Book Title: Tulsi Prajna 2005 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 35
________________ 18. 19. वसुनन्दि श्रावकाचार 326-331 20. आचारांग सूत्र 6/74 21. आचारांग सूत्र 6/75 22. वही 6/76 23. काले विए उवहाणे, बहुमाणे तहेव णिण्हवणे । वंजण अत्थतदुभयं विणओ णाणम्हि अट्हविहो ॥ मूलाचार 267 कित्ती मित्ती माणस्स भंजण गुरुजणे य बहुमाणं । 24. दसवे आलियं - नवम अध्ययन- आमुख तित्थयराणं आणा गुणाणुमोदो य विणय गुणा । वही 288 25. स्मयेन योऽन्यानत्येति धर्मस्थान गर्विता शयः । 30 सोऽत्येति धर्ममात्मीयं न धर्मो धार्मिकर्विना ॥ रत्नकरण्ड श्रावकाचार 26 26. अध्ययन 9/21 27. वसुनन्दि श्रावकाचार 334, 335 28. प्रशमरति प्रकरण श्लोक 67, 68 Jain Education International विभागाध्यक्ष जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म तथा दर्शन विभाग जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं (राजस्थान ) For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा अंक 127 www.jainelibrary.org

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