Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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(६६)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
॥ अह जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं ॥
जीवाजीवविभत्ति, सुणे मे एगमणा इओ । जं जाणिऊण भिक्खु, सम्मं जयइ संजमे ॥ १ ॥ जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए । अजीव देसमागासे, अलोगे से वियाहिए || २॥ दव्वओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा । परूवणा तेसि भवे, जीवाणमजीवाण य ॥ ३ ॥ रूविणो वरूat य. अजीवा दुविहा भवे । अरूवी दसहा वुत्ता, रूविणो य चउविहा ॥ ४॥ धम्मत्थिकाए तद्देसे, तप्पए से य आहिए । अहम्मे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए ॥ ५ ॥ आगासे तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए | अद्धासमए चेत्र, अरूवी दसहा भवे ॥ ६॥ धमाधम्मे य दो चेत्र, लोगमित्ता वियाहिया । लोगालोगे य आगासे, समए समयखेत्तिए ॥ ७ ॥ धम्माधम्मागासा, तिन्निवि एए अणाइया । अपज्जवसिया चेव, सव्वद्धं तु वियाहिया ॥ ८ ॥ समवसन्त पप्प, एवमेव वियाहिए । आएसं पप्प साईए, सप्पज्जवसिएविय ॥ ९ ॥ खन्धा य खन्धदेसा य, तप्पएसा तदेव य । परमाणुणो य बोधवा, रूविणो य उहा ॥ १० ॥ एगतेण पुत्ते, खन्धा य परमाणुणो । लोएगदेसे लोए य, भइयच्वा ते उ खेत्तओ || इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउविहं ॥ १२ ॥
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संतई पप्प तेsणाई, अप्पज्जवसियाविय । ठिहं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया विय ॥ असंखकालमुक्कोi, एको समओ जहन्नयं । अजीवाण य रूवीण, ठिई एसा वियाहिया ॥ अणन्तकालमुकोसमेको, समओ जहन्नयं । अजीवाण य रूवीण, अन्तरेयं वियाहियं ।। वण्णओ गन्धओ चेव, रसओ फासओ तहा। संठाणओ य विभओ, परिणामो तेसि पंचहा वणओ परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया । किण्हा नीला य लोहिया, इलिद्दा सुकिला तहा गन्धओ परिणया जे उ, दुविहा ते वियाहिया । सुब्भिगन्धपरिणामा, दुब्भिगन्धा तदेव य ॥ रसओ परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया । तित्तकडुयकसाया, अम्बिला महुरा तहा फासओ परिणया जे उ, अट्ठहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउआ चेव, गरुया लहुवा तहा ॥ २० ॥ सोया उण्हा य निद्धा य, तहा लुक्खा य आहिया । इय फासपरिणया एए, पुग्गला समुदाहिया ।। २१ ॥ ठाणओ परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया । परिमण्डला य वढाय, तंसा चउरंसमायया ।। २२ ॥ वणओ जे भवे किण्हे, भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। २३ ।। वणओ जे भवे नीले, भइए से उगन्धओ । रसओ फासओ चेव, भहए संठाणओवि य ।। २४ ॥
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ओ लोहिए जे उ, भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चैव भइए संठाणओवि य ॥ २५ ॥ aorat पीए जे उ, भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। २६ । aurओ सुकिले जे उ, भइए से उ अन्धओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २७ ॥ गन्धओ जे भवे सुन्भी, भइए से उ वण्णओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २८ ॥
ओ जे भवेदुब्भी, भइए से उ बण्णओ । रसओ फासओ चेत्र, भइए संठाणओवि य ।। २९ ।। रसओ तित्तए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३० ॥
१७ ॥

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