________________
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला. अभिवन्दिऊण सिरसा, अइयाओ नराहिवो ॥ ५९॥ इयरो वि गुणसमिद्धो, तिगुत्तिगुत्तो तिदण्डविरओ य ।। विहग इव विप्पमुक्को, विहरइ वसुहं विगयमोहो ॥ ६० ॥
त्ति बेमि ॥ इअ महानियण्ठिज्जं समत्तं ॥
॥ अह समुद्दपालीयं एगवीसइम अज्झयणं ॥ चम्पाए पालिए नाम, सावए आसि बाणिए। महावीरस्स भगवओ, सीसे सो उ महप्पणो॥१॥ निग्गन्थे पावयणे, सावए से वि कोविए । पोएण ववहरन्ते, पिहुण्डं नगरमानए ॥ २ ॥ पिहुण्डे ववहन्तस्स, वाणिओ देह धूयरं । तं ससत्तं पइगिज्झ, सदेसमह पत्थिओ ॥ ३ ॥ अह पालियस्स घरिणी, समुद्दम्मि पसवई । अह बालए तहिं जाए, समुद्दपालि ति नामए ॥ ४ ॥ खेमेण आगए चम्पं, सावए वाणिए घरं । संवडई तस्स घरे, दारए से मुहोइए ॥ ५ ॥ वावत्तरी कलाओ य, सिक्खई नीइकोविए । जोवणेण य संपन्ने, सुरूवे पियदंसणे ॥६॥ तस्स रुववई भज, पिया आणेइ रुविणिं । पासाए कीलए रम्मे, देवो दोगुन्दओ जहा ॥७॥ अह अन्नया कयाई, पासायालोयणे ठिओ। वज्झमण्डणसोभागं, वज्झं पासइ बज्झगं ॥ ८ ॥ तं पासिऊण संवेगं, समुद्दपालो इणमब्बवी । अहोऽसुमाण कम्माणं, निजाण पावगं इमं ॥ ९॥ संबुद्धो सो तहिं भगवं, परमसंवेमागओ। आपुच्छमापियरो, पवए अणगारियं ॥१०॥
जहित्तु ऽसग्गन्थमहाकिलेसं, महन्तमोहं कसिणं भयावहं । परियायधम्मं चमिरोयएज्जा, वयाणि सीलाणि परीसहे य ॥११॥ अहिंससचं च अतेणगं च, तत्तो य बम्भं अपरिग्गहं च । पडिवजिया पंचमहत्वयाणि, चरिज धम्मं जिणदेसियं विद् ॥१२॥ सधेहिं भूएहिं दयानुकम्पी, खन्तिक्खमे संजमवम्भयारी । सावजजोगं परिवजयन्तो, चरिज भिक्खू सुसमाहिइन्दिए ॥ १३ ॥ कालेण कालं विहरेज रहे, बलाबलं जाणिय अप्पणो य । सीहो व सद्देण न सन्तसेज्जा, वयजोग सुच्चा न असच्चमाहु ॥१४॥ उवेहमाणो उ परिवएज्जा, पियमप्पियं सब तितिक्खएज्जा । न सब सवत्थ ऽभिरोयएज्जा, न यावि पूयं गरहं च संजए ॥ १५ ॥ अणेगच्छन्दामिह माणवेहिं, जे भावओ संपगरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उइन्ति भीमा, दिवा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥१६॥ परीसहा दुविसहा अणेगे, सीयन्ति जत्था बहुकायरा नरा। से तत्थ पत्ते न वहिज भिक्खू, संगामसीसे इव नागराया ॥ १७ ॥ सीओसिणादंसमसाय फासा, आयंका विविहा फुसन्ति देहं ।। अकुक्कुओ तत्थाहियासहेजा, रयाइ खेवेज पुरे कयाइं ॥ १८ ॥