Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला.
तं पुन्चनेहेण फयाणुरागं, नराहिवं कामगुणेसु गिद्धं । धम्मस्सिओ तस्स हियाणुपेही, चित्तो इम वयणमुदाहरित्था ॥ १५॥ सव्वं बिलवियं गीयं, सव्वं नटुं विडम्बियं । सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा ॥ १६ ॥ बालाभिरामेमु दुहावहेसु, न तं सुहं कामगुणेसु रायं । विरत्तकामाण तवोहणाणं, जं मिक्खुणे सीलगुणे रयाणं ॥ १७ ॥ नरिंद जाई अहमा नराणं, सोयागजाई दुहओ गयाणं । जहिं वयं सव्यजणस्स, वेस्सा, वसी य सोवागनिवेसणेसु ॥ १८ ॥ तीसे य जाईइ उ पावियाए, वुच्छानु सोवागनिवेसणेसु । सव्वस्प लोगस्स दुगंछणिज्जा, इहं तु कम्माइ पुरे कडाइं ॥ १९ ॥ सो दाणि सिं राय महाणुभागो, महिड्ढी पुण्णफलोववेओ। चइत्तु भोगाइ असासयाई, आदाणहेउं अभिणिक्खमाहि ॥ २० ॥ इह जीविए राय असासयम्मि, धणियं तु पुण्णाइ अकुबमाणो । से सोयई मच्चुमुहोवणीए, धम्म अंकाऊण परंसि लोए ॥ २१ ॥ जह सीहो व मियं गहाय, मच्चू नरं नेइ हु अन्तकाले । न तस्स माया व पियाव भाया, कालम्मि तम्मंसहरा भवन्ति ।। २२ ॥ न तस्स दुक्खं विभयन्ति, नाइओ, न मित्तवग्गा न सुयान बंधवा । एक्को सयं पच्चणुहोइ दुक्खं, कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ॥ २३ ॥ चेचा दुपयं च चप्पयं च, खेत्तं गिहं धणधनं च सव्वं । सकम्मबीओ अवसो पयाइ, परं भवं सुंदर पावगं वा ॥ २४ ॥ तं एक तुच्छसरीरगं से, चिईगयं दहिय उ पावगेणं । मज्जा य पुत्तावि य नायओ य, दायरमन्नं अणुसंकमन्ति ॥ २५॥ उवणिजई जीवियमप्पमायं. वणं जरा हरइ नरस्स राय । पंचालराया वयणं सुणाहि, मा कासि कम्माइ महालयाई ॥ २६ ॥ अहं पि जाणामि जहेह साहू, जं मे तुमं साहमि वक्कमेयं । भोगा इमे संगकरा हवन्ति, जे दुजया अन्जो अम्हारिसेंहिं ॥ २७ ॥ हत्थिणपुरम्मि चित्ता, दट्टणं नरवई ‘महिड्ढीयं । कामभोगेसु गिद्धेणं, नियाणमसुहं कडं ॥ २८ ॥ तस्ल मे अपडिकन्तस्स, इमं एयारिसं फल । जाणमाणो वि जं धम्म, कामभोगेसु मुच्छिओ ॥ २९ ॥ नागो जहा पंकजलावसन्नो, दटु थलं नाभिसमेइ तीरं । एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, न भिक्खुणो मग्गमणुचयामो ॥ ३० ॥ अचेइ कालो तरन्ति राइओ, न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा ।

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