Book Title: Updeshsapttika Navya
Author(s): Kshemrajmuni, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 396
________________ उपदेश ।। ३७४।। भडगघडसमिद्ध ||२|| तमु घरणि रमणि च्छ मिगादेवि रइरंभहावियरूविहेवि । लजामञ्जायसुसीलदेह जिणि सोहर सोहण रायगेह ||३|| तिहिं अन्नदिवसि सिरिवीरसामि जसु सुकयवल्लिपल्लवइ नामि । अह समवसरिय सुरनमिपाय सोवनवन करसतकाय ||४|| आगमण मुणचि अह विजयराय पराउ पहुबंदण पणयपाय । जवओि ओ सामिभति वक्खाण सुगइ सो एक चिति ||५|| जबंध कोई इत्थंतरम्मि संपत्त समवसरणम्मि रम्मि । महुवाल जेम मच्छि अतुच्छ भगणह पासि जसु तणु अवच्छ ||६|| जइ जुन सडियचीवरइ खंड बेयण विसतओ अइपर्यंड । जाणे करि पावह तण दंड पाविउ छह लोयहिं सो अखंड ||७|| करचरणनह अंगुलि सडिय जास कर्मि जिम गड्डिय बुडनास | अइघरहरसद्द महारउछ रुविहिं बीहावई लोयखुद्द || ८|| नरडुबकर छुकर कहई तासु करि ककर खंडवि जासु । अह दिओ दिद्विहिं सयललोइ सिरिवीरपासि आवंत सोइ || ९ || घत्त - एरिस तं पिच्छिय गोयमि पुच्छिय वीरनाहमह आइस । इणि केरिस किद्धउ पावविरुद्ध जेणि सहद एरिस दुह ||१०|| भासअह सामिय अखइ मरवाणि तं किपि करद जिय रुद्दझाणि । पणघोरकम्म करुणाविमुक निस्संरूपण बहुपावदुक्क || ११|| जिणि एरिस gra पंजरम्मि निवडत सयादि अ जञ्जरम्मि । तो पुच्छर गोयम पुर्णावि वीर मह कहउ नाह गंभीरभीर ||१२|| एयारिस अंधनराज कोवि अवरोऽवि अस्थि दुखिओ जणोsa । जं पक्खि विरचई कामिणोऽवि संसारविसयनुखाउ asha ||१३|| पहु बागरे हत्थेव गामि नरनाहु अस्थि जो विजयनामि । तमु रमणि मिगानंद अब दुर्विखयजण चूडामणि दीव || १४ || नहु नयणवयणकरचरण तासु नहु दीसह नासा कल जासु । नहु सीसभमुह अह दुनि सप्ततिका. ॥ ३७

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