Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 12
________________ [ ११ मानवता के जीवन्त प्रतीक, सेवाव्रती, धर्मनिष्ठ श्री देवेन्द्रराजजी मेहता का मैं अत्यन्त आभारी हूँ कि जिनकी सतत प्रेरणा एवं सुयोग्य संबल के कारण मैं इस कार्य को सम्पन्न कर सका । अन्त में, मैं मेरे सद्धर्माचार्य खरतरगच्छ विभूषण पूतात्मा स्वर्गीय आचार्य श्री जिनमणिसागरसूरिजी महाराज का अत्यन्त ऋणी हैं कि उनके वरद हस्त एवं कृपापाथेय के कारण ही मेरे जैसा अल्पज्ञ/क्षुद्र-व्यक्ति साहित्यिक-यज्ञ में एक आहुति देने में सक्षम हो सका। आश्विन शुक्ला ८ सं० २०४१ जयपुर म. विनयसागर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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