Book Title: Updeshsapttika Navya
Author(s): Kshemrajmuni, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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सुपिय दसण अईव निवु मन्नइ नियकुलघरपईव ।।६।। मंदरगिरि सुरतरु अंकुरु व्व, सो वड्ढइ पियधरि गुणिअपुव । मम्मणघण वयण भणतु सव्व परियण आणंदइ रूवि दिव्व ।।७॥ घात-इत्थंतरि सामिय सिद्धिहि गामीय विहरंत उ सिरिवीरपहो। संपत्तओ तिणि पुरि सेविय नरसुरि पुत्रिमचंदसमाणमहो ।।८॥ भास-उजाणपाल आविय नरिंद यद्धायिउ चरमजिणिदचंद । सामिय इह पत्तउ विजयवंत मुणिवरपरिवारिहि गहमहंत ।।९।। तसु दिद्ध पारितोसिय महंत धणदाणसयं वहुभत्तिमंत । अह चल्लिय पिलिय गुणहिं राय गंतूण तत्थ पहु नमइ पाय ॥१०॥ तिपयाहिणपुच नमित्तु नाह संतोस धरइ नियमणि अगाह । पारद्ध धम्मदेसण जिणेण पीयमत्ररिसमहुरत्तणेण ।।११॥ भो भव्व सब्वसंसारसार नरजम्म लहे विण अइउदार । जिणधम्मरम्म जणदिन्न सरग आराह र साहओ सिद्धिमग ।।१२।। चत्तारि न किजइ मणि कसाय पञ्च खरूव नणु ते पिसाय । वसि किजइ ते नियउजमेण खमदम उवसमबलिनिच्छएण ।।१३।। बच्चाई सुदेसण रससुसाउ परिपीय सब्वजण गयविसाउ1 जिणगुण थुणतु नियगेहपत्त पहुभतिकरंबिय सद्धचित्त ।।१४॥ अह छ? सुठ्ठ तवपारणम्मि आपुच्छिय पहु भिक्खाखणम्मि। पोलासपुरिहि गोयममुणिद आवइ मुहचं गिमविजियचंद ॥१५।। अह रायमगि अइमुत्तनाम पुरकूमर समन्निय मणभिराम। खिल्लंत उ अच्छद कंदुगेण नाणाबिहकीलारसभरेण ॥१६॥ नहु थक्कइ हक्कइ पुरकुमार रे धावहु लावह काँइवार । इय जपिरेण हरिसेण तेण दिट्ठउ गोयमरिसि तक्खणेण ॥१७।। पयपउमि लग्ग सो मुणिवरस्स बहुपन्नजोगि समुवागयस्स । को रायहंस गइ सिखवेइ को उच्छदंड महुरिम ठवेइ ।।१८।। कुलवंत होइ नणु विण यवंत विणसिरिक्तिय अक्खि व सो महंत । अंगुलीयलग्ग अइमुत्त वत्त
॥४३९॥

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