Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-एगविसमाध्ययनम् पहाय रागं च तहेव दोसं, मोहं च भिक्खू सततं वियक्खणो। मेरु व्व वारण अकम्पमाणो, परीसहे आयगुत्ते सहेजा ॥ १९॥ अणुन्नए नावणए महेसी, न यावि पुयं गरहं च संजए । स उजभावं पडिवज्ज, संजए, निव्वाणमग्गं विरए उवेइ ॥२०॥ अरइरइसहे पहीणसंथवे, विरए आयहिए पहाणबं । परमट्ठपएहिं चिट्ठई, छिन्नसोए अममे अकिंचणे ॥२१॥ विवित्तलयणाइ भएन्ज ताई, निरोवलेवाइ असंथडाई । इसीहि चिण्णाइ महायसेहिं, काएण फासेज परीसहाई ।। २२ ॥ सन्नाणनाणोवगए महेसी. अणुत्तरं चरिउं धम्मसंचयं । अणुत्तरे नाणधरे जसंसी, ओभासई सूरिए वन्तलिक्खे ॥ २३ ॥ दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं, निरंगणे सव्यओ विप्पमुक्के । तरित्ता समुदं व महाभवोधं, समुद्दपाले अपुणागमं गए ॥ २४ ॥ त्ति बेमि ॥ इअ समुद्दपालीयं समत्तं ॥ ॥ अह रइनेमिजं बावीसइमं अज्झयणं ॥ सोरियपुरम्मि नयरे, आसि राया महिड्डिए । वसुदेवु त्ति नामेणं, रायलक्खणसंजुए ॥ १॥ तस्स भन्जा दुवे आसी, रोहिणी देवई तहा । तासिं दोण्हं दुवे पुत्ता, इट्टा रामकेसवा ॥ २ ॥ सोरियपुरम्मि नयरे, आसि राया महिड्डिए । समुदविजए नामं, रायलक्खणसंजुए ॥ ३ ॥ तस्स भज्जा सिवा नाम, तीसे पुत्तो महायसो। भगवं अरिट्टनेमि त्ति, लोगनाहे दमीसरे ॥ ४ ॥ सो ऽरिद्वनेमिनामो उ, लक्खणस्सरसंजुओ । अट्ठसहस्सलक्खणधरो, गोयमो कालगच्छवी ॥ ५ ॥ वजरिसहसंघयणो, समचउरंसो झसोयरो। तस्स रायमईकन, भजं जायइ केसवो ॥६॥ अह सा रायवरकन्ना, सुसीला चारुपेहणी । सवलक्खणसंपन्ना, विज्जुसोयामणिप्षभा ॥ ७ ॥ अहाह जणओ तीसे, वासुदेवं महिड्डियं । इहागच्छउकुमारो, जा से कन्नं ददामि ॥ ८॥ सबोसहीहिं एहविओ, कयकोउयमंगलो। दिवजुयलपरिहिओ, आभरणेहिं विभूसिओ ॥९॥ मत्तं च गन्धहत्थि, वासुदेवस्स जेट्टगं । आरूढो सोहए अहियं, सिरे चूडामणि जहा ॥ १०॥ अह ऊसिएण छत्तेण, चामराहि य सोहिए । दसारचक्केण य सो, सबओ परिवारिओ ॥ ११ ॥ चउरंगिणीए सेणाए, रइयाए जहक्कम । तुरियाण सनिनाएण, दिव्वेण गगणं फुसे ॥१२॥ एयारिसाए इड्डीए, जुत्तीए उत्तमाइ य । नियगाओ भवणाओ, निजाओ वहिपुंगवो ॥ १३ ॥ अह सो तत्थ निजन्तो, दिस्स पाणे भयदुए । वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्निरुद्धे सुदुक्खिए ॥ १४ ॥ जीवियन्तं तु सम्पत्ते, मंसट्ठा भक्खियवए । पासेत्ता से महापन्ने, सारहिं इणमब्बवी ॥१५॥ कस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सवे सुहेसिणो । वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्निरुद्धा य अच्छहि ॥ १६ ॥ अह सारही तओ भणइ, एए भद्दा उ पाणिणो। तुझं विवाहक जम्मि, भोयावेउं बहुं जणं ॥ १७ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78