Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 66
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-चोत्तीसमाध्ययनम् ॥ अह लेसज्झयणं चोत्तीसइमं अज्झयणं ॥ लेसज्झयणं पवक्खामि, आणुपुविं जहकमं । छण्हंपि कम्म लेसाणं, अणुभावे सुहेण मे ॥१॥ नामाई वण्णरसगन्धफासपरिणामलक्खणं । ठाणं ठिई गई चाउं, लेसाणं तु सुणेह मे ॥ २ ॥ किण्हा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्कलेसा य छट्ठा य, नामाइं तु जहक्कमं ॥ ३ ॥ जीसूयनिद्धसंकासा, गवलरिट्ठगसन्निभा। खंजणनयणनिभा, किण्हलेसा उ वण्णओ ॥४॥ नीलासोगसंकासा, चासपिच्छसमप्पभा। वेरुलियनिद्धसंकासा, नीललेसा उ वण्णओ ॥ ५॥ अयसोपुप्फसंकासा, कोइलच्छदमन्निभा । सुयतुण्डपईवनिभा, काउलेसा उ वण्णओ ॥ ६ ॥ हिंगुलघाउसंकासा, तरुणाइच्चसन्निभा। सुयतुण्डपईवनिभा, तेऊलेसा उ वण्णओ ॥ ७ ॥ हरियालभेयसंकासा, हलिदाभेयसमप्पभा सणासणकुसुमनिभा पम्हलेसा उ वण्णओ ॥ ८ ॥ संखककुन्दसङ्कासा, खीरपूरसमप्पभा। रयणहारसंकासा, सुकलेसा उ वण्णओ ॥९॥ जह कडुयतुम्बगरसो, निम्बरसो कडुयरोहिणिरसो वा । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो य किण्हाए नायबो ॥ १०॥ जह तिगडुयस्स य रसो, तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए वा । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ नीलाए नायव्यो ॥ ११ ॥ जह परिणअम्बगरसो, तुवरकविट्ठस्स वावि जारिसओ। एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ काऊण नायवो ॥ १२ ॥ जह परिणयम्बगरसो, पककविट्ठस्स वावि जारिसओ । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ तेऊण नायवो ॥ १३ ॥ चरवारुणीए वारसो, विविहाण व आसवाण जारिसओ। महुमेरयस्स व रसो, एत्तो पम्हाए परएणं ॥ १४ ।। खज्जूमुद्दियरसो, खीररसो खंडसक्करसो वा । एत्तो वि अणंतगुणो,रसो उ सुक्का ए नायवो ॥ १५ ॥ जह गोमडस्सगंधो सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्साएत्तो वि अणंतगुणो,लेसाणं जप्पमत्थाणं ।। १६॥ जह सुरहिकुसुमगंधो,गंधवासाण पिस्समाणाणं। एत्तो वि अणंतगुणो, पसत्थलेसाण तिण्हं पि ॥ १७ ॥ जह करगयस्स फासो, गोजिब्भाए य सागपत्ताणं । एत्तो वि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पहत्थाणं ॥ १८ ॥ जह बूरस्स व फासो,नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाण। एत्तो वि अणंतगुणो,पसत्थलेसाण तिण्हंपि॥ १९ ॥ तिविहो व नवविहोवा, सत्तावीसइविहेकसीओ वा। दुसओ तेयालो वा, लेसाणं होइ परिणामो ॥ २० ॥ पंचासवप्पवत्तो, तीहिं अगुत्तो छसुं अविरओ य। तिवारंभपरिणओ, खुड्डो साहसिओनरो ॥२१॥ निद्धन्धसपरिणामो, निस्संसो अजिइन्दिओ। एयजोगसमाउत्तो, किण्हलेसं तु परिणमे ॥ २२ ॥ इस्सा अमरिस चतवो, अविज्जमाया अहीरिय । गेही पओसे य सढे, पमत्ते रसलोलुए ॥ २३ ॥ सायगवेसए य आरम्भाओ अविरओ.खुड्डो साहस्सिओ नरो। एयजोगसमाउत्तो,नीललेसं तु परिणमे २४ वंके वंकसमायारे, नियड्डिले अणुज्जुए। पलिउंचगओवहिए, मिच्छदिट्ठी अणारिए ॥ २५ ॥ उप्फासगदुट्ठवाई य, तेणे यावि य मच्छरी। एयजोगसमाउत्तो, काऊलेसं तु परिणमे ॥ २६ ॥

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