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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला आलवन्ते लवन्ते वा, न निसीएन कयाइ वि । चइऊणमासणं धीरो, जओ जत्वं पडिस्सुणे ॥ २१ ॥ आसणगओन पुच्छेज्जा,नेव सेज्जागओकया।आगम्मुक्कुडुओ सन्तो, पुच्छिज्जा पंजलीउडो॥ २२ ॥ एवं विणयजुत्तस्स, सुत्तं अत्थं च तदुभयं । पुच्छमाणस्स सीसस्स, वागरिज जहासुयं ॥ २३ ॥ मुसं परिहरे भिक्खू, न य ओहारिणिं वए । भासादोसं परिहरे, मायं च वजए सया ॥ २४ ॥ न लवेज पुट्ठो सावजं, न निरटुं न मम्मयं । अप्पणट्ठा परट्ठा वा, उभयस्सन्तरेण वा ॥ २५॥ समरेसु अगारेसु, सन्धीसु य महापहे । एगो एगत्थिए सद्धिं, नेव चिट्टे न संलवे ॥ २६ ॥ जं मे बुद्धाऽणुसासन्ति, सीएण फरुसेण वा । मम लाहो त्ति पेहाए, पयओ तं पडिस्सुणे ॥ २७ ॥ अणुसासणमोवायं, दुक्कडस्स य चोयणं । हियं तं मण्णई पण्णो, वेसं होइ असाहुणो॥ २८ ॥ हियं विगयभया बुद्धा, फरुसंपि अणुसासणं । वेसं तं होइ मूढाणं, खन्तिसोहिकरं पयं ॥ २९॥ आसणे उवचिद्वेज्जा, अणुच्चे अकुए थिरे । अप्पुट्ठाई निरुट्ठाई, निसीएज्जप्पकुक्कुए ॥ ३०॥ कालेण निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे। अकालं च विवजित्ता, काले कालं समायरे ॥ ३१ ॥ परिवाडीए न चिडेजा, भिक्खू दत्तेसणं चरे । पडिरूवेण एसित्ता, मियं कालेण भक्खए ॥ ३२ ॥ नाइदूरमणासन्ने, नाऽन्नेसिं चक्खुफासओ । एगो चिटेज भत्तट्ठा, लंधित्ता तं नाऽइक्कमे ॥ ३३ ॥ नाइउच्चे न नीए वा, नासन्ने नाइदूरओ। फासुयं परकडं पिण्डं, पडिगाहेज संजए ॥ ३४ ॥ अप्पपाणेऽप्पबीयम्मि, पडिछन्नम्मि संवुडे । समयं संजए भुंजे, जयं अपरिसाडियं ॥ ३५ ॥ सुकडित्ति सुपक्कित्ति, सुच्छिन्न सुहडे मडे । सुणिहिए सुलद्धित्ति, सावजं वजए मुणी ॥ ३६ ॥ रमए पण्डिए सासं, हयं भदं व वाहए । बालं सम्मइ सासंतो, गलियस्सं व वाहए ॥ ३७ ॥ खड्डया मे चवेडा मे, अक्कोसा य वहा य मे । कल्लाणमणुसासन्तो, पावदिट्ठित्ति मन्नई ॥ ३८ ॥ पुत्तो मे भाय नाइ त्ति, साहू कल्लाण मन्नई। पावदिट्टि उ अप्पाणं, सासं दासु त्ति मन्नई ॥ ३९ ॥ न कोवए आयरियं, अप्पाणंपि न कोवए । बुद्धोवघाई न सिया, न सिया तोत्तगवेसए ॥ ४० ॥ आयरियं कुवियं नच्चा, पत्तिएण पसायए । विज्झवेज पंजलीउडो, वएज न पुणोत्ति य ॥४१॥ धम्मज्जियं च ववहारं, बुद्धेहायरियं सया। तमायरन्तो ववहारं, गरहं नाभिगच्छई ॥ ४२ ॥ मणोगयं वक्तगयं, जाणित्तायरियस्स उ। तं परिगिज्झ वायाए, कम्मुणा उववायए ॥ ४३ ॥ वित्ते अचोइए निचं, खिप्पं हवइ सुचोइए। जहोवइ8 सुकयं, किच्चाई कुव्वई सया ॥ ४४ ॥ नच्चा नमइ मेहावी, लोए कित्ती से जायए। हवई किच्चाणं सरणं, भूयाणं जगई जहा ॥ ४५ ॥ पुज्जा जस्स पसीयन्ति, संबुद्धा पुव्वसंधुया । पसन्ना लाभइस्संति, विउलं अट्ठियं सुयं ॥ ४६॥
स पुजसत्थे सुविणीयसंसए, मणोरुई चिट्टइ कम्मसंपया । तवोसमायारिसमाहिसंवुडे, महज्जुई पंच वयाइं पालिया ॥ ॥४७॥ स देवगंधव्यमणुस्सपूइए, चइत्तु देहं मलपंकपुव्वयं । सिद्धे वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महिड्ढीए ॥
॥४८॥ त्ति बेमि || इअ विणयसुयं नाम पढमं अज्झयणं समत्तं ॥