Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-त्रिंदशमध्ययनम् उविच्च भोगापुरिसं चयन्ति, दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ॥ ३१ ॥ जइ तं सि भोगे चइउं असत्तो, अञ्जाइ कमाइ करेहि रायं । . धम्मे ठिओ सवपयाणुकम्पी, तो होहिसि देवो इओ विउबी ॥ ३२ ॥ न तुज्झ भोगे चइऊण बुद्धी, गिद्धो सि आरम्भपरिग्गहेसु । मोहं कओ एत्तिउ विप्पलावु, गच्छामि रायं आनन्तिओसि ॥ ३३ ॥ पंचालराया वि य बम्भदृत्तो, साहुस्स तस्स वयणं अफाउं। अणुत्तरे भुंजिय कामभोमे, अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ॥३४॥ चित्तो वि कामेहि विरत्तकामो, अदग्गचारित्ततवो महेसी । अणुत्तरं संजमं पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गओ ॥ ३५ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ चित्तसम्भूइज्जं समत्तं ॥
॥ अह उसुयारिजं चोदहमं अज्झयणं ॥ देवा भवित्ताण पुरे भवम्मी, केई चुया एगविमाणवासी । पुरे पुराणे उसुयारनामे, खाए समिद्धे सुरलोगरम्मे ॥ १॥ सकम्मसेसेण पुराकएणं, कुलेसुदग्गेसु य ते पसूया। निविण्णसंसारभया जहाय, जिणिंदमग्गं सरणं पवना ॥२॥ पुमत्तमागम्म कुमार दो वी, पुरोहिओ तस्स जसा य पत्ती । विसालकित्ती य तहोसुयारो, रायत्थ देवी कमलावई य ॥३॥ जाईजरामच्चुभयाभिभूया, वहिविहाराभिनिविट्ठचित्ता । संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा, दतॄण ते कामगुणे विरत्ता ॥ ४ ॥ पियपुत्तगा दोन्नि वि माहणस्स, सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स । सरितु पोराणिय तत्थ जाई, तहा भुचिणं तवसंजमं च ॥५॥ ते कामभोगेसु असजमाणा, आणुस्सएमुंजे यावि दिव्वा । मोक्खामिकंखी अभिजायसड्ढा, तायं उवागम्म इमं उदाहु ॥ ६॥ असासयं दह्र इमं विहारं, बहुअन्तरायं न य हीयमाउं । तम्हा गिहिसि नरई लहामो, आमन्तयामो चरिस्सामु मोणं ॥७॥ अह तायगो तत्थ मुणीण तेसिं, तवस्स वाघायकरं वयासी । इमं वयं वेयविओ वयन्ति, जहा न होई असुयाण लोगो ॥ ८॥ अहिज्ज वेए परिविस्स विप्पे, पुत्ते परिदुप्प गिहंसि जाया। भोचाण भोए सह इत्थियाहिं, आरण्णगा होह मुणो पसत्था ॥९॥ सोयरिंगणा आयगुणिन्धणेणं, मोहाणिला पन्जलणाहिएणं ।। संतत्तभावं परितप्पमाणं, लालप्पमाणं बहुहा बहुं च ॥ १० ॥

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