवगन्धवा, जक्खरक्खस किन्नरा । बम्भयारिं नमसन्ति, दुक्करं जे करन्ति तं ॥ स मे वे निचे, सासए जिण दे सिए । सिद्धा सिज्झन्ति चाणेण, सिज्झिस्सन्ति तहावरे ॥ त्ति बेमि || इअ बम्भचेरसमाहिठाणा समत्ता ॥ १६ ॥
१० ॥
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१५ ||
१६ ॥
१७ ॥
॥
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११ ॥
१२ ॥
१३ ॥
१४ ॥
॥ अह पावसमणिज्जं सत्तदहं अज्झयणं ॥ जे के उपइए नियण्ठे, धम्मं सुणित्ता विणओववन्ने । सुदुलहं लहिउं बोहिलाभं विहरेज्ज पच्छा य जहा सुहं तु ॥ १ ॥ जादा पाणम अत्थि, उप्पज्जई भोत्तु तहेब पाउं ।
३ ॥
४ ॥
जाणामि जं वट्टई आउत्ति, किं नाम कहामि सुएण भन्ते || २ || जे केई पचइए, निहामीले पगामसो । भोच्चा पेच्चा सुहं सुबह, पावसमणि त्ति बुच्चई ॥ आयरियउवज्झएहि, सुयं विणयं च गाहिए । ते चेव खिंसई बाले, पावसमणिति बुच्चई ॥ आयरियउवज्झायाणं, सम्मं न पडितप्पइ । अप्पडिपूयए थद्धे सम्ममाणो षाणाणि, वीयाणि हरियाणि य । असंजए संजयमन्नमाणीं, संथारं फलगं पीढं, निसेज्जं पायकम्बलं । अप्पमञ्जियमारुहइ, दबदवस्स चरई, पमत्ते य अभिक्खणं । उल्लंघणे य चण्डे य,
पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ ५ ॥ पावसमणि त्ति वुच्चई || ६ || पावसमणि त्ति बुञ्चई ॥ ७ ॥ पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ ८ ॥
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(२८)
श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला.
पडिलहेइ पमत्ते, पउज्झइ पायकम्बलं । पडिलेहा अणाउत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ ९ ॥ पडिलेहेइ पमत्ते, से किंचि हु निसामिया । गुरुपारिभावए निचं, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥१०॥ बहुमाई पमुहरे, थद्धे लुद्ध अणिग्गहे। असंविभागी अवियत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ ११ ॥ विवादं च डदीरेइ, अहम्मे अत्तपन्नहा । वुग्गहे कलहे रत्ते, पावसमणि त्ति वुचई ॥ १२ ॥ अथिरासणे कुकुइए, जत्थ तत्थ निसीयई । आसणम्मि अणाउत्ते, पावसमणि त्ति वुचई ॥ १३ ॥ तसक्खपाए सुवई, सेजं न पडिलेहइ । संथारए अणाउत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १४ ॥ दुद्धदहीविगईओ, आहारेइ अमिक्खणं । अरए य तवोकम्मे, पावसमणि ति वुच्चई ॥ १५ ॥ अत्यन्तम्मि य सूरम्मि. आहारेइ अभिक्खणं । चोइओ पडिचोएइ, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १६ ॥ आयरियपरिचाई, परपासण्डसेवए । गाणंगणिए दुब्भूए, पावसमणि ति वुच्चई ॥ १७ ॥ सय गेहं परिचज, परगहंसि वावरे । निमित्तेण य ववहरइ, पावसमणि त्ति वुचई ॥ १८ ॥ समाइ पिण्डं जेमेइ, नेच्छई सामुदाणिय । गिहिनिसेजं च वाहेइ, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १९ ॥
एयारिसे पंचकुसीलसुंवुडे, रूबंधरे मुणिपवराण हेडिमे । अयंसि लोए विसमेव गरहिए, न से इहं नेव परत्थ लोए ॥ २० ॥ जे वजए एए सया उ दोसे, से सुखए होइ मुणीण मज्झे । अयसि लोए अमय व पूइए, आराहए लोभिणं तहा परं ।। २१॥
॥ति बेमि ॥ इअ पावसमणिजं समतं ॥१७॥
॥ अह संजइज्जं अढारहमं अज्झयणं ॥ कम्पिल्ले नयरे राया, उदिण्णबलवाहणे । नामेणं संजए नाम, मिगवं उवणिग्गए ॥१॥ याणीए गयाणीए, रयाणीए तहेव य। पायताणीए महया, सबओ परिवारिए ॥२॥ मिए छुहिता हयगओ, कम्पिल्लुजाण केसरे । भीए सन्ते मिए तत्थ, वहेइ रसमुच्छिए ॥३॥ बह केसरम्मि उजाणे, अणगारे तवोधणे । सज्झायज्झाणसंजुत्ते, धम्मज्झाणं झियायइ ॥ ४ ॥ अफोवमण्डवम्मि, भायइ क्खवियासवे । तस्सागए मिगं पासं, वहेइ से नराहिवे ॥५॥ अह आसगओ राया, खिप्पमागम्म सो तहिं । हए मिए उ पासित्ता, अणगारं तत्थ पासई ॥ ६ ॥ अह राया तत्थ सम्भन्तो, अणगारो मणा हओ । मए उ मन्दपुण्गेणं, रसगिद्धण धन्नुगा ॥ ७ ॥ आसं विसज्जइत्ताणं, अणगारस्स सो निवो । विगएण वन्दए पाए. भगवं एत्थ मे खमे । ८॥ अह मोणेण सो भग्गवं, अणगारे झाणमस्सिए । रायाणं न पडिमन्तेइ, तओ राया भवदुओ॥९॥ संजओ आहमम्मीति, भगवं वाहराहि मे । कुद्ध तेएण अणगारे, डहेज नरकोडिओ ॥ १० ॥ अन्भओ पत्थिवा तुम्भं, अभयदाया भवाहि य । अणिचे जीवलोगम्मि, किं हिंसाए पसन्जसी ॥ ११॥ अया सवं परिचज, गन्तवमवसस्स ते । अणिच्चेजीवलोगम्मि, किं रजम्मि पसज्जसी ॥ १२ ॥ जीवियं चेव रूवं च, विज्जुसंपाय चंचलं । जत्थ तं मुज्झसी रायं पेच्चत्थं नावुबुज्झसे ॥१३॥ दाराणि य सुया चेव, मित्ता य तह बन्धवा । जीवन्तमणुजीवन्ति, मयं नाणुव्वयन्ति य ॥ १४ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-अट्ठदशमाध्ययनम्
(२९)
नीहरन्ति मयं पुत्ता, पितरं परमदुक्खिया । पितरो वि तहा पुत्ते, बन्धू रायं तवं चरे ॥ १५॥ तओ तेणज्जिए दवे, दारे य परिरक्खिए। कीलन्तिऽन्ने नरा रायं, हट्टतुट्ठमलंकिया ॥ १६ ॥ तेणावि जं कयं कम्मं, सुहं वा जइ वा दुहं । कम्मुणा तेण संजुत्तो, गच्छई उ परं भवं ॥ १७ ॥ सोजण तस्स सो धम्मं, अणगारस्स अन्तिए । महया संवेगनिवेदं, समावन्नो नराहिवो ॥ १८॥ संजओ चइउं रज्जं, निक्वन्तो जिणसासणे । गद्दभालिस्स भगवओ, अणगारस्म अन्तिए ॥ १९ ॥ चिच्चा ग्टुं पवइए, खत्तिए परिभासइ । जहा ते दीसई रूवं, पसनं ते महा मणो । २० ॥ किं नामे किं गोत्ते, कस्सट्ठाए व माहणे। कहं पडियरसी बुद्धे, कहं विणीए त्ति वुच्चसी ॥ २१ ॥ संजओ नाम नामेणं, तहा गोत्तेण गोयमो । गद्दभाली ममायरिया. विजाचरणपारगा ॥ २२ ॥ किरियं अकिरियं विणयं, णन्नाणं च महामुणी । एएहिं चउहि ठाणेहिं, मेयने किं पभासई ॥ २३ ॥ इइ पाउकरे बुद्धे, नायए परिणिव्वुए । विजाचरणसंपन्ने, सच्चे सच्चपरक्कमे ॥ २४ ॥ पडन्ति नरए घोरे, जे नरा पावकारिणो । दिवं च गई गच्छन्ति, चरित्ता धम्ममारियं ॥ २५ ॥ मायावुइयमेयं तु. मुसाभासा निरत्थिया । संजममाणो वि अहं, वसामि इरियामि य ॥ २६ ॥ सवेए विइय मज्झं, मिच्छादिट्ठी अणारिया। विजमाणे परे लोए, सम्मं जाणामि अप्पगं ॥ २७ ॥ अहसासि महापाणे, जुइमं वरिससओवमे । जा सा पालिमहापाली, दिवा वरिससओवमा ॥ २८ ।। से चुए बम्भलोगाओ, माणुस्सं भवमागए। अप्पणो य परेसिं च, आउं जाणे जहा तहा ॥ २९ ॥ नाणारुइं च छन्दं च, परिवजेज संजए । अणट्ठा जे य सबत्था, इयविजामणुसंचरे ॥ ३०॥ पडिकमामि पसिणार्ण, परमंतेहिं वा पुणो । अहो वट्ठिए अहोरायं, इइ विज्जा तवं चरे ॥ ३१॥ जं च मे पुच्छसी काले, समं सुद्धेण चेयसा । ताई पाउकरे बुद्धे तं नाणं जिणसासणे ।। ३२ ॥ किरियं च रोयई धीरे, अकिरियं परिवजए। दिट्ठीए दिट्ठीसम्पन्ने, धम्मं चरसु दुचरं ॥ ३३ ॥ एयं पुण्णपयं सोचा, अत्थधम्मोसोहियं । भरहो वि भारहं वासं, चेचा कामाइ पवए ॥ ३४ ॥ सगरो वि सागरन्तं, भरहवासं नराहिवो। इस्सरियं केवलं हिच्चा, दयाइ परिनिव्वुडे ।। ३५ ।। चइत्ता भारहं वासं, चकवट्टी महिड्डिओ। पवजमभुवगओ, मघवं नाम महाजसो ॥ ३६ ।। सणंकुमारो मणुस्सिन्दो, चक्कवट्टी महिड्डिओ । पुत्तं रज्जे ठवेऊणं, सो वि राया तवं चरे ॥ ३७ ॥ चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्डिओ। सन्ती सन्तिकरे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ३८ ॥ इक्खागरायवसभो, कुन्थू नाम नरिसरो। विक्खायकित्ती भगवं. पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ३९ ॥ सागरन्तं चइत्ताणं, भरहं नरवरीसरो। अरो य अरयं पत्तो, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४० ॥ चइत्ता भारहं वासं, चइत्ता बलवाहणं । चइत्ता उत्तमे भोए. महापरमे तवं चरे ॥ ४१ ।। एगच्छत्तं पसाहित्ता, महिं माणनिसूरणो । हरिसेणो मसुस्सिन्दो, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४२ ॥ अनिओ रायसहस्सेहिं. सुपरिच्चाई, दमं चरे। जयनामो जिणक्खायं, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४३ ।। दसण्णरजं मुदियं, चइत्ताणं मुणी चरे। दसण्णभद्दो निक्खन्तो, सक्खं सक्केण चोइओ ॥ ४४ ॥ नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वइदेही, सामण्णे पज्जुबडिओ ॥ ४५ ॥ करकण्डू कलिंगेसु, पंचालेसु य दुम्मुहो। नमी राया वीदेहेसु, गन्धारेसु य नग्गई ।। ४६ ॥ एए नरिन्दवसभा, निक्खन्ता जिणसासणे । पुत्ते रज्जे ठवेऊणं, सामण्णे पज्जुवट्ठिया ॥ ४७ ॥
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(३०)
श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला
५० ॥
५१ ॥
सोवीररायवसभो, चइताण मुणी चरे । उदायणो पवइओ, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४८ ॥ तदेव कासीराया, सेओसच परक्कमे । कामभोगे परिच्चज्ज, पहणे कम्ममहावणं ॥ ४९ ॥ तदेव विजओ राया, अणट्ठाकित्ति पवए । रज्जं तु गुणसमिद्धं, पयहित्तु महाजसो ॥ तहेवुग्गं तवं किच्चा, अवक्खित्तेण चेयसा । महब्बलो रायरिसी, आदाय सिरसा सिरिं ॥ कहं धीरो अहेऊहिं, उम्मत्तो व महिं चरे । एए विसेसमादाय, सूरा दढपरक्कमा ॥ अच्चन्तनियाणखमा, सच्चा मे भासिया वई । अतरिंसु तरन्तेगे, तरिस्सन्ति अणागया || कहिं धीरे अहेऊहिं अत्तणं परियावसे । सङ्घसंगविनिम्मुक्के, सिद्धे भवइ नीरए ॥ त्ति बेमि ॥ इअ संजइज्जं समत्तं ॥ १८ ॥
५२ ॥
५३ ॥
५४ ॥
॥ मियापुत्तीयं एगूणवीसइमं अज्झयणं ॥
३ ॥
सुग्गीवेनयरे रम्मे, काणणुज्जाण सोहिए । राया बलभद्दत्ति, मिया तस्सग्गमाहिसी ॥ १ ॥ तेसिं पुत्ते बलसिरी, मियापुत्ते ति विस्सुए । अम्मापिऊण दइए, जुवराया दमीसरे || २ | नन्दणे सो उपासाए, कीलए सह इत्थिहिं । देवोदोगुन्दगे चेव, निच्चं मुइयमाणसो ॥ मणिरयणकोहिमतले पासायालोयणडिओ | आलोएइ नगरस्स, चक्क त्तियचच्चरे ॥ ४ ॥ अह तत्थ अइच्छन्तं, पासई समणसंजयं । तत्रनियमसंजमधरं, सीलड्डुं गुणआगरं ।। ५ ।। तं हई मियापुते, दिट्ठीए अणिमिसाए उ । कहिं मन्ने रिसं रूवं, दिट्ठपुवं मए पुरा ।। ६ ।। साहुस्स दरिस तस्स, अज्झवसाणम्मि सोहणे । मोहं गयस्स सन्तस्स, जाईसरणं समुत्पन्नं || ७ || जाईसरणे समुपपन्ने, मियापुत्ते महिड्डिए । सरई पोराणियं जाई, सामण्णं च पुरा कयं ॥ ८ ॥ विसएहि अरज्जन्तो, रज्जन्तो, संजमम्मि य । अम्मापियरमुवागम्म, इमं वयणमब्बवी ॥ ९॥ सुयाणि मे पंच महव्वयाणि, नरएस दुक्खं च तिरिक्खजोणिसु ।
निविणकामो मि महण्णवाउ, अणुजाणह पवस्सामि अम्मो ॥ १० ॥
१२ ॥
॥
॥
अम्म ताय मए भोगा, भुत्ता विसफलोत्रमा । पच्छा कडुयविवागा, अणुबन्धदुहावहा ॥ ११ ॥ इमं सरीरं अणिचं, असुई असुइसंभवं । असासयावासमिण दुक्खकेसाण भायणं ॥ असासए सरीरम्मि, रई नोबलभामहं । पच्छा पुरा व चइयव्वे, फेणबुब्बुयसन्निभे ॥ माणुसते असारम्मि, वाहीरोगाण आलए । जरामरणवत्थम्मि, खर्णपि न रमामहं जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगाणि मरणाणि य । अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ की सन्ति जन्तवो खेत्तं वत्युं हिरणं च पुत्तदारं च बन्धवा । चत्ताणं हमं देहं गन्तवमवसस्स मे ॥ जह किम्पागफलाण, परिणामो न सुन्दरो । एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुन्दरो ॥ अद्धाणं जो महंतं तु, अप्पाहेओ पवई । गच्छन्तो सो दुही होइ, छुहातण्हाए पीडिओ || एवं धम्मं अकाऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो सो सुही होइ, वाहीरोगेहिं पीडिओ ॥ १९ ॥ अद्धाणं जो महंतं तु, सपाहेओ पवजई । गच्छन्तो सो सुही होइ, छुहातण्हाविवज्जिओ ॥ २० ॥
१८ ||
१३ ॥
१४ ॥
१५ ॥
१६ ॥
१७ ॥
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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र - सोलमाध्ययनम्
(३१)
धनव
३० ॥
एवं धम्मं पिकाऊ, जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो सो सुही होइ, अप्पकम्मे अवेयणे ॥ २१ ॥ जहा गेहे पलित्तम्मि, तस्स गेहस्स जो पहू : सारभण्डाणि नीणेइ, असारं अवउज्झ ।। २२ ।। एवं लोए पलित्तम्मि, जराए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्सामि, तुम्भेहिं अणुमनिओ ॥ २३ ॥ तं विन्तम्मापियरो, सामण्णं पुत्त दुच्चरं । गुणाणं तु सहस्साई, धारेयवाई भिक्खुणा ॥ २४ ॥ समया सबभूएसु, सत्तु मित्तेसु वा जगे । पाणाड़वायविरई, जावज्जीवाए दुक्करं ।। २५ ।। निच्चकालप्पमत्तेणं, मुसावायविवज्जणं । भासियन्वं हियं सच्चं निच्चाउत्तेण दुकरं ।। २६ ।। दन्त सोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवज्जणं । अणवज्जेसणिजस्स, गिहण्णा अवि विरई अबम्भचरस, कामभोगरन्नुणा । उग्गं महवयं बम्भं, धारेवं परिग्गहविवज्जणं । सवारम्भपरिच्चाओ, निम्ममत्तं विवि आहारे, राइभोयणवञ्जणा । सन्निहोसंचओ चेव, वज्जेयव्वो हा तहा य सीउन्हें समसंगवेयणा । अक्कोसा दुक्खसेज्जा य, तणफासा जलमेव य ॥ तालणा तज्जणा चेव, वहबन्धपरीसहा । दुक्खं भिक्खायरिया, जायणा य अलाभया ।। ३२ ।। कावोया जाइमा वित्ती, केसलोओ य दारुणो । दुक्खं बम्भवयं घोरं, धारेउं य महप्पणो ॥ ३३ ॥ ओ तुमं पुत्ता, सुकुमालो सुमज्जिओ । न हु सी पभ्रू तुमं पुत्ता, सामण्णमणुपालिया ॥ ३४ ॥ जावज्जीवमविसामो गुणाणं तु मह भरो। गुरु उ लोहभारुव, जो पुत्ता होइ दुबहो || ३५ ॥ आगासे गंगसोउव, पडियोउ व दुत्तरो । बाहाहिं सागरो चेव, तरियवो गुणोदही || वालुया कवलो चेव, निरस्साए उ संजमे । असिधारागमणं चेव, दुकरं चरिउं तवो ॥ अही वेगन्तदिट्ठीए, चरित्ते पुत्त दुक्करे । जवा लोहमया चैव चावेयवा सुदुकरं ॥ जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउं होइ सुदुक्करा । एहा दुकरं करेउं जे तारुण्णे समणत्तणं ॥ जहा दुक्खं भरेउ जे, होइ वायरस कोत्थलो । तहा दुवखं करेउ जे, कीवेणं समणत्तणं जहा तुलाए तोलेउं, दुकरो मन्दरो गिरी । तहा निहुयनीसंकं, दुक्करं समणत्तणं
३१ ॥
३६ ||
३७ ॥
३८ ॥
३९ ॥
॥
॥
।।
॥
॥
जहा भुयाहिं तरिडं, दुक्करं रयणायरो । तहा अणुवसन्तेणं, दुकरं दमसागरो भुंज माणुस्सर भोगे, पंचलक्खणए तुमं । भुक्तभोगी तओ जाया, पच्छा धम्मं चरिस्समि सोइ अम्मापियरो, एबमेयं जहा फुडं । इह लोए निप्पिवासस्स, नत्थि किंचिवि दुक्करं सारी माणसा चैव, वेयणाओ द्वनन्तसो । मए सोढाओ भीमाओ, असई दुक्ख भयाणी य जरामरणकन्तारे, चाउरन्ते भयागरे । मए सोढाणि भीमाणि, जम्माणि मरणाणि य जहा इहं अगणी उन्हो, एत्तोऽणन्तगुणे तर्हि । नररभु वेयणा उण्हा, अस्साया वेइया मए इमं इहं सीयं, एत्तोऽणन्तगुणे तर्हि । नरएसु वेयणा सीया, अस्सया वेइया मए कन्दन्तो कंदुकुम्मी, उड्डपाओ अहोसिरे । हुयासणे जलन्तम्मि, पक्कयुवो अन्तसो ॥ महादसिंकासे, मरुम्मि वइरबालुए । कदम्बवालुयाए य, दड्डुपुच्चो अणन्तसो ॥ ५० ॥ रसन्तो कन्दुकुम्भीसु, उड्डुं बद्धो अबन्धवो । करवत्तकरकयाईहिं. छिन्नपुच्चो अणन्तसो ॥ ५१ ॥ अइतिक्खकण्टगाइण्णे, तुंगे सिम्बलिपायवे । खेवियं पासबद्धेणं, कड्डोकढाहिं दुकरं ।। ५२ ।। महाजन्तेसु उच्छू वा, आरसन्तो सुमेरवं । पीडिओ मि सकस्मेहिं, पावकम्मोअंणण्तसो ॥ ५३ ॥
॥
४९ ॥
दुकरं ।।
सुदुकरं ॥
सुदुक्करं ॥
सुदुक्करं ॥
॥
॥
॥
२७ ।।
२८ ॥
२९ ॥
४० ॥
४१ ॥
४२ ॥
४३ ॥
४४ ॥
४५ ।।
४६ ॥
४७ ॥
४८ ॥
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(३२)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
कूवन्तो कोलसुणएहिं, सामेहिं सवलेहि य । फाडिओ फालिओ छिन्नो, विफुग्न्तो अणेगसो ॥५४॥ असीहि अवसिवण्णाहिं, भल्लेहिं पट्टिसेहि य। छिन्नो भिन्नो विमिन्नो य, ओइण्णो पावकम्मणा ॥ ५५ ॥ अनसे लोहरहे जुत्तो, जलन्ते समिलाजुए। चोइओ तोत्तजुत्तेहिं, रोज्झो वा जह पाडिओ ।। ५६ ॥ हुयासणे जलन्तम्मि, चियासु महिसो विव । दड्डो पको य अवसो, पावकम्मेहि पाविओ ।। ५७ ॥ वला संडासतुण्डेहिं, लोहतुण्डेहिं पक्खिहिं । विलुत्तो विलवत्तो हं, ढंकगिद्धेहिऽणन्तसो ॥ ५८ ॥ तण्हाकिलन्तोधावन्तो, पत्तोवेयराणिं नदि । जलं पाहिं ति चिन्तन्तो, खुरधाराहिं विवाइओ ॥ ५९॥ उण्हाभितत्तो संपत्तो, असिपत्तं महावणं । असिपत्तेहिं पडन्तेहि, छिन्नपुचो अणेगसो ।। ६०॥ मुग्गरेहिं मुसंढीहिं, सूलेहिं मुमलेहि य । गया संभग्गगतेहि, पत्तं दुक्खं अणन्तसो ।। ६१ ।। खुरेहिं तिक्खधारेहि, छुरियाहिं कप्पणीहि यो कप्पिओ फालिओ छिन्नो, उकित्तोय अणेगसो ॥ ६२ ॥ पासेहिं कूडजालेहि. मिओ वा अवसो अहं । वाहिओ बद्धरुद्धो वा, बहू चेव विवाइओ ॥ ६३ ॥ गलेहिं मगरजालेहि, मच्छो वा अवसो अहं । उल्लिओ फालिओ गहिओ, मारिणोय अणन्तसो ॥ ६४ ॥ वीदेसएहि जालेहिं, लेप्पाहि सउणो विव । गहिओ लग्गो बद्धो य, मारिओ य अणन्तसो ॥ ६५ ॥ कुहाडफरसुमाईहिं, वड्डईहिं दुमो विव । कुहिओ फालिओ छिन्नो, तच्छिओ य अणन्तसो ॥ ६६ ॥ चवेडमुट्ठिमाईहि, कुमारेहिं अयं पिव । ताडिओ कुहिओ मिनो, चुण्णिओ य अणन्तसो ॥ ६७ ॥ तत्ताई तम्बलोहाइं, तउयाइं सीसयाणि य । पाइओ कलकलन्ताई, आरसन्तो सुभेरवं ॥ ६८ ॥ तुहं पियाई मंसाई, खएडाइं सोलगाणि य । खाविओ मिसमंसाई, अग्गिवण्णाइऽणेगसो ॥ ६९ ॥ तुहं पिया सुरा सीहू, मेरओ य महूणि य। पाइओ मि जलन्तीओ, वसाओ रुहिराणि य ॥ ७० ॥ निचं भीएण तत्थेण, दुहिएण वहिएण य । परमा दुहसंबद्धा, वेयणा वेदिता मए ॥ ७१ ॥ तिवचण्डप्पगाढाओ, घोराओ अइदुस्सहा । महन्भयाओ भीमाओ, नरएसु वेदिता मए ॥ ७२ ॥ जारिसा माणुसे लोए, ताया दीसन्ति वेयणा । एत्तो अणन्तगुणिया, नरएसु दुक्खवेयणा ।। ७३ ॥ सबभवेसु अस्साया, वेयणा वेदिता मए । निमेसन्तरमित्तं पि, जं साता नत्थि वेयणा ।। ७४ ॥ तं बिन्तम्मापियरो, छन्देणं पुत्त पन्वया । नवरं पुण सामण्णे, दुक्खं निप्पडिकम्मया ॥ ७५ ॥ सो बेइ अम्मापियरो, एवमेयं जहा फुडं । पडिकम्मं को कुणई, अरण्णे मियपक्खिणं ।। ७६ ।। एगभूए अरण्णे व, जहा उ चरई मिगे । एवं धम्मं चरिस्सामि, संजमेण तवेण य ॥ ७७ ॥ जया मिगस्स आयको, महारण्णम्मिजायई । अञ्चन्तं रुक्खमूलम्मि, को णं ताहे तिगिच्छई ॥ ७८ ।। को वा से ओपहं देइ, को वा से पुच्छई सुहं । को से भत्तं च पाणं वा, आहरित्तु पणामए ॥ ७९ ॥ जया से सुही होइ, तया गच्छइ गोयरं । भत्तपाणस्स अट्ठाए, वल्लराखि सराणि य ।। ८० ॥ खाइत्ता दाणियं पाउं, वल्लरेहिं सरेहि य । मिगचारियं चरित्ताणं, गच्छई मिगचारियं ।। ८१॥ एवं समुट्टिओ भिक्खू, एवमेव अणेगए । मिगचारियं चरित्ताणं, उर्दू पक्कमई दिसं ।। ८२ ॥
जहा मिगे एगे अणेगचारी, अणेगवासे धुवगोयरे य ।।
एवं मुणी गोयरियं पविटे, नो हीलए नो वि य खिसएज्जा ॥ ॥८३ ॥ मिगचारियं चरिस्सामि, एवं पुत्ता जहासुहं । अम्मापिईहिऽणुन्नाओ, जहाइ उवहिं तहा ॥ ८४ ॥ मियचारियं चरिस्सामि, सबक्खविमोक्खणिं । तुम्भेहिं अब्भणुनाओ, गच्छ पुत्त जहासुहं ।। ८५ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-एगूनविशमाध्ययनम् एवं सो अम्मापियरो, अणुमाणित्ताण बहुविहं । ममत्तं छिन्दई ताहे, महानागो व कंचुयं ॥ ८६ ॥ इड्डी वि च मित्ते य, पुत्तदारं च नायओ। रेणुयं व पडे लग्ग, निध्धुत्ताण निग्गओ ।। ८७ ॥ पंचमहत्वयजुत्तो, पंचहि समिओ तिगुत्तिगुत्तोय। सन्भिन्तरबाहिरओ, तवोकम्मंसि उज्जुओ ॥ ८८ ।। निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्तगारवो । समो य सबभूएमु, तसेसु थावरेसु य ॥ ८९ ॥ लाभालामे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा। समो निन्दापसंसासु, तहा माणावमाणओ ॥ ९० ॥ गारवेसुं कसाएसुं, दण्डसल्लभएसु य । नियत्तो हाससोगाओ, अनियाणो अबन्धणो ॥ ९१ ॥ अणिस्सिओ इहं लोए, परलोए अणिस्सिओ। वासीचन्दणकप्पो य, असणे अणसणे तहा ॥ ९२ ॥ अप्पसत्थेहिं दारेहिं, सवओ पिहियासवे । अज्झप्पज्झाणजोगेहिं, पसत्थदमसासणे ॥ ९३ ।। एवं नाणेण चरणेण, दंसणेण तवेण य । भावणाहि य मुद्धाह, सम्मं भावेत्तु अप्पयं ॥ ९४ ।। बहुयाणि उ वासाणि, सामण्णमणुपालिया । मासिएण उ भत्तेण, सिद्धिं पत्तो अणुत्तरं ॥ ९५ ॥ एवं करन्ति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा । विणिअट्टन्ति भोगेसु, मियापुत्ते जहारिसी ॥ ९६ ॥
महापभावस्स महाजसस्स, मियापुत्तस्स निसम्म भासियं । तवप्पहाणं चरियं च उत्तमं, गहप्पहाणं च तिलोगविस्सुतं ॥ ॥९७ ॥ वियाणिया दुक्खविवद्धणं धणं, ममत्तबन्धं च मयाभयावहं । सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं, धारेज निवाणगुणावहं महं ।। ॥ ९८॥
त्ति बेमि ॥ इअ मियापुत्तीयं समत्तं ॥ १९॥
॥ अह महानियण्ठिज्जं वीसइमं अज्झयणं ॥ सिद्धाण नमो किच्चा, संजयाणं च भावओ। अत्थधम्मगई तचं अणुसहि मुह मे ॥१॥ पभूयरायणो राया, सेणिओ मगहाहिवो। विहारजत्तं निजाओ, मण्डिकुछिसि चेइए ॥२॥ नाणादुमलयाइण्णं, नाणापक्खिनिसेवियं । नाणाकुसुमसंछन्नं, उजाणं नन्दणोवमं ॥३॥ तत्थ सो पासई साहुं, संजय सुसमाहियं । निसन्नं रुक्खमूलम्मि, सुकुमालं सुहोइयं ॥४॥ तस्स रूवं तु पासित्ता, राइणो तम्मि संजए । अच्चन्तदरमो आसी, अउलो रूपविम्हओ॥५॥ अहोवण्णो अहो रूवं, अहो अञ्जस्स सोमया। अहो खन्ती अहो मुत्ती, अहो भोगे असंजया ॥ ६॥ तस्स पाए उ वन्दित्ता, काऊण य पयाहिणं । नाइदूरमणासन्ने, पंजली पडिपुच्छई ॥७॥ तरुणो सि अञ्जो पबइओ, भोगकालम्मि संजया। उवडिओ सि सामण्णे, एयमटुं सुणेमि ता॥ ८॥ अणाहोमि महाराय, नाहो मज्झ न विजई । अणुकम्पगं मुहिं वावि, कंचि नाभिसमेमहं ॥९॥ तओ सो पहसिओ राया, सेणि ओ मगहाहिवो। एवं ते इड्डिमन्तस्स, कहं नाहो न विजई ॥१०॥ होमि नाहो भयताणं, भोगे मुंजाहि संजया। मित्तनाईपरिवुडो, माणुस्सं खू सुदुल्लहं ॥ ११ ॥ अप्पणा वि अगाहो सि, सेणिया मगहाहिवा । अप्पणा अणाहो सन्तो, कस्स नाहो भविस्ससि ॥ १२ ॥ एवं वुत्तो नरिन्दो सो, सुसंभन्तो सुविम्हिओ। वयणं अस्सुयपुव्वं, साहुणा विम्हयन्निओ ॥ १३ ॥ अस्सा इत्थी मणुस्सा मे, पुरं अन्तेउरं च मे। झुंजामि माणुस्से भोगे, आणा इस्सरियं च मे ॥ १४ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला
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एरिसे सम्पयग्गम्मि, सबकामसमप्पिए । कहं अणाहो भवइ, मा हु भन्ने मुसं वए ॥ १५ ॥ न तुमं जाणे अणाहस्स, अत्थं पोत्थं च पत्थिवा । जहा अणाहो भवई, सणाहो वा नराहिवा ॥ १६ ॥ सुणेह मे महाराय, अवक्खित्तेण चेयसा। जहा अणाहो भवई, जहा मेयं पवत्तियं ॥ १७ ॥ कोसम्बी नाम नयरी, पुराण पुरभेयणी । तत्थ आसी पिया मज्झ, पभूयधणसंचओ ॥ १८ ॥ पढमे वए महाराय, अउला मे अच्छिवेयणा । अहोत्था विउलो डाहो, सबगत्तेसु पत्थिवा ॥ १९ ॥ सत्थं जहा परमतिक्खं, सरीरविवरन्तरे। आधीलिज अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा ॥ २० ॥ तियं मे अन्तरिच्छं च, उत्तमंगं च पीडई । इन्दासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा ॥२१॥ उवटिया मे आयरिया, विजामन्ततिगिच्छय।। अधीया सत्थकुसला, मन्तमूलविसारया ॥२२॥ ते मे तिगिच्छं कुवन्ति, चाउप्पायं जहाहियं । न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ॥ २३ ॥ पिया मे सबसारंपि, दिजाहि मम कारणा न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ॥ २४ ॥ माया य मे महाराय, पुत्तसोगदुहटिया । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ॥ २५ ॥ भायरो मे महाराय, सगा जेट्टकणिट्ठगा। न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ॥ २६ ॥ भइणीओ मे महाराय, सगा जेट्टकणिढगा। न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ।। २७ ।। भारिया मे महाराय, अणुरत्ता अणुव्वया । अंसुपुण्णेहिं नयणेहिं, उरं मे परिसिंचई ॥ २८ ॥ अन्नं च पाणं ण्हाणं च, गन्धमल्लविलेवणं । मए नायमणायं वा, सा बाला नेव भुंजई ॥ २९ ॥ खणं पि मे महाराय, पासाओ मे न फिट्टई । न य दुक्खा विमोएइ. एसा मज्झ अणाहया ॥ ३०॥ तओ हं एवमाहंसु, दुक्खमा हु पुणो पुणो । वेयणा अणुभविउं जे, संसारम्मि अणन्तए ॥ ३१ ॥ सई च जइ मुच्चेजा, वेयणा विउला इओ। खन्तो दन्तो निरारम्भो, पवए अणगारियं ॥ ३२ ॥ एवं च चिन्तइत्ताणं, पसुत्तो मि नराहिवा । परियत्तन्तीए राईए, वेयणा मे खयं गया ॥ ३३ ॥ तओ कल्ले पमायम्मि, आपुच्छित्ताण बन्धवे । खन्तो दन्तो निरारम्भो, पचइओऽणगारियं ॥ ३४ ॥ तो हं नाहो जाओ, अप्पणो य परस्स य । सबे सिं चेव भूयाणं, तसाण थावराण य ॥ ३५ ॥ अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नन्दणं वणं ॥ ३६॥ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुक्खाण य सुहाण य। अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठियसुपट्टिओ ॥ ३७ ॥
इमा हु अन्ना वि अणाहया निवा, तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि । नियण्ठधम्म लहीयाण वी जहा, सीयन्ति एगे बहुकायरा नरा ॥ ३८ ॥ जो पवइत्ताण महत्वयाई, सम्मं च नो फासयई पमाया । अनिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे, न मूलओ छिन्नइ बन्धणं से ॥ ३९ ॥ आउत्तया जस्स न अत्थि काइ, इरियाए भासाए तहेसणाए । आयाणनिक्खेवदुगंछणाए, न धीरजायं अणुजाइ मग्गं ॥ ४० ॥ चिरं पि से मुण्डरुई भवित्ता, अथिरबए तवनियमेहि भट्टे । चिरं पि अप्पाण किलेसइत्ता, न पारए होइ हु संपराए ॥ ४१॥ पोले व मुट्ठी जह से असारे, अयन्तिए कूडकहावणे वा । राढामणी वेरुलियप्पगासे, अमहग्घए होइ हु जाणएसु ॥ ४२ ।।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-विसमाध्ययनम्
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कुसीललिंग इह धारइत्ता, इसिज्झयं जीविय बृहइत्ता । असंजए संजयलप्पमाणे, विणिग्यायमागच्छइ से चिरंपि ॥ ४३ ॥ विसं तु पीयं जह कालकूडं, हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं । एसो वि धम्मो विसओववन्नो, हणाइ वेयाल इवाविवनो ॥ ४४ ॥ जे लक्खणं सुविण पउंजमाणे, निमित्तकोऊहलसंपगाढे । कुहेडविजासवदारजीवी, न गच्छई सरणं तम्मि काले ॥४५॥ तमं तमेणेव उ से असीले, सया दुही विप्परियामुवेइ । संधावई नरगतिरिक्खजोणिं, मोणं विराहेत्तु असाहुरूवे ।। ४६ ॥ उद्देसियं कीयगडं नियागं, न मुंचई किं च अणेसणिजं । अग्गी विवा सवभक्खी भवित्ता, इत्तोचुए गच्छइ कटु पावं ।। ४७ ॥ न तं अरी कंठछेत्ता करेइ, जं से करे अप्पणिया दुरप्पया। से नाहइ मच्चुमुहं तु पत्ते, पच्छाभितावेण दयाविहूणो ॥ ४८ ॥ निरडिया नग्गरुई उ तस्स, जे उत्तमर्ट विवज्जासमेइ । इमे वि से नत्थि परे वि लोए, दुहओ विसे भिन्जइ तत्थ लोए । ४९ ॥ एमेव हा छन्दकुसीलरूवे, मग्गं विराहेत्तु जिणुत्तमाणं । कुररी विवा भोगरसाणुगिद्धा, निरसोया परियासमेइ ॥ ५० ॥ सोचाण मेहावि सुभासियं इम, अणुसासणं नाणगुणोववेयं । मग्गं कुसीलाण जहाय सवं, महानियण्ठाण वए पहेण ॥ ५१ ॥ चरित्तमायारगुणनिए तओ, अणुत्तरं संजम पालियाण । निरासवे संखवियाण कम्मं, उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं ॥५२॥ एबुग्गदन्ते वि महातवोधणे, महामुणी महापइन्ने महायसे । महानियण्ठिजमिणं महासुयं, से कहेई महया वित्थरेणं ॥ ५३ ।। तुट्ठो य सेणिओ राया, इणमुदाहु कयंजली। अणाहत्तं जहाभूयं, मुटु मे उवदंसियं ॥ ५४ ॥ तुझं सुलद्धं खु मणुस्स जम्मं, लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी । तुम्भे सणाहा य सबन्धवा य, जंभे ठिया मग्गे जिणुत्तमाणं ॥ ५५ ॥ तं सि नाहो अणाहाणं, सबभूयाण संजया । खामेमि ते महाभाग, इच्छामि अणुसासिउं ।। ५६ ॥ पुच्छिऊण मए तुम्भ, आणविग्घाओ जो कओ। निमन्तिया य भोगेहि, तं सवं मरिसेहि मे । ५७ ॥ एवं थुणित्ताण स रायसीहो, अणगारसीह परमाइ भत्तीए । सओरोहो सपरियणो सबन्धवो,धम्माणुरत्तो विमलेणचेयसा ॥५८ ॥ ऊससियरोमकूवो, काऊण य पयाहिणं । .
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला. अभिवन्दिऊण सिरसा, अइयाओ नराहिवो ॥ ५९॥ इयरो वि गुणसमिद्धो, तिगुत्तिगुत्तो तिदण्डविरओ य ।। विहग इव विप्पमुक्को, विहरइ वसुहं विगयमोहो ॥ ६० ॥
त्ति बेमि ॥ इअ महानियण्ठिज्जं समत्तं ॥
॥ अह समुद्दपालीयं एगवीसइम अज्झयणं ॥ चम्पाए पालिए नाम, सावए आसि बाणिए। महावीरस्स भगवओ, सीसे सो उ महप्पणो॥१॥ निग्गन्थे पावयणे, सावए से वि कोविए । पोएण ववहरन्ते, पिहुण्डं नगरमानए ॥ २ ॥ पिहुण्डे ववहन्तस्स, वाणिओ देह धूयरं । तं ससत्तं पइगिज्झ, सदेसमह पत्थिओ ॥ ३ ॥ अह पालियस्स घरिणी, समुद्दम्मि पसवई । अह बालए तहिं जाए, समुद्दपालि ति नामए ॥ ४ ॥ खेमेण आगए चम्पं, सावए वाणिए घरं । संवडई तस्स घरे, दारए से मुहोइए ॥ ५ ॥ वावत्तरी कलाओ य, सिक्खई नीइकोविए । जोवणेण य संपन्ने, सुरूवे पियदंसणे ॥६॥ तस्स रुववई भज, पिया आणेइ रुविणिं । पासाए कीलए रम्मे, देवो दोगुन्दओ जहा ॥७॥ अह अन्नया कयाई, पासायालोयणे ठिओ। वज्झमण्डणसोभागं, वज्झं पासइ बज्झगं ॥ ८ ॥ तं पासिऊण संवेगं, समुद्दपालो इणमब्बवी । अहोऽसुमाण कम्माणं, निजाण पावगं इमं ॥ ९॥ संबुद्धो सो तहिं भगवं, परमसंवेमागओ। आपुच्छमापियरो, पवए अणगारियं ॥१०॥
जहित्तु ऽसग्गन्थमहाकिलेसं, महन्तमोहं कसिणं भयावहं । परियायधम्मं चमिरोयएज्जा, वयाणि सीलाणि परीसहे य ॥११॥ अहिंससचं च अतेणगं च, तत्तो य बम्भं अपरिग्गहं च । पडिवजिया पंचमहत्वयाणि, चरिज धम्मं जिणदेसियं विद् ॥१२॥ सधेहिं भूएहिं दयानुकम्पी, खन्तिक्खमे संजमवम्भयारी । सावजजोगं परिवजयन्तो, चरिज भिक्खू सुसमाहिइन्दिए ॥ १३ ॥ कालेण कालं विहरेज रहे, बलाबलं जाणिय अप्पणो य । सीहो व सद्देण न सन्तसेज्जा, वयजोग सुच्चा न असच्चमाहु ॥१४॥ उवेहमाणो उ परिवएज्जा, पियमप्पियं सब तितिक्खएज्जा । न सब सवत्थ ऽभिरोयएज्जा, न यावि पूयं गरहं च संजए ॥ १५ ॥ अणेगच्छन्दामिह माणवेहिं, जे भावओ संपगरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उइन्ति भीमा, दिवा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥१६॥ परीसहा दुविसहा अणेगे, सीयन्ति जत्था बहुकायरा नरा। से तत्थ पत्ते न वहिज भिक्खू, संगामसीसे इव नागराया ॥ १७ ॥ सीओसिणादंसमसाय फासा, आयंका विविहा फुसन्ति देहं ।। अकुक्कुओ तत्थाहियासहेजा, रयाइ खेवेज पुरे कयाइं ॥ १८ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-एगविसमाध्ययनम् पहाय रागं च तहेव दोसं, मोहं च भिक्खू सततं वियक्खणो। मेरु व्व वारण अकम्पमाणो, परीसहे आयगुत्ते सहेजा ॥ १९॥ अणुन्नए नावणए महेसी, न यावि पुयं गरहं च संजए । स उजभावं पडिवज्ज, संजए, निव्वाणमग्गं विरए उवेइ ॥२०॥ अरइरइसहे पहीणसंथवे, विरए आयहिए पहाणबं । परमट्ठपएहिं चिट्ठई, छिन्नसोए अममे अकिंचणे ॥२१॥ विवित्तलयणाइ भएन्ज ताई, निरोवलेवाइ असंथडाई । इसीहि चिण्णाइ महायसेहिं, काएण फासेज परीसहाई ।। २२ ॥ सन्नाणनाणोवगए महेसी. अणुत्तरं चरिउं धम्मसंचयं । अणुत्तरे नाणधरे जसंसी, ओभासई सूरिए वन्तलिक्खे ॥ २३ ॥ दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं, निरंगणे सव्यओ विप्पमुक्के । तरित्ता समुदं व महाभवोधं, समुद्दपाले अपुणागमं गए ॥ २४ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ समुद्दपालीयं समत्तं ॥
॥ अह रइनेमिजं बावीसइमं अज्झयणं ॥ सोरियपुरम्मि नयरे, आसि राया महिड्डिए । वसुदेवु त्ति नामेणं, रायलक्खणसंजुए ॥ १॥ तस्स भन्जा दुवे आसी, रोहिणी देवई तहा । तासिं दोण्हं दुवे पुत्ता, इट्टा रामकेसवा ॥ २ ॥ सोरियपुरम्मि नयरे, आसि राया महिड्डिए । समुदविजए नामं, रायलक्खणसंजुए ॥ ३ ॥ तस्स भज्जा सिवा नाम, तीसे पुत्तो महायसो। भगवं अरिट्टनेमि त्ति, लोगनाहे दमीसरे ॥ ४ ॥ सो ऽरिद्वनेमिनामो उ, लक्खणस्सरसंजुओ । अट्ठसहस्सलक्खणधरो, गोयमो कालगच्छवी ॥ ५ ॥ वजरिसहसंघयणो, समचउरंसो झसोयरो। तस्स रायमईकन, भजं जायइ केसवो ॥६॥ अह सा रायवरकन्ना, सुसीला चारुपेहणी । सवलक्खणसंपन्ना, विज्जुसोयामणिप्षभा ॥ ७ ॥ अहाह जणओ तीसे, वासुदेवं महिड्डियं । इहागच्छउकुमारो, जा से कन्नं ददामि ॥ ८॥ सबोसहीहिं एहविओ, कयकोउयमंगलो। दिवजुयलपरिहिओ, आभरणेहिं विभूसिओ ॥९॥ मत्तं च गन्धहत्थि, वासुदेवस्स जेट्टगं । आरूढो सोहए अहियं, सिरे चूडामणि जहा ॥ १०॥ अह ऊसिएण छत्तेण, चामराहि य सोहिए । दसारचक्केण य सो, सबओ परिवारिओ ॥ ११ ॥ चउरंगिणीए सेणाए, रइयाए जहक्कम । तुरियाण सनिनाएण, दिव्वेण गगणं फुसे ॥१२॥ एयारिसाए इड्डीए, जुत्तीए उत्तमाइ य । नियगाओ भवणाओ, निजाओ वहिपुंगवो ॥ १३ ॥ अह सो तत्थ निजन्तो, दिस्स पाणे भयदुए । वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्निरुद्धे सुदुक्खिए ॥ १४ ॥ जीवियन्तं तु सम्पत्ते, मंसट्ठा भक्खियवए । पासेत्ता से महापन्ने, सारहिं इणमब्बवी ॥१५॥ कस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सवे सुहेसिणो । वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्निरुद्धा य अच्छहि ॥ १६ ॥ अह सारही तओ भणइ, एए भद्दा उ पाणिणो। तुझं विवाहक जम्मि, भोयावेउं बहुं जणं ॥ १७ ॥
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(३८)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
सोऊण तस्स वयणं, बहुपाणिविणासणं । चिन्तेइ से महापन्नो, साणुक्कोसे जिए हिऊ ॥ १८ ॥ जइ मज्झ कारणा एए, हम्मन्ति सुबहू जिया । न मे एयं तु निस्सेसं, परलोगे भविस्सई ॥ १९ ॥ सो कुण्डलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो। आभरणाणि य सवाणि, सारहिस्स पणामए ।। २० ॥ मणपरिणामे य कए, देवा य जहोइयं समोइण्णा । सबड्डीइ सपरिसा. निक्खमणं तस्स काउंजे ॥ २१॥ देवमणुस्सपरिवुडो सीयारयणं तओसमारूढो, निक्खिमय वारगाओ, रेवयम्मि ट्रिओ भगवं ॥ २२ ॥ उज्जाणं संपत्तो, ओइण्णो उत्तमाउ सीयाओ। साहस्सीपरिवुडो, मह निक्खमई उशित्ताहि ॥ २३ ॥ अह से सुगन्धगन्धीए, तुरियं मउकुंचिए। सयमेव भुंचई केसे, पंचमुट्ठीहिं समाहिओ ॥ २४ ॥ वासुदेवो य णं भणइ, लुत्तकेसं जिइन्दियं । इच्छिरियमणोरहं तुरियं, पावसू तं दमीसरा ॥ २५ ॥ नाणेणं दंसणेणं च, चरित्तेण तहेव य । खत्तीए मुत्तीए, वड्डमाणो भवाहि य ॥ २६ ॥ एवं ते रामकेसवा, दसारा य बहू जणा। अरिडणेमिं वन्दित्ता, अभिगया दारगापुरिं ॥ २७॥ सोऊण रायकन्ना, पवजं सा जिणस्स उ । नीहासा य निराणन्दा, सोगेण उ समुत्थिया ॥ २८ ॥ राईमई विनिन्तेइ, धिरत्थु मम जीवियं । जा हं तेण परिच्चत्ता, सेयं पव्वइउं मम ॥ २९॥ अह सा भमरसन्निभे, कुंचफणगसाहिए । सयमेव लुचई केसें, धिइमन्ता ववस्सिया ॥ ३०॥ वासुदेवो य णं भणइ, लुत्तकेसं जिइन्दियं । संमारसागरं घोरं, तर कन्ने लहुं लहुं ॥ ३१ ।। सा पव्वइया सन्ती, पवावेसी तहिं पहुं सयणं परियणं चेव, सीलवन्ता बहुस्सुया ॥ ३२ ॥ गिरि रेवतयं जन्ती, वासेणुल्ला उ अन्तरा । वासन्ते अन्धयारम्मि, अन्तो लयणस्स सा ठिया ॥ ३३ ॥ चीवराई विसारन्ती, जहा जाय त्ति पासिया। रहनेमी भग्गचित्तो, पच्छा दिट्ठो य तीइ वि ॥ ३४ ॥ मीया य सा तहिं दछ, एगन्ते संजयं तयं । वाहाहिं काउ संगोप्फं, वेवमाणी निसीयई ॥ ३९ ॥ अह सो वि रायपुत्तो, समुद्दविजयंगओ। भीयं पवेवियं दड़े, इमं वकं उदाहरे ॥ ३६ ॥ रहनेमी अहं भद्दे, सुरूवे चारुभासिणी । ममं भयाहि सुयणु, न ते पीला भविस्सई ॥ ३७॥ एहि ता अँजिमो भोए, माणुस्सं खुसुदुल्लहं । भुत्तभोगी पुणो पच्छा, जिणमग्गं चरिस्समो ॥ ३८ ॥ दटुंण रहनेमिं तं, भग्गुजोयपराजियं । राईमई असम्भन्ता, अप्पाणं संवरे तहिं ।। ३९ ॥ अह सा रायवरकन्ना, सुट्टिया नियमबए। जाई कुलं च सीलं च, रक्खमाणी तयं वए ॥ ४०॥ जइ सि रूवेण वेसमणो, ललिएण नलकुव्वरो। तहा वि ते न इच्छामि, जइ सि सक्खं पुरंदरो ॥ ४१ ॥ घिरत्थु तेऽजसोकामी, जो तं जीवियकारणा। वन्तं इच्छसि आवाउं, सेयं ते मरणं भवे ॥ ४२ ॥ अहं च भोगरायस्स, तं च सि अन्धगवण्हिणो। मा कुले गन्धणा होमो, संजमं निहुओ चर ॥ ४३ ॥ जइ तं काहिसि भावं, जा जा दच्छसि नारिओ। वायाइद्धो व हढो, अद्विअप्पा भविस्ससि ॥ ४४ ॥ गोवालो भण्डवालो वा, जहा तद्दवणिस्सरो। एवं अणिस्सरो तं पि, सामणस्स भविस्ससि ॥ ४५ ॥ तीसे सो वयणं सोचा, संययाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाइओ ॥ ४६ ॥ मणगुत्तो वायगुत्तो, कायगुत्तो जिइन्दिए । सामण्णं निच्चलं फासे, जावजीवं दढवओ ॥ ४७ ॥ उग्गं तवं चरित्ताणं, जाया दोणि वि केवली। सवं कम्मं खवित्ताणं, सिद्धिं पत्ता अणुत्तरं ।। ४८ ।। एवं करेन्ति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा। विणियट्टन्ति भोगेसु, जहा सो पुरिसोत्तमो ॥ ४९ ॥
त्ति बेमि ॥ रहनेमिजं समत्तं ।।
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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र - तेविस माध्ययनम्
॥ अह केसिगोयमिज्जं तेवीसइमं अज्झयणं ॥
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जिणे पासित्ति नामेण, अरहा लोगपूड़ओ । संबुद्धप्पा य सव्वन्नू, धम्मतित्थयरे जिणे ॥ तस्स लोग पदीवस्स, आसि सीसे महायसे । केसी कुमारसमणे, विज्जाचरणपारगे ॥ २ ॥ ओहिनासु बुद्धे, सीस संघमाउले । गामाणुगामं रीयन्ते, सावत्थि पुरमागए || ३ | तिन्दुयं नाम उज्जाणं, तस्सि नगरमण्डले । फासुए सिज्जसंथारे, तत्थ वासमुवागए ॥ ४ ॥ अह तेणेव कालेणं धम्मतित्थयरे जिणे । भगवं वद्धमाणि त्ति, सव्वलोगम्मि विस्सु ॥ ५ ॥ तस्स लोग दीवस आसि सीसे महायसे । भगवं गोयमे नाम, विज्जाचरणपारए ॥ ६ ॥ बारसंगविऊ बुद्धे, सीससंघसमाउले । गामाणुगामं रीयन्ते, से वि सावत्थिमागए ॥ कोट्टगं नाम उज्जाणं, तम्मी नगरमण्डले । फासुए सिजसंथारे, तत्थ वासमुवागए ॥ केसी कुमारसमणे, गोयमे य महायसे । उभओ वि तत्थ विहरिंसु, अल्लीणा सुसमाहिया ॥ उमओ सीससंघाणं, संजयाणं तत्रस्सिणं, । तत्थ चिन्ता समुप्पन्ना, गुणवन्ताण ताइणं ॥ रिसो वा इमो धम्मो, इमो धम्मो व केरिसो । आयारधम्म पणिही, इमा वा सा व केरिसी ॥ चाउनाम य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्ग्विओ । देसिओ वद्धमाणेण, पासेण य ममुामुणी ॥ अचेलओ य जो धम्मो, जो इमो सन्तरुत्तरो । एगकज्जपवन्नाणं, विसेसे किं नु कारणं अह ते तत्थ सीसाणं, विन्नाय पवितकिय | समागमे कयमई, उभओ केसिगोमा ॥ गोमे पडिवन्नू, सीससंघसमाउले । जेङ्कं कुलमवेक्खन्तो, तिन्दुयं वणमागओ ॥ केसी कुमारसमणे, गोयमं दिस्समागयं । पडिरूवं पडिवत्तिं सम्मं संपविञ्जई ॥ पलालं फासूयं तत्थ, पंचमं कुसतणाणि य । गोयमस्स निसेज्जाए, खिप्पं संमणामए केसी कुमारसमणे, गोयमे य महायसे । उभओ निसण्णा सोहन्ति, चन्दसूरसमप्पभा ॥ समागया बहू तत्थ, पासण्डा कोउगा मिया । गिहत्थाणं चणेगाओ, साहस्सीओ समागया देवदानवगन्धव्वा, जक्खर क्खस किन्नरा | अदिस्साणं च भूयाणं, आसी तत्थ समागमो पुच्छामि ते महाभाग, केसी गोयममब्बवी । तओ केसिं बुवन्तं तु, गोयमो इणमब्वी ॥ पुच्छ भन्ते अहिच्छं ते, केसि गोयममब्बवी । तओ केसी अणुन्नाए, गोयमं इणमब्बवी ॥ २२ ॥ चाउञ्जामोय जो घम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ। सिओ वद्धमाणेण, पासेण य महामुनी || २३ ॥ एगकजपवन्नाणं, विसेसे किं नु कारणं । धम्मे दुविहे मेहावी, कहं विप्पच्चओ न ते ॥ २४ ॥ तओ केसिं ववन्तं तु, गोयमो इ मब्बवी । पन्ना समिक्खए धम्मतत्तं तत्तविणिच्छि : ।। २५ ।। पुरिमा उज्जुजडा उ, वंकजडाय पच्छिमा । पज्झिमा उज्जुपन्ना उ, तेण धम्मे दुहा कए || २६ || पुरिमाणं दुविसोझो उ, चरिमाणं दुरणुपालओ । कप्पो मज्झिमगाणं तु, सुविसोज्झो सुपालओ ॥ २७ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, कहमु गोयमा ॥ २८ ॥ अचेलगो य जो धम्मो, जो इमो सन्तरुत्तरो । देसिओ वद्धमाणेण, पासेण य महाजसा ।। २९ । एगकअपवनाणं, विसेसे किं नु कारणं । लिंगे दुविहे मेहावी, कहं विप्पचओ न ते ॥ ३० ॥
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२० ॥
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(४०)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला. केसिमेवं बुवाणं तु, गोयमो इणमब्बवी । विनाणेण समागम्म, धम्मसाहणमिच्छियं ॥ ३१ ॥ पच्चयत्थं च लोगस्स, नाणाविहविगप्पणं । जत्तत्थं गणहत्थं च, लोगे लिंगपओयणं ॥ ३२ ॥ अह भवे पइन्ना उ, मोक्खसब्भूयसाहणा | नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं चेव निच्छए ॥ ३३ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संमओ मझं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ३४ ॥ अणेगाणं सहस्साणं, मज्झे चिट्ठसि गोयमा। ते य ते अहिगच्छन्ति, कहं ते निजिया तुमे ॥ ३५॥ एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस । इसहा उ जिणिताणं, सबसत्तु जिणामहं ।। ३६ ॥ सत्तु य इइ के वुत्ते, केसी गोयम मब्बवी । तओ केसिं बुवंतं तु. गोयमो इणमब्बवी ॥ ३७॥ एगप्पा अजिए सत्तु, कसाया इन्दियाणि य । ते जिणित्तु जहानायं, विहरामि अहं मुणी ॥ ३८ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो, अन्नो वि संमओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ३९ ॥ दीसन्ति यहवे लोए, पासबद्धा सरीरिणो । मुक्कपासो लहुब्भुओ, कहं विहरिसी मुणी ॥४०॥ ते पासे सबसो चित्ता, निहन्तूण उवायओ । मुक्कपासो लहुभुओ, कहं विहगमि अहं मुणी ॥४१॥ पासा य इइ के वुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं वुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ४२ ॥ रागद्दोसादओ तिव्वा, नेहपासा भयकरा । ते छिन्दित्ता जहानायं, विहरामि जहकमं ॥ ४३ ॥ साहु गोयम पन्ना ते. छिन्नो मे संसओइमो। अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥४४॥ अन्तोहिययसंभूया, लया चिट्ठइ गोयमा। फलेइ विसभक्खीणि, सा उ उद्धरिया कहं ॥ ४५ ॥ तं लयं सबसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलियं । विहरामि जहानायं, मुक्को मि विसभक्खणं ॥ ४६॥ लया य इइ का वुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥४७॥ भवतण्हा लया वुत्ता, भीमा भीमफलोदया। तमुद्धिच्चा जहानायं, विहरामि जहासुहं ॥४८॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो, मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ४९ ॥ संपज्जलिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा। जे डहन्ति सरीरत्थे, कहं विज्झाविया तुमे ॥ ५० ॥ महामेहप्पसूयाओ, गिज्झ वारि जलुत्तमं । सिंचामि समयं देहं. सित्ता नो व डहन्ति मे ॥५१॥ अग्गी य इइ के वुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु. गोयमो इणमब्बवी ॥५२॥ कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुयसीलतवा जल । सुयधारामिहया सन्ता, भिन्ना हु न डहन्ति मे ।। ५३ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ। अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ५४॥ अयं साहसिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिघावई । जंसि गोयममारूढो, कहं तेण न हीरसि ॥ ५५ ॥ पधावन्तं निगिहामि, सुयरस्सीसमाहियं । न मे गच्छइ उम्मग्गं, मग्गं च पडिवजई ॥५६॥ आसे य इइ के वुत्ते, केसी गोयममन्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बबी ॥ ५७ ॥ मणो साहसिओ भीमो, दुहस्सोपरिधावई । तं सम्मं तु निगिण्हामि, धम्मसिक्ख इकन्थगं ॥ ५८॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ५९॥ कुप्पहा बहवो लोए, जेहिं नासन्ति जन्तुणो। अद्धाणे कह वट्टन्ते, तं न नाससि गोयमा ॥६॥ जे य मग्गेण गच्छन्ति, जे य उम्मग्गपट्ठिया। ते सवे वेइया मजं, तो न नस्सामहं मुणी ॥ ११ ॥ मग्गे य इइ के वुत्ते, केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ६२ ॥ कुप्पवयणपासण्डी, सबे उम्मग्गपट्ठिया । सम्मग्गं तु जिणक्खायं, एस मग्गे हि उत्तमे ॥ ६३ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र- तेविस माध्ययनम्
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७३ ॥
साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा महा उदगवेगेण, बुज्झमाणाण पाणिणं । सरणं गई पट्ठा य, दीवं कं मन्नसी मुणी ॥ अथ एगो महादीवो, वारिमज्झे महालओ । महाउदगवेगस्स, गई तत्थ न विजई ।। दीवे य इह के बुत्ते, केसी गोयममन्यवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमन्त्रवी ॥ जरामरणवेगेणं, बुज्झमाणाण पाणिणं । धम्मो दीवो पइट्ठा य, गई सरणमुत्तमं साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा अण्णवंसि महोहंसि, नावा विपरिधावई । जंसि गोयममारूढो, कहं पारं गमिस्ससि ॥ जाउ सस्साविणी नावा, न सा पारस्स गामिणी । जा निरस्सा विणी नावा, सा उ पारस्स गामिणी ॥ नावा य इह का बुत्ता, केसी गोपममन्त्री । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ।। सरीरमाहुनाव त्ति, जीवे बुच्च नाविओ । संसारो अण्णवो वुत्तो, जं तरंति महेसिणो ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥ ७४ ॥ अन्धयारे तमे घोरे, चिट्ठन्ति पाणिणो बहू । को करिस्सर उज्जोयं, सबलोयम्मि पाणिणं ।। ७५ ।। उग्गओ विमलो भाणू, सबलोयपभंकरो । सो करि(सह उज्जोयं, सबलोयम्मि पाणिणं ॥ ७६ ॥ भाणू य इह के बुत्ते, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ उग्गओ खीण संसारो, सवन्नू जिणभक्खरो । सो करिस्सर उज्जोयं, सबलोयम्मि पाणिणं साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ सारी माणसे दुक्खे, बज्झमाणाण पाणिणं । खेमं सित्रमणाचाहं, ठाणं किं मन्नसी मुणी अत्थि एगं धुवं ठाणं, लोगग्गम्मि दुरारुहं । जत्थ नत्थि जरा मच्चू, वाहिणो वेयणा तहा ठाणे इइ के बुत्ते, केसी गोयममन्यवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ निव्वाणं ति अवाहं ति, सिद्धी लोगग्गमेव य । खेमं सित्रं अणाबाहं, जं चरंति महेसिणो ॥ तं ठाणं सासयं वासं, लोयग्गम्मि दुरारुहं । जं संपत्ता न सोयन्ति, भवोहन्तकरा मुणी ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । नमो ते संसयातीत, सव्वमुत्तमहोयही ॥ एवं तु संसए छिन्ने, केसी घोरपरक्कमे । अभिवन्दित्ता सिरसा ; गोमयं तु महायसं || ८३ ।। पंचमहध्वयधम्मं, पडिक्ज्जइ भावओ । पुरिमस्स पच्छिमम्मि, मग्गे तत्थ सुहावहे ॥ ८७ ॥ केसीगोयमओ निचं, तम्मि आसि समागमे । सुयसीलसमुक्कंसो, महत्थत्थ विणिच्छओ ।। ८८ ।। तोसिया परिसासवा सम्मग्गं समुवट्टिया । संधुया ते पसीयन्तु भयवं केसिगोयमे ॥ ८९ ॥ तिमि ॥ सिगोयमिज्जं समत्तं ॥ २३ ॥
७७ ॥
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७८ ॥
७९ ॥
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८१ ॥
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८४ ॥
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८० ।।
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(४२)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
॥ अह समिईओ चउवीसइमं अज्झयणं ॥
अह पवयणमायाओ, समिई गुत्ती तहेव य । पंचेव य समिईओ, तओ गुत्तीउ आहीया ॥१॥ इरियाभासेसणादाणे, उच्चारे समिई इय । मणगुत्ती वयगुत्ती, कायगुत्ती य अट्ठमा ॥२॥ एयाओ अट्ट समिईओ, समासेण वियाहिया । दुवालसंगं जिणग्वायं, मायं जत्थ उ पवयणं ।। ३ ॥ आलम्बणेण कालेण, मग्गेण जयणाय य । चउकारणपरिसुद्धं, संजए इरियं रिए ॥ ४ ॥ तत्थ आलम्बणं नणं दंसणं चरणं तहा । काले य दिवसे वुत्ते, मग्गे उप्पहवन्जिए ॥५॥ दवओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा । जायणा चउबिहा वुत्ता, तं मे कित्तयओ सुण ॥ ६॥ दबओ चक्सुसा पेहे, जुगमित्तं च खेत्तो । कालओ जाव रीइज्जा, उवउत्ते य भावओ ॥ ७ ॥ इन्दियत्थे विवजित्ता, सज्झायं चेव पञ्चहा । तम्मुत्ती तप्पुरकारे, उवउत्ते रियं रिए ॥ ८ ॥ कोहे माणे य मायाए, लोभे य उवउत्तया। हासे भए मोहरिए, विकहासु तहेव य ॥ ९ ॥ एयाइं अट्ठ ठाणाई, परिधजितु संजए । असावजं मियं काले, भासं भासिज पन्नवं ॥१०॥ गवेसणाए गहणे य, परिभोगेसणाय य । आहारोवहिसेजाए, एए तिन्नि विसोहए ॥ ११॥ गग्गमुप्पायणं पढमे, वीए सोहेज एसणं । परिभोयम्मि चउकं, विसोहेज जयं जई ॥ १२ ॥ ओहोवहोवग्गहियं, भण्डगं दुविहं मुणी । गिण्हन्तो निक्खिवन्तो वा, पउंजेज इमं विहिं ॥ १३ ॥ चक्खुसा पडिले हित्त, पमजेज जयं जई । अइए निक्खिवेज्जा वा, दुहओ वि समिए सया ॥१४॥ उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाणजल्लियं । आहारं उवहि देहं , अन्नं वावि तहाविहं ॥ १५॥ अणावायमसंलोए, अणोए चेव होइ संलोए । आवायमसंलोए, आवाए चेव संलोए ॥ १६ ॥ अणावायमसंलोए, परस्सणुवघाइए। समे अज्झुसिरे यावि, अचिरकालकयम्मि य ॥ १७ ॥ वित्थिण्णे दूरमोगाढे, नासन्ने विलवज्जिए । तसपाणबीयरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे ॥ १८ ॥ एयाओ पञ्च समिईओ, समासेण वियाहिया। एत्तोय तओ गुत्तीओ, वोच्छामि अणुपुत्वसो ॥ १९ ॥ संरम्भसमारम्भे, आरम्भे य तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा य, मणगुत्तीओ चउबिहा ॥ २० ॥ संरम्भसमारम्भे, आरम्भे य तहेव य । मणं पबत्तमाणं तु, नियत्तेज जयं जई ॥ २१ ॥ सच्चा तहेव मोसा य, सच्चमोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा य, वइगुत्ती चरबिहा ॥ २२ ॥ संरम्भसमारम्भे, आरम्भे य तहेव य । वयं पवत्तमाणं तु, नियतेन्ज जयं जई ॥ २३ ॥ ठाणे निसीयणे चेव, तहेव य तुयट्टणे । उल्लंघणपलंघणे, इन्दियाण य झुंजणे ।। २४ ॥ संरम्भसमारम्भे, आरम्भम्मि तहेव य। कायं पवत्तमाणं तु, नियत्तेज जयं जई ॥ २५ ॥ एयाओ पञ्च समिईओ, चरणस्स य पयत्तणे । गुत्ती नियत्तणे वुत्ता, असुभत्थेसु सबसा ॥ २६ ॥ एमा पश्यणमाया, जे सम्मं आयरे मुणी। खिप्पं सवसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिए ॥ २७ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ ममिईओ समत्ताओ
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श्री उत्तराध्ययनसूत्र - पञ्चविस माध्ययनम्
॥ अह जन्नइज्जं पञ्चवीसइमं अज्झयणं
१ ॥
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माहणकुलसंभूओ, आसि विप्पो महायसो । जायाई जमजन्नम्मि, जयघोसि त्ति नामओ ॥ इन्दियग्गमनिग्गाही, मग्गगाभी महामुणी । गामाणुग्गामं रीयंते, पत्ते वाणारसिं पुरिं ॥ २ ॥ वाणारसी बहिया, उज्जाणम्मि मणोरमे । फासुए सेज्जसंथारे, तत्थ वासमुवागए || ३ || अह तेणेव कालेणं, पुरीए तत्थ माहणे । विजयघोसि त्ति नामेण, जन्नं जयइ पेयवी ॥ ४॥ अह से तत्थ अणगारे, मासक्खमणपारणे । विजयघोसस्स जन्नम्मि, भिक्खमट्ठा उवट्ठिए ॥ ५ ॥ मुट्ठियं तहिं सन्तं जायगो पडिशेहिए। न हु दाहामि ते भिक्खं, भिक्खू जायाहि अन्नओ || ६ || जे य वेयविऊ विप्पा, जन्नट्ठा य जे दिया । जो संगविऊ जे य, जे य धम्माण पारगा ॥ ७ ॥ जे समत्था समुद्धत्तुं, परमप्पाणमेव य । तेसिं अन्नमणिदेयं भो भिक्खू सवकामियं ॥ ८ ॥ सो तत्थ एव पडिसिद्धो, जायगेण महामुणी । न वि रुट्ठो न वि तुट्ठो, उत्तिम गवे ॥ ९ ॥ नन पाणदेउं वा, नवि निवारणाय वा । तेसिं विमोक्खणडाए, इणं वयणमब्बवी ॥ १० ॥ नव जाणसि वेयमुहं, नवि जन्नाण जं मुहं । नक्खत्ताण मुहं जं च, जं च धम्माण वा मुहं ॥ जे समत्था समुद्ध, परमप्पाणमेव य । न ते तुमं वियाणासि, अह जाणासि तो भण तस्सक्खेवपमोक्खं तु, अवयन्तो तहिं दिओ । सपरिसो पंजली होउं, पुच्छई तं महामुणिं वेयाणं च मुहं ब्रूहि, बूहि जन्नाण जं मुहं । नक्खत्ताण मुहं ब्रूहि, बूहि धम्माण वा मुहं जे समत्था समुद्धत्तुं, परमप्पाणमेव य । एयं मे संसयं सवं, साहू कहसु अच्छिओ अग्गहु मुहा वेया, अन्नट्टी वेयसा मुहं । नक्खत्ताण मुहं चन्दो, धम्माण कासवो मुहं जहा चन्दं गहाईया, चिट्ठन्ती पंजलीउडा | वन्दमाणा नर्मसन्ता, उत्तमं मतहारिणो अजाणगा जन्नवाई, विज्जामाहणसंपया । गूढा सज्झायतवसा, भासच्छन्ना इवग्गणो ॥ नो लोए बम्भणो वृत्तो, अग्गीव महिओ जहा । सया कुसलसंदिट्ठे, तं वयं बूम माहणं जो न सज्ज आगन्तुं पवयन्तो न सोयइ । रमइ अज्जवयणम्मि, तं वयं बूम माहणं जायरूवं जहामई, निद्धन्तमलपावगं । रागदोसभयाईयं तं वयं ब्रूम माहणं तवस्सियं किसं दन्तं अवचियमंससोणियं । सुवयं पत्तनिवाणं, तं वयं बूम तसपाणे वियाणेत्ता, संगहेण य थावरे । जो न हिंसइ तिविहेण, तं वयं बूम माइणं कोहा वाजवा हासा, लोहा वा जइ वा भया । मुसं न वयई जो उ, तं वयं बूम माहणं चित्तमन्तमचित्तं वा, अप्पं वा जइ वा बहुं । न गिण्हाइ अदत्तं जे, तं वयं बूम माहणं दिवमाणुसतेरिच्छं, जो न सेवइ मेहुणं । मगसा कायवक्केणं, तं वयं ब्रूम माहणं जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पड़ वारिणा । एवं अलित्तं कामेहिं तं वयं अलोलुयं मुहाजीविं, अणगारं अकिंचणं । असंसंत्तं गिहत्थेसु तं वयं जहित्ता पुवसंजोगं. नाइसंगे य बन्धवे । जो न सज्जइ भोगेसुं तं वयं बूम माहणं ॥ पसुबन्धा सङ्घवेया य, जङ्कं च पात्रकम्मुणा । न तं तायन्ति दुस्सील, कम्माणि बलवन्ति हि ॥
॥
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१७ ॥
१८ ॥
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बूम माहणं
बूम माहणं
॥
२८ ॥
२९ ॥
३० ॥
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माहणं ॥
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११ ॥
१२ ॥
१३ ॥
१४ ॥
१५ ॥
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२१ ।।
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२३ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला. न वि मुण्डिएण समणो, न ओंकारेण बम्भणो । न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण तावसो ॥ ३१॥ समगए समणो होइ बम्भचेरेण बम्भणो । नाणेण उ मुणी होइ, तवेण होइ तावसो ॥ ३२ ॥ कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ । वइसो कम्मुणा होइ, मुद्दो हवइ कम्मुणा ॥ ३३ ॥ एए पाउकरे. बुद्धे, जेहिं होइ सिणायओ । सबकम्मविणिम्मुकं, तं वयं बूम माहणं ॥ ३४ ॥ एवं गुणसमाउत्ता. जे भवन्ति दिउत्तमा । ते समत्था उ उद्धत्तुं, परमप्पाणमेव य ॥ ३५ ॥ एवं तु संसए छिन्न, विजयघोसे य माहणे । समुदाय तयं तं तु, जयघोसं महामुणिं ॥ ३६ ॥ तुढे य विजयघोसे, इणमुदाहु कयंजली । माहणतं जहाभूयं, सुटु मे उबदंसियं ।। ३७ ॥ तुब्भे जइया जन्नाणं, तुन्भे वेयविऊ विऊ । जोइसंगविऊ तुम्भे, तुम्भे धम्माण पारगा ॥ ३८ ॥ तुब्भे समत्था उद्धत्तुं, परमप्पाणमेव य । तमणुग्गहं करेहम्हं. भिक्खेणं भिक्खु उत्तमा ॥ ३९॥ न कर्ज मज्झ भिक्खेण, खिप्पं निक्खममू दिया। मा भमिहिसि भयावटे, घोरे संसारसागरे ॥ ४०॥ उवलेवो होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पई । भोगी भमइ संसारे, अभोगी विप्पमुच्चई ॥ ४१ ॥ उल्लो सुक्खो य दो छूढा, गोलया मट्टियामया। दो वि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो सोऽत्थ लग्गई ॥ ४२ ॥ एवं लग्गन्ति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गन्ति, जहा से सुक्खगोलए ॥ १३ ॥ एवं से विजयघोसे, जयघोसस्स अन्तिए । अणगारस्स निक्खन्तो, धम्मं सोद्या अणुत्तरं ॥ ४४ ॥ खवित्ता पुबकम्माई, संजमेण तवेण य । जयघोसविजयघोमा, सिद्धं पत्ता अणुत्तरं ॥ ४५ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ जन्नइजं समत्तं ॥ २५ ॥
॥ अह सामायारी छवीसइमं अज्झयणं ॥ सामायारिं पवक्खामि, सव्वदुवखविमोक्खणिं । जं चरित्ताण निग्गन्था, तिण्णा संसारसागरं ॥ १ ॥ पढमा आवस्सिया नाम, बिइया य निसीहिया । आपुच्छणा य तइया, चउत्थी पडिपुच्छणा ॥ २ ॥ पंचमी छन्दणा नाम, इच्छाकारो य छ?ओ । सत्तमो मिच्छकारो य, तहक्कारो य अट्ठमो ॥३॥ अब्भुट्ठाणं च नवमं, दसमी उपसंपदा । एसा दसंगा साहूणं, सामायारी पवेइया ॥४॥ गमणे आवस्सियं कूजा, ठाणे कुज निसीहियं । आपुच्छणं सयंकरणे, परकरणे पडिपुच्छणं ॥५॥ छन्दणा दबजाएणं, इच्छाकारो य सारणे । मिच्छाकारो य निन्दाए, तहक्कारो पडिस्सुए ॥ ६ ॥ अब्भुट्ठाणं गुरूपूया, अच्छणे उवसंपदा । एवं दुपंचसंजुत्ता, सामायारी पवेइया ।। ७ ।। पुबिल्लम्मि चउम्भाए, आइच्चम्मि समुट्ठिए । भण्डयं पडिलेहिता, वन्दित्ता य तओ गुरुं ॥ ८ ॥ पुच्छिज्ज पंजलीउडो, किं काय मए इह । इच्छं निओइउं भन्ते, वेयावच्चे व सज्झाए ॥ ९ ॥ वेयावच्चे निउत्तेण, कायवं अगिलायओ। सज्झाए वा निउत्तेण, सबदुक्ख विमोक्खणे ॥ १० ॥ दिवसस्स चउरो भागे, भिक्खू कुजा वियक्खणो। तओ उत्तरगुणे कुज्जा, दिणभागेमुचउसु वि ।। ११॥ पढमंपोरिसि सज्झायं,बीयं झाणं झियायई । तइयाए भिक्खायरियं, पुणो चउत्थीइ सज्झायं ॥ १२ ॥ आसाढे मासे दुपया, पोसे मासे चउप्पया । चित्तासोएसु मासेसु, तिप्पया हवइ पोरिसी ॥ १३ ॥ अंगुलं सत्तरत्तेणं, पक्खेणं च दुरंगलं । वड्डए हायए वावि, मासेणं चउरंगुलं ॥ १४ ॥
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श्री उत्तराध्ययन सूत्र - छविस माध्ययनम्
(४५)
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आसाढबहुलपक्खे, भद्दवए कत्तिए य पोसे य । फग्गुणवाइसाहे य, बोद्धव्वा ओमरत्ताओं ॥ जेट्ठामूले आसाढसावणे, छहिं अंगुळेहिं पडिले हा । अट्ठहिं बीयतम्मि, तहए दस अट्ठहिं चउत्थे ।। रर्त्ति पि चउरो भागे, भिक्खू कुजा वियक्खणो । तओ उत्तरगुणे कुजा, राइभाएसु चउसु वि ॥ पढमं पोरिसि सज्झायं, बीयं झाणं झियायई । तयाए निदमोक्खं तु. चउत्थी भुजो वि सज्झायं ॥ जं ने जयारतिं, नक्खत्त तम्मि नहचउब्भाए | संपत्ते विरमेजा, सज्झायं पओसकालम् ।। तमेव य नक्खत्ते, गयणच उन्भागसावसेसम्मि | वेरत्तियंपि कालं, पडिलेहिंत्ता मुणी कुजा ॥ पुल्लिमि चउभाए, पडिले हित्ताण भण्डयं । गुरुं वन्दित्तु सज्झा, यकुञ्ज दुक्ख विमोक्ग्वणं ॥ पोरिसीए चउभाए, वन्दित्ताण तओ गुरुं । अपडिकमित्ता कालस्स, भायणं पडिलेहए ।। २२ ।। मुहपोति पडिलेहित्ता, पडिलेज गोच्छगं । गोच्छगलइयंगुलिओ, वत्थाई पडिलेहए || २३ ||
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थिरं अतुरियं, ता वत्थमेव पडिले । तो बिइयं पप्फोडे, तइयं च पुणो पमज्जिज्ज ।। २४ ।। अणच्चावियं अवलियं, अणाणुबन्धिममोसलिं चेव । छप्पुरिमा नव खोडा, पाणीपाणिविसोहणं ॥ २५ ॥ आरभडा सम्म द्दा, वज्जेयध्वा य मोसलो तइया । पप्फोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेइया छट्ठी पसिढिलपलम्बलोला,एगा मोसा अणेगरूव धुणा । कुणइ पमाणिपमायं, संकियगणणोवगं कुज्जा अणूणारि पडिलेहा, अविवच्चासा तहेव य । पढमं पयं पसत्थं, सेसाणि य अप्पसत्थाई ॥ पडिलेहणं कुणन्तो, मिहो कहं कुणइ जणवय कहं वा । देइ व पच्च क्खाणं, वाएइ सयं पडिच्छइ वा पुढवी आउक्काए, तेऊ-वऊ-वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणापमत्तो, छण्हं पि विराहओ होइ ॥ पुढवी- आउक्काए, तेऊ- वाऊ वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणाआउत्तो, छण्हं संरक्खओ होइ ॥ ३१ ॥ तइयाए पोरिसीए, भत्तं पणं गवेसए । छण्हं अन्नयराए, कारणम्मि समुट्टिए || ३२ ॥ वेण वेयावच्चे, इरियट्ठाए य संजमट्ठए । तह पाणवत्तियाए, छटुं पुण धम्मचिन्ताए ॥ ३३ ॥ निग्गन्थो धिइमन्तो, निग्गन्थी वि न करेज्ज छहिं चैव । थाणेहि उ इमेहिं, अणइकमणाइ से होइ ॥ ३४ ॥ आयंके उवसग्गे, तितिक्खया बम्भचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेउं, सरीरवोच्छे यट्ठा ॥ ३५ ॥ अवसेसं भण्डगं गिज्झ, चक्खुसा पडिलेहए । परमद्धजोयणाओ, विहारं विहरए मुणो ।। ३६ ।। उत्थीए पोरिसीए, निक्खिवित्ताण भायणं । सज्झायं तओ कुज्जा, सवभावविभावणं ॥ ३७ ॥ पोरिसीएच उभार, वन्दित्ताण तओ गुरुं । पडिक्कमित्ता कालस्स, सेजं तु पडिलेहए ।। ३८ ।। पासवणुच्चारभूमिं च, पडिलेहिज्ज जयं जई । काउस्सगं तओ कुज्जा, सङ्घदुक्ख विमोक्खणं ।। ३९ ।। देवसियं च अईयारं, चिन्तिज्जा अणुपुवसो । नाणे य दंसणे चेत्र, चरितम्मि तहेव य ॥ ४० ॥ पारियका उस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । देसियं तु अईयारं, आलोएज्ज जहक्कम्मं ॥ ४१ ॥ पक्किमिनु निस्सल्लो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुञ्ज, सङ्घदुक्ख विमोक्खणं ।। पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । थुइमंगलं च काऊण, कालं संपडिलेहए ॥ पढमं पोरिसि सज्झायं, बितियं झाणं झियायई । तइयाए निद्दमोक्खं तु, सज्झायं तु चउत्थि ॥ ४४ ॥ पोरिसीए चत्थीए, कालं तु पडिलेहिया । सज्झायं तु तओ कुज्जा, अबोहेन्तो असंजए ॥ ४५ ॥ पोरिसीए भए, वन्दिऊण तओ गुरुं । पडिक्कमित्त कालग्स, कालं तु पडिलेहए || ४६ ॥ आगए कायवोस्सग्गे; सवदुक्खविमोक्खणे । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सङ्घदुक्खविमोक्खणं ।। ४७ ।।
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श्रीजैन सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला राइयं च अईयरं, चिन्तिज अणुपुत्वसो । नाणंमि दंसणंमि य, चरित्तमि तवंमि य ॥४८॥ पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । राइयं तु अईयारं, आलोएन्ज जहक्कम्मं ॥ ४९ ॥ पडिकमित्तु निस्सल्लो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुजा, सबदुक्खणं ॥५०॥ किं तवं षडिवजामि, एवं तत्थ विचिन्तए । काउस्सग्गं तु पारित्ता, वन्दई य तओ गुरुं ॥५१ ।। पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । तवं तु पडिवजेजा, कुजा सिद्धाण संथवं ॥ ५२ ॥ एसा सामायारी, समासेण वियाहिया । जं चरित्ता बहू जीवा, तिण्णा संसारसागरं ॥ ५३ ॥
ति बेमि ॥ इअ सामायारी समत्ता ॥ २६ ॥
॥ अह खलुकिज्ज सत्तवीसइमं अज्झयणं ॥ थेरे गणहरे गग्गे, मुणी आसि विसारए । आइण्णे गणिभावम्मि, समाहिं पडिसंधए ॥१॥ वहणे वहमाणस्स. कन्तरं अइवत्तई । जोगे वहमाणस्स, संसारो अइवत्तई ॥२॥ खलुंके जो उ जोएइ, विहम्माणो किलिस्सई । असमाहि ज वेएइ, तोत्तओ से य भजई ॥३॥ एग डसइ पुच्छम्मि, एगं विन्धइ ऽभिक्खणं । एगो भंजइ समिलं, एगो उप्पहदडिओ ॥४॥ एगो पडइ पासेणं, निवेसइ निवजई । उक्कुहइ उप्फिडइ, सढे बालगवी वए ॥ ५॥ माई मुद्धेण पडइ, कुद्धे गच्छे पडिप्पहं । मयलक्खेण चिट्ठई, वेगेण य पहामई ॥६॥ छिन्नाले छिन्दई सेलिं, दुद्दन्तो भंजए जुगं । सेवि य सुस्सुयाइत्ता, उज्जहित्ता पलायए ॥ ७॥ खलंका जारिसा जोजा, दुस्सीसा वि हु तारिसा। जोइया धम्मजाणम्मि, भजन्ती धिइदुब्बला ॥८॥ इड्डीगारविए एगे, एगेऽत्थ रसगारवे । सायागारविए एगे, एगे सुचिरकोहणे ॥९॥ भिक्खालसिए एगे, एगे ओमाणभीरुए । थद्धे एगे आणुसासम्मी, हेऊहिं कारणेहि य ॥१०॥ सो वि अन्तरभासिल्लो, दोसमेव पकुबई । आयरियणं तु वयणं, पडिकूलेइऽमिक्खणं ॥११॥ न सा ममं वियाणाइ; न य सा मज्झ दाहिई । निग्गया होहिई मन्ने, सहू अन्नोत्थ वचउ ॥ १२ ॥ पेसिया पलिउंचन्ति, ते परियन्ति, समन्तओ। रायवेटिं च मन्नन्ता, करेन्ति मिउडि मुहे ॥ १३ ॥ वाइया संगहिया चेव, भत्तपाणेण पोसिया । जायपक्खा जहा हंसा, पक्कमन्ति दिसो दिसि ॥ १४ ॥ अह सारही विचिन्तेइ, खलंकेहिं समागओ। किं मज्झ दुट्ठसीसेहिं, अप्पा मे अवसीयई ॥ १५ ॥ जारिसा मम सीसाओ, तारिसा गलिगद्दहा । गलिगद्दहे जहित्ताणं, दढं पगिण्हई तवं ॥ १६ ॥ मिउमद्दवसंपन्नो, गम्भीरो सुसमाहिओ। विहरइ महिं महप्पा, सीलभूएण अप्पणं ॥ १७ ॥
त्ति बेमि ॥ खलुंकिनं समत्तं ॥ २७॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-अठ्ठाविसमाध्ययनम्
॥ अह मोक्खग्गगई अट्ठावीसइमं अज्झयणं ॥ मोक्खमग्गगई तचं, सुणेह जिणभासियं । चउकारणसंजुत्तं, नाणदंसणलक्खणं ॥१॥ नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा । एसः मग्गु त्ति पनत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥ २ ॥ नाणं च दंसणं चैव, चरितं च तवो तहा । एयमग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छन्ति सोग्गई ॥३॥ तत्थ पंचविहं नाणं, मुयं आभिनिबोहियं । ओहिनाणं तु तइयं, मणनाणं च केवलं ॥४॥ एवं पंचविहं नाणं, दवाण य गुणाण य । पजवाण य सवेसिं, नाणं नाणीहि दंसियं ॥५॥ गुणाणमासओ दवं, एगदवस्सिया गुणा । लक्खणं पज्जवाणं तु अभओ अस्सिया भवे ॥ ६ ॥ धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गल-जन्तवो । एस लोगो त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं ।। ७ ॥ धम्मो अहम्मो आगासं, दवं इक्विकमाहियं । अणन्ताणि य दव्वाणि, कालो, पुग्गलजन्तोवो ॥ ८ ॥ गइलक्षणो उ धम्मो, अहम्मो ठाणलक्षणो । भायणं सव्वदवाणं, नहं ओगाहलक्खणं ॥९॥ वत्तणालक्खणो कालो, जीवो उवओगलक्खणो । नाणेणं दंसणेणं च, सुहेण य दुहेण य ॥ १०॥ नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा । वीरियं अवओगो य, एयं जीवस्स लक्खणं ॥ ११॥ सहन्धयार-उज्जोओ, पहा छाया तवे इ वा। वण्णरसगन्धफासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥ १२॥ एगत्तं च पुहत्तं च, संखा संठाणमेव य । संजोगा य विभागा य, पजवाणं तु लक्खणं ॥ १३ ॥ जीवाजीवा य बन्धो य, पुण्णं पावासवा तहा । संवरो निजरा मोक्खो, सन्तेए तहिया नव ॥ १४ ॥ तहियाणं तु भावाणं, सम्भावे उवएमणं । भावेणं सद्दहन्तस्स, सम्मत्तं तं वियाहियं ॥ १५ ॥ निसग्गुवएसरुई, आणरुई सुत्त-बीयरुइमेव । अभिगम वित्थाररुई, किरिया-संखेव धम्मरुई ॥ १६ ॥ भूयत्थेणाहिगया, जीवाजीवा य पुण्णपावं च । सहसम्मुइयासवसंवरो य रोएइ उ निस्सग्गो ॥ १७ ॥ जो जिणदिढे भावे, चउबिहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव नन्नह त्ति य, स निसग्गरुइ त्ति नायवो ॥ १८ ॥ एए चेव उ भावे, उवइढे जो परेण सद्दहई । छउमत्थेण जिणेण व, उवएसरुइ ति नायवो ॥ १९ ॥ रागो दोसो मोहो, अन्नाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोएंतो, सो खलु आणाई नामं ॥२०॥ जो सुत्तमहिअन्तो, सुरण ओगाहई उ सम्मत् । अंगेण बहिरेण व, सो सुत्तरुइ ति नायहो ।। २१ ॥ एगेण अणेगाई, पयाइं जो पसरई उ सम्म । उदए व तेल्लबिन्द, सो बीयरुइ ति नायवो ॥ २२ ॥ सो होइ अभिगमरुई, सुयनाणं जेण अत्थओ दिटुं । एक्कारस अंगई, पइण्णगं दिहिवाओ य ॥ २३ ॥ दहाण सबभावा, सवपमाणेहि जस्स उवलद्धा । सबाहि नयविहीहिं, वित्थाररुइ त्ति नायवो ॥ २४ ॥ दसणनाणचरित्ते, तवविणए सबसमिइगुत्तीसु। जो किरियामावरुई, सोखलु किरियाई नाम ॥ २५ ॥ अणभिग्गहियकुदिट्ठी संखेवरुइ त्ति होइ नायबोअविसारओपवयणे,अणभिंगहिओ य सेसेसु ॥ २६ ॥ जो अस्थिकायधम्म,सुधम्मं खलु चरित्तधम्मंच। सद्दहइ जिणामिहियं,सोधम्मरुइ त्ति नायवो ॥ २७ ॥ परमत्थसंथवो वा, सुदिट्ठपरमत्थसेवणं वा वि । वावन्नकुदंसणवत्रणा, य सम्मत्तसद्दहणा ।। २८ ॥ नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं, दसणे उ भइयत्वं । सम्मत्तचरित्ताई, जुगवं पुर्व व समत्तं ॥ २९ ॥
नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा । अग्रणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निवाणं ॥३० ।
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(४८)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
निस्संकिय-निकंखिय निवितिच्छा अमूढदिट्ठी य । उबवूह थिरीकरणे, वच्छल पभावणे अट्ठ ॥ ३१ ॥ सामाइत्थ पढम, छेओवट्ठावणं भये बीयं । परिहारविसुद्धीय, सहुमं तह संपरायं च ॥ ३२ ।। अकसायमहक्खाय, छउमथत्स्स जिणस्स वा। एवं चयरित्तकर, चारित्तं होइ आहियं ॥ ३३ ॥ तवो य दुविहो वुत्तो, वाहिरब्भन्तरो तहा। बाहिरो छबिहो वुत्तो, एमेकन्भण्तरो तवो ।। ४ ॥ नाणेण जाणई भावे. दंसणेण य सदहे । चरित्तण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झइ ।। ३५ ॥ खवेत्ता युवकमाई, संजमेण तवेण य । सबदुक्खपहीणट्ठा, पक्कमन्ति महे सिणो ॥ ३६ ॥
त्ति बेमि ।। इअ मोक्खमग्गगई समत्ता ॥ २८ ॥
॥ अह सम्मत्तपरकम एगूणतीसइमं अज्झयणं ॥ सुयं मे आउसं-तेण भगवया एवमक्खायं । इह खलु सम्मत्तपरकमे नाम अज्झयणे समणेण भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए, जं सम्मं सद्दहित्ता पतियाइत्ता रोयइत्त फासित्ता पालइत्ता तीरित्ता कित्तइत्ता सोहइत्ता आराहित्ता आणाए अणुपालइत्त बहवे जीवा सिज्झन्ति बुज्झन्ति मुच्चन्ति परिनिवायन्ति सव्वदुक्खाणमन्तं करेन्ति । तस्स णं अयमढे एवमाहिजइ, तंजहा-संवेगे १ निवेए २ धम्मसद्धा ३ गुरुसाहम्मियसुरसूसणया ४ आलोयणया ५ निन्दणया ६ गरिहणया ७ सामाइए ८ चउबीसत्थवे ९ वन्दणे १० पडिक्कमणे ११ काउस्सग्गे १२ पञ्चक्खाणे १३ थवथुईमंगले १४ कालपडिलेहणया १५ पायच्छित्तकरणे १६ खमावयवया १७ सज्झाए १८ वायणया १९ पडिपुच्छणया २. पडियट्टणया २१ अणुप्पेहा २२ धमकहा २३ सुयस्स आराहणया २४ एगग्गमणसंनिवेसणया २५ संजमे २६ तवे २७ वोदाणे २८ सुहसाए. २९ अपडिवद्धया ३० विवित्तसयणासणसेवणया ३१ विणियट्टणया १२ संभोगपञ्चक्खाणे ३३ उवहिपञ्चक्खाणे ३४ आहारपच्चक्खाणे ३५ कसायपञ्चक्खाणे ३६ जोगपञ्चक्खाणे ३७ सरीरपञ्चक्खाणे ३८ सहायपच्चक्खाणे ३९ भत्तपचक्खाणे ४० सब्भावपच्चक्खाणे ४१ पडिरूवणया ४२ वेयावच्चे ४३ सत्वगुणसंपुण्णया ४४ वीयरागया ४५ खन्ती ४६ मुत्ती ४७ मदवे ४८ अन्जवे ४९ भावसच्चे ५० करणसच्चे ५१ जोगसच्चे मणगुत्तया ५३ वयगुत्तया ५४ कायगुत्तया ५५ मणसमाधारणया ५६ वयसमाधारणया ५७ कायसमाधारणया ५८ नाणसंपन्नया ५९ दंसणसंपन्नया ६० चरित्तसंपन्नया ६१ सोइन्दियनिग्गहे ६२ चक्खिन्दियनिग्गहे ६३ घाणिन्दियनिग्गहे ६४ जिभिन्दियनिग्गहें ६५ फासिन्दियनिग्गहे ६६ कोहविजए ६७ माणविजए ६८ मायाविजए ६९ लोहविजए ७० पेजदोसमिच्छादसणविजए ७१ सेलेसी ७२ अकम्मया ॥७३॥ - संवेगेणं भन्ते जीवे किं जणयइ। संवेगणं अणुत्तरं धम्मसद्धं जणयइ । अणुत्तराए धम्मसद्धाए संवेगं हवमागच्छइ अणन्ताणुवन्धिकोहमाणमायालोमे खवेइ । कम्मं न बन्धइ । तप्पच्चयं च णं मिच्छत्तविसोहिं काऊण दंसणाराहए भवइ । दसणविसोहीए य णं विसुद्धाए अत्जेगइए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झई । सोहीए य णं विसुद्धाए तचं पुणो भवग्गहणं नाइक्कमइ ॥ १ ॥ निव्वेदेणं
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-एगूणतीसमाध्ययनम्
(४९) भन्ते जीवे किं जणयइ। निवेदेणं दिवमाणुसतेरिच्छएसु कामभोगेसु निव्वेयं हत्वमागच्छेइ सबविसएसु विरजइ । सबविसएसु विरजमाणे आरम्भपरिचायं करेइ। आरम्भपरिचायं करेमाणे संसारमग्गं वोच्छिन्दइ, सिद्धिमग्गं पडिबन्ने य भवइ । २॥ धम्मसद्धाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । धम्मसद्धाए णं सायासोक्खेसु रजमाणे विरजइ। आगारधम्मं च णं चयइ। अणगारिए णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं छेयणभेयणसंजोगाइणं वोच्छेयं करेइ अव्वाबाहं च सुहं निव्वत्तेइ ॥ ३ ॥ गुरुसाहम्मियसुस्सूसणाए णं विणयपडिवत्तिं जणयइ । विणयपडिवन्ने य णं जीवे अणाचासायणसीले नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवदुग्गईओ निरुम्मइ । वण्णसंजलणभत्तिबहुमाणयाए मणुस्सदेवगईओ निबन्धइ, सिद्धिं सोग्गइं च विसोहेइ । पसत्थाई च णं विणयामूलाई सबकजाइं साहेइ अन्ने य बहवे जीवे विणिइत्ता भवइ ।।४। आलोयणाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । आलोयणाए णं मायानियाणमिच्छा. दंसणमल्लाणं मोक्खमग्गविग्घाणं अणंतसंसारबन्धणाणं उद्धरणं करेइ। उज्जुभावं च जणयइ । उज्जु. भावपडिबन्ने य णं जीवे अमाई इत्थीवेयनपुंसगवेयं च न बन्धइ । पुवबद्धं च णं निजरेइ ॥ ७ ॥ निन्दणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । निन्दणयाए णं पच्छाणुतावं जणयइ । पच्छाणुतावेणं विरजमाणे करणगुणसेढिं पडिवजः । करणगुणसेढीपडिबन्ने य णं अणगारे मोहणिजं कम्मं उग्घाएइ॥६॥ गरहणयाए णं भंते जीवे किं जणयइ। गरहणयाए अपुरेक्कारं जणयइ । अपुरेक्कारगए णं जीवे अप्पसत्थेहितो जोगेहिंतोनियत्तेइ,पसत्थे य पडिवज्जइ । पसत्थजोगपडिवन्ने यणं अणगारे अणन्तघाइपजवे खवेइ ७||सामाइएणं भन्ते जीवे किं जणयइ । सामाइएणं सावजजोगविरइं जणयइ।।८॥चउव्वीसत्थएणं भन्ते जीवे किं जणयइ । च० दंसणविसोहिं जणयइ।९। वन्दणएणं भन्ते जीवे किं जणयइ। व०नीयागोयं कम्मं खवेइ। उच्चागोयं कम्मं निबन्धइ सोहग्गं च णं अपडिहियं आणाफलं निवत्तेइ । दाहिणभावं च णं जणयइ ॥१०॥ पडिक्कमणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । प० वयछिद्दाणि पिहेड । पिहियवयछिद्दे पुण जीवे निरुद्धासवे असबलचरित्ते अट मु पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते सुप्पणिहिइंदिए विहरइ ।। ११ ॥ काउसग्गेणं भन्ते जीवे कि जणयइ । का० तीयपडुप्पन्नं पायच्छित्तं विसोहेइ । विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे नियहियए ओहरिभरु ध्व भारवहे पसत्थज्झाणोवगए मुहं सुहेणं विहरइ ॥ १२ ॥ पञ्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । प० आसवदाराई निरुम्भड । पच्चक्खाणेणं इच्छानिरोहं जणयइ । इच्छानिरोहं गए य णं जीवे सन्धदव्वेसु विणीयतण्हे सीइभूए विहरई ॥ १३ ॥ थवथुइमंमलेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । य० नाणदंसणचरित्तबोहिलाभं जणयइ । नाणदंसणचरित्तबोहिलाभसंपन्ने य णं जीवे अन्तकिरियं कप्पविमाणोववत्तिगं आराहणं आराहेइ ।। १४ ॥ कालपडिलेहणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । का० नाणावरणिज्जं कम्म खवेइ ॥ १५ ॥ पायच्छित्तकरणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । पा० पावविसोहिं जणयइ, निरइयारे वावि भवइ । सम्म च णं पायच्छित्तं पडिवजमाणे मग्गं च मग्गफलं च विसोहेइ. आयारं च आयारफलं च आराहेइ ॥ १६ ॥ खमावणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ख० पल्हायणभावं जणयइ । पल्हायणभावमुवगए य सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु-मेत्तीभावमुप्पाएइ । मेत्तीभावमुवगए यावि जीवे भावविसोहिं काऊण निभए भवइ ॥१७॥ सज्झाएण भन्ते जीवे किं जणयइ । स० नाणावरणिज्जं कम्म खवेइ ॥ १८ ॥ वायणाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । वा० निजरं जणयइ सुयस्स य अणासायणाए
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला वट्टए । सुयसअणासायणाए वट्टमाणे तित्थधम्म अवलम्बइ । तित्थधम्म अलम्बमाणे महानिजरे महापज्जवसाणे भवइ ॥ १९ ॥ पडिपुच्छणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । प० मुत्तत्थतदुभयाई विसोहेइ । कंखामोहणिज्जं कम्मं वोच्छिन्दइ ॥२०॥ परियट्टणाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ५० वंजणाई जणयइ, वंजणलद्धिं च उप्पाएइ ॥२१॥ अणुप्पेहाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । अ०आउयवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ घणियबन्धणबद्धाओ सिढिलबन्धणलद्धाओ पकरेइ । दीहकालहिइयाओ हस्सकालठिई आसी पकरेइ । तिवाणुभावाओ मन्दाणुभावाओ पकरेइ । (बहुपएसग्गाओ अप्पपएसग्गाओ पकरेइ) आउयं च णं कम्मं सिया बन्धइ, सिया नो बन्धइ । असावेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ। अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरन्तं संसारकन्तारं खिप्पामेव वीइवमइ ॥२२॥ धम्मकहाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ध निजरं जणयइ । धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ । पवयणपभावेणं जीवे आगमेसस्स भद्दत्ताए कम्मं निबन्धइ ॥ २३॥ सुयस्स आराहणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । सु० अन्नाणं खवेइ न य संकिलिस्सइ ।। २४ ॥ एगग्गमणसंनिवेसण. याए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ए.चित्तनिरोहं करेइ ॥ २५ ॥ संजमएणं भन्ते जीवे किं जणयह । स० अणण्हयत्तं जणयइ ॥ २६ ॥ तवेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ तवेणं वोदाणं जणयइ ॥ २७ ॥ वोदाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । वो० अकिरियं जणयइ । अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ मुच्चइ परिनिवायइ सबदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ २८ ॥ सुहसाएणं भन्ते जीवे किं जणयइ । सु० अणुस्मुयत्तं जणयइ । अणुस्सुयाए णं जीवे अणुकम्पए अणुब्भडे विगयसोगे चरितमोहणिज्नं कम्मं खवेइ ॥२९॥ अप्पडिबद्धयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । अ० निस्संगतं जणयइ । निस्संगत्तणं जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया य राओ य असज्जमाणे अप्पडिबद्धे यावि विहरइ ॥ ३० ॥ विवित्तसयणासण याए णं भन्ते जीवे किं जणयह । वि० चरित्तगुत्तिं जणयइ । चरित्तगुत्ते य ण जीवे विवित्ताहारे दढचरित्ते एगन्तरए मोक्खभावपडिवन्ने अट्ठविहकम्मगंठिं निज़रेइ ॥३१॥ विनियट्टयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । वि० पावकम्माणं अकरणयाए अब्भुटेइ । पुचबद्धाण य निजरणयाए तं नियत्तेइ । तओ पच्छा चाउरन्तं संसारकन्तारं वीइवयइ ।। ३२ ॥ संभोगपञ्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । सं० आलम्बणाई खवेइ । निरालम्बणस्स य आयडिया योगा भवन्ति । सएणं लाभेणं संमुस्सइ, परलाभं नो आसादेइ, परलाभं नो तकेइ, नो पीहेइ, नो पत्थेइ, नो अभिलसइ । परलाभ अणस्सायमाणे अतक्केमाणे अपीहमाणे अपत्येमाणे अणभिलसमाणे दुच्चं सुहसेज्जं उववसंपज्जित्ता ण विहरइ ॥ ३३ ॥ उवहिपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । उ० अपलिमन्थं जणयइ । निरुवहिए णं जीवे निकंखी उबहिमन्तरेण य न संकिलिस्सई ॥३४॥ आहारपञ्चकखाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । आ० जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दइ । जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दित्ता जीवे आहारमन्तरेणं न संकिलिस्सइ ॥ ३५ ॥ कसायपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ। क० वीयरागभावं जणयह । वीयरागभावपडिवने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ ॥ ३६ ॥ जोगपञ्चक्खाणेणं भन्ने जीवे किं जणयइ । जो० अजोगत्तं जणयह अजोगे णं जीवे नवं कम्मं न बन्धइ, पुत्वबद्धं निजरेइ ।। ३७ ॥ सरीरपञ्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । स० सिद्धाइसयगुणकित्तणं निवत्तेइ सिद्धाइसयगुणसंपन्ने यणं जीवे लोगग्गमुवगए परमसुही भवइ ॥ ३८ ॥
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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र - एगूणतीस माध्ययनम्
(५१)
सहायपञ्चक्खाणेण भन्ते जीवे किं जणयइ । स० एगीभावं जणयइ । एगीभावभूए वि य णं जीवे एगत्तं भावेमाणे अप्पझंझे अप्पकलहे अप्पकसाए अप्पतुमंतु मे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए यावि भवइ ।। ३९ ।। भत्तपच्चक्खाणेण भन्ते जीवे किं जणयइ । भ० अणेगाई भवसयाई निरुम्भइ ॥ ४० ॥ सब्भावपचक्खाणं भन्ते जीवे किं जणय स० अनिय िजणयइ । अनियहिपडिवने य अणगारे `चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ तंजहा - वेयणिज्जं आउयं नामं गोयं । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ सङ्घदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ ४१ ॥ पडिरूवणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । प० लाघवियं जणइ । लघुभ्रूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसत्थलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सवपाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिज्जरूवे अप्पडिलेहे जिइन्दिए विउलतवसमिइससन्नागए यावि भव ॥ ४२ ॥ यावच्णं भन्ते जीवे किं जणयइ । वे० तित्थयरनामगोत्तं कम्मं निबन्ध || ४३ ॥ सवगुणसंपनयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । स० अपुणरावत्ति पत्तए य णं जीवे सारीरमाणमाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ ॥ ४४ ॥ वीयरागयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । धी नेहाणुबन्धणाणि तण्हाबन्धणाणि यवोच्छिन्दइ, मणुन्नामणुन्नेसु सद्दफरिसरूवरसगन्धसु चेव विरज्जइ ॥ ४५ ॥ खन्तीए णं भन्ते जीवे किं जणयइ • ख० परीस हे जिइ ॥ ४६ ॥ मुत्तीए णं भन्ते जीवे किं जणयइ | मु० अकिंचणं जणयइ । अकिंचणे य जीवे अत्थलोलाणं अपत्थणिज्जो भवइ ॥ ४७ ॥ अज्जवयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । अ० काउज्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जुययं अविसंवायणं जणयइ । अविसंवायणसंपन्ना णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ ॥ ४८ ॥ मद्दवयाए णं भन्ते जीवे किं जणयः । म० अणुस्सियत्तं जणयइ । अणुस्सियत्तेण जीवे मिउमद्दवसंपन्ने अट्ठ मयहाणारं निट्ठावे ।। ४९ ।। भावसच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । भा० भावविसोहिं जणयइ | भावविसोहिए वट्टमाणे जीवे अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अष्ट्ठेइ । अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्टा पर लोगधम्मस्स आहए भवइ ।। ५० ।। करणसच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । क० करणसतिं जणयइ । करणसच्चे वट्टमाणे जीवे जहा वाई तहा कारी यावि भव ॥ ५१ ॥ जोग सच्चेणं भन्ते जीवे किं जणय | जो० जोगं विसोहेइ ।। ५२ ।। मणगुत्तयाए गंभन्ते जीवे किं जणयइ म० जीवे एगग्गं जणयइ | एगग्गचित्ते णं जीवे मणगुते संजमाराहए भवइ ।। ५३ ।। वयगुत्तयाए णं भन्ते जीवे किं जणय । व० निवियारं जणयह। निब्बियारे णं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगसाहण जुत्ते यावि विर || ५४ ॥ कायमुत्तयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । का० संवरं जणय | संवरणं काय पुणो पावास निरोहं करे || १५ || मणसमाहारणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयह । म० एग जय । एगग्गं जणइत्ता नाणपञ्जवे जणय | नाणपञ्जवे जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ मिच्छतं व निजts || ५३ ।। वयसमाहारणयाए भन्ते जीवे किं जणयइ । व० वयसमाहारणदंसणपज्जवे विसहेइ । वयसाहारणदंसणपज्जवे विसोहित्ता सुलहबोहियत्तं निवत्ते, दुल्लहबोहियत्त निज्जरेइ ॥ ५७ ॥ कायसमाहारणयाए णं भन्ते जीवें किं जणयइ । का० चरित्तपञ्जवे विसोहेइ । चरितपजवे विसोहित्ता अक्खायचरितं विसोहेइ । अडक्खायचरितं विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झ मुम्बइ परिनिवाड़ सङ्घदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ ५८ ॥ नाणसंपन्नयाए णं भन्ते जीवे किं "जणयः । ना० जीवे सदभावाहिगमं जणयई । नाणसंपन्ने जीवे चाउरन्ते संसारकन्तारे न विणस्स |
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(५२)
श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला.
जहा सूई सत्ता न विणस्सइ तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विणस्सइ, नाणविणयतवचरित्राजोगे संपाउइ, ससमयपरसमय विसारए य असंघायणिज्जे भवइ ।। ५९ ।। दंसणसंपन्नयाए णं भंते जीवे किं जणमइ । दं० भवमिच्छत्तछेयणं करेइ न विज्झाय । परं अविज्झाएमाणें अणुत्तरेणं नागदंसणेणं अप्पाणं संजोएमा सम्मं भावेमाणे विहरइ ॥ ६० ॥ चरितसंपन्नयाए णं भंते जीवे किं जणय | च० सेलेसीभावं जणयः । सेलेसिं पडिवने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेड़ । तओ पच्छा सिज्झइ बुझइ मुच परिनिवाय सवदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ ६१ ॥ सोइन्दियनिग्गणं भन्ते जीवे किं जणयइ । सो॰ मणुन्नमणुन्नेसु सदेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुबद्धं च निजरेइ || ६२ ॥ चक्खिन्दियनिग्गणं भन्ते जीवे किं जणयइ । च० मणुन्नामणुन्नेसु रूवेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुवबद्धं च निज्जरेइ ।। ६३ ।। घाणिन्दियनिग्गणं भन्ते जीवे किं जणयइ । घा० मणुन्नामणुन्नेसु गन्धेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तमचयं कम्मं न बन्धइ, पुवबद्धं च निज्जरेइ ॥ ६४ ॥ जिब्भिन्दियनिग्गणं भन्ते जीवे किं जय | जि० मणुन्नामणुन्ने रसेसु रागदोषनिग्गहं जणुयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुवबद्धं च निजरेइ || ६५ || फासिन्दियनिग्गणं भन्ते जीवे किं जणयइ । फा० यणुन्नामणुन्ने फासेसु रागदोषनिहं जणय, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुवबद्धं च निजरेइ || ६६ || कोह विजएणं भन्ते जीवें किं जणय | को- खन्ति जणयइ. कोहवेय णिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुवबद्धं च निजरेइ | ६७ || माणविजएणं भन्ते जीवे किं जणयइ । मा० मद्दवं जणयइ, मायावेयणिज्जं कम्मं न बन्धर, पुवबद्धं च निज्जरे || ६८ || मायाविजएणं भन्ते जीवे किं जणयइ । मा० अज्जवं जणयह, मायावेयणिजं कम्मंनबन्ध, पुवबद्धं च निजरेइ ।। ६९ ।। लोभविजएणं भन्ते जीवे किं जणयइ | लो० संतोसं जणयइ, लोभवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुवलद्धं च निजरेइ ॥ ७० ॥ पिज्जदोस मिच्छादंसणविजएणं भन्ते जीवे किं जइ । पि० नाणदंसण चरिताराहणयाए अब्भुट्ठे । अट्ठविहस्स कम्मस्स कम्म
मिया तप्पढमयाए जहाणुपुवीए अट्ठट्ठवीसइविहं मोहणिज्जं कम्मं उग्धाएइ, पञ्चविहं नाणावणिज्जं नवविहं दंसणावरणिज्जं, पंचविहं अन्तराइयं, एए तिन्निवि कम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा अणुत्तरं कसिणं पडिपुत्णं निरावरणं दितिमरं विमुद्धं लोगालोगप्पभावं केवलवरना णदंसणं समुप्पाडे । जाव जोगी भवर, तात्र ईरियावहियं कम्मं निबन्धइ सुहफरिसं दुसमयठिइयं । तं पढमसम बर्द्ध, विश्यसमए वेइयं, तइयसमए निजिणं, तं बद्धं पुढं उदीरियं वेइयं निजिणं सेयाले य अकम्भयाच भवइ ॥ ७१ ॥ अह आउयं पालइत्ता अन्तोमुहुत्तद्भाव से साए जोगनिरोहं करेमाणे सुहुम किरियं अप्पडिवाई सुक्कज्झाणं झायमाणे तप्पढमयाए मणजोगं निरुंभइ वयजोगं निरुंभई, कायजोगं निरंभ, आणपाणुनिरोहं करेइ, ईसि पंचरहस्सक्खरुच्चारणडाए य णं अणगारे समुच्छिन्नकिरिये अ नियट्टिकज्झाणं झियायमाणे वेयणिज्जं आउयं नामं गोत्तं च एए चत्तारि कम्मं से जुगवं खवे ॥ ७२ ॥
ओ ओरालियतेयकम्माई सवाहिं विप्पजणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढिपत्ते अफुसमा गई उड्ड एग - समएणं अविग्गहेणं तत्थ गन्ता सागारोवउत्ते सिज्झइ बुझइ जाव अंत करेइ || ७३ || एस खलु सम्मत्तपरकम्मस्स अज्झयणस्स अड्डे समणेण भगवया वहावीरेण आघविए पन्नविए परूविए दंसि उदंसि ॥ ७४ ॥ ति बेमि ॥ इअ सम्मत्तपरक्कमे समत्ते ॥ २९ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र - तीसमाध्ययनम्
॥ अह तवमग्गं तीसइमं अज्झयणं ॥
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११ ॥
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१५ ।।
जहा उ पावगं कम्मं, रागदोसस मज्जियं । खवेइ तवसा भिक्खु, तमेगग्गमणो सुण ॥ पाणि वह मुसावायाअदत्त मेहुणपरिग्गहा विरओ । राईभोयणविरओ, जीवो भवइ अणासवो ॥ पंचसमिओ तिगुत्तो, अकसाओ जिइन्दिओ । अगारवो य निस्सल्लो, जीवो होइ अणासवो ॥ एएसिं तु विवच्चासे, रागदोससमज्जियं । खवेड़ उ जहा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुण ॥ जहा महातलायस्स, सन्निरुद्धे जलागमे । उस्सिंचणाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे ॥ ५ ॥ एवं तु संजय सावि, पावकम्मनिरासवे । भवकोडीसंचियं कम्मं, तवसा निज्जरिज्जइ || ६ || सो तो दुवित्तो, बाहिरम्भन्तरो तहा । बाहिरो छविहो वृत्तो, एवमन्भन्तरो तवो ॥ ७ ॥ अणसणमूणोयरिया, भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ। कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ॥ ८ ॥ इत्तरिय मरणकाला य, अणसणा दुविहा भवे । इत्तरिय सावकंखा, निरखकखा उ विइज्जिया ॥ ९ ॥ जो सोइतरियतवो, सो समासेण छविहो । सेढितवो पयरतवो, घणो य तह होइ वग्गो य ॥ तत्तो य वग्गवग्गो, पंचमो छडओ पइणतवो। मणच्छियचित्तत्थो, नायवो होइ इतरिओ जसा असणा मरणे, दुविहा सा वि वियाहिया । सवियारमवियारा, कायचिङ्कं पई भवे अहवा सपरिकम्मा, : अपरिकम्मा य आहिया । नीहारिमनीहारी, आहारच्छेओ दो वि ओमोयरणं पंचहा, समासेण वियाहियं । दवओ खेत्तकालेणं, भावेणं पज्जवेहि य जो जस्स उ आहारो, तत्तो ओमं तु जो करे । जहनेणेग सित्थाई, एवं दवेण ऊ भवे ।। गामे नगरे तह रायहाणिनिगमे य आगरे पल्ली | खेडे कब्बडदोणमुहपट्टणमडम्बसंवाहे ॥ आसमपए विहारे, सन्निवेसे समायघोसे य । थलिसेणान्धारे, सत्थे संवट्टकोट्टे य वाडे व रच्छाव, घरे वा एवमित्तियं खेत्तं । कप्पई उ एवमाई, एवं खेत्तेण ऊ भवे पेडा य अपेडा, गोमुत्तिपयंग वीहिया चेव । सम्बुकावट्टायय गन्तुं पच्चागया छट्ठा दिवसस्स पोरुसीणं, चउद्दं पि उ जत्तिओ भवे कालो । एवं चरमाणो खलु. कालोमाणं मुणेयवं अहवा तझ्याए पोरिसीए- ऊणार घास मेसन्तो । चउभागूणाए वा, एव कालेण ऊ भवे इत्थी वा रिसोवा, अलंकिओ वा नलं क्किओ वावि । अन्नयरवयत्थो वा, अन्नयरेणं व वत्थेणं ॥ अत्रेण विसेसेणं, वण्णेणं भावमणुमुयन्ते उ । एवं चरमाणो खलु भावोमाणं मुणेयवं ॥ दवे खेत्ते काले, भावम्मि य आहिया उ जे भावा। एएहि ओमचरओ, पज्जवचरओ भवे भिक्खू ॥ अविहगोयरग्गं तु, तहा सत्तेव एसणा । अभिग्गहा य जे अन्ने, भिक्खायरियमाहिया ॥ २५ ॥ खीरदहिसप्पमाई, पणीयं पाणभोयणं । परिवजणं रसाणं तु, भणियं रसविवजणं ।। २६ ।। ठाणा वीरासणाईया, जीवस्स उ सुहावहा । उग्गा जहा धरिज्जन्ति, काय किलेसं तमाहियं ।। २७ ।। एगन्तमणावाए, इत्थीपसुविवज्जिए । सणास सेवणया, विवित्तरायणासणं ॥ २८ ॥ एसो बाहिरगतवो, समासेण वियाहिओ । अन्भिन्तरं तवं एत्तो, वुच्छामि अणुपुवसो । २९ ।। पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तदेव सज्झाओ । झाणं च विसग्गो, एसो अब्भिन्तरो तवो ॥ ३० ॥
१६ ॥
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१७ ॥
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१८ ॥
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२१ ॥
२२ ॥
२३ ॥
२४ ॥
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१२ ॥
१३ ॥
१४ ॥
१९ ॥
२० ॥
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(५४)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला आलोयणारिहाईयं, पायच्छित्तं तु दसविहं । जं भिक्खू वहई सम्म, पायच्छित्तं तमाहियं ॥ ३१ ॥ अब्भुट्ठाणं अंजलिकरणं, तहेवासणदायणं । गुरुभत्तिभावसुस्सूसा, विणओ एस वियाहिओ ॥ ३२ ॥ आयरियमाईए, वेयावच्चम्मि दसविहे। आसेवणं जहागामं, वेयावच्चं तमाहियं ॥ ३३ ॥ वायणा पुच्छणा चेव, तहेव परियट्टणा। अणुप्पेहा धम्मकहा, अज्झाओ पञ्चहा भवे ॥ ३४ ॥ अदृरुद्दाणि वज्जित्ता, झाएज्जा सुसमाहिए। धम्मसुक्काई झाणाई, झाणं तं तु वुहावए । ३५ ।। सयणासणठाणे वा, जे उ भिक्खू न वावरे । कायस्स विउस्सगो, छट्ठो सो परिकित्तिओ ॥ ६॥ एवं तवं तु दुविहं, जे सम्मं आयरे मुणी। सो खिप्पं सबसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिओ ॥ ३७॥
त्ति बेमि ॥ इअ तवमग्गं समत्तं ।। ३० ॥
॥अह चरणविही एगतीसइमं अज्झयणं ॥ चरणविहिं पवक्खामि, जीवस्स उ सुहावहं । जं चरित्ता बहू जीवा, तिण्णा संसारसागरं ॥ १ ॥ एगओ विरई कुजा, एगओ य पवत्तणं । असंजमे नियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं ॥ २ ॥ रागदोसे य दो पावे, पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्खू रंभई निच, से न अच्छइ मण्डले ॥ ३ ॥ दण्डणं गारवाणं च, सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खू चयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ४ ॥ दिवे य जे उवसग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे । जे भिक्खू सहई जयई, से न अच्छइ मण्डले ॥ ५ ॥ विगहाकसायसन्नाणं, झाणाणं च दुयं तहा। जे वजई निन, से न अच्छइ मण्डले ॥ ६ ॥ वएसु इन्दियत्थेसु, समिईसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ७ ॥ लेसासु छसु काएमु, छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ८ ॥ पिण्डोग्गहपडिमासु, भयहाणेसु सत्तम् । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ९ ॥ मदेसु बम्भगुत्तीसु, भिक्खुधम्मम्मि दसविहे। जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १०॥ उवासगाणं पडिमासु, भिक्खूणं पडिमासु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ११ ॥ किरियासु भूयगामेसु, परमाहम्मिएमु य । जे भिक्खू जयई निच्चं, सं न अच्छइ मण्डले ॥ १२ ॥ गाहासोलसएहि, तहा असंजम्मि य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १३ ॥ बम्भम्मि नायज्झणेसु, ठाणेसु य समाहिए। जे भिक्खू जयइ निच, से न अच्छइ मण्डले ॥ १४ ।। एगवीसाऐ सबले, बावीसाए परीसहे । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १५ ।। तेवीसाइ सूयगडे, रूवाहिएसु सुरेसु अ । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्ड'ले ॥ १६ ॥ पणुवीसभावणासु, उद्देसेसु दसाइणं । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १७ ॥ मणगारगुणेहिं च, पगप्पम्मि तहेव य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १८ ॥ पायमुयपसंगेसु, मोहठाणेसु चेव य । जे भिक्खू जयइ निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १९ ॥ सिद्धाइगुणजोगेसु, तेत्तीसासायणासु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ २० ॥ इय एएसु ठाणेसु, जे भिक्खू जयई सया । खिप्पं सो सबसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डियो ।। २१ ।।
त्ति बेमि ॥ इअ चरणविही समत्ता ॥ ३१॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-बतीसमाध्ययनम्
॥ अह पमायठाणं बत्तीसइमं अज्झयण ॥
अञ्चन्तकालस्य समूलगस्स सबस्स दुक्खस्स उजो पमोक्खो। तं भासओ मे पडिपुण्णचित्ता, सुणेह एगन्तहियं हियत्थं ॥१॥ नाणस्स सब स पगासणाए, अन्नाणमोहस्स विवजणाए। . रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥२॥ तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा, विवजणा बालजणस्स दूरा। सज्झायएगन्तनिसेवणा य, सुत्तत्थसंचिन्तणया धिई य ॥ ३ ॥ आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं, सहायमिच्छे निउणत्थबुद्धिं । निके यमिच्छेज विवेगजोग्गं, समाहिकामे समणे तबस्सी ॥ ४ ॥ न य लभेजा नि उणं सहयं, गुणाहियं वा गुणओ समं वा । एक्को वि पवाइ विवजयन्ततो, विहरेज कामेसु असन्जमाणो ॥५॥ जहा य अएडप्पभवा बलागा. अण्ड बालागप्पभव जहा य। एमेव मोहाययणं खु तण्हा, पोहं च तण्हाययणं वयन्ति ॥ ६ ॥ रागो य दोसो विय कम्मबीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयन्ति । कम्मं च जाइमरणस्स मलं, दुक्खं च जाईमरणं वयन्ति ॥ ७ ॥ दुक्खं हयं जस्सन होइ मोहो, मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा । तण्हा हया जस्स न होइ लोहो, लोहो हओ जस्स न किंचणाई ॥८॥ रागं च दोसंच तहेव मोहं, उद्धत्तु कामेण समूलजालं। जे जे उबाया पडिवजियचा, ते कित्तइस्सामि अहाणुपुर्वि ॥ ९ ॥ रसा पगामं न निसेवियवा, पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिद्दवन्ति, दुमं जहा साउफलं व पक्खो ॥१०॥ जहा दवम्गी पउरिन्धणे वणे, समारुओ नोवसमं उवेई । एविन्दियग्गी वि पगामभोइणो,न बम्भयारिस्स हियायि कस्सई ॥११॥ विवित्तसेज्जासणजन्तियाणं, ओमासणाणं दमिइन्दियाण। न रागसत्त धरिसेइ चित्तं, पराइओ वाहिरिवोसहेहिं ।। १२ ॥ जहा विरालावसहस्स मूले, न मूसगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे, न बम्भयारिस्स स्वमो निवासो॥ १३ ॥ न रूबलावण्णविलासहासं, न जंपियंइंगियपेहियं वा। इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता, दो ववस्से समणे तवस्सी ॥ १४ ॥ अदसणं चेव अपत्थणं च, अचिन्तणं चेव अकित्तणं च । इत्थीजणस्सारियज्माणजुग्गं, हियं सया बम्भवए रयाणं ॥ १५॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
कामं तु देवीहि विभूसियाहिं, न चाइया खोभइउं तिगुत्ता। तहा वि एगन्तहियं ति नच्चा, विवित्तचासो मुणिणं पसत्थो ॥ १६ ॥ मोक्खाभिकंखिस्स उ माणवस्स,संसारभीरुस्स ठियरस धम्मे । नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए, जहित्थिओ बालमणोहराओ ॥ १७ ॥ एए य संगे समइक्कमित्ता, सुदुत्तरा चेव भवन्ति सेसा । जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गङ्गासमाणा ॥ १८॥ कामाणुगिद्धिप्पभवं खू दुक्खं, सवस्स लोगस्स सदेवगस्स । जे काइयं माणसियं च किंचि, तस्सन्तगं गच्छइ वीयरागो ॥ १९ ॥ जहा य किम्पागफलामणोरमा, रसेण वण्णेण य भुजमाणा। ते खुड्डए जीविय पच्चमाणा, एओवमा कामगुणा विवागे ॥ २० ॥ जे इन्दियाणं विसया मणुना, न तेसु भाव निसिरे कयाइ । न यामणुन्नेसु मणं पि कुज्जा, समाहिकामे समणे तवस्सी ॥ २१ ॥ चक्खुस्स चक् गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुनमाहु । तं दोसहेउं अमणुनमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ २२ ॥ रुवस्स चक्खु गहणं वयन्ति, चक्खुस्स रूवं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ २३ ॥ रूवेसु जो गेहिमुवेइ तिवं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे से जह वा पयंगे, आलोयलोले समुवेइ मच्चु ॥ २४ ॥ जे यावि दोसं समुवेई तिवं, तंसिक्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुहन्तदोसेण सएण जन्तू, न किञ्चि रूवं अवरज्झई से ॥ २५ ॥ एगन्तरत्ते रुहरंसि रूवे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स सम्पीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागा ॥ २६ ॥ रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइ तेणरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तद्वगुरू किलिटे ॥ २७॥ रूवाणुवाएण परिग्गहेण, उपायणे रक्खणसनिओगे। वए विओगे य कहं सुहं से, वए सम्भोगकाले य अतित्तलामे ॥ २८ ॥ रूवे अतित्ते य परिगहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढि । अतुढिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ २९ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रूवे अतितस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा विमुच्चई से ॥ ३०॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, रूवे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ३१ ॥ रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किश्चि ।
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श्री उत्तराध्ययन सूत्र - बतीस माध्ययनम्
३८ ॥
तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निवत्तई जस्स करण दुक्खं ॥ ३२ ॥ एमेव रूम्म गओ ओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पट्ठचित्तो यचिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ३३ ॥ रूवे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमज्झे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ३४ ॥ सोयस स हणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु | तं दोसउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ३५ ॥ सदस्स सोयं गहणं वयन्ति, सोयस्स सदं गहणं वयन्ति । रागस्स हे समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु || ३६ || सद्देसु जो गेहिमुवे तिबं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे हरिणमिगे व मुद्धे सद्दे अतित्ते समुवे मच्चुं ॥ ३७ ॥ जे यावि दोसं समुइ तिबं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किञ्चि सद्दं अवरुज्झई से ॥ एगन्तर रुइरंसि सदे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स सम्पीलमुवे बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ३९ ॥ सद्दाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चितेहि ते परतावे बाले, पीलेइ अतट्ठगुरू किलिट्ठे ॥ ४० ॥ सद्दाणुवारण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खगसन्निओगे । ar विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतितला ॥ ४१ ॥ स अतित् य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवैइ तुट्ठि । अतुट्ठदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ४२ ॥ तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य । माया वह लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुम्बई से ॥ ४३ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, सदे अतितो दुहिओ अणिस्सो ॥ ४४ ॥ सद्दारत्तस्स रस्स एवं, कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थभोगे वि किलेस दुक्खं, निवत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ४५ ॥ एमेव सहम्मि गओ पओसं, उवेह दुक्खोहपरंपराओ । पट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ४६ ॥ स विरतो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्प भवमज्झे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ४७ ॥ घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति, तं राअहेउं तु मणुन्नमाहु |
दोस अमनमाडु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ४८ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त - खाध्यायमाला
गन्धस्स घाणं गहणं वयन्ति, घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोपस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ४९ ॥ गन्धे जो गेहिमुवे तिबं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे ओसहगन्धगिद्धे, सप्पे बिलाओ वित्र निक्खमंते ॥ ५० ॥ जे यावि दोसं समुवे तिवं, तंसिक्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि गन्धं अवरुज्झई से । ५१ ॥ एगन्तर रुरंसि गन्धे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवे बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ५२ ॥ गन्धाणुगासागर य जीवे, चराचरे हिंसइणेगरूवे । चितेहि ते परतावे वाले, पीले अत्तगुरू किलिट्टे ॥ ५३ ॥ गन्धाणुवाएण परिग्गण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । ar विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ॥ गन्धे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि ।
५४ ॥
दोसे दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ५५ ॥ तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, गन्धे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुखं वड्ड लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुन्नई से ।। ५६ ।। मोस्स पच्छाय पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, गन्धे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ५७ ॥ गन्धाणुरतस्स रस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थभोगे वि किलेसदुक्खं निवतई जस्स करण दुक्खं ॥ ५८ ॥ एमेव गन्धम्म गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ ।
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चित्तो यचिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ५९ ।। गन्धे विरतो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । नलिई भवमज्झेवि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ६० ॥ जिन्भाए रसं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु | तं दोसउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ।। ६१ ।। रसस्स जिन्भं गहणं वयंति, जिन्भाए रसं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ रसेसु जो गेहिमुवेइ तिबं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे व डिसविभिन्नकाए, मच्छे जहा आमिस भोगसिद्धे ॥ ६३ ॥ जे यावि दो समुवे तिबं, तंसिक्खणे से उ उवेड़ दुक्खं । दुहन्तदोसेण सण जन्तू, न किंचि रसं अवरुज्झई से ॥ ६४ ॥ एगन्तरते रुइरंसि रसे, अतालिसे से कुणई पओसं
६२ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र - बतीस माध्ययनम्
दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ६५ ॥ रसाणुगासाणुगए य : जीवे, चराचरेहिंसइणेगरूवे । चिंहि ते परतावे वाले पीलेइ अत्तगुरु किलट्ठे ॥ ६६ ॥ रसाणुवाण, परिग्गण, उप्पायणे रक्खणसंनिओगे |
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विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलामे ॥ ६७ ॥ रसे अति य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उबेह तुट्ठि । अतुट्ठदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ६८ ॥ तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रसे अदत्तस्स परिग्गहे य । मायामु बढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ६९ ॥ मोसस्स पच्छाय पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ७० ॥ रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थभोगे वि किलेसदुक्खं, निवतई जस्स कएण दुक्खं ॥ ७१ ॥ एमेव रसम्म गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पट्ठचित्तोय चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ७२ ॥ रसे विरतो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । नलिई भवमज्झे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ७३ ॥ कायरस फास गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु | तं दो सहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ७४ ॥ फासस्स कायं गहणं वयन्ति, कायस्स फासं गहणं वयंति । गगस्स हे समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ७५ ॥ फासेसु जो गेहिमुवे तिथं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे सीयजलावसन्ने, गाहग्गहीए महिसे विवन्ने ॥ ७६ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिब्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं ।
दोसेण सण जन्तू न किंचि फासं अवरुज्झई से ॥ ७७ ॥ एगन्तरतं रुइरंसि फासे, आतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवे बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ७८ ॥ फासाणुगासागर य जीवे, चराचरे हिंसइणेगरूवे । चितेहि ते परतावेड़ बाले, पीले अत्तट्टगुरूकिलिट्ठ ॥ ७९ ॥ फासाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । ar विओगे यह सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलामे ॥ ८० ॥ फासे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेह तुट्ठि । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ८१ ॥
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(द)
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
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तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो,फासे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ८२ ।। मोसस्स पच्छा य पुरत्थओय, पओगकाले य दुही दुरत्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो,फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ८३ ।। फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निवतई जस्स कएण दुक्खं ॥ ८४ ॥ एमेव फासम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ८५ ।। फासे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । नलिप्पई भवमझे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ८६ ॥ मणस्स भावं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुनमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ८७ ॥ भावस्स मणं गहणं वयन्ति, मणस्स भावं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुनमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ८८॥ भावेसु जो गेहिमुवेइ तिवं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे, करेणुमग्गावहिए गजे वा ॥ ८९ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिवं, तंसिक्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि भावं अवरुज्झई से ॥ ९०॥ एगन्तरत्ते रुहरंसि भावे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ९१ ॥ भावाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे ।। चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तट्ठयुरू किलिटे ॥ ९२ ।। भावाणुबाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ॥ ९३ ॥ भावे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढ़ि । अतुद्विदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ९४ ॥ तण्हामिभूयस्स अदत्तहारिणो, भावे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ९५ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पंओंगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समायंयन्ती, भावे अतित्तों दुहिओ.अणिस्सो ॥ ९६ ॥ भावाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो मुहं होज कयाई किंचि । वत्थोवभोगे वि किले सदुवखं, नितई.जास करण दुक्खं ॥ ९७ ॥ एमेव भावम्मि गओ पओसी, उवेइ-दुक्खोईपरंपराओ।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र - बतीसमाध्ययनम्
पट्टचित्तोय चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ९८ ॥ भावे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । नलिई भवमज्झे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणी पलासं ॥ ९९ ॥ एविन्दियत्थाय मणस्स अत्था दुक्खस्स हेउं मणुयस्स रागिणो । ते चैव थोपि कयाइ दुखं, न वीयरागस्स करेन्ति किंचि ॥ १०० ॥ न कामभोगा संयं उत्रेन्ति, न यावि भोगा विगई उवेन्ति । जेतप्पओसी य परिग्गही य, सो तेसु मोहा विगई उवेह ॥ १०१ ॥ कोहं च माणं च तदेव मायं, लोहं दुगुच्छं अरई रई च । हासं भयं सोगपुंमित्थिवेयं, नपुंसवेयं विविहे य भावे ।। १०२ ।। आवञ्जई एवमणेगरूवे, एवंविहे कामगुणेसु सत्तो । अने य एयपभवे विसेसे, कारुण्णदीणे हिरिमे वहस्से ॥ १०३ ॥ कं न इच्छिज्ज सहायलिच्छू, पच्छाणुतावे न तवप्पभावं ।
एवं वियारे अमिय पयारे, आवज्जई इन्दियचोरवरसे ॥ १०४ ॥ ओ से जायन्ति यणाई, निमिज्जिउं मोह महण्णवम्मि | सुसिणो दुक्खविणोयणट्ठा, तप्पच्चयं उज्जमए य रागी ॥ १०५ ॥ विरज्जमाणस्स य इन्दियत्था, सद्दाइया तावइयप्पगारा । न तस्स सवे वि मणुन्नयं वा, निवत्तयन्ती अमणुन्नयं वा ॥ १०६ ॥ एवं ससंकप्पविकप्पणासुं, संजायई समयमुवट्ठियस्स । अत्थे असंकप्पयओ तओ से, पहीयए कामगुणेसु तन्हा ॥ १०७ ॥ स वीयरागो कयसवकिच्चो, खवेइ नाणावरणं खणेणं । तदेव जं दंसणमावरे, जं चन्तरायं पकरेइ कम्मं ॥ १०८ ॥ सवं तओ जाणइ पासए य, अमोहणे होइ निरन्तराए । अणासवे झाणसमाहिजुत्ते, आउक्खए मोक्खमुवेइ सुद्धे ॥ १०९ ॥ सो तस्स सङ्घस्स दुहस्स मुक्को, जं वाहई सययं जन्तुमेयं । दीहामयं विमुको सत्थो, तो होह अच्चन्तसुही कत्थो ॥ ११० ॥ अणाइकालप्पभवस्स एसो, सङ्घस्स दुक्खस्स पमोक्खमग्गो । वियाहिओ जं समुविच्च सत्ता, कमेण अच्चन्तसुही भवन्ति ॥ १११ ॥ त्ति बेमि ॥ इअ पमायट्ठाणं समत्तं ॥ ३२ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
॥ अह कम्मप्पयडी तेत्तीसइमं अज्झयणं ॥
अट्ठ कम्माइं वोच्छामि, आणुपुत्विं जहाकमं । जेहिं बद्धो अयं जीवो, संसारे परिवट्टई ॥ १ ॥ नाणस्सावरणिज, सणावरणं तहा। वेयणिजं तहा मोहं, आउकम्मं तहेव य ॥ २ ॥ नामकम्मं च गोयं च, अन्तरायं तहेव य। एवमेयाइ कम्माई, अद्वेव उ समासओ ॥ ३॥ नाणावरणं पञ्चविहं, सुयं आभिणिबोहियं । ओहिनाणं च तइयं, मणनाणं च केवलं ॥ ४ ॥ निद्दा तहेव पयला, निद्दानिदा पयलपयला य । ततो यथीणगिद्धी उ, पंचमा होइ नायवा ॥५॥ चक्खुमचक्खूओहिस्स, दंसणे केवले य आवरणे । एवं तु नवविगप्पं, नायवं दसणावरणं ॥ ६॥ वेयणीयपि य दुविहं, सायममाहियं च अहियं । सायस्स उ बहू मेया, एमेव असायस्स वि ॥ ७ ॥ मोहणिज्बंपि च दुविहं, दंसणे चरणे तहा। दंसणे तिविहं वुत्तं, चरणे दुविहं भवे ॥ ८॥ सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं, सम्मामिच्छत्तमेव य। एयाओ तिन्नि पयडीओ, मोहणिज्जस्स दंसणे ॥९॥ चरित्तमोहणं कम्मं, दुविहं तं वियाहियं कसायमोहणिज्जं तु, नोकसायं तहेव य ॥ १० ॥ सोलसविहभेएणं, कम्मं तु कसायजं । सत्तविहं नवविहं वा, कम्मं च नोकसायजं ॥ ११ ॥ नेरइयतिरिक्खाउं, मणुस्साउं तहेव य । देवाउयं चउत्थं तु, आउं कम्मं चउन्विहं ॥ १२ ॥ नार्म कम्मं तु दुविहं, सुहमसुहं च आहियं । सुभस्स उ बहू भेया, एमेव असुहस्स वि ॥ १३ ॥ गोयं कम्मं दुविहं, उच्चं नीयं च आहियं । उच्चं अट्ठविहं होइ, एवं नीवं पि आहियं ॥ १४ ॥ दाणे लामे य भोगे य, उवभोगे वीरिए तहा । पञ्चविहमन्तराय, समासेण वियाहियं ॥ १५ ॥ एयाओ मूलपयडीओ, उत्तराओ य आहिया । पएसग्गं खेत्तकाले य, भावं च उत्तरं सुण ॥ १६ ॥ सवेसिं चेत्र कम्माणं, पएसग्गमणन्तगं । गणिठयसत्ताईये, अन्तो सिद्धाण आहियं ॥ १७ ॥ सबजीवाण कम्मं तु, संगहे छद्दिसागयं । सवेसु वि पएसेसु, सवं सव्वेण बद्धगं ॥ १८ ॥ उदहीसरिसनामाण, तीसई कोडिकोडिओ । उक्कोसिय टिई होइ, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १९ ॥ आवरणिज्जाण दुण्डंपि, वेयाणिज्जे तहेव य । अन्तराए य कम्मम्मि, ठिई एसा वियाहिया ॥ २० ॥ उदहोसरिसनामाण, सत्तर कोडिकोडीओ | मोहणिजस्स उ कोसा, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ २१ ॥ तेत्तीस सागरोवमा, उक्कोसेण वियाहिया । ठिई उ आउकम्मस्स, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ २२ ॥ उदहीसरिसनामाग, वीसई कोडिकोडीओ । नामगोत्ताणं उक्कोसा, अट्ठ मुहुत्ता जहनिया ॥ २३ ॥ सिद्धाणणन्तभागो य, अणुभागा हवन्ति उ । सव्वेसु वि पएसग्गं, सबजीवे अइच्छियं ॥ २४ ॥ तम्हा एएसि कम्माणं, अणुभागा वियाणिया । एएसि संवरे चेव, खवणे य जए बुहो ॥ २५ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ कम्मप्पयडी समत्ता ॥ ३३ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-चोत्तीसमाध्ययनम् ॥ अह लेसज्झयणं चोत्तीसइमं अज्झयणं ॥
लेसज्झयणं पवक्खामि, आणुपुविं जहकमं । छण्हंपि कम्म लेसाणं, अणुभावे सुहेण मे ॥१॥ नामाई वण्णरसगन्धफासपरिणामलक्खणं । ठाणं ठिई गई चाउं, लेसाणं तु सुणेह मे ॥ २ ॥ किण्हा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्कलेसा य छट्ठा य, नामाइं तु जहक्कमं ॥ ३ ॥ जीसूयनिद्धसंकासा, गवलरिट्ठगसन्निभा। खंजणनयणनिभा, किण्हलेसा उ वण्णओ ॥४॥ नीलासोगसंकासा, चासपिच्छसमप्पभा। वेरुलियनिद्धसंकासा, नीललेसा उ वण्णओ ॥ ५॥ अयसोपुप्फसंकासा, कोइलच्छदमन्निभा । सुयतुण्डपईवनिभा, काउलेसा उ वण्णओ ॥ ६ ॥ हिंगुलघाउसंकासा, तरुणाइच्चसन्निभा। सुयतुण्डपईवनिभा, तेऊलेसा उ वण्णओ ॥ ७ ॥ हरियालभेयसंकासा, हलिदाभेयसमप्पभा सणासणकुसुमनिभा पम्हलेसा उ वण्णओ ॥ ८ ॥ संखककुन्दसङ्कासा, खीरपूरसमप्पभा। रयणहारसंकासा, सुकलेसा उ वण्णओ ॥९॥
जह कडुयतुम्बगरसो, निम्बरसो कडुयरोहिणिरसो वा । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो य किण्हाए नायबो ॥ १०॥ जह तिगडुयस्स य रसो, तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए वा । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ नीलाए नायव्यो ॥ ११ ॥ जह परिणअम्बगरसो, तुवरकविट्ठस्स वावि जारिसओ। एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ काऊण नायवो ॥ १२ ॥ जह परिणयम्बगरसो, पककविट्ठस्स वावि जारिसओ । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ तेऊण नायवो ॥ १३ ॥ चरवारुणीए वारसो, विविहाण व आसवाण जारिसओ।
महुमेरयस्स व रसो, एत्तो पम्हाए परएणं ॥ १४ ।। खज्जूमुद्दियरसो, खीररसो खंडसक्करसो वा । एत्तो वि अणंतगुणो,रसो उ सुक्का ए नायवो ॥ १५ ॥ जह गोमडस्सगंधो सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्साएत्तो वि अणंतगुणो,लेसाणं जप्पमत्थाणं ।। १६॥ जह सुरहिकुसुमगंधो,गंधवासाण पिस्समाणाणं। एत्तो वि अणंतगुणो, पसत्थलेसाण तिण्हं पि ॥ १७ ॥ जह करगयस्स फासो, गोजिब्भाए य सागपत्ताणं । एत्तो वि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पहत्थाणं ॥ १८ ॥ जह बूरस्स व फासो,नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाण। एत्तो वि अणंतगुणो,पसत्थलेसाण तिण्हंपि॥ १९ ॥ तिविहो व नवविहोवा, सत्तावीसइविहेकसीओ वा। दुसओ तेयालो वा, लेसाणं होइ परिणामो ॥ २० ॥ पंचासवप्पवत्तो, तीहिं अगुत्तो छसुं अविरओ य। तिवारंभपरिणओ, खुड्डो साहसिओनरो ॥२१॥ निद्धन्धसपरिणामो, निस्संसो अजिइन्दिओ। एयजोगसमाउत्तो, किण्हलेसं तु परिणमे ॥ २२ ॥ इस्सा अमरिस चतवो, अविज्जमाया अहीरिय । गेही पओसे य सढे, पमत्ते रसलोलुए ॥ २३ ॥ सायगवेसए य आरम्भाओ अविरओ.खुड्डो साहस्सिओ नरो। एयजोगसमाउत्तो,नीललेसं तु परिणमे २४ वंके वंकसमायारे, नियड्डिले अणुज्जुए। पलिउंचगओवहिए, मिच्छदिट्ठी अणारिए ॥ २५ ॥ उप्फासगदुट्ठवाई य, तेणे यावि य मच्छरी। एयजोगसमाउत्तो, काऊलेसं तु परिणमे ॥ २६ ॥
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- श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला
नीयावती अचवले, अमाई अकुऊहले । विणीयविणए दन्ते, जोगवं उवहाणवं ॥ २७॥ पियधम्मे दढधम्मेऽवजभीरू हिएसए। एयजोगसमाउत्तो, तेउलेसं तु परिणमे ॥ २८ ॥ पयणुकोहमाणे य, मायालोमे य पयणुए। पसन्तचित्ते दन्तप्पा, जोगवं उवहाणवं ॥२९॥ तहा पयणुवाई य, उवसन्ते जिइन्दिए । एयजोगसमाउत्तो, पम्हलेसं तु परिणमे ॥ ३० ॥ अट्ठरुद्दाणि वजित्ता, धम्मसुक्काणि झायए। पसन्तचित्ते दन्तप्पा, समिए गुत्ते य गुत्तिसु ॥ ३१ ॥ सरागे वीयरागे वा, उवसन्ते जिइन्दिए। एयजोगसमाउत्तो, सुक्कलेसं तु परिणमे ॥ ३२ ॥ असंखिजाणोसप्पिणीण, उस्सप्पिणीण जे समया। संखाईया लोगा, लेसाण हवन्ति ठाणाई ॥ ३३ ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसा सागरा मुहुत्तहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायचा किण्हलेसाए ॥ ३४ ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना,दस उदही पलियमसंखभागब्भहिया। उक्कोसा होइ ठिई,नायव्वा नीललेसाए ॥ ३५ ॥ महत्तद्धं तु जहन्ना,तिण्णुदही पलियमसंखभागमभहिया।उक्कोसा होइ ठिई,नायचा काउलेसाए॥३६॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना,दोण्णुदही पलियमसंखभागमभहिया।उक्कोसा होइ ठिई,नायवा तेउलेसाए ॥ ३७॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस होन्ति य सागरा मुहुत्तहिय । उक्कोसा होइ ठिई, नायबा पम्हलेसाए ॥ ३८॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायवा सुक्कलेसाए ॥ ३९ ॥ एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई वणिया होइ। चउसु वि गईसु एत्तो, लेसाण ठिई तु वोच्छामि ॥ ४० ॥ दस वाससहस्साई, काऊए ठिई जहन्निया होइ। तिण्णुदही पलिओवम, असंखभागंच उक्कोसा ॥ ४१ ॥ तिण्णुदही पलिओवमसंखभागोजहन्नेण नीलठिई।दस उदही पलिओवमअसंखभागंच उक्कोसा ॥ ४२ ॥ दसउदही पलिओवमअसंखभगं जहन्निया होइ । तेत्तीससागराइं उक्कोसा, होइ किण्हाए लेसए ॥ ४३ ॥ एसा नेरइयाणं, लेसाण ठिई उ वण्णिा होइ । तेण परं वोच्छामि, तिरियमणुस्साण देवाणं ॥ ४४ ॥ अन्तोमुहुत्तमद्धं, लेलाण जहिं जहिं जाउ । तिरियाण नराणं वा, वजित्ता केवलं लेसं ॥ ४५ ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना उक्कोसा होइ पुत्वकोडीओ । नवहि वरिसेहि ऊणा, नायवा कसुलेसाए ॥ ४६ ॥
एसा तिरियनराणं, लेसाण ठिई उ वण्णिया होइ। तेण परं वोच्छामि, लेसाण ठिईउ देवाणं । ४७ ॥ दस वाससहस्सई, किण्हाए ठिई जहनिया होइ। पलियमसंखिज्ज इमो, उक्कोसो होइ किण्हाए ॥४८॥ जा किण्हाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जहन्नेणं नीलाए, पलियमसंखं च उक्कोसो ।। ४९ ॥ जा नीसाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिया ।
जहन्नेणं काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा ॥ ५० ॥ तेण परं वोच्छामि, तेउलेसा जहा सुरगाणं । भवणवइवाणमन्तरजोइसवेमाणियाणं च ॥ ५१ ॥ पलिओवमं जहन्न, उक्कोसा सागरा उ दुनंहिआ । पलियमसंखेजेणं, होइ भागेण तेऊए ॥ ५२ ॥ दस वाससहस्साई, तेऊए ठिई जहनिया होइ । दुन्नुदही पलिओवमअसंखभागं च उक्कोसा ॥५३॥
जा तेऊण ठिई खलु, उक्कोसा सा समयमन्महिया। जहन्नेणं पम्हाए, दस उ मुहुचाहियाइ उकोसा ॥ ५४॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-चोत्तीसमाध्ययनम्
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जा पम्हाए ठिई खलु, उक्कोसासा उसमयमभहिया। जहन्नेणं सुक्काए, तेत्तीस मुत्तमम्भहिया ॥ ५५॥ किण्हा नीला काऊ, तिमि वि एयाओ अहंमलेसाओ। एयाहि तिहिवि जीवो, दुग्गई उववजई ॥ ५६ ॥ तेऊ पम्हा मुक्का, तिन्निवि एयाओ धम्मलेसाओ। एयाहि तिहिवि जीवो, सुग्गई उववजई ।। ५७ ॥
साहिं सवाहिं, पढमे समयमि परिणया हिं तु । न हु कस्सइ उववाओ, परे भवे अत्थि जीवस्स ॥ ५८ ॥ लेसाहिं सबाहि, चरिमे समयमि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववाओ. परे भवे होइ जीवस्स ॥ ५९॥ अन्तमुहुत्तम्मि गए अन्तमुहुत्तम्मि सेसए चेव । लेसाहि परिणयाहिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं ॥ ६०॥ तम्हा एयासि लेसाणं,आणुभावे वियाणिया ।अप्पसत्थाओ वजित्ता, पसत्थाओऽहिटिए मुणि ॥ ६१ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ लेसज्झयणं समत्तं ॥ ३४ ॥
॥ अह अणगारज्झयणं णाम पंचतीसइमं अज्झयणं ॥ मुहेण मे एगग्गमणा, मग्गं बुद्धेहि देसियं । जमायरन्तो भिक्खू , दुक्खाणन्त करे भवे ॥१॥ गिहवासं परिचज, पवजामस्सिए मुणी । इमे संगे वियाणिज्ज, जेहिं सन्जन्ति माणवा ॥२॥ तहेव हिंसं अलियं, चोलं अबम्भसेवणं । इच्छाकामं च लोभं च, सजओ परिवजए ॥ ३ ॥ मणोहरं चित्तधरं, मल्लधूवेण वासियं । सकवाडं पण्डुरुल्लोचं, मणसावि न पत्थए ॥ ४ ॥ इन्दियाणि उ भिक्खुस्स, तारिसम्मि उवस्सए । दुक्कराई निवारेउं, कामरागविवड्डणे ॥५॥ सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व इक्कओ। पइरिक परकडे वा, वासं तत्थाभिरोयए ॥ ६ ॥ फासुयम्मि अणाबाहे, इत्थीहिं अणभिदुए । तत्थ संकप्पए वासं, भिक्खू परमसंजए ॥ ७ ॥ न सयं गिहाई कुविना व अन्नेहि कारए । गिहकम्मसमारम्भ, भूयाणं दिस्सए वहो ॥ ८ ॥ तसाणं थावराणं च, सुहुमाणं बादगण य । तम्हा गिहसमारम्भ, संजओ परिवजए ॥९॥ तहेत्र भत्तपाणेसु, पयणे पयावणेसु य । पाणभूयदयट्ठाए, न पए न पयावए ॥ १०॥ जलधननिस्सिया जीवा, पुढवीकट्टनिस्सिया। हमन्ति भत्तपाणेसु. तम्हा भिक्खू न पयावए ॥११॥ विसप्पे सवओ धारे, बहुपाणिविणासणे । नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई न दीवए ॥ १२ ॥ हिरणं जायस्वं च, मणसा वि न पत्थए । समलेठुकंचणे भिक्खू, विरए कयनिक्कए ॥ १३ ॥ किणन्तो कइओ होइ,विकिणन्तोय वाणिणो। कयविक्कयम्मि वहन्तो, मिक्खू न भवइ तारिसो ॥ १४ ॥ मिक्खियोन केयवं, भिक्खुणा भिक्खवत्तिणा। कयविकओ महादोसो, भिक्खवत्ती सुहावहा ॥ १५॥ समुयाणं उंछमेसिज्जा, जहामुत्तमणिन्दियं । लामालाभम्मि संतुढे. पिण्डवायं चरे मुणी ॥ १६ ॥ अलोले न रसे गिद्धे, जिब्भादन्ते अमुच्छिए। न रसट्ठाए मुंजिना, जवणट्ठाए महामुणी ॥ १७ ॥ अचणं रयणं चेव, वन्दणं पूयणं तहा। इड्डीसकारसम्माणं, मणमा वि न पत्थए ।। १८ ॥ सुकज्झाणं झियाएज्जा, अणियाणे अकिंचणे। वोसट्टकाए विहरेजा, जाव कालस्स पजओ ॥ १९ ॥ निज्जूहिऊण आहारं, कालधम्मे उवट्ठिए । जहिऊण माणुसं बोन्दि, पहू दुक्खे विमुच्चई ॥ २०॥ निम्ममे निरहंकारे, वीयरागो अणासवो । संपत्तो केवलं नाणं, सासयं परिणिव्वुए ॥ २१ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ अणगारज्झयणं समत्तं ।। ३५ ।।
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
॥ अह जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं ॥
जीवाजीवविभत्ति, सुणे मे एगमणा इओ । जं जाणिऊण भिक्खु, सम्मं जयइ संजमे ॥ १ ॥ जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए । अजीव देसमागासे, अलोगे से वियाहिए || २॥ दव्वओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा । परूवणा तेसि भवे, जीवाणमजीवाण य ॥ ३ ॥ रूविणो वरूat य. अजीवा दुविहा भवे । अरूवी दसहा वुत्ता, रूविणो य चउविहा ॥ ४॥ धम्मत्थिकाए तद्देसे, तप्पए से य आहिए । अहम्मे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए ॥ ५ ॥ आगासे तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए | अद्धासमए चेत्र, अरूवी दसहा भवे ॥ ६॥ धमाधम्मे य दो चेत्र, लोगमित्ता वियाहिया । लोगालोगे य आगासे, समए समयखेत्तिए ॥ ७ ॥ धम्माधम्मागासा, तिन्निवि एए अणाइया । अपज्जवसिया चेव, सव्वद्धं तु वियाहिया ॥ ८ ॥ समवसन्त पप्प, एवमेव वियाहिए । आएसं पप्प साईए, सप्पज्जवसिएविय ॥ ९ ॥ खन्धा य खन्धदेसा य, तप्पएसा तदेव य । परमाणुणो य बोधवा, रूविणो य उहा ॥ १० ॥ एगतेण पुत्ते, खन्धा य परमाणुणो । लोएगदेसे लोए य, भइयच्वा ते उ खेत्तओ || इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउविहं ॥ १२ ॥
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११ ॥
१३ ॥
१४ ॥
१५ ।।
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१६ ॥
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संतई पप्प तेsणाई, अप्पज्जवसियाविय । ठिहं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया विय ॥ असंखकालमुक्कोi, एको समओ जहन्नयं । अजीवाण य रूवीण, ठिई एसा वियाहिया ॥ अणन्तकालमुकोसमेको, समओ जहन्नयं । अजीवाण य रूवीण, अन्तरेयं वियाहियं ।। वण्णओ गन्धओ चेव, रसओ फासओ तहा। संठाणओ य विभओ, परिणामो तेसि पंचहा वणओ परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया । किण्हा नीला य लोहिया, इलिद्दा सुकिला तहा गन्धओ परिणया जे उ, दुविहा ते वियाहिया । सुब्भिगन्धपरिणामा, दुब्भिगन्धा तदेव य ॥ रसओ परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया । तित्तकडुयकसाया, अम्बिला महुरा तहा फासओ परिणया जे उ, अट्ठहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउआ चेव, गरुया लहुवा तहा ॥ २० ॥ सोया उण्हा य निद्धा य, तहा लुक्खा य आहिया । इय फासपरिणया एए, पुग्गला समुदाहिया ।। २१ ॥ ठाणओ परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया । परिमण्डला य वढाय, तंसा चउरंसमायया ।। २२ ॥ वणओ जे भवे किण्हे, भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। २३ ।। वणओ जे भवे नीले, भइए से उगन्धओ । रसओ फासओ चेव, भहए संठाणओवि य ।। २४ ॥
१८ ॥
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१९ ।।
ओ लोहिए जे उ, भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चैव भइए संठाणओवि य ॥ २५ ॥ aorat पीए जे उ, भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। २६ । aurओ सुकिले जे उ, भइए से उ अन्धओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २७ ॥ गन्धओ जे भवे सुन्भी, भइए से उ वण्णओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २८ ॥
ओ जे भवेदुब्भी, भइए से उ बण्णओ । रसओ फासओ चेत्र, भइए संठाणओवि य ।। २९ ।। रसओ तित्तए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३० ॥
१७ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-छतीसमाध्ययनम्
(६७) रसओ कडुए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३१ ।। रसओ कसाए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव, भइए सठाणओवि य ॥ ३२ ॥ रसओ अम्बिले जे उ. भइए से उ वण्णओ। गन्धओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३३ ॥ रसओमहुरए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३४ ।। फामओ कक्खडे जे उ, भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३५ ॥ फासओ भइए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३६ ।। फासए गुरूए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गन्धो रसश्रो चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३७ !! फासओ लहुए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३८।। फासए सीयए जे उ, भइए से उ षण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। ३९ ।। फासओ उण्हए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ४० ॥ फासओ निद्धए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥४१॥ फासओ लुक्खए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गन्धओरसओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। ४२ ।। परिमण्डलसंठाणे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ ४३ ।। संठाणओ भवे वहे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ ४४ ।। संठाणओ भवे तंसे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ ४५ ।। संठाणओ जे चउरंसे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ।। ४६ ।। जे आययसंठाणे, भइए से वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ ४७ ।। एसा अजीवविभत्ती, समासेण वियाहिया । इत्तो जीवविभत्ति, बुच्छामि अणुपुबसो। ४८॥ संसारत्था य सिद्धा य, दुविहा जीवा वियाहिया। सिद्धाणेगविहा वुत्ता, तं मे कियतओ सुण ॥ ४९ ॥ इत्थो पुरिससद्धा य, तहेव य नपुंसगा। सलिंगे अन्नलिंगे य, गिहिलिंगे तहेव य ॥ ५० ॥ उक्कोसोगाहणाए य, जहन्नमज्झिमाइ य । उ8 अहे तिरियं च, समुद्दम्मि जलम्मि य ॥ ५१ । दस य नपुंसएसु. वीसं इत्थियासु य । पुरिसेसु य अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झई ॥ ५२ ॥ चत्तारि य गिहलिंगे, अन्नलिंगे दसेव य । सलिंगेण अट्ठसयं. समएगेण सिज्झई ॥ ५३ ॥ उक्कोसोगाहणाए य, सिज्झन्ते जुगवं दुवे । चत्तारि जहन्नाए, मज्झे अठुत्तरं सयं ॥ ५४ ।।
चउरुड्डलोए य दुवे समुद्दे, तओ जले वीसमहे तहेव य ।।
सयं च अठुत्तरं तिरियलोए, समणेगेण सिज्झई धुवं ॥ ॥५५ ।। कहिं पडिहया सिद्धा, कहिं सिद्धा पइडिया । कहिं बोन्दि, चइत्ताणं, कत्थ मन्तूण सिज्झई ॥५६॥ आलोए पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइडिया । इहं बोन्दि चइत्ताणं, तत्थ गन्तूण सिज्बई ।। ५७ ॥ चारसहिं जोयणेहिं, सबढस्सुवरिं भवे। ईसिपब्भारनामा, पुढवी छत्तसंठिया ।। ५८ ॥ पणयालसयसहस्सा, जोयणाणं तु आयया। तावइयं चेव विस्थिण्णा,तिग्गुणो तस्सेव परिसणो ॥ ५९॥ अट्ठजोयणवाहुला, सा मज्झम्मि वियाहिया। परिहायन्ती चरिमन्ते, मच्छिपत्ताउ तशयरी ।। ६० ॥
अज्जुणसुवण्णगमई, सा पुढवी निम्मला सहावेण । उत्ताणगच्छत्तगसंठिया य, भणिया जिणवरेहिं ।। ६१ ॥
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(६८)
श्रीजैनसिद्धान्त- - खाध्यायमाला
संखंककुंद संकासा, पण्डुरा निम्मला सुहा । सीयाणे जोयणे तत्तो, लोयन्तो उ वियाहिओ ।। ६२॥ जणस्स उ जो तत्थ, कोसो उवरिमो भवे । तस्स कोसस्स सम्भाए, सिद्धाणोगाहणा भवे ।। ६३ ।। तत्थ सिद्धा महाभागा, लोगगम्मि पइडिया । भवपपंचओ मुक्का, सिद्धिं वरगड़ गया ॥ ६४ ॥ उस्सेहो जेसिं जो होइ, भवम्मि चरिमम्मि उ । तिभागहीणो तत्तो य, सिद्धाणोगा हणा भवे ।। ६५ ।। एगत्तेण साईया, अपज्जवसियावय । पुहत्तेण अणाइया, अपज्जसियावि य ।। ६६ ।। अविणो जीवघणा, नाणदंसणसन्निया । अउलं सुहं संपन्ना, उत्रमा जस्स नत्थि उ ॥ ६७ ॥ लोगेगदेसे ते सर्व्व, नाणदंसणसन्निया । संसारपारनित्थिण्णा, सिद्धिं वरगई गया || ६८ ॥ संसारत्था उ जे जीवा, दुविहा ते वियाहिया । तसा य थावरा चैव, थावरा तिविहा तहिं ।। ६९ ।। पुढवी आउजीवा य, तहेव य वणस्सई । इच्चेए थावरा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ ७० ॥ दुविह पुढवीजीवा य, सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥ ७१ ॥ बायरा जे उपन्नता, दुविहा ते वियाहिया । सण्हा खरा य बोधवा, सण्हा सत्तविहा तहिं ॥ ७२ ॥ कहा नीला य रुहिरा य, हलिद्दा सुकिला तहा । पण्णुपणगमट्टिया, खरा छत्तीसईविहा ॥ ७३ ॥ पुढवीय सक्करा बालुया य, उबले सिला य लोणूसे । अय-तम्ब तउय - सीसग - रुप्प - सुवण्णे य वइरे य ॥ हरियाले हिंगुलुए, मणोसिला सासगंजण - पवाले । अब्भपडलब्भवालुय, बायरकाए मणिविहाले ||
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गोमेज यरुयगे, अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय-मसारगल्ले, भुयमोयग-इन्दनीले य चन्दण- गेरुय हंसगब्भे, पुलए सोगन्धिए य बोधवे । चन्दप्पहवेरुलिए, जलकन्ते सूरकन्ते य एए खरपुढवीए, भेया छत्तीसमाहीया । एग विहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया ॥ सुमा सबलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउन्विहं ॥ संतई पष्णाईया, अपज्जवसियावि य। ठि पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य बावीससहस्साई, वासाणुकोसिया भवे । आउठिई पुढवीणं, अन्तोमुहुतं जहन्नयं ॥ असंखकालेमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पुढवीणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ अणन्तकालमुकोर्स, अन्तोमृहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए. पुढविजीवाण अन्तरं ॥ एसिं वण्णओ चैव गन्धओ रसफसओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ दुविहा आऊजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो बायरा जे उपज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदय य उस्से, हरतणू महिया हिमे एमविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सबलोगम्मि, लोगदे से य बायरा सन्तई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि। ठिडं पडुच्च साईया, सपञ्जवसियावि य सत्तेव सहस्साईं, वासाणुकोसिया भवे । आइठिई आऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई आऊणं तं कार्यं तु अचओ ॥ ९० ॥ 'अणन्तकालमुक्कोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, आऊजीवाण णन्तरं ।। ९१ ॥ एएसिं वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्सो ॥ ९२ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसत्र-छतीसमाध्ययनम्
(६९) दुविहा वणस्सईजीवा, सुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुणो ॥ ९३ ॥ बायरा जे उ पज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया। साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य ।। ९४ ॥ पत्तेगसरीराओऽणेगहा ते पकित्तिया। रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा तहा ॥ ९५॥ चलया पचगा कुहुणा, जलरुहा ओसही तहा । हरियकाया बोधवा, पत्तेगाइ वियाहिया ॥ ९६ ॥ साहारणसरीराओऽणेगहा ते पकित्तिया। आलुए मूलए चेव, सिंगबेरे तहेव य ॥९७ ॥ हरिली सिरिली सस्सिरिली, जावई केयकन्दली । पलण्डुलसणकन्दे य, कन्दली य कुडुंवए ॥ ९८ ॥ लोहिणीहू य थीहू य, कुहगा य तहेव य । कन्दे य वजकन्दे य, कन्दे सूरणए तहा ॥ ९९ ॥ सस्सकणी य बोधवा, सीहकण्णी तहेव य । मुसुण्ढी य हलिद्दा, य णेगहा एवमायओ ॥ १०॥ एगविहमणाणत्ता, मुहुमा तत्थ वियाहिया सुहुमा सबलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा ॥ १०१ ।। संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ १०२ ॥ दस चेव सहस्साइं, वासाणुकोसिया पणगाणं । वणप्फईण आउं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १०३ ।। अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पणगाणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १०४ ॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, पणगजीवाण अन्तरं ॥ १०५॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥१०६॥ इच्चेए थावरा तिविहा, समासेण वियाहिया। इत्तो उ तसे तिविहे, वुच्छामि अणुपुखसो॥१०७॥ तेऊ वाऊ य बोधबा, उराला य तसा तहा । इच्चेए तसा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १०८॥ दुविहा तेऊजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपजत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥ १०९ ॥ बायरा जे उ पजत्ताणेगहा ते वियाहिया। इंगाले मुम्मुरे अगणी, अच्चिजाला तहेव य ॥ ११० ॥ उक्का विज्जू य बोधवा णेगहा एवमायओ। एगविहमणाणत्ता, सुहुमा ते वियाहिया ॥ १११॥ मुहुमा सबलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु. तेसिं वुच्छं चउविहं ॥ ११२ ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिई पडुच्च साइया, सपज्जवसियावि य ॥ ११३ ॥ तिण्णेव अहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई तेऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ ११४ ॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुतं जहन्नयं । कायठिई तेऊणं, तं कायं तु असुंचओ ॥ ११५ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, तेऊजीवाण अन्तरं ॥ ११६ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि, विहाणाइं सहस्ससो ॥ ११७ ।। दुविहा वाउजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । पजत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥ ११८ ॥ बायरा जे उ पज्जत्ता, पञ्चहा ते पकित्तिया। उक्कलिया भण्डलिया, घणगुजा सुदवाया य ॥ ११९ ॥ संवदृगवाया यणेगहा एवमायओ। एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया ॥ १२० ॥ सुहुमा सबलोगम्मि, एगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु, तेसिं बुच्छं चउक्विहं ॥ १२१ ॥ सन्तइं पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपञ्जवसियावि य ॥ १२२ ।। तिण्णेव सहस्साई, वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई काऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १२३ ।। असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई वाऊणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १२४ ।। अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, काऊजीवाण अन्तरं ॥ १२५ ॥
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श्रीजेनसिद्धान्त - खाध्यायमाला
१२६ ॥ १२७ ॥
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एएसं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्वसो ।। उराला तसा जे उ, चउहा ते पकिश्चिया । बेइन्दिय - तेइन्दिय - चउरो पंचिन्दिया चैव ॥ बेइन्दिया उ जे जीवा, दुविडा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं मेए सुणेह मे ॥ किमिणो सोमंगला चेव, अलसा माइवाहया । वासीमुहा य सिप्पिया, संख संखणगा तहा घल्लोयाणुल्लया चैव तहेव य वराडगा । जलुगा जालगा चेत्र, चन्दणा य तहेव य ॥ st बेइन्दिया resuगहा एयमायओ । लोगेगदेसे ते सबे, न सवत्थ वियाहिया ।। संत पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिहं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ।। वासाई वारसा चेव, उक्कोसेण वियाहिया । बेइन्दिय आउठिई अन्तोमुहुत्तं जहन्निया संखिज्जकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियकायठिई, तं कायं तु अम्रुचओ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियजीवाणं, अन्तरं च वियाहियं ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो तेइन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जता, तेसिं भेए सुह मे ॥ कुन्थुपिवीलिउडूंसा, उक्कलेद्देहिया तहा । तणहारकट्ठहारा य, मालुरा पत्तहारगा ।। कप्पासट्ठिम्मि जायन्ति, दुगा तडसमिंजगा । सदावरी य गुम्भी य, बोधवा इन्दगाइया ।। इन्दोमायाहा एवमायओ । लोगेगदेसे ते सबे, न सवत्थ वियाहिया ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियाविय । ठिडं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ एगूणपण्णहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया । तेइन्दियआउठिई, अन्तोमुहुत्त जहनिया संखिज्जकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियकायटिई, तं कार्यं तु अम्रुचओ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियजीवाणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ सिं वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्सजो चउरिन्दियाउ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तम पज्जत्ता, तेसिं भेए सुह मे ॥ अधिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा । भमरे कीडपयंगे य, टिंकुणे कंकणे तहा ॥ कुक्कुडे भिंडी य, नन्दावत्ते य विच्छुए । टोले भिंगारी य, वियडी अच्छिवेयए ॥ अच्छिले माहए अच्छरोडए, विचित्ते चित्तपत्तए । उहिंजलिया जलकारी य, नीया तन्तवयाइया ||
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इय चउरिन्दिया, एएऽणेगहा एवमायओ । लोगेगदे से ते सधे, न सवत्थ वियाहिया ।। संत पप्पणाईया, अपज्जवसिया विय। ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया विय ।। छच्चेव मासाऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउरिन्दिदय आउठिई, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया संखिज्जकालमुकोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियकायठिई, तं कार्यं तु अचओ अणन्तकालमुक्कोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियजीवाणं, अन्तरं च वियाहियं ॥ सिं वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो पंचिन्दियाउ जे जीवा, चउबिहा ते वियाहिया । नेरइयतिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया ।। नेरइया सत्तविहा, पुढवीसु सतसू भवे । रयणाभसकराभा, वालुयामा य आहिया ।।
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श्री उत्तराध्ययन सूत्र- छत्तीसमाध्ययनम्
(७१)
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पंकाभा धूमाभा, तमा तमतमा तहा । इइ नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया ।। १५८ ।। लोमस्स एगदेसम्मि, ते सच्चे उ वियाहिया । एतो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउविहं ।। संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियाविय । ठिहं पडुच्च साइया, सपज्जवसियावि य ॥ सागरोवममेगं तु, उक्कोसेण वियाहिया । पढमाए जहनेणं, दसवाससहस्सिया || तिण्णेव सागरा ऊ, उकोसेण वियाहिया । दोच्चाणं जहनेणं, एगं तु सागरोवमं ॥ सत्तेव सागरा ऊ, उक्कोसेण विगाहिया । चउत्थीए जहन्त्रेण, तिष्णेव सागरोवमा ।। दस सागरोवमा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउत्थीए जहन्नेणं, सत्तेव सागरोवमा सत्तरस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउत्थीए जहन्नेणं, सत्तेव नागरोवमा बावीस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । छट्टीए जहनेणं, सत्तरस सागरोवमा तेत्तीस सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया । सत्तमाए जहन्नेणं, बावीसं सागरोवमा ॥ जा चैव य आयठिई, नेरइयाणं वियाहिया । सा तेसिं कायठिई, जहन्नुकोसिया भवे अणन्तकालमुकोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, नेरइयाणं अन्तरं एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ पंचिन्दियतिरिक्खाओ, दुविधा ते वियाहिया | समुच्छिम तिरिक्खाओ, गन्भवक्कन्तिया तहा ॥
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१७९ ।।
दुविहा ते भवेतिविहा, जलयरा थलयरा तहा। नहयरा य बोधव्वा, तेसिं भेए सुह मे मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा । सुंसुमाराय बोधवा, पंचहा जलहराहिया ।। लोएगदेसे ते सच्चे, नसवण्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउन्विहं संत पष्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ।। एगा य पुइकोडी, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई जलयराणं, अन्तोमुहुतं जहनिया पुवकोडिपुहत्तं तु, उक्कोसेण वियाहिया । कार्यट्टिई जलयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, जसयराणं अन्तरं चउप्पया य परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे । चउप्पया चउविहा, ते मे कियनओ सुण ।। एगखुरा दुखुरा चेव, गण्डीपयसणहप्पया । हयमाइगोणमाइगयमाइसीहमाइणो ॥ ओरगपरिसप्पा य, परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई गहिमाई य, एकेकाणेगहा भवे ।। लोएगदेसे ते सब्वे, न सवत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु, वोम्छं तेसिं चव्विहं संत पप्पणाईया, अपज्जवसियाविय । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसियाविय ॥ पलिओ माई तिष्णि उ, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई थलयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया पुको डिपुहत्तेणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया । कायठिई थलयराणं, अन्तरं तेसिमं भवे ॥ १८५ ॥ कालमणन्तमुकोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, थलयराणं तु अन्तरं ।। १८६ ।। चम्मे उ लोमपक्खी य, तइया समुग्गपक्खिया । विययपक्खी य बोधव्वा, पक्खिणो य चउव्विहा || ॥ १८७ ॥ लोगेगदेसे ते सर्व्व, न सवत्थ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउन्विहं ॥ १८८ ॥
१८० ॥
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श्रीजैन सिद्धान्त
(७२)
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संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य। ठिई पहुच साईया, सपज्जवसियावि य पलिओवमस्स भागो, असंखेज्जइमो भवे । आउठिई खहयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया असंखभाग पलियस्स, उक्कोसेण उ साहिया । पुचकोडीपुहत्तेणं, अन्तोमुहुतं जन्निया ठिई खहयराणं, अन्तरे तेसिमे भवे । कालं अणन्तकोसं, मुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं, जहन्नयं ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ।। मणुया दुविहभेया उ, ते मे कित्तयओ सुण । संमुच्छिमा य मणुया, गग्भक्कन्तिया तहा गन्भवक्कन्तिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया । कम्मअक्रम्मभूमा य, अन्तरद्दीवया तहा पन्नरस तीसविहा, मेया अहवीसई । संखा उ कम्मसो तेसिं, इइ एसा वियहिया ।। संमुच्छिमाण एसेव, भेओ होइ वियाहिओ । लोगस्स पगदेसम्मि ते सव्वे वि वियाहिया ।। संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिझं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ पलिओमाउ तिष्णवि, असंखेजइमो भवे । आउट्ठिई मणुयणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया पलिओ माई तिष्णि उ, उक्को सेण उ साहिया । पुवकोडिपुहत्तेणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया काठई मणुयाणं, अन्तरं तेसिमं भवे । अणन्तकालमुकोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ एएसिं, वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेमओ वावि, विहाणाईं सहस्ससो || देवा चउविहा वृत्ता, तें में कित्तयओ सुण । भोमिज्जवाणमन्तरजोइसवेमाणिया तहा ॥ दसहा उ भवणवासी, अट्ठहा वणचारिणो । पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा ॥ असुरा नागसुवण्णा, विज्जू अग्गी वियाहिया । दीवोदहिदिसा वाया, धणिया भवणवासिणो ॥ पिसायभूया जक्खा य, रवरूसा किन्नरा किंपुरिसा | महोरगा य गन्धवा, अट्ठविहा वाणमन्तरा ॥
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- खाध्यायमाला.
चन्दा सूराय नक्खत्ता, गहा तारागणा तहा । ठिया विचारिणो चेव, पंचहा जोइसालया ॥
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वैमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया । कप्पोत्रगा य बोधव्वा, कप्पाईया तदेव य ॥ कप्पोवग्गा बारसहा, सोहम्मीसाणगा तहा । सणं कुमारमाहिन्दबम्भलोगा य सन्तगा ॥ महासुका सहस्सारा, आणया पाणया तहा । आरणा अच्चुया चेव, इह कप्पोवगा सुरा करपाईया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया । गेविज्जाणुत्तरा चेव, गेविज्जा नवविहा तहिं ट्ठिमा मज्झिमा तहा । हेट्ठिमा उवरिमा चेत्र, मज्झिमा हेट्टिमा तहा मज्झिमा मज्झिमा चेव, मज्झिमा उवरिमा तहा । उवरिमा हेट्टिमा चेव, उवरिमा मज्झिमा तहा ॥
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डिमा ट्टिमा चेव,
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उवरिमा उवरिमा चैव, इय गेविअगा सुरा। विजया वेजयन्ता य, जयन्ता अपराजिया || २१४ ॥ सवत्थसिद्धगा चेव, पंचहाणुत्तरा सुरा । इय वेमाणिया एएणेगहा एवमायओ ।। २१५ ।। लोगस्स एगदेसम्म, तेसबेवि वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउब्विहं ॥ २१६ ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जव सियावि य। ठिहं पडुच्च साइया, सपज्जवसियावि य ।। २१७ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-छतीसमाध्ययनम्
साहीयं सागरं एकं, उक्कोसेण ठिई भवे । भोमेजाणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥ २१८ ।। पलिओवममेगं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । वन्तराणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥ २१ ॥ पलिओवममेगं तु. वासलक्खेण साहियं । पलिओवमट्ठभागो, जोइसेसु जहन्निया ॥ २२० ॥ दो चेव सागराइं, उकोसेण वियाहिया । सोहम्मम्मि जहन्नेणं, एगं च पलिओवमं ॥ २२१ ॥ सागरा साहिया दुन्नि, उक्कोसेण वियाहिया । ईसाणम्मि जहन्नेणं, साहियं पलिओवमं ।। २२२ ॥ सागराणि य सत्तेव, उक्कोसेण ठिई भवे । सणंकुमारे जहन्नेणं, दुन्नि उ सागरोवमा ।। २२३ ॥ साहिया सागरा मत्त, उक्कोसेणं ठिई भवे । माहिन्दम्मि जहन्नेणं, साहिया दुन्नि सागरा || २२४ ॥ दस चेव सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । बम्भलोए जहन्नणं, सत्त ऊ सागरोवमा ॥ २२५ ॥ चउदस सागराइं, कोसेण ठिई भवे । लन्तगम्मि जहन्नेणं, दस उ सागरोवमा ॥ २२६ ॥ सत्तरस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । महामुक्के जहन्नेणं, चोदस सागरोवमा ॥ २२७॥ 'अट्ठारस सागराइं, उकोसेण ठिई भवे । सहस्सारम्मि जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा ॥ २२८ ॥ सागरा अउणवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । आणयम्मि जहन्नेणं, अट्ठारस सागरोवमा ॥ २२९ ॥ वीसं तु सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । पाणयम्मि जहन्नेणं, सागरा अणवीसई ॥ २३०॥ सागरा इक्कवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । आरणम्मि जहन्नेणं, वीसई सागरोवमा ॥ २३१ ॥ बावीसं सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । अच्चुयम्मि जहन्नेणं, सागरा इक्वीसई ॥ २३२ ॥ तेवीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । पढमम्मि जहन्नेण, बावीसं सागरोवमा ॥ २३३ ॥ चवीस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । बिइयम्मि जहन्नेणं, तेवीसं सागरोवमा ॥ २३४ ॥ पणवीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । तइय जहन्नेणं, चउवीसं सागरोवमा ।। २३५ ॥ छवीस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । चउत्थम्मि जहन्नेणं, सागरा पणुवीसई ॥ २३६ ॥ सागरा सत्तवीसं तु, उक्कोसेण ठिई मवे । पञ्चमम्मि जहन्नेणं, सागरा उ छवीसई ॥ २३७ ॥ सागरा अट्ठवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । छट्ठम्मि जहन्नेणं, सागरा सत्तवीसई ॥ २३८ ।। सागरा अरणतीसं तु, उकोसेण ठिई भवे । सत्तमम्मि जहन्नेणं, सागरा अट्ठवीसई ।। २३९॥ तीसं तु सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । अट्ठमम्मि जहन्नेणं, सागरा अउणतीसई ॥ २४ ॥ सागरा इकतीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । नवमम्मि जहन्नेणं, तीसई सागरोवमा ॥ २४१ ॥ तेत्तीसा सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । चउसुपि विजयाईसु, जहन्नेणेक्कतीसई ॥ २४२ ।। अजहन्नमणुकोसा, तेत्तीसं सागरोवमा। महाविमाणे संबढे, ठिई एसा वियाहिया ॥ २४३ ॥ जा चेव उ आउठिई, देवाणं तु वियाहिया । सा तेसिं कायठिई, जहन्नमुक्कोसिया भवे ॥ २४४ ॥ अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, देवाणं हुज अन्तरं ॥ २४५॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि, विहाणाइं सहस्ससो ॥ २४६ ।। संसारत्थाय सिद्धा य, इय जीवा वियाहिया। रूविणो चेवस्वी य, अजीवा दुहिहावि य ॥ २४७ ।। इय जीवमजीवे य, सोचा सद्दहिऊण य । सबनयाणमणुमए, रमेज्ज संजमे मुणी ॥ २४८ ॥ तओ बहूणि वासाणि, सामण्णमणुपालिय । इमेण कम्मजोगेण, अप्पाणं संलिहे मुणी ॥ २४९ ॥ बारसेव उ वासाइं, संलेहुक्कोसिया भवे । संवरच्छरमज्झिमिया, छम्मासा य जहनिया ॥ २५० ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला. पढमे वासचउक्कम्मि, विगई-निज्जूहणं करे । बिईए वासचउक्कम्मि, विवित्तं तु तवं चरे ॥ २५१ ॥ एगन्तरमायाम, कटु संवच्छरे दुवे । तओ संवच्छरद्धं तु, नाइविगटुं तवं चरे ॥ २५२॥ तओ संवच्छरद्धं तु, विगिटुं तु तवं चरे । परिमियं चेव आयाम, तम्मि संवच्छरे करे ।। २५३ ॥ कोडी सहियमायाम, कटु, संवच्छरे मुणी । मासद्धमासिएणं तु, आहारेण तवं चरे ॥ २५४ ॥
___ कन्दप्पमामिओगं च, किन्विसियं मोहमासुरुत्तं च ।
___एयाउ दुग्गईओ, मरणम्मि विराहिया होन्ति ॥ ॥२५५ ॥ मिच्छादसणरत्ता, सनियाणा उ हिंसगा । इय जे मरन्ति जीवा, तेसि पुण दुल्लहा गोही ॥ २५६ ॥ सम्मइंसणरत्ता, अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा । इयजे मरन्ति जीवा, तेसिं सुलहा भवे नोही ॥ २५७ ॥
मिच्छादसणरत्ता, सनियाणाकण्हलेसमोगाढा । इय जे मरन्ति जीवा, तेंसिं पुण दुल्लहा बोही ॥
॥ २५८॥ जिणवयणे अणुरत्ता,जिणवयणं करेन्ति भावेण! अमलाअसतिलिट्ठा,ते होन्ति परित्तसंसारी ॥ २५९ ॥
बालमरणाणि बहसो, अकाममरणाणि चेव य बहूणि।
मरिहन्ति ते वराया, जिणवयणं जे न जाणन्ति ॥ ॥२६॥ बहुआगमविनाणा, समाहिउप्पायगा य गुणगाही। एएणं कारणेणं, अरिहा आलोयणं सोउं ।। २६१॥ कन्दप्पकुक्कुयाई, तह सीलसहावहसणविगहाइं । विम्हावेन्तोवि परं, कन्दप्पं भावणं कुणइ ॥ २६२ ।। मन्ताजोगं काउं, भूईकम्मं च जे पउंजन्ति । साय-रस-इड्डिहेडं, अभिओगं भावणं कुणइ ॥ २६३ ।। नाणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स सङ्घसाहूणं । माई अवण्णवाई, किबिसियं भावणं कुणइ ।। २६४ ॥ अणुबद्धरीसपसरो, तह य निमित्तम्मि होइ पडिसेवी।एएहि कारणेहिं, आसुरियं भावणं कुणइ ॥ २६५ ॥
सत्थगहणं विसभक्वणं च जलणं च जलपवेसो य । . अणायारभण्डसेवा, जम्मणमरणाणि बंधन्ति ॥
॥२६६ ॥ इय पाउकरे बुद्धे, नायए परिनिव्वुए। छत्तीसं उत्तरज्झाए, भवसिद्धीयसंवुडे ॥ २६७ ॥
त्ति वेमि ॥ जीवाजीवविभत्ती समत्ता ॥ ३६ ।।
॥ इअ उत्तरज्झयण सुत्तं समत्तं ॥
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