Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 70
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-छतीसमाध्ययनम् (६७) रसओ कडुए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३१ ।। रसओ कसाए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव, भइए सठाणओवि य ॥ ३२ ॥ रसओ अम्बिले जे उ. भइए से उ वण्णओ। गन्धओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३३ ॥ रसओमहुरए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३४ ।। फामओ कक्खडे जे उ, भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३५ ॥ फासओ भइए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३६ ।। फासए गुरूए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गन्धो रसश्रो चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३७ !! फासओ लहुए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३८।। फासए सीयए जे उ, भइए से उ षण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। ३९ ।। फासओ उण्हए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ४० ॥ फासओ निद्धए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥४१॥ फासओ लुक्खए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गन्धओरसओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। ४२ ।। परिमण्डलसंठाणे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ ४३ ।। संठाणओ भवे वहे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ ४४ ।। संठाणओ भवे तंसे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ ४५ ।। संठाणओ जे चउरंसे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ।। ४६ ।। जे आययसंठाणे, भइए से वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ ४७ ।। एसा अजीवविभत्ती, समासेण वियाहिया । इत्तो जीवविभत्ति, बुच्छामि अणुपुबसो। ४८॥ संसारत्था य सिद्धा य, दुविहा जीवा वियाहिया। सिद्धाणेगविहा वुत्ता, तं मे कियतओ सुण ॥ ४९ ॥ इत्थो पुरिससद्धा य, तहेव य नपुंसगा। सलिंगे अन्नलिंगे य, गिहिलिंगे तहेव य ॥ ५० ॥ उक्कोसोगाहणाए य, जहन्नमज्झिमाइ य । उ8 अहे तिरियं च, समुद्दम्मि जलम्मि य ॥ ५१ । दस य नपुंसएसु. वीसं इत्थियासु य । पुरिसेसु य अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झई ॥ ५२ ॥ चत्तारि य गिहलिंगे, अन्नलिंगे दसेव य । सलिंगेण अट्ठसयं. समएगेण सिज्झई ॥ ५३ ॥ उक्कोसोगाहणाए य, सिज्झन्ते जुगवं दुवे । चत्तारि जहन्नाए, मज्झे अठुत्तरं सयं ॥ ५४ ।। चउरुड्डलोए य दुवे समुद्दे, तओ जले वीसमहे तहेव य ।। सयं च अठुत्तरं तिरियलोए, समणेगेण सिज्झई धुवं ॥ ॥५५ ।। कहिं पडिहया सिद्धा, कहिं सिद्धा पइडिया । कहिं बोन्दि, चइत्ताणं, कत्थ मन्तूण सिज्झई ॥५६॥ आलोए पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइडिया । इहं बोन्दि चइत्ताणं, तत्थ गन्तूण सिज्बई ।। ५७ ॥ चारसहिं जोयणेहिं, सबढस्सुवरिं भवे। ईसिपब्भारनामा, पुढवी छत्तसंठिया ।। ५८ ॥ पणयालसयसहस्सा, जोयणाणं तु आयया। तावइयं चेव विस्थिण्णा,तिग्गुणो तस्सेव परिसणो ॥ ५९॥ अट्ठजोयणवाहुला, सा मज्झम्मि वियाहिया। परिहायन्ती चरिमन्ते, मच्छिपत्ताउ तशयरी ।। ६० ॥ अज्जुणसुवण्णगमई, सा पुढवी निम्मला सहावेण । उत्ताणगच्छत्तगसंठिया य, भणिया जिणवरेहिं ।। ६१ ॥ HTHHHHHI

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