Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 25
________________ (२२) श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला १२ ॥ पुरोहियं तं कम सोऽणुणिन्तं निमंतयन्तं च सुए धणेणं । जहक्कमं कामगुणेहि चैत्र, कुमारगा ते पसंमिक्ख वकं ॥ ११ ॥ या अहीया न भवन्ति ताणं, भुत्ता दिया निन्ति तमं तमेणं । जाया य पुत्तान हवन्ति ताणं, को णाम ते अणुमनेज्ज एयं ॥ खणमेत्तसोक्खा बहुकाल दुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा | संसारमोक्खस्स विपक्खभ्रूया, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा || १३ || परिव्वयन्ते अणियत्तकामे, अहो य राओ परितप्यमाणे । अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे, पप्पोति मच्चुं पुरिसे जरं च ॥ १४ ॥ इमं च मे अस्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच्च इमं अकिचं । तं एवमेयं लालप्यमाणं, हरा हरंति त्ति कहं पमाए ॥ १५ ॥ धणं पभूयं सह इत्थियाहिं, सयणा तहा कायगुणा पगामा । तवं कए तप्प जस्स लोगो, तं सव साहीणमिमेव तुब्भं || १६ | धणेण किं धम्मधुराहिगारे, सयणेण वा कामगुणेहि चेत्र । समणा भविस्सा गुणोहधारी, कहिंविहारा अभिगम्म भिक्खं ।। १७ ।। जहा य अग्गी अरणी असन्तो, खीरे घयं तेल्लमहा तिलेसु । एमेव ताया सरीरंसि सत्ता, संमुच्छइ नासह नाव चिट्ठे ।। १८ ।। नो इन्दियग्गेज्झतमुत्तभावा, अमुत्तभावा वि य होइ निचो । अज्झत्थदेउं निययस्स बन्धो, संसारहेउं च वयन्ति बन्धं ॥ १९ ॥ जहा वयं धम्मं अजाणमाणा, पावं पुरा कम्ममकासि मोहा । ओलभमाणा परिरक्खयन्ता, तं नेव भुज्जो वि समायरामो || २० || अन्भाहयम्मि लोगम्मि, सव्वओ अमोहाहिं पडन्तीहिं, गिहंसि न केण अग्भाहओ लोगो, केण का वा अमोहा वृत्ता, जाया मच्चुणाsभाहओ लोगो, जराए अमोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय जा जा वच्चइ रयणी, न अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जा जा वच्चइ रयणी, न धम्मं च कुणमाणस्स, संफला एगओ संवसार्ण, दुओ सम्मत्त संजया । परिवारिए । रहूं लभे ।। २१ ॥ परिवारिओ । वा चिन्तावरो हुमे ॥ २२ ॥ परिवारिओ । विजाणह ॥ २३ ॥ सा पडिनियत्तई । जन्ति राइओ ॥ २४ ॥ सा पडिनियत्तई । जन्ति राइओ ।। २५ ।। पच्छा जाया गमिस्सामो, जस्सत्थि मच्चुणा सक्खं, भिक्खमाणा कुले कुले ।। २६ ।। जस्त चत्थि पलायणं ।

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