Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला. जहा से क्खिसिंगे, जायखन्धे विरायई । वसई जूहाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १९ ॥ जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए । सीहे. मियाण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २० ॥ जहा से वासुदेवे, संखचक्कगयाधरे । अप्पडिहयबले जोहे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २१ ॥ जहा से चाउरन्ते, चक्कवट्टीमहिड्डिए । चोद्दसरयणाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ।। २२ ॥ जहा से सहारसक्खे, वजपाणी पुरन्दरे । सके देवाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २३ ॥ जहा से तिमिरविद्धंसे, उचिट्ठन्ते दिवायरे । जलन्त इव तेएण, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २४ ॥ जहा से उडुवई चन्दे, नक्वत्तपरिवारिए । पडिपुण्णे पुण्णमासीए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २५ ॥ जहा से समाइयाणं, कोट्ठागारे सुरक्खिए । नाणाधनपडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २६ ॥ जहा सा दुमाण पवरा, जम्बू नाम सुदंसणा । अणाढियस्स देवस्स, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २७ ॥ जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा । सीया नीलवन्तपवहा, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २८ ॥ जहा से नगाण पवरे, सुमहं मन्दरे गिरी । नाणोसहिपज लिए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २९ ॥ जहा से सयंभुरमणे, उदही अक्खओदए । नाणारयणपडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ ३० ॥
समुद्दगम्भीरसमा दुरासया, अचकिया केणइ दुप्पहंसया । मुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो, खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया
॥३१॥ तम्हा सुयमहिडिजा, उत्तमट्ठगवेसए। जेणप्पाणं परं चेव, सिद्धिं संपाउणेज्जासि ॥ ३२ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ बहुस्सुयपुजं समत्तं ॥ ११ ॥
॥ अह हरिएसिज्जं बारहं अज्झयणं ॥ सोवागकुलसंभूओ, गुणुत्तरधरो मुणी, हरिएसबलो नाम, आसि भिक्खू जिइन्दिओ ॥ १ ॥ इरिएसणभासाए, उच्चारसमिईसु य । जओ आयाणनिक्खेवे, संजओ मुसमाहिओ ॥ २ ॥ मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइन्दिओ । भिक्खट्ठा बम्भइ जम्मि, जन्नवाडे उवढिओ ॥ ३ ॥ तं पासिऊणं एजन्तं. तवेण परिसोसियं । पन्तोवहिउवगरणं, उवहसन्ति अणारिया ॥ ४ ॥ जाईमयपडिथद्धा, हिंसगा अजिइन्दिया । अबम्भचारिणो बाला, इमं वयणमब्बवी ॥ ५ ॥
कयरे आगछइ दित्तरूवे, काले विगराले फोकनासे ।
ओमचेलए पंसुपिसायभूए. संकरदूसं परिवरिय कण्ठे ॥ ६॥ को रे तुम इय अदंसणिजे, काए व आसाइहमागओसि । ओमचेलया पंसुपिसायभूया, गच्छक्खलाहि किमिहिं ठिओ सि ॥ ७॥ जक्खेतहिं तिन्दुयरुक्खचासी, अणुकम्पओ तस्स महामुणिस्स । पच्छायइत्ता नियगं सरीरं, इमाई वयणाइमुदाहरित्था ॥ ८ ॥ समणो अहं संजओ, बम्भयारी, विरओ धणपयणपरिग्गहाओ। परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले, अन्नस्स अट्ठा इहमागओमि ॥ ९॥ वियरिनइ खजइ भुजई, अन्नं पभूयं भवयाणमेयं ।

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