Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2 Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan JaipurPage 10
________________ ४. उपमितिभवप्रपंचोद्धार (गद्य) : देवसूरि : श्री विमलचन्द्र गरिण के अनुरोध से रचित : श्लोक परिमारण २३२८ : इसकी प्रति पाटन के ज्ञान भण्डार में प्राप्त है । कृति अप्रकाशित है। ५. राजस्थानी/हिन्दी अनुवाद : श्री भंवरलालजी नाहटा की सूचनानुसार इसकी प्रति श्री जिनदत्तसूरि मण्डल, अजमेर के संग्रहालय में हस्त० प्रति के रूप में प्राप्त है। उपमिति-भव-प्रपंच कथा के मुद्रित संस्करण मूल ग्रन्थ के अभी तक तीन संस्करण विभिन्न संस्थाओं द्वारा निकल चुके हैं : १. डॉ. हर्मन जेकोबी और पीटर्सन के संयुक्त सम्पादकत्व में बीबीलोथिया इण्डिया की सीरीज में सन १८६६ से १९१४ के मध्य में बंगाल एशियाटिक सोसायटी द्वारा प्रकाशित । २. देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड, सूरत/बम्बई से दो भागों में सन् १६१८-१६२० में प्रकाशित । ३. भारतीय प्राच्यतत्त्व प्रकाशन समिति, पिण्डवाडा से वि० सं० २०३४ में दो भागों में प्रकाशित । मूल ग्रन्थ के तीनों ही संस्करण आज अप्राप्त हैं। अनुवाद १. डब्ल्यू. किरफेल ने सर्वप्रथम इसका जर्मन भाषा में अनुवाद किया था जो सन् १९२४ में प्रकाशित हुआ था। २. श्री मोतीचन्द गिरधरलाल कापड़िया ने इसका गुजराती भाषा में अनुवाद किया था जो तीन भागों में जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर से सन् १६२५-१६२६ में प्रकाशित हुआ था। श्री कापड़िया ने "श्री सिद्धर्षि" के नाम से प्रस्तुत ग्रन्थ के अध्ययन के रूप में विशाल पुस्तक भी लिखी थी। यह कृति भी जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर से प्रकाशित हुई थी। ३. श्री नाथूराम प्रेमी ने केवल प्रथम प्रस्ताव का हिन्दी अनुवाद किया था, जो आज से ६० वर्ष पूर्व हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर, कार्यालय, बम्बई से प्रकाशित हुप्रा था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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