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ध्ययनसूत्र-सप्तमाध्ययनम्
तओ जिए सई होइ, दुविहं दोग्गइं गए। दुल्लहा तस्स उम्मग्गा, अदाए मुइरादवि ॥ १८॥ एवं जियं सपेहाए, तुल्लिया बालं च पण्डियं । मूलियं ते पवेसन्ति, माणुसिं जोणिमेन्ति जे ॥१९॥ वेमायाहिं सिक्खाहिं, जे नरा गिहिसुव्वया। उवेन्ति माणुसं जोणिं, कम्मसच्चा हु पाणिणो ॥२०॥ जेसिं तु विउला सिक्खा, मूलियं ते अइच्छिया। सीलवन्ता सवीसेसा, अदीणा जन्ति देवयं ॥ २१ ॥ एवमद्दीण भिक्खु, आगारिं च वियाणिया। कहण्णु जिच्चमेलिक्खं, जिच्चमाणे न संविदे ॥ २२॥ जहा कुसग्गे उदगं, समुद्देण समं मिणे । एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण अंतिए ॥ २३ ॥ कुसग्गमेत्ता इमे कामा, सन्निरुद्धम्मि आउए। कस्स हेउं पुराकाउं, जोगक्खेमं न संविदे ॥ २४ ॥ इह कामाणियहस्स, अत्तद्वै अवरज्झई । सोचा नेयाउयं मग्गं, जं भुज्जो परिभस्सई ॥ २५ ॥ इह कामणियहस्स, अत्तढे नावरज्झई । पूइदेहनिरोहेणं, भवे देवि त्ति मे सुयं ॥ २६ ॥ इड्ढी जुई जस्सो वण्णो, आउं सुहमणुत्तरं । भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु, तत्थ से उववजई ॥ २७ ॥ बालस्स पस्स बालत्तं, अहम्मं पडिवजिया। चिच्चा धम्मं अहम्मिटे, नरए उववबई ॥ २८॥ धीरस्स पस्स धीरत्तं सच्चधमाणुवत्तिणो । चिच्चा अधम्मं धम्मिटे, देवेसु उववजई ॥ २९ ॥ तुलियाण बालभावं, अबालं चेव पंडिए । चइऊण बालभावं, अबालं सेवई मुणि ॥ ३०॥
त्ति बेमि ॥ इअ एलय-ज्झयणं समत्तं ॥ ७॥
॥ अह काविलियं अहमं अज्झयणं ॥ अधुवे असासयम्मि, संसारम्मि दुक्खपउराए । किं नाम होज्जतं कम्मयं, जेणाहं दोग्गइं न गच्छेना ॥१॥ विजहित्तु पुव्वसंजोयं, न सिणेहं कहिंचि कुव्वेजा। असिणेहसिणेहकरेहिं, दोसपओसेहि मुच्चए भिक्खू ॥ २॥ तो नाणदंसणसमग्गो, हियनिस्सेसाय सव्वजीवाणं ।। तेसिं विमोक्खणटाए, भासई मुणिवरो विगयमोहो ॥ ३ ॥ सव्वं गंथं कलहं च, विप्पजहे तहाविहं भिक्खू । सव्वेसु कामजाएसु, पासमाणो न लिप्पई ताई ॥४॥ भोगामिसदोसविसन्ने, हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थे । बाले य मन्दिए मूढे, बज्झई मच्छिया व खेलम्मि ॥५॥ दुप्परिचया इमे कामा, नो सुजहा अधीरपुरीसेहिं । अह सन्ति सुव्वया साहू, जे तरन्ति अतरं वणिया वा ॥ ६ ॥ समणामु एगे वयमाणा, पाणवहं मिया अयाणन्ता ।। मन्दा निरयं गच्छन्ति, बाला पावियाहिं दिट्ठीहिं ॥७॥ न हु पाणवहं अणुजाणे, मुच्चेज कयाइ सव्वदुक्खाणं । एवारिएहिं अक्खायं, जेहिं इमो साधुधम्मो पन्नत्तो ॥ ८॥