Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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(२४)
श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला.
४६ ॥
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४७ ॥
सामिसं कुललं दिस्स, बज्झमाणं निरामिसं । आमिसं सव्वमुज्झित्ता, विहरिस्सामि निरामिसा ॥ गिद्धोवमा उ नचाणं, कामे संसारवडणे । उरगो सुवण्णपासे व्व, संक्रमाणो तनुं चरे नागो व्व बन्धणं छित्ता, अप्पणो वसहिं वए । एयं पच्छं महारायं, उस्सुयारि त्ति मे सुयं ॥ ४८ ॥ चइत्ता विउलं रज्जं, कामभोगे य दुच्चए । निव्विसय निरामिसा, निन्नेहा निष्परिग्गहा ।। ४९ ।। धम्मं धम्मं वियाणित्ता, चेच्चा कामगुणे वरे । तवं पगिज्झहक्खायं, घोरं घोरपरक्कमा ।। ५० ।। एवं ते कमसो बुद्धा, सव्वे धम्मपरायणा । जम्ममच्चुभउव्विग्गा, दुक्खस्सन्तगवेसिणो ॥ ५१ ॥ सासणे विगयमोहाणं, पुवि भावणभाविया । अचिरेणेव कालेण, दुक्खस्सन्तमुवागया ॥ ५२ ॥ राया सह देवीए माहणो य पुरोहिओ । माहणी दारगा चैव सव्वे ते परिनिव्वुड ॥ ५३ ॥ त्ति बेमि ॥ इअ उयारिजं समत्तं ॥ १४ ॥
॥ अह सभिक्खू पंचदहं अज्झयणं ॥
मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्मं, सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने । संथवं अहिज्ज अकामकामे, अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू ॥ १ ॥ ओवरयं चरेज्ज लाढे, विरए वेयवियायरक्खिए ।
अभिभूय सव्वसी जे, कम्हिचि न मुच्छिए स भिक्खू ॥ २ ॥ अकोसवहं वित्तु धीरे, मुणी चरे लाढे निच्चमायभुते । अग्गमणे असंपट्ठेि, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ३ ॥ पन्तं सयगासणं भइत्ता, सीउन्हं विविहं च दंसमसगं । अवगमणे असंपहिट्टे, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ४ ॥ नो समिच्छई न पूयं, नो वि य वन्दणगं कुओ पसंसं । से संजए सुबए तवस्सी, सहिए आयगवेसए स भिक्खू ॥ ५ ॥ जेण पुण जहाइ जीवियं, मोहं वा कसिणं नियच्छई । नरनारिं पजहे सया तवस्सी, न य को ऊहलं उवेइ स भिक्खू ॥ ६ ॥ छिन्नं सरं भोमन्त लिक्खं, सुमिणं लक्खणदण्डवत्थुविज्जं । अंगवियारं सरस्स विजयं, जे विजाहिं न जीवइ स भिक्खू ॥ ७ ॥ मन्तं मूलं विविहं वेज्जचिन्तं वमणविरेयणधूमणेत्तसिणाणं । आउरे सरणं तिगिच्छियं च तं परिन्नाय परिवए स भिक्खू ॥ ८ ॥ खत्तियगणउग्गरायपुत्ता, माहणभोइय विविहा य सिप्पिणो । नो तेसिं वयइ सिलोगपूयं तं परित्राय परिव्वए स भिक्खू ॥ ९ ॥ गिहिणो जे पवइएण दिट्ठा, अप्पवइएण व संधुया हविजा । सिं इयलोइयफलट्ठा, जो संथवं न करेइ स भिक्खू ॥ सयणासणपाणभोयणं, विविहं खाइमसाइमं परेसिं ।
१० ॥

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