Book Title: Tulsi Prajna 2005 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ कुण्डग्राम की वसुकुण्ड से समानता के सम्बन्ध में डॉ. श्यामानंद प्रसाद ने यह आपत्ति कि वसुकुण्ड में केवल कुण्ड शब्द की ही समानता है, 'वसु' शब्द न तो ब्राह्मण का पर्यायवाची हो सकता है, न क्षत्रिय का, अत: उनका कहना है कि वर्तमान वसुकुण्ड को महावीर का जन्म स्थल नहीं माना जा सकता। किन्तु डॉ. प्रसाद ने मूल आगम साहित्य को शायद देखने का प्रयास नहीं किया। आचारांगसूत्र में वसु और वीर' शब्द का प्रयोग श्रमण के अर्थ में हुआ है। मात्र यही नहीं, वसु शब्द का एक अर्थ जिनदेव या वीतराग भी उपलब्ध होता है, वस्तुत: यह संभव है कि भगवान महावीर के संयम-ग्रहण करने के बाद इस क्षेत्र को क्षत्रियकुण्ड के स्थान पर वसुकुण्ड कहा जाने लगा। वर्तमान लछवाड़ के समीप जो ब्राह्मणकुण्ड और क्षत्रियकुण्ड की कल्पना की गई है वहां इस तरह की कोई वेबसाइट नहीं है। महना को ब्राह्मणकुण्ड भी नहीं माना जा सकता। ब्राह्मणकुण्ड और क्षत्रियकुण्ड नाम तो उन्हें महावीर के जन्मस्थल मान लेने पर दिये गये हैं। इस प्रकार मेरी यह सुनिश्चित धारणा है कि लछवाड़ के समीप जमुई मण्डल के इस क्षेत्र का संबंध महावीर के साधना एवं केवलज्ञान स्थल से अवश्य रहा है। यह भी सत्य है कि जिसे वर्तमान में लछवाड़ है, उसका संबंध लिच्छविया से हो सकता है, किन्तु इस नाम की भी प्राचीनता कितनी है, यह शोध का विषय हैं। डॉ. प्रसाद का यह मानना समुचित नहीं है कि वैशाली को महावीर के जन्म स्थान के रूप में मान्यता 1948 में मिली। इसके पूर्व भी विद्वानों ने वैशाली के निकट और विदेह क्षेत्र में महावीर का जन्म स्थान होने की बात कही है। यह निश्चित है कि लगभग 15-16वीं शती से श्वेताम्बर परम्परा में लछवाड़ के समीपवर्ती क्षेत्र को महावीर के जन्म स्थान मानने की परम्परा विकसित हुई है। भगवान महावीर ने अर्धमागधी भाषा में अपना प्रवचन दिया था, इसलिये वे मगध क्षेत्र के निवासी होना चाहिए, ऐसी जो मान्यता लछवाड़ के पक्ष में दी जाती है, वह भी समुचित नहीं हैं। यह स्मरण रखना चाहिये कि महावीर की भाषा मागधी न होकर अर्धमागधी है। यदि महावीर का जन्म और विचरण केवल मगध क्षेत्र में ही हुआ होता तो वे मागधी का ही उपयोग करते, अर्धमागधी का नहीं। अर्धमागधी स्वयं ही इस बात का प्रमाण है कि उनकी भाषा में मागधी के अतिरिक्त अन्य समीपवर्ती क्षेत्रों की भाषाओं एवं बोलियों के शब्द भी मिले हुए थे। मैं जमुई अनुमण्डल को महावीर का साधना स्थल एवं केवलज्ञान स्थल मानने में तो सहमत हूँ, किन्तु जन्म स्थल मानने में सहमत नहीं हूँ, अतः महावीर का जन्म स्थल वैशाली के समीप वर्तमान वासुकुण्ड ही अधिक प्रामाणिक लगता है। जैन समाज को उस स्थान के सम्यक् विकास हेतु प्रयत्न करना चाहिए। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2005 - - 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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