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रूप है। अशुभ से शुभ की ओर प्रस्थान का अर्थ है स्थूल की ओर प्रयाण। स्थूल दृष्टि वाला व्यक्ति पापकारी प्रवृत्तियों में संलग्न रहता है। पाप का कारण स्थूल दृष्टि है। इस दृष्टि से युक्त प्राणी अपाद्भद्र परिणामदर्शी होते हैं। यह तमोगुण की परिचायक है। पुण्य की ओर प्रस्थान सूक्ष्मदृष्टि से होता है। तमोगुण स्थूलता का संवाहक है। सत्त्व गुण सूक्ष्मता का आधारभूत तत्त्व है। पुरुष और प्रकृति की अन्यता का बोध विवेक ख्याति से होता है। (विवेकख्यातिः सत्त्वगुणात्मिका) अन्ततोगत्वा इसका भी निरोध कर दिया जाता है। पातंजल योग दर्शन के अनुसार वह अवस्था की निर्बीज समाधि की है। उसके पश्चात् पुरुष का अपने स्वरूप में अवस्थान हो जाता है । त्रिगुणावस्था संसार है। गुणातीत निर्गुणावस्था स्वरूपावस्थान है। वह आत्मा का शुद्ध स्वरूप है।
सन्दर्भ-सूची :
1. सांख्यकारिका, 3 मूलप्रकृतिरविकृतिर्महदाद्याः प्रकृतिविकृतयः सप्त।
षोडशकस्तु विकारो न प्रकृतिर्न विकृतिः पुरुषः॥ वही, 2 ..................... व्यक्ताव्यक्तज्ञविज्ञानात् । वही, 11 त्रिगुणमविवेकि विषयः सामान्यमचेतनं प्रसवधर्मि।
व्यक्तं तथा प्रधानं तद्विपरीतस्तथा च पुमान्॥ 4. षड्दर्शनम् श्लोक 37 "एतेषां या समावस्था सा प्रकृतिः किलोच्यते।"
John Bowker, Concise dictionary of world religion, P. 452 Prakrti is conposed of three balanced gunas or constituent modes which in disequilibrium, combine to generate all other material principles. सांख्यकारिका 25, सात्त्विक एकादशकः प्रवर्तते वैकृतादहंकारात्। भूतादेस्तन्मात्रः स तामसस्तैजसादुभयम् ।। वही, 12 वही, 12
वही, 13 10. वही, 13 11. वही, 13 12. गीता, 14/5 सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः ।
निबन्धन्ति महाबाहो। देहे देहिनमभव्ययम् ।।
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2005
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