Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीजैन सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला राइयं च अईयरं, चिन्तिज अणुपुत्वसो । नाणंमि दंसणंमि य, चरित्तमि तवंमि य ॥४८॥ पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । राइयं तु अईयारं, आलोएन्ज जहक्कम्मं ॥ ४९ ॥ पडिकमित्तु निस्सल्लो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुजा, सबदुक्खणं ॥५०॥ किं तवं षडिवजामि, एवं तत्थ विचिन्तए । काउस्सग्गं तु पारित्ता, वन्दई य तओ गुरुं ॥५१ ।। पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । तवं तु पडिवजेजा, कुजा सिद्धाण संथवं ॥ ५२ ॥ एसा सामायारी, समासेण वियाहिया । जं चरित्ता बहू जीवा, तिण्णा संसारसागरं ॥ ५३ ॥
ति बेमि ॥ इअ सामायारी समत्ता ॥ २६ ॥
॥ अह खलुकिज्ज सत्तवीसइमं अज्झयणं ॥ थेरे गणहरे गग्गे, मुणी आसि विसारए । आइण्णे गणिभावम्मि, समाहिं पडिसंधए ॥१॥ वहणे वहमाणस्स. कन्तरं अइवत्तई । जोगे वहमाणस्स, संसारो अइवत्तई ॥२॥ खलुंके जो उ जोएइ, विहम्माणो किलिस्सई । असमाहि ज वेएइ, तोत्तओ से य भजई ॥३॥ एग डसइ पुच्छम्मि, एगं विन्धइ ऽभिक्खणं । एगो भंजइ समिलं, एगो उप्पहदडिओ ॥४॥ एगो पडइ पासेणं, निवेसइ निवजई । उक्कुहइ उप्फिडइ, सढे बालगवी वए ॥ ५॥ माई मुद्धेण पडइ, कुद्धे गच्छे पडिप्पहं । मयलक्खेण चिट्ठई, वेगेण य पहामई ॥६॥ छिन्नाले छिन्दई सेलिं, दुद्दन्तो भंजए जुगं । सेवि य सुस्सुयाइत्ता, उज्जहित्ता पलायए ॥ ७॥ खलंका जारिसा जोजा, दुस्सीसा वि हु तारिसा। जोइया धम्मजाणम्मि, भजन्ती धिइदुब्बला ॥८॥ इड्डीगारविए एगे, एगेऽत्थ रसगारवे । सायागारविए एगे, एगे सुचिरकोहणे ॥९॥ भिक्खालसिए एगे, एगे ओमाणभीरुए । थद्धे एगे आणुसासम्मी, हेऊहिं कारणेहि य ॥१०॥ सो वि अन्तरभासिल्लो, दोसमेव पकुबई । आयरियणं तु वयणं, पडिकूलेइऽमिक्खणं ॥११॥ न सा ममं वियाणाइ; न य सा मज्झ दाहिई । निग्गया होहिई मन्ने, सहू अन्नोत्थ वचउ ॥ १२ ॥ पेसिया पलिउंचन्ति, ते परियन्ति, समन्तओ। रायवेटिं च मन्नन्ता, करेन्ति मिउडि मुहे ॥ १३ ॥ वाइया संगहिया चेव, भत्तपाणेण पोसिया । जायपक्खा जहा हंसा, पक्कमन्ति दिसो दिसि ॥ १४ ॥ अह सारही विचिन्तेइ, खलंकेहिं समागओ। किं मज्झ दुट्ठसीसेहिं, अप्पा मे अवसीयई ॥ १५ ॥ जारिसा मम सीसाओ, तारिसा गलिगद्दहा । गलिगद्दहे जहित्ताणं, दढं पगिण्हई तवं ॥ १६ ॥ मिउमद्दवसंपन्नो, गम्भीरो सुसमाहिओ। विहरइ महिं महप्पा, सीलभूएण अप्पणं ॥ १७ ॥
त्ति बेमि ॥ खलुंकिनं समत्तं ॥ २७॥

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