Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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(४०)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला. केसिमेवं बुवाणं तु, गोयमो इणमब्बवी । विनाणेण समागम्म, धम्मसाहणमिच्छियं ॥ ३१ ॥ पच्चयत्थं च लोगस्स, नाणाविहविगप्पणं । जत्तत्थं गणहत्थं च, लोगे लिंगपओयणं ॥ ३२ ॥ अह भवे पइन्ना उ, मोक्खसब्भूयसाहणा | नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं चेव निच्छए ॥ ३३ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संमओ मझं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ३४ ॥ अणेगाणं सहस्साणं, मज्झे चिट्ठसि गोयमा। ते य ते अहिगच्छन्ति, कहं ते निजिया तुमे ॥ ३५॥ एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस । इसहा उ जिणिताणं, सबसत्तु जिणामहं ।। ३६ ॥ सत्तु य इइ के वुत्ते, केसी गोयम मब्बवी । तओ केसिं बुवंतं तु. गोयमो इणमब्बवी ॥ ३७॥ एगप्पा अजिए सत्तु, कसाया इन्दियाणि य । ते जिणित्तु जहानायं, विहरामि अहं मुणी ॥ ३८ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो, अन्नो वि संमओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ३९ ॥ दीसन्ति यहवे लोए, पासबद्धा सरीरिणो । मुक्कपासो लहुब्भुओ, कहं विहरिसी मुणी ॥४०॥ ते पासे सबसो चित्ता, निहन्तूण उवायओ । मुक्कपासो लहुभुओ, कहं विहगमि अहं मुणी ॥४१॥ पासा य इइ के वुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं वुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ४२ ॥ रागद्दोसादओ तिव्वा, नेहपासा भयकरा । ते छिन्दित्ता जहानायं, विहरामि जहकमं ॥ ४३ ॥ साहु गोयम पन्ना ते. छिन्नो मे संसओइमो। अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥४४॥ अन्तोहिययसंभूया, लया चिट्ठइ गोयमा। फलेइ विसभक्खीणि, सा उ उद्धरिया कहं ॥ ४५ ॥ तं लयं सबसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलियं । विहरामि जहानायं, मुक्को मि विसभक्खणं ॥ ४६॥ लया य इइ का वुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥४७॥ भवतण्हा लया वुत्ता, भीमा भीमफलोदया। तमुद्धिच्चा जहानायं, विहरामि जहासुहं ॥४८॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो, मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ४९ ॥ संपज्जलिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा। जे डहन्ति सरीरत्थे, कहं विज्झाविया तुमे ॥ ५० ॥ महामेहप्पसूयाओ, गिज्झ वारि जलुत्तमं । सिंचामि समयं देहं. सित्ता नो व डहन्ति मे ॥५१॥ अग्गी य इइ के वुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु. गोयमो इणमब्बवी ॥५२॥ कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुयसीलतवा जल । सुयधारामिहया सन्ता, भिन्ना हु न डहन्ति मे ।। ५३ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ। अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ५४॥ अयं साहसिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिघावई । जंसि गोयममारूढो, कहं तेण न हीरसि ॥ ५५ ॥ पधावन्तं निगिहामि, सुयरस्सीसमाहियं । न मे गच्छइ उम्मग्गं, मग्गं च पडिवजई ॥५६॥ आसे य इइ के वुत्ते, केसी गोयममन्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बबी ॥ ५७ ॥ मणो साहसिओ भीमो, दुहस्सोपरिधावई । तं सम्मं तु निगिण्हामि, धम्मसिक्ख इकन्थगं ॥ ५८॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ५९॥ कुप्पहा बहवो लोए, जेहिं नासन्ति जन्तुणो। अद्धाणे कह वट्टन्ते, तं न नाससि गोयमा ॥६॥ जे य मग्गेण गच्छन्ति, जे य उम्मग्गपट्ठिया। ते सवे वेइया मजं, तो न नस्सामहं मुणी ॥ ११ ॥ मग्गे य इइ के वुत्ते, केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ६२ ॥ कुप्पवयणपासण्डी, सबे उम्मग्गपट्ठिया । सम्मग्गं तु जिणक्खायं, एस मग्गे हि उत्तमे ॥ ६३ ॥

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