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(२८)
श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला.
पडिलहेइ पमत्ते, पउज्झइ पायकम्बलं । पडिलेहा अणाउत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ ९ ॥ पडिलेहेइ पमत्ते, से किंचि हु निसामिया । गुरुपारिभावए निचं, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥१०॥ बहुमाई पमुहरे, थद्धे लुद्ध अणिग्गहे। असंविभागी अवियत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ ११ ॥ विवादं च डदीरेइ, अहम्मे अत्तपन्नहा । वुग्गहे कलहे रत्ते, पावसमणि त्ति वुचई ॥ १२ ॥ अथिरासणे कुकुइए, जत्थ तत्थ निसीयई । आसणम्मि अणाउत्ते, पावसमणि त्ति वुचई ॥ १३ ॥ तसक्खपाए सुवई, सेजं न पडिलेहइ । संथारए अणाउत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १४ ॥ दुद्धदहीविगईओ, आहारेइ अमिक्खणं । अरए य तवोकम्मे, पावसमणि ति वुच्चई ॥ १५ ॥ अत्यन्तम्मि य सूरम्मि. आहारेइ अभिक्खणं । चोइओ पडिचोएइ, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १६ ॥ आयरियपरिचाई, परपासण्डसेवए । गाणंगणिए दुब्भूए, पावसमणि ति वुच्चई ॥ १७ ॥ सय गेहं परिचज, परगहंसि वावरे । निमित्तेण य ववहरइ, पावसमणि त्ति वुचई ॥ १८ ॥ समाइ पिण्डं जेमेइ, नेच्छई सामुदाणिय । गिहिनिसेजं च वाहेइ, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १९ ॥
एयारिसे पंचकुसीलसुंवुडे, रूबंधरे मुणिपवराण हेडिमे । अयंसि लोए विसमेव गरहिए, न से इहं नेव परत्थ लोए ॥ २० ॥ जे वजए एए सया उ दोसे, से सुखए होइ मुणीण मज्झे । अयसि लोए अमय व पूइए, आराहए लोभिणं तहा परं ।। २१॥
॥ति बेमि ॥ इअ पावसमणिजं समतं ॥१७॥
॥ अह संजइज्जं अढारहमं अज्झयणं ॥ कम्पिल्ले नयरे राया, उदिण्णबलवाहणे । नामेणं संजए नाम, मिगवं उवणिग्गए ॥१॥ याणीए गयाणीए, रयाणीए तहेव य। पायताणीए महया, सबओ परिवारिए ॥२॥ मिए छुहिता हयगओ, कम्पिल्लुजाण केसरे । भीए सन्ते मिए तत्थ, वहेइ रसमुच्छिए ॥३॥ बह केसरम्मि उजाणे, अणगारे तवोधणे । सज्झायज्झाणसंजुत्ते, धम्मज्झाणं झियायइ ॥ ४ ॥ अफोवमण्डवम्मि, भायइ क्खवियासवे । तस्सागए मिगं पासं, वहेइ से नराहिवे ॥५॥ अह आसगओ राया, खिप्पमागम्म सो तहिं । हए मिए उ पासित्ता, अणगारं तत्थ पासई ॥ ६ ॥ अह राया तत्थ सम्भन्तो, अणगारो मणा हओ । मए उ मन्दपुण्गेणं, रसगिद्धण धन्नुगा ॥ ७ ॥ आसं विसज्जइत्ताणं, अणगारस्स सो निवो । विगएण वन्दए पाए. भगवं एत्थ मे खमे । ८॥ अह मोणेण सो भग्गवं, अणगारे झाणमस्सिए । रायाणं न पडिमन्तेइ, तओ राया भवदुओ॥९॥ संजओ आहमम्मीति, भगवं वाहराहि मे । कुद्ध तेएण अणगारे, डहेज नरकोडिओ ॥ १० ॥ अन्भओ पत्थिवा तुम्भं, अभयदाया भवाहि य । अणिचे जीवलोगम्मि, किं हिंसाए पसन्जसी ॥ ११॥ अया सवं परिचज, गन्तवमवसस्स ते । अणिच्चेजीवलोगम्मि, किं रजम्मि पसज्जसी ॥ १२ ॥ जीवियं चेव रूवं च, विज्जुसंपाय चंचलं । जत्थ तं मुज्झसी रायं पेच्चत्थं नावुबुज्झसे ॥१३॥ दाराणि य सुया चेव, मित्ता य तह बन्धवा । जीवन्तमणुजीवन्ति, मयं नाणुव्वयन्ति य ॥ १४ ॥