Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला Mornna aniwwwwwmunana एरिसे सम्पयग्गम्मि, सबकामसमप्पिए । कहं अणाहो भवइ, मा हु भन्ने मुसं वए ॥ १५ ॥ न तुमं जाणे अणाहस्स, अत्थं पोत्थं च पत्थिवा । जहा अणाहो भवई, सणाहो वा नराहिवा ॥ १६ ॥ सुणेह मे महाराय, अवक्खित्तेण चेयसा। जहा अणाहो भवई, जहा मेयं पवत्तियं ॥ १७ ॥ कोसम्बी नाम नयरी, पुराण पुरभेयणी । तत्थ आसी पिया मज्झ, पभूयधणसंचओ ॥ १८ ॥ पढमे वए महाराय, अउला मे अच्छिवेयणा । अहोत्था विउलो डाहो, सबगत्तेसु पत्थिवा ॥ १९ ॥ सत्थं जहा परमतिक्खं, सरीरविवरन्तरे। आधीलिज अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा ॥ २० ॥ तियं मे अन्तरिच्छं च, उत्तमंगं च पीडई । इन्दासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा ॥२१॥ उवटिया मे आयरिया, विजामन्ततिगिच्छय।। अधीया सत्थकुसला, मन्तमूलविसारया ॥२२॥ ते मे तिगिच्छं कुवन्ति, चाउप्पायं जहाहियं । न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ॥ २३ ॥ पिया मे सबसारंपि, दिजाहि मम कारणा न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ॥ २४ ॥ माया य मे महाराय, पुत्तसोगदुहटिया । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ॥ २५ ॥ भायरो मे महाराय, सगा जेट्टकणिट्ठगा। न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ॥ २६ ॥ भइणीओ मे महाराय, सगा जेट्टकणिढगा। न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ।। २७ ।। भारिया मे महाराय, अणुरत्ता अणुव्वया । अंसुपुण्णेहिं नयणेहिं, उरं मे परिसिंचई ॥ २८ ॥ अन्नं च पाणं ण्हाणं च, गन्धमल्लविलेवणं । मए नायमणायं वा, सा बाला नेव भुंजई ॥ २९ ॥ खणं पि मे महाराय, पासाओ मे न फिट्टई । न य दुक्खा विमोएइ. एसा मज्झ अणाहया ॥ ३०॥ तओ हं एवमाहंसु, दुक्खमा हु पुणो पुणो । वेयणा अणुभविउं जे, संसारम्मि अणन्तए ॥ ३१ ॥ सई च जइ मुच्चेजा, वेयणा विउला इओ। खन्तो दन्तो निरारम्भो, पवए अणगारियं ॥ ३२ ॥ एवं च चिन्तइत्ताणं, पसुत्तो मि नराहिवा । परियत्तन्तीए राईए, वेयणा मे खयं गया ॥ ३३ ॥ तओ कल्ले पमायम्मि, आपुच्छित्ताण बन्धवे । खन्तो दन्तो निरारम्भो, पचइओऽणगारियं ॥ ३४ ॥ तो हं नाहो जाओ, अप्पणो य परस्स य । सबे सिं चेव भूयाणं, तसाण थावराण य ॥ ३५ ॥ अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नन्दणं वणं ॥ ३६॥ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुक्खाण य सुहाण य। अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठियसुपट्टिओ ॥ ३७ ॥ इमा हु अन्ना वि अणाहया निवा, तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि । नियण्ठधम्म लहीयाण वी जहा, सीयन्ति एगे बहुकायरा नरा ॥ ३८ ॥ जो पवइत्ताण महत्वयाई, सम्मं च नो फासयई पमाया । अनिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे, न मूलओ छिन्नइ बन्धणं से ॥ ३९ ॥ आउत्तया जस्स न अत्थि काइ, इरियाए भासाए तहेसणाए । आयाणनिक्खेवदुगंछणाए, न धीरजायं अणुजाइ मग्गं ॥ ४० ॥ चिरं पि से मुण्डरुई भवित्ता, अथिरबए तवनियमेहि भट्टे । चिरं पि अप्पाण किलेसइत्ता, न पारए होइ हु संपराए ॥ ४१॥ पोले व मुट्ठी जह से असारे, अयन्तिए कूडकहावणे वा । राढामणी वेरुलियप्पगासे, अमहग्घए होइ हु जाणएसु ॥ ४२ ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78