Book Title: Updeshsapttika Navya
Author(s): Kshemrajmuni, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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सप्तति का.
उपदेश-10
वच्चह एयं वारेह चिट्ठयरं ।।१७।। तो तेहि समुल्लवियं सामो एसा ठिई तिहयणस्स । विणवारे सका न सकतिय- B सासुरेहिं पि ।।१८। को लोयणाई अंजइ सुतिक्खभल्लेण केसरकलावं 1 को केसरिणो छिवई करेण चिरजीवियाकखी ।
।।१९।। इइ बुत्तोऽवि न चिदृइ जा ता सयमेव एस रोसिल्लो । उट्ठिय पहरणसालं पबिसित्तु खणेण चमरिंदो ॥२०॥
फलिहरयणं पगिन्हिय ततो एसो विणिग्गओ तुरियं । ऊ उप्पडओ नहयलम्मि अइदोहरोसतणू ।।२१।। तत्तो सजी||३९०।।
विएसी वीर विनाय संसुमारपुरे । अढमभत्तियमिगराइपडिममावन्न म इसतं ॥२२॥ वंदित्तु एवमक्ख' निस्साए तुम्ह देवरायमह । जिप्पेमि होसु सरणं तओ गओ चमरअसुरिदो ॥२३।। कर कयसबलग्गलओ निरग्गलो मयगल्लो व दप्पिल्लो । उप्पइओ अंबरपहमसंखदीवोय हिसमूह ।।२४।। सिग्घमवक्कममाणो पत्तो सोहम्म कप्पमाल्लं सोहामव डंसयमह विमाणमागम्मिगपएण ।।२५।। पउमवरवेइयं अकमित्तु बीएण तह सुहम्मसभं । आरुहिय महास देण एवमुग्धोसिउं लग्गो ११२६॥ अहह कह नणु भो सुरिंद मह मत्थ उरि धरंतो। तुह पाए न हु मणयं मणम्मि संकं समुवहसि ।।२।। अन्ज न होसि फुड तुममेरिसदुव्ययणमस्मयं पुक्वि । सको निमुणिय रुटो धिटुत्तण महहमे यस्स ।।२८॥ इय चितिय अकोसइ तं तारिसमसरिसं पलवमाणं । रे अप्पत्थियपत्थय गओसि नणु अञ्ज निल्लज ।। २९॥ इई भासिरो सुनिज्मयमग्गि व्व उदग्गजालमालिल्लं । चमरस्स हणणहेज करेण कुलिस मुयइ सक्को ।।३०।। आगच्छतं वजं पिच्छिय भयभीयमाणसो चमरो । पच्छामुहो पलाणो अहोसिरो उडपाउं य ॥३१।। संभग्गम उडविडवो भीओ निग्गसियकंठवरहारो। नस्संतो सेयजलं घरसंतो कक्खभालेसुं ।।३२।। भय जत्थरिथ पहू तत्थागंतूण सरणमल्लीणो । दोहं पायाण महंत रम्मि
।।३९०।।

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