Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीजैनसिद्धान्त - खाध्यायमाला
गन्धस्स घाणं गहणं वयन्ति, घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोपस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ४९ ॥ गन्धे जो गेहिमुवे तिबं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे ओसहगन्धगिद्धे, सप्पे बिलाओ वित्र निक्खमंते ॥ ५० ॥ जे यावि दोसं समुवे तिवं, तंसिक्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि गन्धं अवरुज्झई से । ५१ ॥ एगन्तर रुरंसि गन्धे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवे बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ५२ ॥ गन्धाणुगासागर य जीवे, चराचरे हिंसइणेगरूवे । चितेहि ते परतावे वाले, पीले अत्तगुरू किलिट्टे ॥ ५३ ॥ गन्धाणुवाएण परिग्गण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । ar विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ॥ गन्धे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि ।
५४ ॥
दोसे दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ५५ ॥ तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, गन्धे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुखं वड्ड लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुन्नई से ।। ५६ ।। मोस्स पच्छाय पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, गन्धे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ५७ ॥ गन्धाणुरतस्स रस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थभोगे वि किलेसदुक्खं निवतई जस्स करण दुक्खं ॥ ५८ ॥ एमेव गन्धम्म गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ ।
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चित्तो यचिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ५९ ।। गन्धे विरतो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । नलिई भवमज्झेवि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ६० ॥ जिन्भाए रसं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु | तं दोसउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ।। ६१ ।। रसस्स जिन्भं गहणं वयंति, जिन्भाए रसं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ रसेसु जो गेहिमुवेइ तिबं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे व डिसविभिन्नकाए, मच्छे जहा आमिस भोगसिद्धे ॥ ६३ ॥ जे यावि दो समुवे तिबं, तंसिक्खणे से उ उवेड़ दुक्खं । दुहन्तदोसेण सण जन्तू, न किंचि रसं अवरुज्झई से ॥ ६४ ॥ एगन्तरते रुइरंसि रसे, अतालिसे से कुणई पओसं
६२ ॥

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