Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-चोत्तीसमाध्ययनम्
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जा पम्हाए ठिई खलु, उक्कोसासा उसमयमभहिया। जहन्नेणं सुक्काए, तेत्तीस मुत्तमम्भहिया ॥ ५५॥ किण्हा नीला काऊ, तिमि वि एयाओ अहंमलेसाओ। एयाहि तिहिवि जीवो, दुग्गई उववजई ॥ ५६ ॥ तेऊ पम्हा मुक्का, तिन्निवि एयाओ धम्मलेसाओ। एयाहि तिहिवि जीवो, सुग्गई उववजई ।। ५७ ॥
साहिं सवाहिं, पढमे समयमि परिणया हिं तु । न हु कस्सइ उववाओ, परे भवे अत्थि जीवस्स ॥ ५८ ॥ लेसाहिं सबाहि, चरिमे समयमि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववाओ. परे भवे होइ जीवस्स ॥ ५९॥ अन्तमुहुत्तम्मि गए अन्तमुहुत्तम्मि सेसए चेव । लेसाहि परिणयाहिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं ॥ ६०॥ तम्हा एयासि लेसाणं,आणुभावे वियाणिया ।अप्पसत्थाओ वजित्ता, पसत्थाओऽहिटिए मुणि ॥ ६१ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ लेसज्झयणं समत्तं ॥ ३४ ॥
॥ अह अणगारज्झयणं णाम पंचतीसइमं अज्झयणं ॥ मुहेण मे एगग्गमणा, मग्गं बुद्धेहि देसियं । जमायरन्तो भिक्खू , दुक्खाणन्त करे भवे ॥१॥ गिहवासं परिचज, पवजामस्सिए मुणी । इमे संगे वियाणिज्ज, जेहिं सन्जन्ति माणवा ॥२॥ तहेव हिंसं अलियं, चोलं अबम्भसेवणं । इच्छाकामं च लोभं च, सजओ परिवजए ॥ ३ ॥ मणोहरं चित्तधरं, मल्लधूवेण वासियं । सकवाडं पण्डुरुल्लोचं, मणसावि न पत्थए ॥ ४ ॥ इन्दियाणि उ भिक्खुस्स, तारिसम्मि उवस्सए । दुक्कराई निवारेउं, कामरागविवड्डणे ॥५॥ सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व इक्कओ। पइरिक परकडे वा, वासं तत्थाभिरोयए ॥ ६ ॥ फासुयम्मि अणाबाहे, इत्थीहिं अणभिदुए । तत्थ संकप्पए वासं, भिक्खू परमसंजए ॥ ७ ॥ न सयं गिहाई कुविना व अन्नेहि कारए । गिहकम्मसमारम्भ, भूयाणं दिस्सए वहो ॥ ८ ॥ तसाणं थावराणं च, सुहुमाणं बादगण य । तम्हा गिहसमारम्भ, संजओ परिवजए ॥९॥ तहेत्र भत्तपाणेसु, पयणे पयावणेसु य । पाणभूयदयट्ठाए, न पए न पयावए ॥ १०॥ जलधननिस्सिया जीवा, पुढवीकट्टनिस्सिया। हमन्ति भत्तपाणेसु. तम्हा भिक्खू न पयावए ॥११॥ विसप्पे सवओ धारे, बहुपाणिविणासणे । नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई न दीवए ॥ १२ ॥ हिरणं जायस्वं च, मणसा वि न पत्थए । समलेठुकंचणे भिक्खू, विरए कयनिक्कए ॥ १३ ॥ किणन्तो कइओ होइ,विकिणन्तोय वाणिणो। कयविक्कयम्मि वहन्तो, मिक्खू न भवइ तारिसो ॥ १४ ॥ मिक्खियोन केयवं, भिक्खुणा भिक्खवत्तिणा। कयविकओ महादोसो, भिक्खवत्ती सुहावहा ॥ १५॥ समुयाणं उंछमेसिज्जा, जहामुत्तमणिन्दियं । लामालाभम्मि संतुढे. पिण्डवायं चरे मुणी ॥ १६ ॥ अलोले न रसे गिद्धे, जिब्भादन्ते अमुच्छिए। न रसट्ठाए मुंजिना, जवणट्ठाए महामुणी ॥ १७ ॥ अचणं रयणं चेव, वन्दणं पूयणं तहा। इड्डीसकारसम्माणं, मणमा वि न पत्थए ।। १८ ॥ सुकज्झाणं झियाएज्जा, अणियाणे अकिंचणे। वोसट्टकाए विहरेजा, जाव कालस्स पजओ ॥ १९ ॥ निज्जूहिऊण आहारं, कालधम्मे उवट्ठिए । जहिऊण माणुसं बोन्दि, पहू दुक्खे विमुच्चई ॥ २०॥ निम्ममे निरहंकारे, वीयरागो अणासवो । संपत्तो केवलं नाणं, सासयं परिणिव्वुए ॥ २१ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ अणगारज्झयणं समत्तं ।। ३५ ।।

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